Friday, June 15, 2018

चर्चा प्लस : बारिश में भीगता अनाज और खून के आंसू - डॉ. शरद सिंह

चर्चा प्लस :
बारिश में भीगता अनाज और खून के आंसू
- डॉ. शरद सिंह
खून-पसीना एक कर के जिस अनाज को किसान उगाता है वह अगर उसकी आंखों के सामने बारिश में भीग कर खराब हो जाए तो इससे बढ़ कर दुर्भाग्य उसके लिए और कुछ नहीं हो सकता है। शासन हर कदम पर किसानों की मदद करना चाहती है वहीं प्रशासनिक लापरवाही और कमियां न केवल योजनाओं को अपितु किसानों की मेहनत को भी हर साल बड़े पैमाने पर पानी में सड़ा देती है। कि
सान तो खून के आंसू रोता ही है, साथ में आम जनता भी विवश हो जाती है मंहगा अनाज खरीदने को। सवाल यह है कि चूक एक बार हो तो वह चूक कही जा सकती है लेकिन प्रति वर्ष वही विडम्बना दोहराई जाए तो उसे अपराध नही ंतो और क्या कहेंगे? इस अव्यवस्था के चलते देश में हर साल लगभग 2.10 करोड़ टन गेहूं बर्बाद होता है।
चर्चा प्लस : बारिश में भीगता अनाज और खून के आंसू - डॉ. शरद सिंह .. Article for Column - Charcha Plus by Dr Sharad Singh in Sagar Dinkar Dainik
 देश में गेहूं बर्बाद होने से कई सवाल राज्यों से लेकर केन्द्र की सरकारों पर हमेशा से खड़े होते रहे हैं। इस विषय में सुप्रीम कोर्ट ने भी केंद्र से कहा था कि देश के गोदामों में गेहूं सड़ा देने से अच्छा है उसे उसे गरीबों में बांट दिया जाए। गेहूं की बर्बादी को लेकर सुप्रीम कोर्ट की यह टिप्पणी कई मायनों में बहुत महत्वपूर्ण थी। एक रिपोर्ट के मुताबिक देश में भुखमरी का सामना करने वाले सबसे ज्यादा प्रभावित लोग हैं। देश में करीब 19 करोड़ लोगों को उनकी आवश्यकता के अनुसार भोजन नहीं मिल पा रहा है। वहीं देश में हर साल 2.10 करोड़ टन गेहूं बर्बाद होता है। इस बर्बादी को लेकर न तो भारतीय खाद्य निगम गंभीर है और न ही गेहूं खरीदने वाली राज्य की एजेंसियां।
अनाज की सुरक्षा और भंडारण के दौरान हुए नुकसान के कुछ ताज़ा उदाहरण देखें कि 08 जून 2018, मध्य प्रदेश के दमोह और हटा में अधिकारियों की लापरवाही से लाखों रुपये के चने बारिश में भीग गए। कृषिमंडी में चने की ये बोरियां खुले में रखी गई थीं। चने को बारिश से बचाने के लिए अधिकारियों ने कोई उचित व्यवस्था नहीं की थी। न तो बोरियों को शेल्टर में रखवाईं गईं और न ही चने को बचाने के लिए कोई इंतजाम किया। मंडी के जिम्मेदार अधिकारियों की लापरवाही के चलते किसानों के लाखों रुपये के काबुली चने पानी में बह गए। कृषि उपज मंडी में काबुली चने की ये बोरियां खुले में रखी थीं। इसके पूर्व 15 मई 2018 को सुसनेर में भी इसी तरह लापरवाही के चलते 5 हजार क्विंटल अनाज बारिश की भेंट चढ़ गया था।
मध्यप्रदेश के सतना जिले में 82 जगहों पर सरकार ने समर्थन मूल्य पर गेहूं खरीद केन्द्र खोले। अब तक आईं तेज तूफानी हवाओं और बारिश ने इन केन्द्रों में करोड़ों का नुकसान कर दिया। उचित व्यवस्था न होने की वजह से बड़ी मात्रा में गेहूं गीला हो गया। मई माह तक जिले में 1,00,469 मीट्रिक टन गेहूं की खरीदी हो चुकी थी। मगर खरीद केन्द्रों से सिर्फ परिवहन और भंडारण 83,323 टन ही हुआ था। शेष का 20,746 मीट्रिक टन गेंहू बारिश से भीग गया। अनाज साथ ही हरपालपुर रेलवे स्टेशन पर खुले मे 3270 टन यूरिया टीकमगढ़ और छतरपुर मे विपणन संघ के माध्यम से किसानों को बांटा जाना था लेकिन अधिकारियों की लापरवाही से 500 टन यूरिया गीला हो गया।
मध्यप्रदेश ही नहीं बल्कि उत्तर प्रदेश में भी भंडारण को ले कर बड़ी गड़बड़ियां सामने आती रही है। इस वर्ष को ही लें तो उत्तर प्रदेश के गेहूं का भंडारण के बारे में समाचार ऐजेंसियों ने विगत चार मई को ही आगाह करा दिया था कि करोड़ों रुपये का गेहूं क्रय केंद्रों पर खुले में पड़ा है। बारिश होने के साथ ही यह गेहूं भीग जाएगा। मई माह तक 35069.25 मीट्रिंक टन गेहूं की खरीद हो चुकी थी। लेकिन भंडारण के लिए र्प्याप्त स्थान नहीं होने से संकट के बादल मंडराने लगे। बदायूं के उझानी में 4500 एमटी भंडारण किया गया। इसके बाद वहां से भी भंडारण के लिए इंकार कर दिया गया। एटा में भी अब तक 17000 एमटी से अधिक का गेहूं भंडारित हो चुका तो एटा ने भी भंडारण करने से हाथ खड़े कर लिए। इससे क्रय केंद्रों पर खुले में रखे 4479.55 एमटी गेहूं के भंडारण की समस्या हो गई। गेहूं की खरीद 30 जून तक होनी है। जिससे क्रय केंद्रों पर और भी गेहूं आएगा। जबकि अभी भी लगभग करीब 8 करोड़ रुपये का गेहूं क्रय केंद्रों पर खुले में पड़ा है। कन्नौज में अब तक सैंकड़ों बोरी गेहूं पानी में भीगकर पहले ही खराब हो चुका है।
उल्लेखनीय है कि विकासशील देशों के ग्लोबल हंगर इंडेक्स में भारत की रैंकिंग 97वें स्थान पर थी, लेकिन एक साल में यह तीन पायदान और गिर कर 100 वें स्थान पर पहुंच गई। भारत जैसे देश में जहां रोजाना लगभग 5013 बच्चे कुपोषण और भुखमरी का शिकार हो जाते हैं, वहां अनाज की इस तरह बर्बादी किया जाना अत्यंत दुर्भाग्य की बात है।
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(दैनिक सागर दिनकर, 13.06.2018 )
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