Dr (Miss) Sharad Singh |
70 साल बाद कश्मीर से अलविदा धारा 370
- डॉ. शरद सिंह
महान विचारक सुकरात ने कहा था कि ‘‘ज़िन्दगी नहीं बल्कि एक अच्छी ज़िन्दगी मायने रखती है।‘‘ कश्मीर अभी तक ज़िन्दगी जी रहा था किन्तु अब अच्छी ज़िन्दगी जिएगा। लगभग 70 साल पहले हुई राजनीतिक त्रुटि को इस प्रकार दृढ़तापूर्वक सुधारे जाने के लिए निश्चित रूप से प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह प्रशंसा के पात्र हैं। दैनिक सागर दिनकर के अपने इसी कॉलम ‘‘चर्चा प्लस’’ में मैंने 17.01.2018 को जो लेख मैंने धारा 370 पर लिखा था उसका शीर्षक ही था कि ‘‘धारा 370 की ऐतिहासिक भूल अब सुधरनी ही चाहिए’’। मैं यह नहीं कहती हूं कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी अथवा गृहमंत्री अमित शाह ने मेरा लेख पढ़ा, वरन् उन्होंने उस चाहत को पढ़ा जो हर भारतीय के दिल पर लिखी हुई थी।
Charcha Plus - 70 साल बाद कश्मीर से अलविदा धारा 370 - Goodbye Article 370 ... Charcha Plus Column by Dr Sharad Singh |
धारा 370 एक ऐसा ज्वलंत मुद्दा रहा है जो कई दशकों से प्रतीक्षा कर रहा था सुलझाए जाने का। मोदी सरकार ने अडिग रहते हुए जिस प्रकार ट्रिपल तलाक और नोटबंदी जटिल मामलों को सुलझाया एवं लागू किया, उसी प्रकार की दृढ़ता की अपेक्षा थी धारा 370 के संदर्भ में। क्योंकि इस धारा के हटते ही कश्मीर का देश में विधिवत् सम्मिलन हो सकेगा। प्रसन्नता है कि एक बार फिर मोदी सरकार ने अपनी दृढ़ता का परिचय दिया। देश की आजादी के बाद कश्मीर को मिले विशेष दर्जे पर मैं यहां चर्चा कर रही हूं कुछ ऐसे तथ्यों और बिन्दुओं की जिन्हें मैंने अपनी पुस्तकों ‘‘राष्ट्रवादी व्यक्तित्व श्यामाप्रसाद मुखर्जी’’ तथा ‘‘राष्ट्रवादी व्यक्तित्व सरदार वल्लभभाई पटेल’’ में लेखबद्ध किया है। अपनी पुस्तक ‘‘राष्ट्रवादी व्यक्तित्व श्यामाप्रसाद मुखर्जी’’ में मैंने तथ्यों के आधार पर उल्लेख किया है कि 8 मई 1953 को डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने कश्मीरयात्रा के लिए विदा देने आए जनसमूह सहित पत्रकारों से कहा था-‘‘जवाहरलाल नेहरू ने बार-बार यह घोषणा की है कि भारत में जम्मू और कश्मीर का विलय शत-प्रतिशत पूरा हो चुका है, फिर भी यह अद्भुत बात है कि कोई भारतीय नागरिक भारत सरकार से अनुमति लिए बिना भारत के राज्य में प्रवेश नहीं कर सकता। यह अनुमति कम्युनिस्टों को भी मिली है जो राज्य में अपना वही विघटनकारी खेल खेल रहे हैं। किन्तु उन लोगों को जाने की अनुमति नहीं है जो भारतीय हैं और राष्ट्रीयता की दृष्टि से सोचते और करते हैं। .... मैं नहीं सोचता कि भारत सरकार को मुझे भारतीय यूनियन के किसी भी हिस्से में जिसमें स्वयं पं. नेहरू के अनुसार जम्मू और कश्मीर भी शामिल है, जाने से रोकने का कोई अधिकार है। वैसे अगर कोई कानून के प्रतिकूल आचरण करता है तो उसे इसके परिणाम अवश्य भुगतने होंगे।’’ उस दिन पं. श्यामा प्रसाद मुखर्जी दिल्ली से अम्बाला जाने के लिए रेलवे स्टेशन पहुंचे। दिल्ली रेलवे स्टेशन पर उन्हें विदाई देने के लिए भारतीय जनसंघ, हिन्दू महासभा, आर्य समाज तथा अन्य संगठनों के हजारों कार्यकर्ता उपस्थित थे। डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी के साथ अटल बिहारी वाजपेयी, वैद्य गुरूदत्त, प्रो. बलराज मधोक भी उनके साथ रवाना होने के लिए आ पहुंचे। इस अवसर पर अनेक प्रमुख समाचार पत्रें के प्रतिनिधि वहां उपस्थित थे। उन्होंने यह भी कहा था कि -‘‘ शेख अब्दुल्ला ने पं. नेहरू पर दबाव बना कर राज्य में अलग प्रधान, अलग विधा और अलग निशान का प्रावधान करा लिया है।’’
डॉ. मुखर्जी जम्मू कश्मीर को भारत का पूर्ण अभिन्न अंग बनाना चाहते थे। उस समय जम्मू कश्मीर का अलग झण्डा और अलग संविधान था। वहां का मुख्यमन्त्री (वजीर-ए-आजम) अर्थात् प्रधानमन्त्री कहलाता था। श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने देश की अखण्डता को अक्षुण्ण बनाए रखने का संकल्प लेते हुए घोषणा की - ‘‘स्वतंत्र भारत में सदा एक देश, एक निशान, एक प्रधान ही होगा और हमें अलगाववादी तत्वों को जड़ से उखाड़ फेंकने के लिए कटिबद्ध रहना होगा।’’
धारा 370 के अंतर्गत जम्मू-कश्मीर को विशेषाधिकार दिया गया। अनुच्छेद 35 ए, धारा 370 का ही हिस्सा है। इस धारा के कारण से कोई भी दूसरे राज्य का नागरिक जम्मू-कश्मीर में न तो संपत्ति खरीद सकता है और न ही वहां का स्थायी नागरिक बनकर रह सकता था। इसके अलावा जम्मू-कश्मीर की कोई लड़की किसी बाहर के लड़के से शादी कर ले तो उसके सारे अधिकार खत्म हो जाते थे। साथ ही उसके बच्चों के अधिकार भी खत्म हो जाते हैं। भारत के दूसरे राज्यों के लोग जम्मू-कश्मीर में जमीन नहीं खरीद सकते हैं। यहां के नागरिकों के पास दोहरी नागरिकता होती है। एक नागरिकता जम्मू-कश्मीर की और दूसरी भारत की होती थे। यहां दूसरे राज्य के नागरिक सरकारी नौकरी नहीं कर सकते थे। यहां तक कि सुप्रीमकोर्ट के आदेश भी सीधे वहां प्रभावी नहीं हो सकते थे।
जिस प्रकार नोटबंदी और ट्रिपल तलाक जैसे मामलों में केन्द्र सरकार ने तत्परता दिखाई और कड़ाई से कदम उठाए उसके बाद यह सोच बनना स्वाभाविक था कि उस ऐतिहासिक भूल को भी यह सरकार सुधारने की दिशा में कोई न कोई कठोर कदम उठाएगी जिसे ‘धारा 370’ के रूप में जाना जाता है। स्वयं भाजपा और राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ की ओर से इस तरह की मांगे समय-समय पर उठती रही हैं। विगत वर्ष यानी 2017 के दिसम्बर माह में शिवसेना के अरविंद सावंत ने कहा कि ‘‘तीन तलाक के खिलाफ विधेयक से समान नागरिक संहिता की दिशा में आगे बढ़ने की उम्मीद पैदा होती है। अगर समान नागरिक संहिता लागू हो गई और कश्मीर से धारा 370 हट गई तो बहुत सारी चीजें ठीक हो जाएंगी।’’
इससे पूर्व दिसम्बर 2013 में राजनाथ सिंह ने कहा था -‘‘संसद में इस बात पर बहस हो कि क्या धारा 370 जम्मू कश्मीर के लिए किसी तरह से फायदेमंद है या वहां के लोगों को राजनीतिक रूप से सशक्त करने का काम करती है? अगर ऐसा नहीं है, तो इसे तुरंत निरस्त कर देना चाहिए।’’
डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी आदि राष्ट्रवादी नेता चाहते थे कि जम्मू-कश्मीर के भारत में विलय के प्रश्न को हल करने का दायित्व सरदार वल्लभ भाई पटेल को सौंपा जाना चाहिए किन्तु जवाहरलाल नेहरू इस पक्ष में नहीं थे। जवाहरलाल नेहरू ने जम्मू-कश्मीर का मामला अपने हाथ में ही रखा। यदि जवाहरलाल नेहरू ने कश्मीर की रियासत को भी वल्लभ भाई के हवाले दिया होता तो कश्मीर की समस्या 21 वीं सदी का मुंह कभी नहीं देख पाती।
एक बड़ी राजनीतिक त्रुटि को सुधारते हुए कश्मीर में शांति स्थापना और वहां के विस्थापित एवं पीड़ित नागरिकों को एक खुशहाल ज़िन्दगी देने के लिए जरूरी था कि कश्मीर को धारा 370 से मुक्त कर के भारत के अन्य राज्यों की भांति आजादी से सांस लेने दिया जाए। कश्मीर के साथ ही लद्दाख को भी ध्यान में रखा जाना एक और महत्वपूर्ण निर्णय है।
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(दैनिक ‘सागर दिनकर’, 07.08.2019) #शरदसिंह #सागरदिनकर #दैनिक #मेराकॉलम #Charcha_Plus #Sagar_Dinkar #Daily
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बहुत सुंदर पोस्ट।
ReplyDeleteसुंदर पोस्ट।
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