Wednesday, May 19, 2021

पुस्तक समीक्षा | कुमुद पंचरवाली : मानवीय संबंधों को गहराई से रेखांकित करती कहानियां | समीक्षक - डाॅ. (सुश्री) शरद सिंह

प्रिय ब्लॉगर साथियों, पीड़ा की असीम गहराइयों से ख़ुद को बाहर निकालने की कोशिश में मेरा एक और क़दम... एक बार फिर लेखकीय व्यस्तता में ख़ुद को उतार देना चाहती हूं... आप सभी की दुआएं चाहिए..🙏 ....आज  #आचरण  में प्रकाशित पुस्तक समीक्षा... आभार दैनिक "आचरण" 🙏 - डॉ शरद सिंह 
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पुस्तक समीक्षा

कुमुद पंचरवाली : मानवीय संबंधों को गहराई से रेखांकित करती कहानियां

              समीक्षक - डाॅ. (सुश्री) शरद सिंह

पुस्तक   - कुमुद पंचरवाली (कहानी संग्रह)    
प्रकाशक - एन.डी. पब्लिकेशन, 10 सिविल लाईन्स, एल आई सी बिल्डिंग, सागर (म.प्र.)
लेखक  - आर. के. तिवारी          
मूल्य    - रुपए 200 मात्र                                          
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समाज में दुख-सुख, राग-द्वेष, जीतने और हारने के अनेक रंग दिखाई देते हैं। इन्हीं रंगों के बीच अनेक ऐसी घटनाएं छिपी होती हैं जो कहानी बन कर उभरने पर मन को गहरे तक छूती चली जाती हैं। एक स्त्री जो जीवन में बहुत कुछ चाहती हो किन्तु समर्पण की प्रतिमूर्ति बन कर जीवन गुज़ार दे, एक स्त्री जो न चाहते हुए भी प्रतिशोध के भंवर में फंस जाए, एक स्त्री जो परिवार के प्रति अपने दायित्वों का आदर्श रूप में निर्वहन करती रहे और एक ऐसा इंसान जो देश के बंटवारे की आंच से गुज़रता हुआ एक अलग ही व्यक्तित्व में समा जाए। जी हां, ‘‘ कुमुद पंचरवाली’’ कहानीकार आर. के. तिवारी का कहानी संग्रह है जिसमें लम्बी चार कहानियां हैं। आर. के. तिवारी अपनी पहली कथाकृति ‘‘करमजली’’ से तप कर परिपक्व हुए हैं और उनकी लेखकीय परिपक्वता उनके इस नवीनतम कहानी संग्रह में स्पष्ट अनुभव की जा सकती है। संग्रह में रखी गई चारो कहानियों के कथानक ही नहीं वरन् कथापात्र भी बहुत जाने-पहचाने और बहुत समीप के लगते हैं क्यों कि ये आम ज़िन्दगी से चुने गए हैं।
‘‘कुमुद पंचरवाली’’ शीर्षक कहानी संग्रह की सबसे प्रभावी कहानी है। यह एक ऐसी स्त्री की कहानी है जो अपने प्रिय को सम्पूर्णता से पाना चाहती है अर्थात् उसके साथ विवाह करके अपना सुखमय जीवन जीना चाहती है। अनाथ, अपढ़, साईकिल का पंचर जोड़ने का काम करने वाली कुमुद जब अपने गांव में आए प्रतिभाशाली युवा शिक्षक को देखती है तो वह उसे भला लगता है। शिक्षक भी कुमुद से प्रभावित होता है और उसे पढ़ने के लिए प्रोत्साहित करता है। परिस्थितिवश शिक्षक का एक अन्य युवती से विवाह हो जाता है। कुमुद को ठेस पहुंचती है किन्तु वह अपनी पीड़ा को व्यक्त करने के बदले मौन साध लेती है। शिक्षक की पत्नी के मन में कुमुद और शिक्षक को ले कर संदंह के बीज अंकुरित होने लगते हैं और धीरे-धीरे संदेह की विष-बेल बढ़ने लगती है। एक दिन ऐसा आता है जब शिक्षक की पत्नी उसे छोड़ कर चली जाती है। शिक्षक पत्नी के इस व्यवहार से टूट जाता है। उसका स्वास्थ्य गिरने लगता है। तब कुमुद उसे सहारा देती है और उसकी सेवा करती है, बिना किसी सामाजिक बंधन के। कहानी का असली प्रस्थान बिन्दु ठीक यहीं से शुरू होता है। सामाजिक दंश की परवाह किए बिना निःस्वार्थ भाव से शिक्षक की सेवा करना कुमुद के चरित्र को उन ऊंचाइयों पर पहुंचा देता है जहां मानवीयता सभी सामाजिक भावनाओं से कहीं ऊपर ठहरती है। कहानी में कुमद के भावनात्मक चरित्र के तीन पक्ष बखूबी उभर कर आए हैं। पहला पक्ष वह जिसमें एक अल्हड़ युवती प्रेम में पड़ जाती है और अपने प्रिय के साथ रहने के स्वप्न संजोने लगती है। दूसरा पक्ष वह जिसमें अपनी भावनाओं पर नियंत्रण रखती हुई अपने प्रेमी की पत्नी के साथ न केवल सहज संवाद बनाती है बल्कि उसके आग्रह पर उसके लिए पूजा के फूल भी लाया करती है। तीसरा पक्ष वह है जिसमें बिना वैवाहिक बंधन के अपने प्रिय की इस प्रकार सेवा-सुश्रुषा करती है जैसे उसकी पत्नी हो। किन्तु उसके इस सेवा भाव में दैहिक संबंधों का कोई स्थान नहीं है। मात्र सेवा भाव और अगाध प्रेम है जो उसे समर्पिता बनाए रखता है। कहानी का अंत मार्मिक बन पड़ा है जिसे पढ़ कर ही महसूस किया जा सकता है। कहानीकार आर. के. तिवारी ने कुमुद के चरित्र के तीनों पक्षों को प्रभावी ढंग से कहानी में पिरोया है। कहानी पढ़ लेने के बाद देर तक कुमुद का चरित्र मन को उद्वेलित करता रहता है। यही कहानीकार की सफलता है।
संग्रह की दूसरी कहानी है ‘‘गंगा फुआ‘‘। यह कहानी उस अतीत में ले जाती है जब बालविवाह द्वारा बच्चों के जीवन का निर्णय कर दिया जाता है और विधवाओं को उपेक्षा और अनादर कर कष्टप्रद जीवन जीना पड़ता था। बाल विवाह पर बांग्ला साहित्य में प्रचुरता से लिखा गया है। ईश्वरचंद्र विद्यासागर, बंकिमचंद्र चट्टोपध्याय, रवींद्रनाथ ठाकुर, शरतचंद्र चट्टोपध्याय ने बाल विवाह और विधवा जीवन की त्रासदी पर अद्भुत यथार्थपरक कथा साहित्य रचा। ‘‘गंगा फुआ‘‘ भी उन्हीं मानवीय मूल्यों का अनुकरण करती चलती है। यह कहानी शुरू होती है दस वर्ष की बालिका गंगा के बालविवाह से। गंगा जब विवाह और वैवाहिक जीवन के बारे में कुछ जानती भी नहीं थी तब उसे विवाह बंधन में बांध दिया गया। उस पर विडम्बना यह कि पहली विदाई के समय हैजा के कारण उसके पति की मृत्यु हो गई। दस वर्षीया बालिका जिसने अभी जीवन के रंग ही नहीं देखे थे, उसे तमाम रंगों से वंचित कर दिया गया। वह सफेद साड़ी के अतिरिक्त और कुछ नहीं पहन सकती थी। सजना-संवरना तो दूर, वह केश तक नहीं रख सकती थी। ससुराल में उस पर अपार बंदिशें थोप दी गई। उसे सूखी घास पर सोना पड़ता, सुबह चार बजे मुंह अंधेरे  शौच के लिए जाना पड़ता, वह किसी से बात नहीं कर सकती थी। वह हंस नहीं सकती थी, वह रो नहीं सकती थी। वह इच्छानुसार सुस्वाद भोजन नहीं कर सकती थी। चार दिन में ही उसकी सेहत गिर गई। गंगा के भाई काशीराम से अपनी बहन की यह दुर्दशा देखी नहीं गई। वह समझ गया कि यदि गंगा ससुराल में रहेगी तो अधिक दिन जीवित नहीं रह सकेगी। काशीराम गंगा के ससुराल वालों को समझा-बुझा कर उसे अपन साथ ले जाने में सफल रहा। मायके पहुंच कर गंगा को राहत मिली। लेकिन दस-पंद्रह दिन में ही ससुराल से बुलावा आ गया। तब गंगा की भाभी ने उसका पक्ष लिया और उसे ससुराल भेजे जाने से रोक लिया। जबकि गंगा की भाभी की उम्र भी मात्र पंद्रह वर्ष थी। इसीलिए गंगा और उसकी भाभी के बीच एक बहनापा, एक सहेलीपन था जो उसकी भाभी गंगा की पीड़ा को समझ सकी। कुछ समय बाद भाभी ने एक पुत्र को जन्म दिया जिसका नाम रखा गया मुन्ना। मुन्ना के दुनिया में आते ही गंगा का घर, परिवार, समाज में एक स्थान निर्धारित हो गया। अब वह गंगा के बदले अपने भतीजे की गंगा फुआ बन गई। परिवार के प्रति अपने दायित्वों के निर्वहन की अनवरत कथा शुरू होती है यहां से और एक आदर्श भारतीय स्त्री की छवि उभर कर आती है गंगा फुआ में। कहानी में गंगा फुआ के चरित्र को जिस कोमलता के साथ ऊंचाइयों तक लेखक ने पहुंचाया है, वह उनकी सृजनशीलता और संवेदनात्मकता के प्रति आश्वस्त करता है।
संग्रह की तीसरी कहानी है ‘‘पद्मा का प्रतिशोध’’। कहानी का पहला वाक्य ही जिज्ञासा जगाने में सक्षम है- ‘‘एक सीधी-सादी लड़की इतनी क्रूर, दुष्ट, हत्यारिन कैसे हो सकती है?’’ कहानी की नायिका पद्मा ग्रामीण परिवेश में पली-बढ़ी। शिक्षा सिर्फ़ चौथी कक्षा तक। पद्मा का विवाह शहर में एक व्यापारी की दूकान पर काम करने वाले युवक रामू से कर दिया गया। वैवाहिक जीवन का आरम्भ सुखमय रहा। ससुर की पहले ही मृत्यु हो चुकी थी। कुछ समय बाद सास भी काल के ग्रास में समा गई। रामू को काम से घर लौटने में देर हो जाया करती थी। घर में अकेली रह जाने वाली पद्मा का परिचय एक ऐसी महिला से हुआ जिसने उसके भोलेपन का लाम उठाते हुए उसे एक ऐसे जाल में फंसा दिया जिससे निकल पाना संभव नहीं था। घर पर खाली बैठने के बजाए चार पैसे कमाने का लालच दे कर उस औरत ने पद्मा को देहव्यापार में धकेल दिया। मना करने पर ब्लैकमेल करने लगी। पद्मा जो एक सीधी-सादी स्त्री थी, इस चक्रव्यूह में फंस कर आहत हो उठी। उसके मन में प्रतिशोध की भावना उठनी स्वाभाविक थी। कहानी एक रोचक मोड़ लेती है और कहानी का पाठक स्वयं को पद्मा के साथ खड़ा पाता है। कहानी का सुखद पक्ष यह है कि पद्मा का पति उसका साथ देता है और उसे सब कुछ भूल जाने को कहता है। लेकिन उसके पति को पता नहीं था कि ऐसे अपराधी अपने शिकार को कभी कुछ भी भूलने नहीं देते हैं। वे ब्लैकमेल को एक हथियार की तरह इस्तेमाल करते हैं। यह कहानी ऐसे छद्मवेशियों के चरित्र को उजागर करती है जो शुभचिंतक बन कर अपने जाल में इस तरह फंसाते हैं कि उससे बाहर निकलना कठिन हो जाता है। कहानी की रोचकता आदि से अंत तक बनी रहती है।
‘‘नंदू पाठक’’ यह संग्रह की चौथी कहानी है। यह देश के विभाजन के समय की कहानी है जब दंगे भड़क रहे थे और समूचा देश विभाजन की आग में झुलस रहा था। इस कहानी में बड़ी सहजता से इस तथ्य को सामने रखा गया है कि चंद स्वार्थी तत्व दंगे भड़काते हैं, सामान्य इंसान नहीं। कहने को हिन्दू-मुस्लिम उन दिनों परस्पर विरोधी बन बैठे थे किन्तु बहुत से लोग ऐसे भी थे जिनकी भावनाएं धार्मिक भेदभाव से बहुत ऊपर थीं। उन्हीं में एक थे नंदू पाठक। देश के विभाजन की मार्मिकता पर अनेक कहानिया ओर उपन्यास लिखे जा चुके हैं। खुशवंत सिंह का ‘‘ट्रेन टू पाकिस्तान’’, भीष्म साहनी का ‘‘तमस’’, कमलेश्वर का ‘‘कितने पाकिस्तान’’ और सआदत हसन मंटो की कहानियां जैसी अनेक कृतियां देश के विभाजन की त्रासदी को बखूबी सामन रख चुकी हैं। विभाजन का विषय ही ऐसा है जो सदियों तक सभी के मन को कुरेदता रहेगा और यह प्रश्न पूछने को मजबूर करता रहेगा कि विभाजन के अतिरिक्त और कोई विकल्प नहीं था क्या? रक्त की नदियों से नहा कर निकले दो राष्ट्र एक-दूसरे का विश्वास चाह कर भी नहीं जीत पाते हैं क्यों कि अतीत की मर्मांतक चींखें इतिहास के पन्नों से निकल कर दिल-दिमाग को झकझोरती रहती हैं।
आर. के. तिवारी एक उत्साही कहानीकार हैं। वे अपने कथानकों के साथ न्याय करने का पूर्ण प्रयत्न करते हैं और इसमें सफल भी रहते हैं। ‘‘कुमुद पंचरवाली’’ कहानी संग्रह कहानीकार आर. के. तिवारी के श्रम और साहित्य के प्रति प्रतिबद्धता को प्रतिबिम्बित करता है। निश्चित रूप से यह एक पठनीय और रोचक कहानी संग्रह है जिसमें मानवीय संबंधों को गहराई से रेखांकित करती कहानियां हैं।
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4 comments:

  1. मानवीय संबंधों को उजागर करती सुंदर कहानियों की सार्थक समीक्षा, इस पुस्तक के लिए लेखक को बधाई

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  2. बहुत सुन्दर समीक्षा शरद जी !

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    1. धन्यवाद मीना भारद्वाज जी 🙏

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