Wednesday, April 6, 2022

चर्चा प्लस | 6 अप्रैल का काला दिवस और दांडी मार्च | डॉ. (सुश्री) शरद सिंह | सागर दिनकर

चर्चा प्लस  
6 अप्रैल का काला दिवस और दांडी मार्च 
- डाॅ. (सुश्री) शरद सिंह                                                                                        
       भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन को कुचलने के लिए अंग्रेज सरकार ने भांति-भांति के कानून देश की जनता पर लादने का प्रयास किया था क्योंकि अंग्रेज सरकार जानती थी कि आर्थिक चोट सबसे गंभीर होती है। रोलेट एक्ट भी ऐसा ही एक कानून था। जिसका सत्याग्रहियों द्वारा 6 अग्रैल को ‘‘काला दिवस’’ मना कर पुरज़ोर विरोध किया गया। इस काले दिवस ने न केवल भारतीय स्वतंत्रता के संघर्ष को एक नई दिशा दी बल्कि समूची दुनिया को अन्याय के विरोध का एक नया तरीका सिखा दिया।  
इन दिनों, हम भारतवासी अपनी ‘आज़ादी का अमृत महोत्सव’ मना रहे हैं। यह महोत्सव उन सभी की स्मृतियों को समर्पित है, जिन्होंने देश को स्वतंत्रता दिलाने में अपना योगदान दिया। साथ ही, देश को एक स्वतंत्र देश के रूप में नवीन व्यवस्थाएं दीं। हमारे देश के प्रधान मंत्री, श्री नरेंद्र मोदी जी ने 12 मार्च, 2021 को साबरमती आश्रम, अहमदाबाद से ‘दांडी मार्च’ को हरी झंडी दिखाकर आज़ादी के अमृत महोत्सव का उद्घाटन किया था। यह समारोह स्वतंत्रता की हमारी 75 वीं वर्षगांठ से 75 सप्ताह पहले शुरू हुआ और 15 अगस्त, 2023 को समाप्त होगा। किन्तु इसी दांडी मार्च में 6 अप्रैल की तारीख को सत्याग्रहियों द्वारा ‘काला दिवस’ (ब्लैक डे) घोषित किया गया था।
जिस रोलेट एक्ट के बारे में हम अपनी इतिहास की किताबों में पढ़ते हैं वह रोलेट एक्ट भारत में उभर रहे राष्ट्रीय आंदोलन को कुचलने के लिए बनाया गया कानून था। यह कानून सन् 1919 में सर सिडनी रोलेट की अध्यक्षता वाली समिति की सिफारिशों के आधार पर बनाया गया था। इसीलिए इसका नाम पड़ा रोलेट एक्ट। इस कानून के लागू होने से भारत स्थित अंग्रेज सरकार को यह अधिकार प्राप्त हो गया था कि किसी भी भारतीय को बिना मुकदमा चलाए तथा बिना सुनवाई के जेल में बंद कर सकती थी। इस कानून के अंतर्गत अपराधी ठहराए जाने वाले व्यक्ति को उसके विरुद्ध मुकदमा दर्ज करने वाले का नाम जानने का अधिकार भी समाप्त कर दिया गया। इस तानाशाहीपूर्ण कानून के लागू होते ही समूचे देश में तीव्र प्रतिक्रिया हुई। इस कानून के विरोध में हड़तालें, प्रदर्शन और जुलूस का आयोजन किया जाने लगा।
महात्मा गांधी भी नागरिक अधिकारों का हनन करने वाले इस एक्ट के विरोध में आ खड़े हुए। 24 फरवरी, 1919 को महात्मा गांधी ने रोलेट एक्ट के विरोध में सत्याग्रह प्रारम्भ करने की घोषणा की। सत्याग्रह शपथ-पत्र पर महात्मा गांधी ने सर्वप्रथम हस्ताक्षर किए। वे इस नागरिकों की स्वतंत्रता, न्याय एवं मौलिक अधिकारों के हनन करने वाले कानून के विरुद्ध थे।
इसी तरह भारत में नमक उत्पादन और वितरण परे अंग्रेजों का एकाधिकार था। कानूनों के माध्यम से, भारतीयों को स्वतंत्र रूप से नमक बनाने या बेचने पर रोक लगा रखी थी, और इसके कारण भारतीयों को नमक महंगा खरीदना पड़ता था। नमक पर भारी रूप से कर लगाया जाता था, जिसे अक्सर आयात किया जाता था। इसने बहुत से भारतीयों को प्रभावित किया, जो लोग गरीब थे,वो इसे खरीदने की क्षमता नहीं रखते थे।
30 मार्च, 1919 की तिथि पूरे देश में एक साथ हड़ताल के लिए तय की गयी। बाद में किन्हीं कारणवश यह तिथि बदल कर 6 अप्रैल, 1919 कर दी गयी। सभी लोगों को तिथि परिवर्तन की समय पर सूचना नहीं मिल पाने के कारण कुछ स्थानों पर 30 मार्च को भी विरोध प्रदर्शन किए गये।
6 अप्रैल, 1919 को रोलेट एक्ट के विरोध में ‘काला दिवस’ मनाया गया। उस दिन वल्लभ भाई के नेतृत्व में अहमदाबाद में एक विशाल जुलूस निकाला गया। उन्होंने एक विशाल जनसभा को भी सम्बोधित किया। उन्होंने अपने भाषण में रोलेट एक्ट को अमानवीय ठहराया और इसे वापस लिए जाने की सरकार से मांग की। 6 अप्रैल की सुबह, गांधी और उनके अनुयायियों ने मिलकर समुद्र के किनारे पर नमक को मुट्ठी भर उठाया, इस प्रकार तकनीकी रूप से “उत्पादन” नमक और कानून तोड़ दिया, और गांधीजी ने सभी देश वासियों को नमक बनाने की आज्ञा दी। इसी दिन वल्लभ भाई ने महात्मा गांधी की सरकार द्वारा जब्त की गयी पुस्तक ‘हिन्द स्वराज और सर्वोदय’ को सार्वजनिक रूप से विक्रय के लिए जनता के समक्ष रखा। यह भी सरकार के विरोध का एक तरीका था।
दूसरे दिन सरकार से अनुमति लिए बिना ‘सर्वोदय पत्रिका’ का गुजराती में प्रकाशन आरम्भ कर दिया।
उन्हीं दिनों दिल्ली में हिन्दू-मुस्लिम दंगे भड़क उठे। चारों ओर आतंक व्याप्त हो गया। लोग परस्पर एक-दूसरे को मारने-काटने पर उतारू हो रहे थे। जब महात्मा गांधी को यह समाचार मिला तो वे चिन्तित हो उठे। उन्होंने वल्लभ भाई को विचार-विमर्श के लिए बुलाया।
‘‘वल्लभ, तुमने सुना कि दिल्ली में लोग किस प्रकार एक-दूसरे को मार-काट रहे हैं?’’ महात्मा गांधी ने वल्लभ भाई से पूछा।
‘‘जी हां, मैंने भी सुना।’’ वल्लभ भाई ने कहा।
‘‘नहीं, ऐसा नहीं होना चाहिए!’’ महात्मा गांधी विह्नल होकर बोल उठे।
‘‘हां, यह त्रासद है। लोगों को स्वयं पर नियंत्रण रखना चाहिए।’’ वल्लभ भाई दुखी स्वर में बोले।
‘‘हां, हिंसा का मार्ग हमें कहीं नहीं ले जाता है, सिवा अपनों के रक्तपात के।’’ महात्मा गांधी विचारपूर्ण स्वर में बोले।
‘‘मैं लोगों को समझाने का प्रयास कर रहा हूं।’’ वल्लभ भाई पटेल ने कहा।
‘‘मुझे जाना होगा उन्हें रोकने।’’ महात्मा गांधी ने गम्भीर स्वर में कहा।
‘‘क्या आपका वहां जाना सुरक्षित होगा?’’ वल्लभ भाई चिन्तित होते हुए बोले।
‘‘सुरक्षित हो या न हो, जहां मेरे अपने लोग एक-दूसरे का गला काट रहे हों, वहां मैं जरूर जाऊंगा ताकि उन्हें ऐसा करने से रोक सकूं।’’ महात्मा गांधी ने कहा।
‘‘अपने स्थान पर आप मुझे दिल्ली जाने दीजिए। मेरी अपेक्षा आपकी सुरक्षा अधिक महत्त्वपूर्ण है।’’ वल्लभ भाई ने आग्रह किया।
‘‘नहीं, तुम्हें, यहीं अहमदाबाद में ही रुकना होगा। यहां भी स्थिति बिगड़ सकती है।’’ महात्मा गांधी ने कहा।
‘‘जैसा आप कहें।’’ वल्लभ भाई ने महात्मा गांधी के आग्रह को स्वीकार करते हुए कहा।
इसके बाद दूसरे दिन महात्मा गांधी दिल्ली के लिए चल पड़े। सरकार जानती थी कि यदि महात्मा गांधी दिल्ली पहुंच जाएंगे तो उनके समर्थक भी दिल्ली की ओर रुख करेंगे। रोलेट एक्ट की ओर से ध्यान हटाने में दंगे महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा रहे थे। अतः सरकार ने महात्मा गांधी को दिल्ली पहुंचने से पहले ही गिरफ्तार कर लिया।
महात्मा गांधी को बंदी बनाए जाने की सूचना जैसे ही अहमदाबाद पहुंची, वहां दंगे भड़क उठे।
10 अप्रैल, 1919 को अहमदाबाद में भीषण दंगे हुए। महात्मा गांधी और वल्लभ भाई दोनों जानते थे कि इन दंगों के पीछे अंग्रेज सरकार का हाथ है। वल्लभ भाई यह भी जानते थे कि इन दंगों के समाचारों से महात्मा गांधी को अपार कष्ट होगा। इसीलिए वल्लभ भाई अपने साथी डाॅ. कानूनगो के साथ दंगे शांत कराने निकल पड़े। वे नहीं चाहते थे कि दंगों में लोग हताहत होते रहें और उनके रक्त की नदियां बहती रहें। यदि ऐसा होता रहता तो महात्मा गांधी को बहुत दुःख पहुंचता।
वल्लभ भाई पटेल ने अपने प्राणों की चिन्ता किए बिना दंगाइयों के बीच पहुंचकर उन्हें समझाया और शांत करने का अथक प्रयास किया। इसके विपरीत सरकार ने वल्लभ भाई और डाॅ. कानूनगो को ही दंगे भड़काने का दोषी ठहराया।
सत्याग्रह शपथ-पत्र पर हस्ताक्षर करने के कारण वल्लभ भाई को नोटिस दिया गया, ‘‘क्यों न आपके वकालत करने पर रोक लगा दी जाए।’’
सर चिमनलाल सीतलवाड़ वल्लभ भाई की ओर से न्यायालय में उपस्थित हुए। उनकी पैरवी पर न्यायालय ने वल्लभ भाई को चेतावनी देकर क्षमा कर दिया। सरकार के इस नाटक की परवाह न करते हुए वल्लभ भाई ने अहमदाबाद दंगे में पकड़े गए अभियुक्तों की ओर से न्यायालय में पैरवी की। वह अंतिम अवसर था जब वल्लभ भाई वकीलों वाला काला लबादा पहनकर न्यायालय में उपस्थित हुए थे। उन्होंने दंगे के तथाकथित अभियुक्तों की सफलतापूर्वक पैरवी की।
दांडी मार्च, जिसे नमक मार्च और दांडी सत्याग्रह के नाम से भी जाना जाता है, मोहनदास करमचंद गांधी के नेतृत्व में एक अहिंसक सविनय अवज्ञा आंदोलन था। इसे 12 मार्च, 1930 से 6 अप्रैल, 1930 तक ब्रिटिश नमक एकाधिकार के खिलाफ कर प्रतिरोध और अहिंसक विरोध के प्रत्यक्ष कार्रवाई अभियान के रूप में चलाया गया। गांधीजी ने 12 मार्च को साबरमती से अरब सागर तक दांडी के तटीय शहर तक 78 अनुयायियों के साथ 241 मील की यात्रा की गई, इस यात्रा का उद्देश्य गांधी और उनके समर्थकों द्वारा समुद्र के जल से नमक बनाकर ब्रिटिश नीति की अवहेलना करना था। यह आंदोलन दुनिया के इतिहास में अपने आप में एक अनूठा आंदोलन था। इस आंदोलन ने विरोध का एक नया तरीका दुनिया के सामने रखा और ‘काला दिवस’ को इतिहास के पृष्ठ पर सदा के लिए अंकित कर दिया।
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(06.04.2022)
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