Tuesday, April 26, 2022

पुस्तक समीक्षा | हिन्दी कथासाहित्य के भविष्य को आश्वस्त करती कहानियां | समीक्षक - डाॅ. (सुश्री) शरद सिंह | आचरण

प्रस्तुत है आज 26.04.2022 को  #आचरण में प्रकाशित मेरे द्वारा की गई काव्या कटारे के कहानी  संग्रह "काली लड़की" की समीक्षा... आभार दैनिक "आचरण" 🙏
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पुस्तक समीक्षा
हिन्दी कथासाहित्य के भविष्य को आश्वस्त करती कहानियां
समीक्षक - डाॅ. (सुश्री) शरद सिंह
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कहानी संग्रह - काली लड़की
लेखिका     - काव्या कटारे
प्रकाशक     - बुक्स क्लीनिक पब्लिशिंग, बी डी काॅम्प्लेक्स, तिफ्रा ओव्हर ब्रिज के निकट,बिलासपुर (छग)
मूल्य       -  130 रुपए 
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हिन्दी साहित्य के समक्ष बार-बार एक यक्ष प्रश्न आ खड़ा होता है कि उसका भविष्य क्या है? किसी न किसी चिंतन गोष्ठी या डिबेट में यह आकुलता चिंता बनकर उछलती है कि हिन्दी साहित्य के पाठक कम होते जा रहे हैं। लम्बे-चैड़े मंथन के बाद यही निष्कर्ष निकाला जाता है कि हिन्दी साहित्य को पाठक कम मिलने का सबसे बड़ा कारण है कि नई पीढ़ी हिन्दी के बजाए अंग्रेजी के अधिक निकट है। हिन्दी का सारगर्भित गंभीर साहित्य पढ़ने के स्थान पर अंग्रेजी चिकलेट्स पढ़ना और समझना उनके लिए आसान होता है। इस विषय पर मैंने अपनी बात कई संगोष्ठियों में रखी है कि हम जैसा बोएंगे, वैसा ही काटेंगे। हमने अपनी नई पीढ़ी को अगर अंग्रेजी के खारे समुद्र में फेंक दिया है तो वे हिन्दी के मीठे पानी के प्राणी भला कैसे बन सकते हैं? यदि हम नई पीढ़ी को भाषा के रूप में अंग्रेजी दें किन्तु साहित्यिक संस्कार हिन्दी के दें तो कोई कारण नहीं है कि वे हिन्दी साहित्य से विमुख होंगे। मुझे अपनी बात सौ प्रतिशत खरी उतरती मिली जब मैंने युवा कथाकार काव्या कटारे की कहानियां पढ़ीं। काव्या कटारे का कथालेखन ही अपने आप में एक नया विमर्श रचता है। 
काव्या कटारे का कहानी संग्रह है ‘‘काली लड़की’’। इस संग्रह की कहानियों के कलेवर पर अथवा लेखिका पर मैं कोई विचार प्रकट करूं इसके पूर्व संग्रह की कहानियों में निहित भाषाई सौंदर्य की चर्चा करना आवश्यक समझती हूं। एक कहानी है ‘‘वृत्त’’। इस कहानी में एक संवाद है जिसे उाहरण के रूप में यहां दे रही हूं-‘‘बेटा, पूरा चांद तो महीने में एक बार आता है। और ईद का चांद वह तो पूरे साल में एक बार आता है। पर तारे रोज चादर बन कर पूरे आसमान को ढंक लेते हैं। ऐसा ही हमारी ज़िन्दगी में होता है। ये बड़ी-बड़ी खुशियां ईद के चांद की तरह होती हैं और छोटी-छोटी खुशियां इन तारों की तरह। बड़ी खुशियां हमारी ज़िन्दगी में चांद की तरह एक-दो बार ही आती हैं, पर छोटी-छोटी खुशियां रोज हमारी पूरी ज़िदगी ढंक लेती हैं। चांद तो महीने में बस एक बार दिखाई देता है। तारे रोज निकलते हैं। यही जीवन का वृत्त है।’’
एक वाक्य का एक उदाहरण और कहानी ‘‘चाय की प्याली’’ से-‘‘आसपास की सभी दूकानें आंखें बंद कर गहरी नींद में जा चुकी थीं।’’
इन दो उदाहरणों के बाद यह तथ्य सामने रखना चैंकाने से कम नहीं है इन्हें लिखने वाली लेखिका काव्या कटारे ने इन्हें मात्र 13-14 वर्ष की आयु में लिखा है। एक ऐसी किशोरी जिसकी सहेलियों का सरोकार खेल, मोबाईल और पढ़ाई के अलावा और किसी चीज से नहीं होगा, वह स्वयं हिन्दी में कथासाहित्य रच रही है। क्योंकि उसे अंग्रेजी मात्र एक भाषा के रूप में सौंपी गई है किन्तु संस्कार हिन्दी साहित्य के दिए गए है। संग्रह की भूमिका में काव्या ने इस बात को स्वयं स्वीकार किया है कि उसे साहित्य के संस्कार अपने दादा जी सुप्रसिद्ध कवि, साहित्यकार महेश कटारे ‘सुगम’ से मिले हैं। किन्तु किसी साहित्यिक परिवार में जन्म लेना ही सबकुछ नहीं होता है, जब तक कि स्वयं के भीतर साहित्य के प्रति रुचि और समझ न हो। काव्या की कहानियां पढ़ कर यह दावे से कहा जा सकता है कि साहित्य सृजन की क्षमता काव्या के डीएनए में एक जिनोम की तरह है जिसमें सभी विधाओं के जींस विद्यमान हैं। फिलहाल काव्या ने अपनी प्रतिभा को एक कथाकार के रूप में प्रस्तुत करते हुए हिन्दी कथासाहित्य के भविष्य को भी चिंतामुक्त करने का महत्वपूर्ण कार्य किया है। काव्या के कथालेखन को देखते हुए इस बात से आश्वस्त हुआ जा सकता है कि हिन्दी कथासाहित्य का भविष्य उज्ज्वल है। यदि नौंवी कक्षा में पढ़ने वाली 14 वर्षीया छात्रा हिन्दी में इतनी परिपक्व कहानियां लिख सकती है तो हिन्दी कथासाहित्य को लेखन या पठन संबंधी किसी भी प्रकार का संकट नहीं है।
‘‘काली लड़की’’ कहानी संग्रह में कुल दस कहानियां हैं। संग्रह में कहानियों से पूर्व इन कहानियों एवं काव्या के कथालेखन पर हिन्दी साहित्य जगत के दिग्गजों की टिप्पणियां हैं। कथाकार आशुतोष लिखते हैं कि ‘‘मैं उस काव्या को जानता हूं जो कहानियां लिखती है’’। भालचंद्र जोशी टिप्पणी करते हुए लिखते हैं कि ‘‘काव्या की कहानियां लोकहित की संकल्पना और निर्णय में यथार्थ’’। राजनारायण बोहरे के अनुसार ‘‘काव्या एक प्रतिभाशाली कथा लेखिका’’ है। कथाकार मनीष वैद्य मानते हैं कि काव्या की कहानियां ‘‘साधारण से असाधारण खोजने की कहानियां’’ हैं। डाॅ. पद्मा शर्मा कहती हैं कि ‘‘काव्या की कहानियां हमें आश्वस्त करती हैं।’’ बात जिज्ञासा की है कि जब इतने सारे साहित्य मनीषी काव्या की कहानियों के प्रति विश्वास प्रकट कर रहे हैं तो ऐसा क्या है इन कहानियों में? यही रेखांकित करने योग्य मूल प्रश्न है जिसका उत्तर काव्य के कथालेखन को स्थापना दिलाता है। वस्तुतः लेखिका में अपनी आयु से आगे बढ़ कर समाज के मनोविज्ञान एवं व्यवस्था-अव्यवस्था को समझने की क्षमता है। न केवल समझने की अपितु उसे अपने दृष्टिकोण से विश्लेषित कर के सामने रखने की निपुणता भी है। जैसे कहानी ‘‘काली लड़की’’ में एक ऐसी लड़की की पीड़ा और झुंझलाहट को अभिव्यक्ति दी गई है जिसकी त्वचा की रंगत गहरी सांवली है। यह कहानी लड़की के रंग को ले कर भारतीय समाज की मानसिकता पर गहरी चोट करती है। इसका कथानक लीक से हट कर है किंतु पीड़ा परंपरागत है। विशेषता यह है कि इस कहानी में लेखिका काली लड़की की व्यथा को उस शिखर तक पहुंचा देती है जहां उसकी व्यथा उसका आत्मविश्वास बन कर उसके सामने आ खड़ी होती है। 
कोरोना काल के भयावह दौर ने सभी के अंतर्मन को छुआ है। उस ‘ब्लैक फेज़’ में हम में से बहुतों ने अपनों को खोया है। इस ब्लैेक फेज़ को ले कर अनेक कहानियां लिखी गईं। लेकिन कुछेक कहानियां ही ऐसी हैं जो उस समय की पीड़ा को समुचित अभिव्यक्ति दे सकी हैं। इसमें कोई संदेह नहीं कि काव्या की कहानी ‘‘चीखें’’ उनमें से एक है जो संज़ीदगी से लिखी गई है। दुर्भाग्यवश समाज में आज भी ऐसे लोग हैं जो कन्या के जन्म को अभिशाप मानते हैं। यदि वे गर्भ में कन्याभ्रूण को नहीं मरवा पाते हैं तो सद्यःजात कन्याशिशु को मार कर, कूड़े में फेंक कर अथवा नदी, नाले में बहा कर उस से पीछा छुड़ा लेते हैं। इसी अमानवीय कृत्य पर केन्द्रित है कहानी ‘‘कन्यादान’’। इस कहानी का ट्रीटमेंट नया है क्योंकि इसमें मां अथवा कन्याशिशु की ओर से नहीं बल्कि उस नदी की ओर से नरेशन है जिसमें सद्यःजात कन्याशिशु को जीते जी बहा दिया जाता है। 
सन् 2018 में दक्षिण कोरियाई लड़कों के एक म्यूजिक बैंड ‘‘बीटीएस’’ ने एक संगीतमय अभियान चलाया था जिसका मोटो का ‘‘लव माईसेल्फ’’। बैंड के सदस्य सूगा ने इस अभियान को स्पष्ट करते हुए कहा था कि ‘‘अपनी तुलना दूसरों से मत करो।’’ दूसरे सदस्य जे-होप ने कहा था कि ‘‘खुद को पहचानो कि तुम क्या चाहते हो और क्या कर सकते हो।’’ इसी बैंड के सदस्य आर एम का कहना था कि ‘‘खुद से कहो कि मैं अच्छा कर सकता हूं और खुद से प्यार करो।’’ सात सदस्यों का यह कोरियाई पाॅप बैंड उस समय किशोर आयु के युवकों का बैंड था जिसने अपने इस संदेश से पूरी दुनिया पर अपनी छाप छोड़ी और आज भी लोकप्रिय है। दरअसल जब युवा पीढ़ी निरंतर प्रतिस्पद्र्धाओं से जूझ रही हो तो उसमें हीन भावना और अवसाद जागना स्वाभाविक है। ऐसे दौर में युवाओं में आत्मविश्वास जगाना भी जरूरी है।  काव्या की कहानी ‘‘किस की तरह’’ इसी विषय पर एक सार्थक विमर्श खड़ा करती है। ‘‘तुम किसकी तरह बनना चाहती हो?’’ प्रश्न से कहानी आरम्भ होती है, फिर वहां से आगे बढ़ती हुई दिलचस्प मोड़ लेने लगती है और कहानी का अंत एक सुखद निर्णय पर पहुंचता है जिससे कहानी अत्यंत रोचक बन पड़ी है। 
‘‘गोद’’ एक मार्मिक कहानी है। यह कहानी इस बात की चर्चा करती है कि जब हमारे माता-पिता अथवा संबंधी हमारे साथ होते हैं तो हमें उनका महत्व समझ में नहीं आता है किन्तु उनके न होने पर हर पल उनकी कमी महसूस होती है। दोनों कहानियां- ‘‘वो’’ और ‘‘चाय की प्याली’’ यदि किसी बड़ी आयु के लेखक ने लिखी होती तो ये सामान्य कहानियां मानी जातीं क्योंकि इनमें कार्यालयीन जीवन में खटने, जूझने और असंतुष्ट होने का कथानक है। किन्तु ये दोनों कहानियां उस समय विशेष हो उठती हैं जब यह ध्यान रखा जाए कि इन्हें चैदह वर्षीया छात्रा ने लिखी है। कामकाजी व्यक्तियों के जीवन का लेखिका का आॅबजर्वेशन चकित कर देने वाला है। दोनों कहानियां प्रभावी हैं। विशेष रूप से ‘‘चाय की प्याली’’ तो बेहद सशक्त कहानी है। ‘‘वृत्त’’,‘‘अपना दुख-सुख’’ घटनाओं एवं मनःस्थितियों का बेहतरीन तानाबाना बुनती हैं। वहीं कहानी ‘‘हक़’’ लेखिका की संवेदनाओं के विस्तार को दर्शाती है जिसमें अचानक लाईट चले जाने पर कुछ ही देर में महसूस होने वाली असुविधा से कथानायिका बालिका के मन में यह विचार उठता है कि ‘‘जब थोड़ी देर के लिए लाईट जाने पर हम इतने बेचैन हो गए तो सोचिए, गांवों में लोग कैसे रहते होंगे। वहां तो लाईट होती ही नहीं। क्या सुख-सुविधाओं पर हमारा हक है, उन गांव वालों का कोई हक़ नहीं?’’ 
काव्या कटारे का एक बालकविता संग्रह ‘‘धमाचौकड़ी’’ प्रकाशित हो चुका है। ‘‘काली लड़की’’ उनकी दूसरी पुस्तक है। उनकी कहानियां देश की प्रतिष्ठित साहित्यिक पत्रिकाओं में प्रकाशित हो चुकी हैं। काव्या के कथालेखन में परिपक्वता दिखाई देती है। उनका यह प्रथम कहानी संग्रह स्वागतेय है, पठनीय है और उन कथालेखकों के लिए एक लाईटहाउस की तरह है जो आयु में भले ही बड़े हों किंतु लेखन में जिन्हें गहरी दृष्टि की जरूरत है। यदि एक वाक्य में इस संग्रह की समीक्षा की जाए तो बेझिझक कहा जा सकता है कि यह एक नन्हीं लेखिका का गहन-गंभीर कथासंग्रह है।
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1 comment:

  1. सुंदर समीक्षा, लेखिका को बधाई

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