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सीताराम रसोई के द्वार पर मैं डॉ (सुश्री) शरद सिंह |
प्रिय मित्रों, कल अपनी मां डॉ विद्यावती मालविका जी की प्रथम पुण्यतिथि पर मैंने स्थानीय श्रीसीताराम रसोई संस्था में जाकर वृद्धों को खाना खिलाया। वे श्रीसीताराम रसोई संस्था की प्रशंसक थी और हमेशा कहा करती थीं कि "देखो यह संस्था उन बुजुर्गों के लिए कितना अच्छा काम करती है जिन्हें दो रोटी भी नसीब नहीं हो पाती है, उनका पेट भरती है यह संस्था।" इसीलिए मुझे यही उचित लगा की मां की प्रथम पुण्यतिथि कि सुबह मैं श्रीसीताराम रसोई में अपना समय व्यतीत करूं और बुज़ुर्गों को खाना खिलाऊं। मैं जानती हूं की संस्था जितने लोगों का रोज पेट भर रही है उस अनुपात में मेरा सहयोग सागर में एक बूंद के समान था। मैं वास्तव में बहुत प्रभावित हुई वहां पहुंचकर स्वच्छता और साफ सफाई में अव्वल, सुस्वाद भोजन और आत्मीयता भरा वातावरण।
चलिए, मैं शुरू से सब कुछ साझा करती हूं....
जिस दिन मेरे मन में यह विचार आया कि मैं श्रीसीताराम रसोई मैं बुजुर्गों को खाना खिलाऊंगी। उसी दिन मैंने अपने अनुज विनोद तिवारी को फोन करके अपनी मंशा बताएं। उन्होंने कहा "यह बहुत अच्छा विचार है दीदी!"
भाई विनोद तिवारी भी श्रीसीताराम रसोई से संबद्ध हैं और उन्होंने मेरी इच्छा के बारे में संस्था को सूचित कर दिया। इससे पूर्व मैं स्वयं श्रीसीताराम रसोई कभी नहीं गई थी अतः एक संकोच का अनुभव भी हो रहा था कि वहां क्या होगा? कैसा होगा? कहीं मुझसे कोई त्रुटि न हो जाए। तब मैंने विनोद भाई से आग्रह किया, साथ चलने का। किंतु दुर्भाग्यवश विनोद भाई के परिवार में ग़मी हो गई और 20 तारीख की सुबह उनका फोन आया कि "दीदी, मैं नहीं आ पाऊंगा लेकिन आपको वहां ऑफिस में जो महिला मिलेंगी, वे आपकी पूरी मदद करेंगी। आपको कोई असुविधा नहीं होगी। आप वहां दान-रसीद कटा लीजिएगा और सेवा कार्य कर लीजिएगा।
यह संस्था मेरे निवास से शहर के बिल्कुल दूसरे छोर पर स्थित है। उधर मेरा कम ही आना जाना हुआ है। मुझे ध्यान आया कि उसी क्षेत्र में बुंदेली के विख्यात गायक देवी सिंह राजपूत जी का निवास है। अतः मैंने उन्हें फोन किया कि विनोद भाई नहीं आ पा रहे हैं और मुझे एक संकोच का अनुभव हो रहा है। थोड़ी घबराहट सी भी महसूस हो रही है तो क्या आप आ सकते हैं? वे सहर्ष तैयार हो गए। मैंने किसी को भी आमंत्रित नहीं किया था और देवी सिंह राजपूत जी को भी आमंत्रित करते हुए संकोच हो रहा था क्योंकि जब पारा 42-44 डिग्री चल रहा हो तो उस समय किसी से भी यह कहना कि वह घर से बाहर निकल कर मेरे साथ कहीं चले, बड़ा अजीब और संकोच भरा लगता है। सहज स्वभाव के देवी सिंह राजपूत जी उस लू-लपट में भी उत्साह पूर्वक उपस्थित हो गए। श्री पंकज शर्मा का भी उल्लेखनीय सहयोग रहा । गर्मी की तीव्रता के कारण ही मैंने बड़े भाई उमाकांत मिश्र जी, अध्यक्ष श्यामलम संस्था से सिर्फ़ चर्चा की थी, उनसे आने का आग्रह नहीं किया था ताकि वे धूप गर्मी में वे परेशान न हों, किंतु उन्हें लगा कि मैं कहीं अकेली परेशानी का अनुभव न करूं अतः वे भोजन समाप्त होने के पूर्व ही श्री कपिल बैसाखिया जी एवं श्री मुकेश तिवारी जी के साथ वहां आ गए। मेरे लिए यह सुखद आश्चर्य था। निश्चित रूप से उनका यह अपनत्व अमूल्य है मेरे लिए।
बाहरहाल, में श्रीसीताराम रसोई पहुंची। वहां जैसा कि विनोद भाई ने बताया था, ऑफिस में वह महिला मिली। बहुत ही मिलनसार, बहुत ही प्यारी सी महिला। उन्होंने मेरी दान-रसीद काटी और अपनी संस्था के बारे में बहुत सी जानकारी दी। तत्पश्चात, लगभग 11:15 पर हम लोग डाइनिंग हॉल पहुंचे। जहां वृद्धजन दरियों पर बैठे हुए थे, महिलाएं भी पुरुष भी। इसके पूर्व कि खाना परोसा जाता, वहां वृद्धजन बड़े उत्साह के साथ भजन गा रहे थे और उनका उत्साह देखते ही बन रहा था। उन्हें देखकर लगा कि इतनी ऊर्जा से भरे हुए व्यक्तियों की कैसे कोई अवहेलना कर सकता है? बहुत आश्चर्य हो रहा था मुझे और साथ ही दुख भी। ठीक 11:30 बजे भोजन परोसने का समय आया तो वहां की महिला कर्मचारी ने मुझसे पूछा कि "आप खाना परोसेंगी या हम लोग परोसना शुरू कर दें ?" तो मैंने उनसे निवेदन किया कि यह कार्य मुझे भी करने दे। ... और मैंने उनके साथ मिलकर बुजुर्गों को खाना परोसा। मुझे ऐसा लग रहा था जैसे मैं अपनी मां को खाना परोस रही हूं। उस समय एक अत्यंत आत्मिक सुख का अनुभव हो रहा था। मन था भावुकता से भर उठा था आंसू छलक पड़ने को तत्पर थे किंतु मैं उन बुजुर्गों के सामने रो कर उन्हें दुखी नहीं करना चाहती थी। अतः मैंने अपनी भावनाओं पर बामुश्क़िल नियंत्रण रखा। मुझे यह देख कर बड़ा अच्छा लग रहा था कि वहां का पूरा स्टाफ बहुत ही हंसमुख, उदारमना और मिलनसार था। उन्होंने हमसे भी आग्रह किया कि हम बुजुर्गों को खिलाया जाने वाला भोजन खा कर देखें ताकि संतुष्ट हो सके कि उन्हें उचित भोजन दिया जा रहा है या नहीं। उनके विशेष आग्रह पर हम सभी ने थोड़ा-थोड़ा-सा खाना चखा और वास्तव में वह खाना इतना सुस्वाद की उनकी प्रशंसा किए बिना हम लोग नहीं रह सके।
वहां मेरी मुलाकात हुई श्री ठाकुर साहब से, जो बहुत ही सादगी भरे लिबास में थे और उन कर्मचारियों के साथ ही हाथ बंटा रहे थे। मैं उन्हें नहीं पहचानती थी किंतु जब परिचय हुआ तो मैं चकित रह गई कि वे श्रीसीताराम रसोई के संचालनकर्ताओं में से एक हैं और साथ ही पेट्रोल पंप के मालिक भी हैं। यूं तो मुझे ज्ञात था कि इस संस्था को संचालित करने वालों में जो प्रमुख नाम हैं, वे वास्तव में समाजसेवी प्रवृत्ति के हैं जैसे इंजीनियर प्रकाश चौबे, डॉक्टर चउदा, पेट्रोल पंपवाले ठाकुर साहब। इनमें से इंजीनियर प्रकाश चौबे और डॉ चउदा से कई बार मुलाकात हो चुकी है किंतु ठाकुर साहब से मेरी मुलाकात पहली बार हुई। ये सभी लोग इतने मिलनसार, सरल और सहज स्वभाव के हैं कि इनसे मिलकर यह महसूस नहीं होता कि हम किसी धनाढ्य व्यक्ति से मिल रहे हैं। अपने ही जैसे एक आम आदमी से मुलाक़ात जैसा अनुभव होता है। इनकी इसी सज्जनता के फलस्वरुप ही एक इतनी अच्छी संस्था शहर में संचालित हो रही है।
दानदाताओं के सहयोग से इस संस्था में आटा गूंथने, रोटी सेंकने तथा सब्जियां छीलने की ऑटोमेटिक मशीनें लगी हुई हैं। साथ ही स्वच्छ पानी के लिए आरो फिल्टर की व्यवस्था है। संस्था की ओर से उन बुजुर्गों के लिए भी डिब्बे में खाना भेजा जाता है जो वहां तक चलकर आ पाने में असमर्थ हैं। साथ ही वहां मुझे ज्ञात हुआ यह संस्था उन बच्चों के लिए दलिया, खिचड़ी जैसे पौष्टिक भोजन उनके घरों में भेजती है जो बच्चे कुपोषण के शिकार हैं और जिन्हें अच्छा भोजन नहीं मिल पाता है। ऐसे बच्चों के लिए संस्था की ओर से प्रतिदिन दलिया खिचड़ी जैसे खाद्य पदार्थ भेजे जाते हैं। यह सब देख कर मुझे बहुत अच्छा लगा और सबसे बड़ी बात यह महसूस करके सुकून पहुंचा कि अभी मानवता इस धरती पर विद्यमान है। लोगों ने एक दूसरे का ख्याल रखना अभी पूरी तरह से भुलाया नहीं है। इस धरती पर ऐसे लोगों की अभी भी मौजूदग़ी है जो जरूरतमंदों का निस्वार्थ भाव से ध्यान रखते हैं। कल दोपहर तक जितनी देर में श्रीसीताराम रसोई में रही बहुत ही भावुक समय था मेरे लिए... और मुझे लगता है कि मेरी मां को भी मेरा यह कार्य निश्चित रूप से सुखद लगा होगा। उन्हीं ने तो सिखाया था दुखीजन की सेवा करना।
व्यक्तिगत रूप से भी मुझे लगता है कि कर्मकांड और आडंबरों के बजाएं दुखी, पीड़ितों, अभावग्रस्त लोगों की सेवा करना ही सबसे उत्तम कार्य है। यदि पुण्य की अवधारणा को माना जाए तो इससे बड़ा पुण्य और कोई नहीं है।
संत कबीर का यह दोहा अक्सर मुझे याद आता है..
कबीरा सोई पीर है, जो जाने पर पीर।
जो पर पीर न जानही, सो का पीर में पीर।।
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संस्था द्वारा व्हाइटबोर्ड पर प्रतिदिन दानदाताओं का उल्लेख किया जाता है ... यह उनके कार्य की पारदर्शिता है - डॉ (सुश्री) शरद सिंह |
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बुजुर्गों को भोजन परोसती मैं डॉ (सुश्री) शरद सिंह |
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बुजुर्गों को भोजन परोसती मैं डॉ (सुश्री) शरद सिंह |
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बुजुर्गों को भोजन परोसती मैं डॉ (सुश्री) शरद सिंह |
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भोजन परोसने का आत्मिक सुख - डॉ शरद |
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डॉ शरद सिंह रसोईघर का अवलोकन करते हुए |
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भजन गाते वृद्धजन |
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भोजन की प्रतीक्षा में सुस्ताते वृद्धजन |
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मैं डॉ शरद सिंह एवं बड़े भाई श्री उमाकांत मिश्र |
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लोकगीत गायक श्री देवी सिंह राजपूत मैं डॉ शरद सिंह एवं श्री उमाकांत मिश्र अध्यक्ष श्यामलम संस्था। |
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लोकगीत गायक श्री देवी सिंह राजपूत मैं डॉ शरद सिंह रसोईघर का अवलोकन करते हुए
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लोकगीत गायक श्री देवी सिंह राजपूत मैं डॉ शरद सिंह रसोईघर का अवलोकन करते हुए |
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संस्था के रसोईघर महिला कर्मचारियों द्वारा विशेष आग्रह किए जाने पर भोजन का हम सभी ने स्वाद लिया। बाएं से- श्री पंकज शर्मा, श्री उमाकांत मिश्र, श्री ठाकुर साहब, डॉ सुश्री शरद सिंह एवं श्री देवी सिंह राजपूत। |
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संस्था के रसोईघर महिला कर्मचारियों द्वारा विशेष आग्रह किए जाने पर भोजन का हम सभी ने स्वाद लिया। बाएं से- श्री पंकज शर्मा, श्री उमाकांत मिश्र, श्री ठाकुर साहब, डॉ सुश्री शरद सिंह एवं श्री देवी सिंह राजपूत। |
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संस्था के रसोईघर महिला कर्मचारियों द्वारा विशेष आग्रह किए जाने पर भोजन का हम सभी ने स्वाद लिया। बाएं से- श्री पंकज शर्मा, श्री उमाकांत मिश्र, श्री ठाकुर साहब, डॉ सुश्री शरद सिंह एवं श्री देवी सिंह राजपूत। |
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बाएं से- श्री देवी सिंह राजपूत, डॉ (सुश्री) शरद सिंह, श्री उमाकांत मिश्र एवं श्री ठाकुर साहब |
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बाएं से - श्री देवी सिंह राजपूत, श्री पंकज शर्मा श्री कपिल बैसाखिया, डॉ (सुश्री) शरद सिंह, श्री उमाकांत मिश्र एवं श्री ठाकुर साहब |
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बाएं से - श्री देवी सिंह राजपूत, डॉ (सुश्री) शरद सिंह, श्री उमाकांत मिश्र |
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बाएं से - श्री देवी सिंह राजपूत, श्री पंकज शर्मा श्री कपिल बैसाखिया, डॉ (सुश्री) शरद सिंह |
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डॉ (सुश्री) शरद सिंह श्रीसीताराम रसोई के डाइनिंग हॉल में |
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डॉ (सुश्री) शरद सिंह श्रीसीताराम रसोई के डाइनिंग हॉल में |
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श्रीसीताराम रसोई के द्वार पर डॉ (सुश्री) शरदसिंह |
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श्रीसीताराम रसोई के द्वार पर श्री देवी सिंह राजपूत, उमाकांत मिश्र, डॉ (सुश्री) शरदसिंह, श्री मुकेश तिवारी |
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श्रीसीताराम रसोई के द्वार पर श्री देवी सिंह राजपूत, उमाकांत मिश्र, डॉ (सुश्री) शरदसिंह, श्री मुकेश तिवारी |
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