Monday, April 4, 2022

डॉ (सुश्री) शरद सिंह द्वारा पुस्तक लोकार्पण

"नुक़्ताचीं खूब करो, याद रहे ये लेकिन
चांद में दाग़, तो सूरज में तपन होती है।
इस जहां में नहीं होता है मुकम्मल कोई
फूल के साथ भी कांटों की चुभन होती है।
    - यही वह बुनियादी बात है जिससे एक समीक्षक को हमेशा याद रखना चाहिए उसे याद रखना चाहिए कि वह कोई अंतिम जज नहीं है की पुस्तक पर अपनी समीक्षा रूपी निर्णय सुना कर अपनी क़लम तोड़ दे। किसी भी कृति का असली निर्णय असली समीक्षक उसका पाठक वर्ग होता है। समीक्षक तो पुस्तक और पाठक के बीच एक सेतु का कार्य करता है। बस विशेषता यही होती है कि उसमें समीक्षक अपनी निजी टिप्पणी भी शामिल करने की छूट रखता है। सुजाता मिश्र की प्रथम कृति का लोकार्पण वनमाली सृजनपीठ और श्यामलम संस्था के संयुक्त आयोजन में होना सुखद है। सुजाता मिश्रा एक प्रखर दृष्टि रखने वाली अत्यंत संभावनाशील लेखिका हैं। उनकी पुस्तक "18 समीक्षाएं" साहित्य के प्रति उनके गंभीर सरोकार का प्रमाण है। वे किसी परंपरागत फॉर्मेट में पुस्तकों की समीक्षा ही नहीं करती हैं वरन अपनी समीक्षा में पुस्तकों की विषयवस्तु का आकलन, विश्लेषण एवं समसामयिकता को भी रेखांकित करती हैं। अभी तो उन्होंने अपनी यात्रा आरंभ की है अभी उन्हें बहुत आगे तक जाना है। मुझे पूरा विश्वास है कि एक दिन में हिंदी साहित्य जगत में दैदीप्यमान नक्षत्र की भांति चमकती हुई दिखाई देंगी।" - विशिष्ट अतिथि के रूप में डॉ (सुश्री) शरद सिंह ने यानी मैंने अपने ये विचार व्यक्त किए। 
        अवसर था होटल मैजेस्टिक प्लाज़ा में श्यामलम संस्था, वनमाली सृजन पीठ एवं महिला काव्य मंच के संयुक्त तत्वावधान में युवा लेखिका सुजाता मिश्र की प्रथम पुस्तक "18 समीक्षाएं" का लोकार्पण समारोह दिनांक 03.04.2022 को। कार्यक्रम की अध्यक्षता की प्रो आनंद प्रकाश त्रिपाठी अध्यक्ष संस्कृत विभाग डॉ हरिसिंह गौर केंद्रीय विश्वविद्यालय सागर, मुख्य अतिथि थे श्री संतोष सहगौरा कुलसचिव डॉ हरिसिंह गौर केंद्रीय विश्वविद्यालय सागर तथा विशिष्ट अतिथि थी वनमाली सृजन पीठ सागर इकाई की अध्यक्ष एवं आपकी यह मित्र डॉ (सुश्री) शरद सिंह। कार्यक्रम का कुशल संचालन किया कवयित्री डॉ अंजना चतुर्वेदी तिवारी ने। स्वागत भाषण दिया श्यामलन संस्था के अध्यक्ष श्री उमाकांत मिश्र जी ने तथा आभार प्रदर्शन किया पाठक मंच के सागर इकाई संयोजक आर के तिवारी जी ने। 
      समूचे आयोजन के दौरान डॉ सुजाता मिश्रा के जीवन साथी श्री माधव चंद्र का उत्साह एवं उमंग ने सभी के मन को छू लिया। 18 पुस्तकों की डॉ सुजाता मिश्र द्वारा की गई समीक्षाओं के इस संग्रह के लोकार्पण के अवसर पर डॉ मनीष झा, डॉ आराधना झा, डॉ  शशि कुमार सिंह, डॉ  आशुतोष मिश्रा, आदि बड़ी संख्या में साहित्यमनीषी उपस्थित थे।
🚩 प्रिय सुजाता को उनकी प्रथम पुस्तक के लोकार्पण पर पुनः हार्दिक बधाई 🌷❤️🌷

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