Thursday, April 28, 2022

बतकाव बिन्ना की | कोनऊ पथरा मैंकै चाए कंकरा मैंकै | डाॅ. (सुश्री) शरद सिंह | बुंदेली कॉलम | साप्ताहिक प्रवीण प्रभात

"कोनऊ पथरा मैंकै चाए कंकरा मैंकै" ये है मेरा बुंदेली कॉलम लेख "बतकाव बिन्ना की" अंतर्गत साप्ताहिक "प्रवीण प्रभात" (छतरपुर) में।
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बतकाव बिन्ना की
कोनऊ पथरा मैंकै चाए कंकरा मैंकै
- डाॅ. (सुश्री) शरद सिंह
            बाहरे आंगन में निकरई हती के भैयाजी दिखा गए। मैंने उनखों आवाज लगाई, काए से के मैंने सुनी रही के भैयाजी खों पुलीस पकर के ले गई रई।
‘‘राम-राम बिन्ना! का हो रओ?’’ भैयाजी चहकते भए बोले।
‘‘हो का रओ जे तो आप बताओ भैयाजी!’’ मैंने कही।
‘‘बताबी, पैलऊं पानी तो पिलाओ बिन्ना। गलो सूको जा रओ। जे ससुरी गर्मी अभई से इत्ती तेज परन लगी के प्रान से निकरे जा रए। सुनो बिन्ना, घड़े को लाइयो, फ्रिज-मिज्र खों नई चाउने। हमें नई पोसात फ्रिज को पानी।’’ भैयाजी पसीना पोंछत भए बोले औ उतई धरो मोढ़ा खेंचो औ बैठ गए सुस्ताबे के लाने।
‘‘धूप गर्मी से आ के फ्रिज को पानी पीबो बी नई चाइए।’’ कहत भई मैंने भैयाजी खों पानी को गिलास पकराओ। मनो गर्मी सो गजबई कर रई। सुभै के आठ बजे कहाने, पर लग रओ हतो के बारा-एक बज गए होंए।
‘‘सो भैयाजी, अब बताओ के कोन सो कांड करो के तुमे पुलीस पकर ले गई?’’ भैयाजी ने पानी पी लओ, सो मैंने तुरतईं उनसे पूछी। मोरे पेट में सो मनो गुड़गुड़ी मची हती जानबे के लाने। 
‘‘अरे कछु ऐसा-वैसो नई करो हमने।’’
‘‘फेर बी! अब बता बी डारो।’’ मोए मन में जित्ती उतावली मची हती, भैयाजी जानबूझ के उत्तई हिलगा रए हते।
‘‘जे सड़क चौड़ी करबे वारन ने पचासेक साल पुराने पेड़ काट के नास कर दए। जेई से तो इत्ती जल्दी इत्ती गरमी परन लगी।’’ भैयाजी बोले।
‘‘अरे, कटन देओ पेड़, ऊकी फिकर बाद में करबी। आप तो बो बताओ जो अबई बताने की है।’’ रामधई, मोए अब सबर नई हो रओ हतो। 
‘‘का जानने?’’ भैयाजी मुस्कात भए बोले। मोए समझ में आ गई के भैयाजी मोए जान के हैरान कर रए ।
‘‘मोए कछु नई जानने। अब आप जाओ! मोए भौत सो है। अब आप अपनी दूकान बढ़ा लेओ। औ भगवान करे के आपखों फेर के पूलीस पकर के ले जाए। उतई रइयो।’’ मोरो गुस्सा फूटई परो। 
‘‘जे भई ने बात! जेई तो हमें देखने हतो के तुमाई नाक पे कब लों गुस्सा आ रओ!’’ भैयाजी हंसन लगे। फेर बोले,‘‘अच्छा, दिमाक ठंडो राखो, हम बता रए।’’
फेर भैयाजी बतान लगे-‘‘ऐसो भओ के हम जा रए हते सब्जी लेबे के लाने के उतई से एक मोड़ी गुजर रई हती। लोहरी-सी। स्कूल में पढ़त हूहे। हमने देखी के ऊको देख के एक लफरा-सा मोड़ा सीटी बजान लगो। मोड़ी ने ऊकी तरफा हेरी लो नई। सो वो लफंदर ऊ मोड़ी के पांछू चलत भओ, कछु अल्ल-गल्ल कहन लगो। जे देख के हमें आई गुस्सा। हमाए आगूं कोनऊ मोड़ी खों छेड़े जे हमसे बरदास्त नई हो सकत। हमने ऊ लफंदर मोड़ा को कंधा से पकरो औ दए खेंच के दो लपाड़ा। बो मोड़ा अपनो कंधा छुड़ा के ऐसो भागो के पांछू मुड़ के ऊने ने देखो।’’
‘‘जे सो आपने नोनो काम करो! ईमें पुलीस ने काए पकर लओ आपको?’’ मैंने भैयाजी खों टोंक के पूछी।
‘‘अरे ईके लाने नई पकरो! तनक गम्म सो खाओ। पूरी बात सुन लेओ पैले।’’ भैयाजी बोले।
‘‘हौ सुनाओ।’’ मैंने कही।
भैयाजी फेर बतान लगे-‘‘बा लफंदर मोड़ा सो भगतई भगो, मनो उते बे अपने खरे साब ठाड़े हते। उन्ने चींन लओ हतो बा मोड़ा खों। सो, उन्ने बताओ के जे तो अपने बल्लू को मोड़ा आए। हमें बल्लू को घर पतो आए, सो हम ऊके घरे पोंचे। बल्लू को हमने घरे से बाहरे बुलाओ और ऊकी दारी-मतारी करी। पर बो बल्लू सोई अड़ गओ। कहन लगो के हमाओ मोड़ा ऐसो करई नई सकत। सो हमने कही के का हम झूठ बोल रए तुमसे? हमने अपनी जेई दोई सगी अंखियन से देखी हैं तुमाए मोड़ा की करतूतें। कैसे बा वो मोड़ी खों छेड़ रओ हतो। सुधार लेओ अपने मोड़ा खों नई तो शिवराज मम्मा घाईं हम सोई तुमाए घर पे बुलडोजर चलवा देहें।’’
‘‘हैं, आपने बल्लू से ऐसी कह दई?’’ मैंने कहीं।
‘‘हऔ तो! खाली कह नई दई, ऊने हमसे कही के बड़े आए बुलडोजर चलाबे वारे। एक पथरा तो मार के दिखाओ तुमाई टंगड़ियां ने तोड़ देहें। ऊको इत्तो कैने तो के हमने आव देखी ने ताव, उतई परो एक पथरा उठाओ औ दे मारो.....’’
‘‘अई!! ऊके मूंढ पे??’’ मोरे मों से कह आई।
‘‘अरे नईं, ऊके मूंड पे नई, ऊके घर की खिड़किया पे। खनखना के कांच फूट गओ। जे देख के बल्लू हतो सो हमसे झूमा-झटकी करन लगो। अब तुमने सो देखो है बल्लू खों। डेढ़ पसुरिया को इंसा आए। हमने ऊकी कमीज की कालर पकडी औ ऊसे कही के देख बल्लू जे जो तुम हमें अपना रंगदारी दिखा रए जेई अगर अपने मोड़ा खों दिखाओ तो बा सुधर जाए। हम ओरन में झूमा-झअकी चलई रई हती के कोनऊ ने पुलीस को खबर कर दई। ऐसे तो कभऊं टेम पे नई आउत आए पर ऊ बखत बड़ी टेम पे आ गई। बल्लू औ हमें दोई को पकरो औ थाने लेवा ले गई। वां पौंच के हमने थानेदार साब खों सब कछु बताओ के कैसो का भओ रओ। थानेदार साब ने बल्लू को भौतई डांटो औ कही के तुमाए मोड़ा को बुला के सोई बत्ती देहें। बड़ो आओ मोड़ियन को छेड़बे वारो। बल्लू को मों सो चूहा घांई सुट्ट हो गओ रओ।’’
‘‘औ आपसे का बोली थानेदार साब ने? आपको सो शाबाशी दई हूंहे।’’ मैंने बीच में टोकत भई पूछी।
‘‘हऔ शाबाशी तो दई, मनो संगे जे बी कहन लगे के आपको ऐसो नई करो चाइए तों बल्लू के घरे पथरा मारबे की का जरूरत हती। अरे, हमें आ के बताते। इते थाने में रपट लिखाते। अब हमें आप बी केस बनाने पड़हे अगर जो बल्लू ने एफआरआई लिखा दई। हमने थानेदार साब से कही के सुनो साब, जब हमाए शिवराज मम्मा बलवाइयों औ चोर-उचक्कन के घर पे बुलडोजर चलवा सकत हैं सो हम काए नईं कोनऊं लफंदर के घर की खिड़किया पे पथरा मार सकत आएं? जे कोन सी बात भई। जे ऐसई दबाए से तो जे ओंरे सुधरहें। मम्ाि सही करत हैं। पर, जे बताओ के अबे लों मम्मा के पे कोनऊ एफआरआई लिखी गई का? सो आप हम पे कैसे लिख सकत हो एफआरआई? जे ने चलहे।’’
‘‘आपने सूदी ऐसई कह दई थानेदार साब से?’’ मोए अचरज भओ।
‘‘हऔ, कह दई। बाकी हमाई बात सुनके थानेदार साब अपनो माथा ठोंकत भए बोले। भैयाजी, आप कोनऊ सीएम नईयां। आप अपने हाथन में कानून नई ले सकत हो। उनके जैसा खुद को ने समझो औ हमाए लाने मुसकिल पैदा ने करो। काए से के काम तो आपने ठीक करो, बाकी आप कोनऊ के घरे पथरा का, कंकरा बी नईं मार सकत हो। समझ गए? थानेदार साब ने हमें समझाई। औ हमने कहीं के हऔ समझ गए। फेर उन्ने बल्लू से पूंछी के भैयाजी के खिलाफ रपट लिखाने है का? तबलों बल्लू खों सोई अकल आ गई हती सो वा बोलो के नईं हमें कोनऊ रपट-वपट नई लिखाने है, हमें तो अपने मोड़ा खों लपरयाने है जोन के कारण जा सल्ल बिधी। सो, बिन्ना जे भओ रओ।’’ भैयाजी लम्बी सांस लेत भए बोले। 
‘‘चलो हम जा रए। कुल्ल देर हो गई। तुमाई भौजी खों सो तुम जानत हों।’’कहत भए भैयाजी उठ खड़े भए।
मोए सोई बतकाव करनी हती सो कर लई। पथरा फिकें चाए कंकरा फिकें, कल्ला पे गंकरा सिंके। मोए का करने। बतकाव हती सो बढ़ा गई, हंड़ियां हती सो चढ़ा गई। अब अगले हफ्ता करबी बतकाव, तब लों जुगाली करो जेई की। सो, सबई जनन खों शरद बिन्ना की राम-राम!
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(28.04.2022)
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