Wednesday, May 4, 2022

लेख | मिट्टी के पात्र से करते हैं वर्षा का आकलन | डॉ (सुश्री) शरद सिंह | राजस्थान पत्रिका | सागर संस्करण


03.05.2022 को अक्षय तृतीया पर राजस्थान पत्रिका के सागर संस्करण में मेरा यह संक्षिप्त लेख प्रकाशित हुआ  जो बुंदेलखंड में प्रचलित परंपरा पर आधारित है।
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मिट्टी के पात्र से करते हैं वर्षा का आकलन
- डॉ (सुश्री) शरद सिंह
बुंदेलखंड परंपराओं का धनी है। वैशाख मास के शुक्ल पक्ष में तीज के दिन का यह पर्व कुंवारी कन्याओं एवं विवाहित महिलाओं के लिए अलग-अलग महत्व रखता है। बुंदेलखंड में यह व्रत अक्षय तृतीया से प्रारम्भ होकर पूर्णिमा तक बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है। कुमारी कन्याएं अपने भाई, पिता, बाबा तथा गांव घर और कुटुंब के लोगों को शगुन बांटती हैं और गीत गाती हैं। जिसमें एक दिन पीहर न जा पाने की कचोट व्यक्त होती है। अक्षय तृतीया को राजस्थान में वर्षा के लिए शगुन निकाला जाता है और वर्षा की कामना की जाती है तथा लड़कियां झुंड बनाकर घर-घर जाकर शगुन गीत गाती हैं। वैसे इस पर्व को मनाने का बड़ा दिलचस्प तरीका है । इस पर्व में एक दिन पहले चार कलशों में पानी भरकर, पूरे गए चौक पर रखा जाता है। इन घड़े 4 माह के प्रतीक होते हैं- आषाढ़, सावन, भादों तथा कुंआर। इन पर छुई या गेरू से माह के नाम भी लिख दिए जाते हैं । इन घड़ों पर अमियां और रोटियां रखी जातीं हैं। फिर घड़े में चनों के दाने डाल दिए जाते हैं। दूसरे दिन जिस घड़े के चने फूल जाते हैं, उस घड़े पर अंकित मास में ही वर्षा होगी, यह माना जाता है। इस प्रकार यह त्यौहार किसानी के लिए मौसम की भविष्यवाणी से भी जुड़ा हुआ है। कुंवारी कन्या पुतरा- पुतरियों यानी गुड्डे-गुड़ियों का विवाह भी कराती हैं जोकि एक प्रकार से पर्व के बहाने में विवाह संस्कार से उनका उनका परिचय होता है। बुंदेलखंड में यह पर्व सदियों से उल्लास सहित जाता रहा है। आज भी जब और लोक परंपराएं पीछे छूटती जा रहे हैं, तब भी अक्षय तृतीया का पर्व परंपरागत धूमधाम  से मनाया जाता है।
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