"जो कोनऊ प्रेम-व्रेम नोंई, पगलेटपना आए" ये है मेरा बुंदेली कॉलम लेख "बतकाव बिन्ना की" अंतर्गत साप्ताहिक "प्रवीण प्रभात" (छतरपुर) में।
हार्दिक धन्यवाद #प्रवीण प्रभात 🙏
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बतकाव बिन्ना की
जो कोनऊ प्रेम-व्रेम नोंई, पगलेटपना आए
- डाॅ. (सुश्री) शरद सिंह
‘‘अच्छो भओ ऊ पकरो गओ। ससुरे खों जेल में बेंड़ के सौ जूते मारो चाइए। नईं जे कम हुईए...ऊको तो...ऊको तो...पब्लिक खों सोंप देओ चाइए।’’ भैयाजी दोई हाथन से अखबार सम्हालत बड़बड़ात भए मिले।
‘‘का हो गओ भैयाजी? कोन की ऐसी-तैसी कर रए?’’ मैंने भैयाजी से पूछी।
‘‘ऐसी-तैसी सो नई कर पा रए, जेई तो गम्म आए।’’ भैयाजी मिसमिसात भए बोले।
‘‘तनक बताओ तो कोन की कै रए?’’ मैंने फेर के पूछी।
‘‘अरे, बोई इन्दौर वारो।’’
‘‘को इन्दौर वारो?’’ मोए अचरज भओ के भैैयाजी कोन इन्दौर वारे खों कोस रए?
‘‘अरे, बोई, जी के कारन सात जने जिन्दा जल के मर गए। बड़ो आओ ससुरो प्रेमी बनत फिरत आए। काए ऐसे होत आएं प्रेमी? अच्छा तुमई बताओ बिन्ना के कहूं ऐसो प्रेम करो जात आए के प्रेमिका ने भगा दओ सो ऊके प्रान ई के पांछू पर गए?’’ भैयाजी लाल-पीले भए जा रए हते।
‘‘कै तो ठीक रए हो आप। जो प्रेम सच्चो होए सो ऐसो नई होत आए के एक-दूसरे खों मारबे खों चल दें। बाकी आप इन्दौर की कै रए अपने सागर, छतरपुर, दमोए सबई जांगा सो ऐसे हलकट फिरत रैत आएं।’’ मैंने भैैयाजी खों समझाओ।
‘‘हऔ सो बिन्ना! पैलऊं कोनऊ मोड़ी के पांछू पड़ गए, इकतरफा प्रेम करो, औ जो मोड़ी ने मानी सो कट्टा ले के चल परे मारबे के लाने। जे कोन टाईप को प्रेम कहानो? काए तुमें याद है के अपने मोतीनगर थाने के इलाका में जोई तो भओ हतो। ऊने मोड़ी पे देसी कट्टा से गाली चला दई रई, काए से के मोड़ी ऊको भाव नई दे रई हती। औ जे इन्दौर वारो औ सयानो कहलानो। बा कै रओ के हमने सो मोड़ी पे हजार-खांड़ रुपैया खरचा करो औ बा मोड़ी ने ब्रेकअप कऱ लओ। कोन ने कही रई के रुपइया खरचा करो। चलो मान लओ के मोड़ी ने कछु अपने लाने खरिदवा लओ हुइए। मनो पैलऊं मोड़ी जे ने समझ पाई हुइए के मोड़ा कित्तो बड़ो वारो खपट्ट आए। कछु बाद में समझ में आई हुइए सो ऊने नातो तोड़ लओ हुइए। काए से के जो मोड़ा खपट्ट ने होतो तो उते आग लगाबे के लाने काए जातो? ऐसो काम सो बदमासई करत आएं, तुमाए-हमाए जैसे ऐसो करबे की सोचई नई सकत आएं। बोलो सांची कही के नई?’’ भैयाजी ने पूछी।
‘‘हऔ भैयाजी! इकदम सांची कही आपने। बा मोड़ी मनो संगे रैती तो बी चैन से कोन रै पाती? बा मोड़ा प्रेम करबे की बात कै रओ है मनो ऊको मोड़ी संगे प्रेम-व्रेम नईयां, जे सो पगलेटपन कहो चाईए।’’ मैंने भैयाजी से कही। बाकी उनकी बात बिलकुल सही हती।
‘‘औ का बिन्ना! जे सीरीं-फरहाद, लैला-मजनूं, सस्सी-पुन्नूं का मूरख हते जो एक-दूसरे के लाने अपने प्रान देत रए। चलो उनकी छोड़ो, तुमें सो पतो आए के हमाई तुमाई भौजी से पैलऊं प्रेम भओ, फेर ब्याओ भओ। घरवालन से हमने साफ बोल दई रही के हम जोन मोड़ी से कै रए बोई संगे हमाओ ब्याओ कराओ ने तो हम नर्मदाजी की परकम्मा खों निकर जेहें, औ कभऊं लौट के ने आहें। हमाए घरवारे तुमाई भौजी के घरे गए। उन्ने बात करी। ब्याओ पक्को करो। औ धूम-धाम से हमाओ ब्याओ भओ। औ तुमने देखई आए बिन्ना, के हम तुमाई भौजी को कित्तो मान करत आएं। आज बी उन्हईं की सुनत आएं, उन्हई की सेवा करत आएं। जे कहाऊत आए प्रेम।’’ भैयाजी अपनी मूंछन पे ताव देत भए बोले।
‘‘हऔ भैयाजी! प्रेम में कछु चल जाए मनो ऐंड़ नई चलत। जो तुम कोनऊ से प्रेम करन लगे सो मनो बो तुमाई प्रापर्टी हो गई का? जे तो गलत बात आए। मोए सोई ऊ मोड़ा पे भौतई गुस्सा आ रओ है। ऊने अपने पगलैटपना में सात लोगन के प्रान ले लए। जे तो गनीमत के और ने मरे। बाकी भौतई गलत करो आए ऊने। ऊको सो भौतई कड़ी सजा मिलने चाइए।’’ मैंने कही।
‘‘जे अबे दस-बीस साल में ऐसो कांड कछु ज्यादा सो होन लगे हैं, ने तो पैलऊं ऐसो नई होत्तो। पैले सो प्रेमी खों अगर धोखा मिल जाए सो बो खुदई जहर खा लेत्तो मनो अपनी प्रेमिका खों चिंटियां लो नईं काटत्तो। अब सो कहूं कटर ले के घूमत आएं, सो कहूं चाकू धर के। औ सयाने निकरे सो कट्टा खों जुगाड़ कर लेत आएं। कट्टा (देसी पिस्तौल) में पइसा फूंकत बेरा कलेजो नई दुखत आए, काए से के मूंड़ पे सो खून सवार रैत आए। अरे, ऐसई दबंगई दिखाने होए सो भर्ती हो जाओ ने पुलीस में, फौज में। उते दिखाइयो अपनी रंगदारी। बाकी जे फिलम औ टीवी सीरियल बारे जेई सब सो सिखात आएं। कैसे मोड़ी खों पिछैलो जाए, कैसे ऊको धोखा दे के अपनो बनाओ जाए, कैसे सास बाई खों छिड़ियन पे तेल डार के गिराओ जाए, बहू को कैसो जीबो मुसकिल करो जाए। मनो जो कोनऊ बुरई बात ने सूझ रई होए सो ऊको टीवी सीरियल में देख के कोनऊ बी सीख सकत आए।’’ भैयाजी बोले।
‘‘हऔ भैयाजी! अब तो फिलम में सोई हिरोइन की इज्जत करबे वारे करैक्टर कमई दिखात आएं। मोए तो बो कुमार गौरव औ बिजेता पंडित वारी फिलम को बो सीन आज लोे नई भूलो आए के जीमें बिजेता पंडित औ कुमार गौरव के हाथ एकई हथकड़ी से बंधे रए। बिजेता पंडित ने पथरा उठाओ औ हथकड़ी तोड़न लगी। बातई बात में पथरा कुमार गौरव के हाथ में घल गओ। कुमार गौरव ने तुरतई खेंच के एक लपाड़ा मार दओ बिजेता के गाल पे। मोए कभऊं नई पोसानो जे सीन। अरे, धोखा से लगओ पथरा सो का मोड़ी खों लपाड़ा मारो चाइए? जे ऐसई सीन से तो गलत असर परत आए देखबे वारन पे। ई के पैले कभऊं ऐसो सीन फिलमाओ नई गओ रओ। अब आपई सोचो भैयाजी, के जो हीरोई विलेन बन जेहे सो कहां धरी फेर लवस्टोरी?’’ मैंने भैयाजी से पूछी।
‘‘जेई तो हम कै रए बिन्ना, के ऐसो चलन ठीक नइयां। ऐसे खपट्ट प्रेमियन खों सो ऐसई सजा दई जाए के बाकी जने बी सौ बार सोचें कछु करबे के पैलऊं। बाकी हमने सोई देखी हती बा फिलम। का नाव हतो ऊ फिलम खों... अरे, अच्छो सो नाव हतो...’’ भैयाजी बोले।
‘‘लव स्टोरी।’’ मैंने याद कराई।
‘‘हऔ, लव स्टोरी हतो नाव, ठीक बताओ। हऔ, सो हम जे कै रए हते के ऐसे फर्जी प्रेमियन खों कूट-कूट के पतरो कर दओ चाइए।’’ भैयाजी बोले।
‘‘आजकाल सो घर गिरा दओ जात आए, बुलडोजर से।’’ मैंने कहीं।
‘‘फालतू में! अरे, जोन ने अपराध करो, बो तो मजे से जेल की रोटियां जीमें औ घरवारे बेघर हो जाएं जोन की बो पैलई नई सुनत रओ। ऐसे खपट्ट अपने घरवालन की कोन कभऊं सुनत आएं। बा तो इन्हई ओरन खों अच्छो सूंटो जाए के सबई खों सीख मिल जाए।’’ भैयाजी ताव खात भए बोले।
‘‘हऔ भैयाजी! कड़ो कदम सो उठााओ जाओ चाइए। जे सब हमाए संस्कृति में नोंई। ईपे लगाम लगो चाइए।’’ मैंने सोई भैयाजी की बात पे दम भरी।
‘‘हऔ बिन्ना, तुमने लगाम की अच्छी याद कराई। हमाई लगात सो तुमाई भौजी के हाथन में आए। सो, अब मोए जाने परहे पुदीना लाबे के लाने। तुमाई भौजी ने कच्ची मियां खरीद के धरी है पर पुदीना बढ़ा गओ रओ सो वोई लेबे के लाने निकरबई बारे हते के जे अखबार आ गओ औ हमाओ मुंडा भिन्ना गओ। अब चल रए।’’ कैत भए भैयाजी भागे बजार की ओरे।
सो भैयाजी पुदीना लाबे के लाने निकर पड़े। मोए सोई बतकाव करनी हती सो कर लई। चाए जेल होए चाए बुलडोजर चले, मोय का करने। बाकी ई किसम के अपराध रुको चाइए। बतकाव हती सो बढ़ा गई, हंड़ियां हती सो चढ़ा गई। अब अगले हफ्ता करबी बतकाव, तब लों जुगाली करो जेई की। सो, सबई जनन खों शरद बिन्ना की राम-राम!
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(12.05.2022)
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