'स्वदेश ज्योति' यह जानने की मुहिम चलाई है कि "कैसा हो हमाओ शहर"। इस बार उन्होंने मुझसे पूछा और मैंने भी अपने दिल की बात कह डाली 😊 आप भी पढ़िए 💁
हार्दिक धन्यवाद #स्वदेशज्योति
हार्दिक आभार विनोद खरे जी 🙏
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समयबद्धता और जागरूकता बना सकती है शहर को नंबर वन - डॉ (सुश्री) शरद सिंह
इसमें कोई संदेह नहीं कि सागर शहर में विकास कार्य हो रहे हैं। इसे एक स्मार्ट सिटी का रूप दिए जाने की कोशिश हो रही है। लेकिन यह कोशिश इतनी धीमी गति से चल रही है के लोगों की परेशानी का कारण बन चुकी है। पूरे शहर में जगह-जगह सड़कें खुदी हुई है जिन का चौड़ीकरण का कार्य किया जाना है। उचित तो यह होता कि जब एक सड़क का चौड़ीकरण का कार्य पूर्ण हो जाता तब दूसरी सड़क को खोदने का काम शुरू करते, इससे लोगों को असुविधा का सामना नहीं करना पड़ता। शहर में जो सबसे बड़ी परेशानियां है, वे हैं- आवारा पशुओं और वाहन पार्किंग की। चाहे सिविल लाइन चौराहा हो या मकरोनिया चौराहा अथवा तीन बत्ती से लेकर कटरा मस्जिद तक का भीड़ भरा संवेदनशील मार्ग, सभी जगह आवारा पशु घूमते मिल जाते हैं जिनके कारण आए दिन दुर्घटनाएं होती रहती हैं। इसी तरह वाहन पार्किंग की व्यवस्थित एवं नियोजित सुविधा न होने के कारण सड़कें वाहनों से घिरी रहती हैं। आने-जाने वालों को असुविधा का सामना करना पड़ता है। व्यवसायिक प्रतिष्ठानों जैसे बैंक, मॉल आदि में भी व्यवस्थित पार्किंग सुविधा नहीं हैं। सड़क के किनारे दोहरी-तिहरी लाईन में वाहन पार्क रहते हैं जिससे आधी सड़क तो पार्किंग स्थल बन कर रह जाती है। आवागमन के लिए मात्र आधी सड़क ही शेष बचती है। यह दोनों समस्याएं कोई आज उत्पन्न हुई समस्याएं नहीं हैं। अनेक बार इस संबंध में शासन-प्रशासन से मांगे की गई किंतु कोई स्थाई हल अभी तक लागू नहीं किया गया है। अब स्मार्ट सिटी के अंतर्गत स्थाई हल निकलने की संभावना है किंतु यह समाधान कितने महीनों अथवा वर्षों बाद लागू हो पाएगा यह समझना कठिन है। साथ ही विकास कार्यों की गुणवत्ता पर भी ध्यान दिया जाना जरूरी है। कहने का आशय यही है कि सागर शहर अभी भी बुनियादी समस्याओं से जूझ रहा है जोकि कुछ दशक पहले ही सुधर जानी चाहिए थी। यदि ये समस्याएं न होती तो शहर के विकास और सौंदर्य का स्वरूप कुछ और ही होता।
शहर का समुचित विकास न हो पाने और जगह-जगह आज भी स्वच्छता अभियान को मुंह चिढ़ाते गंदगी के साम्राज्य के लिए सिर्फ प्रशासन जिम्मेदार नहीं है बल्कि नागरिकों की लापरवाही और जागरूकता की कमी भी इसके लिए जिम्मेदार है। डोर-टू-डोर कचरा गाड़ी चलाए जाने के बाद भी यदि कचरा यहां वहां फेंका जाता है तो इसके लिए स्वयं हम नागरिक जिम्मेदार हैं। हम पॉलीथिन का उपयोग करके बाहर फेंक देते हैं जो उड़कर नालियों में जा गिरते हैं और नालियों को चोक कर देते हैं। बारिश आने पर यही अवरुद्ध नालियां हमारे लिए समस्या का कारण बन जाती हैं। इसलिए हम नागरिकों को स्वयं भी जागरूकता का परिचय देना होगा। यह हम नागरिकों का दायित्व एवं अधिकार है कि यदि कहीं विकास कार्य की गति धीमी है तो हम बिना किसी राजनीतिक भावना के प्रशासन पर यह दबाव बना सकते हैं कि जल्दी से जल्दी कार्य पूरे किए जाएं जिससे आमजन को परेशानियां न झेलनी पड़ें। शहर के विस्तार को देखते हुए सिटी बस भी शीघ्र चलाए जाने की जरूरत है। यदि शहर के विकास पर गंभीरता से ध्यान केंद्रित किया जाए तो हमारा शहर खुद ब खुद 'नंबर वन' बन सकता है । इसी बात पर मैं अपना एक बुंदेली मुक्तक अर्ज़ कर रही हूं -
बड़ो मान हुइए, बड़ी शान हुइए
जो हुइए चकाचक हमाओ शहर।
तला,रोड,पशुओं की होए व्यवस्था
सो हुइए लकादक हमाओ शहर।
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(वरिष्ठ साहित्यकार एवं समाजसेवी)
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#कैसा_हो_हमाओ_शहर
#डॉसुश्रीशरदसिंह
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