Friday, June 24, 2022

बतकाव बिन्ना की | बेलन काए, फटफटिया काए नईं? | डाॅ. (सुश्री) शरद सिंह | बुंदेली कॉलम | साप्ताहिक प्रवीण प्रभात

मित्रो, "बेलन काए, फटफटिया काए नईं?" ये है मेरा बुंदेली कॉलम-लेख "बतकाव बिन्ना की" अंतर्गत साप्ताहिक "प्रवीण प्रभात" (छतरपुर) में।
हार्दिक धन्यवाद #प्रवीणप्रभात 🙏
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बतकाव बिन्ना की
बेलन काए, फटफटिया काए नईं?
      - डाॅ. (सुश्री) शरद सिंह
‘‘भैैयाजी, जबलों चुनाव को टेम आओ है तभईं से आप मूंड़ पकरे घूमत दिखात होे, आपके लाने हो का गओ?’’ मैंने भैयाजी से पूछी।
‘‘कछु नईं बिन्ना!’’ भैयाजी बोले, मनो उनको मों लटकई रओ। 
‘‘ऐसो नईं! कछु तो बोलो भैयाजी! दुख बांटबे से कम होत आए। मनो मैं अपनी तरफा से नईं कै रई, ऐसो कहो जात है।’’ मैंने भैयाजी खों समझाओ।
‘‘दुख? मनो दुख तो आए पर बांटबे जोग नइयां।’’ भैयाजी ऊंसई मों बनात भए बोले।
‘‘ऐं? चलो छोड़ो आप, जो बिन्ना हरों से कहबे जोग नइयां, सो ने कहो।’’ मोए लगो के कछु ऊंसई-सी बात आए जो भैयाजी मोसे ने कह पा रए।
‘‘अरे, नईं-नईं! ऐसो कछु नइयां!’’ भैयाजी झेंपत से बोले,‘‘कछु गोपनीय नइयां। बा तो हम जे कै रए हते के बोलबे से कछु बदलबे है नइयां, सो काए के लाने बोलो जाए।’’
‘‘जो ऐसई आए सो आप इत्ती सोच-फिकर काए कर रए? अखीर सोचबे के जोग बात हुइए, तभईं तो आप सोच में डूबे दिखा रए। अब बताई दो आप। कै देबे से जी हल्को हो जेहे।’’ मैंने भैयाजी से कही।
‘‘मोए एक बात समझ में कभऊं नईं आई के जोन जागां पे महिला सीट होत आए, मने चुनाव के लाने लुगाइयां ठाढ़ी होत आएं, उते चुनाव चिन्ह चुड़ियां, मुंगरिया, थाली, मटका, बेलन घाईं लेडीज़ वारे आईटम काए रखे जात आएं?’’ भैयाजी ने कही।
‘‘जे तो ई लाने के लुगाइयन खों चुनाव चिन्ह अपनो सो लगे।’’ मैंने उने समझाओ।
‘‘काए, तुमाई भौजी खों तो अपनो बेलन से हमाई फटफटिया ज्यादा पोसात आए। हर दूसरे, तीसरे दिना हमें ताना मारत आएं के जो तुम हमें जे फटफटिया पे कहूं घुमा नईं सकत तो काए के लाने अस्सी-नब्बे हजार फूंके। अब की देखियो, झांसीवारी को मोड़ा दिल्ली से छुट्टियन में घरे आहे सो ऊसे कहबी के हमें सिखा देओ जे फटफटिया चलाबो। एक दार सींख जाएं फेर तुम घरे बैठ के चैका-बासन करियो औ हम खूबई घूमाई करहें।’’ भैयाजी बोले।
‘‘हैं? भौजी ऐसी कैत आएं?’’ मोए जे सुन के बड़ो मजो आओ।
‘‘औ का! एक दिना तो खुदई स्टार्ट करबे की कोसिस कर रई हतीं, मनो बनी नईं उनसे। नईं तो आज हम इते ठाड़े ने दिखाते। हम घरे को काम सम्हार रए होते औ बे कहूं फर्राटे भर रई होतीं।’’ भैयाजी मुस्कात भए बोले।
‘‘सो का गलत है ईमें? आजकाल तो मुतकी लुगाइयों फटफटिया चलाउत आएं।’’ मैंने कहीं।
‘‘जे ई सो हम कै रै बिन्ना के जब आजकाल लुगाइयन खों फटफटिया, मोटर कार, टैक्टर, मोबाईल वगैरा सबईं से मोहब्बत कहानी सो उने जे ऐसे चुनावचिन्ह काए नईं दए जा रए? एक तरफी कैत आएं के लुगाइयन खों आए बढ़ाने हैं, औ उतई दूसरी तरफी लुगाइन खों चुनाव चिन्ह के नांव पे बी बेई पटा-बेलन थमा दए जात हैं।’’ भैयाजी तनक लुगाइनवादी होत भए बोले। जे देख के मोए अच्छो लगो। पर उने चवन्नी को दूसरो पहलू दिखाबो औ याद कराबो सोई जरूरी सो लगो।
‘‘बात तो आप ठीक कै रए भैयाजी, मनो जे बताओ के चुनाव जीतबे के बाद कितनी लुगाइयां पंचायत, नगरपालिका या नगर निगम में दिखाहें? मने मतलब जे के उनमें से आधी से ज्यादा तो घरई में चूला फूंकत रैंहें। सो, उनके लाने पटा-बेलन के चुनाव चिन्ह में का खराबी आए?’’ मैंने याद दिलाई।
‘‘हऔ! मनोे जे ढंग से सोचो जाए सो फटफटिया, टैक्टर वगैरा औरई फिट बैठत आएं। काए से के उन ओरन के पतियन खों राज करने रैत आए औ उने सो कार, मोटर, ट्रैक्टर, फटफटिया चलाने रैत है।’’ भैयाजी बोले।
‘‘नईं भैयाजी! जे तो गलत सोच कहानी आपकी।’’ मैंने विरोध करो।
‘‘का गलत कही?’’ भैयाजी ने पूछी।
‘‘जेई के आप पैले जे बताओ के आप जो जे चुनाव चिन्ह में लुगवा-लुगाई के भेद की बात कर रए हो सो, जे आप लुगाइन के पक्ष में बोल रए के लुगवा हरों के पक्ष में?’’ मैंने सोई पूछी।
‘‘अरे, लुगाइन के पक्ष में ई बोल रए हम। तनक सोचो के चुनाव चिन्ह तक में लुगवा-लुगाई के अन्तर वारी सोच रखी जात आए। लुगाई के लाने पटा-बेलन औ लुगवा ठाड़ो होय सो फटफटिया चुनाव चिन्ह, भला जे का बात भई? काए पटा बेलन अकेले लुगाइन के काम को रैत आए? बे जो बाहरे रैत आएं लुगवा हरें सो का बे ओरें फटफटिया से रोटी बनाऊत आएं? औ जे फटफटिया पे के अकेले लुगवा सवारी करत आएं? जे मान लई के फटफटिया लुगवा चलात आएं मनो रैत को पूरे घरे के लाने आए। ऊपे बुड्ढा चढ़त हैं, बच्चा चढ़त हैं, लुगाइयां सो पूरी सज-धज के सवारी करत हैं। बोलो, का हम गलत बोल रए?’’ भैयाजी ने मोसे पूछी।
‘‘नईं भैया, आप कै तो सांची रए हो। मनो जे तो जन्मई से भेद-भाव करो जात आए के मोड़ा भओ तो ऊको बुस्सर्ट पैनाई जात आए औ जो मोड़ी होए तो ऊके लाने फ्राक रैत आए। औ अब बिदेसियन खों देख-देख के बिटिया के लाने गुलाबी रंग औ बेटा के लाने नीलो रंग रखो जात आए। जेई से चुनाव चिन्ह चुनबे के टेम पे लगत हुइए के लुगाइन के लाने घर-गिरसती को आईटम रखो जाए औ लुगवा हरों के लाने बाहर वारो आईटम। जे तो सोच-सोच की बात ठैरी।’’ मैंने कही।
‘‘जे ई सोच सो हमें नईं पोसा रई। अरे जब लुगाइयन खों आगे बढ़ाने है सो उने घर-गिरसती से बाहर की दुनिया देखन देओ।’’ भैयाजी बड़ी शान से बोले।
‘‘हऔ, बात तो आप ठीक कै रै! सो मैं ऐसो करई के मोए गाड़ी सिखाबे वारो को मोबाईल नंबर पतो आए, सो ऊको अभई फोन कर के पक्को कर ले रई के कल से बो आ जाओ करे।’’ मैंने कही।
‘‘काए के लाने? तुम पे तो बनत आए गाड़ी चलात।’’
‘‘अपने लाने नईं, भौजी के लाने। तनक सोचो के कबे झांसीवारी खों मोड़ा दिल्ली से आहे औ कबे हमाई भौजी फटफटिया चलाना सीख पाहें? सो बो डिराइविंग स्कूल वारे खों बुला लेओ चाइए।’’ मैंने भैयाजी से कही।
‘‘जे का कर रईं?’’ भैयाजी हड़बड़ात भए बोले। 
‘‘फोन कर रई गाड़ी सिखाबे वारे खों।’’ मैंने कही।
‘‘ने करो! तुमाई भौजी का करहें फटफटिया सीख कें? औ बा ऊपे चढ़हें कैसे? अबईं तो एक तरफी टांगें करके ऊपे बैठत आएं।’’ भैयाजी ने बहाना दओ।
‘‘काए? जब बे फटफटिया चलाहें सो पैंट, जींस पहन हें। अब ई जमाने में झांसी की रानी घांई कछौटा मारे के साड़ी पहन के सो ने चड़हें फटफटिया पे।’’ मैंने गंभीर होने की एक्टिंग करी। मनो अन्दर से मोरी हंसी फूट पड़रई हती। भैयाजी को मों देखन जोग हतो।
‘‘अरे, जे सब छोड़ो! बे कोन चुनाव में ठाड़ी हुई हैं के उनको बाहर निकरने परहे।’’ भैयाजी खिझात भए बोले।
‘‘मनो भैयाजी, आप चुनाव चिन्ह पे बहस कर सकत आओ पर भौजी खों फटफटिया चलान नईं दे सकत हो, जे तो दोहरी बात कहानी।’’ मैंने भैयाजी की खिंचाई करी।
‘‘अच्छा कर लेओ फोन, बुला लेओ सिखाबे वारे खों। तुमाए लाने सो अच्छो रैहे, ननद भौजाई दोई फटफटिया में घुमाई करहो। बाकी जे भेद-भाव वारी बात मोए नईं पोसा रई आए के लुगाई होय सो चुनाव में बी हाथ में बेलन ले के ई फिरत रए।’’ भैयाजी बोले।      
‘‘खैर, आप भौजी से फेर के एक बार पूछ लेओ तब गाड़ी सिखाबे वारे खों फोन करबी। अबई नईं कर रई, घबड़ाओ नईं।’’ मैंने हंस के कही।
भैयाजी सोई मुस्कात भए बढ़ लिए। मोसे कह-बोल के उनको जी हल्को हो गओ। मनो बात बे ठक्का-ठाई कर गए। अब तो मोए चुनाव चिन्ह में सोई ‘‘जेंडर डिस्कोर्स’’ नज़र आउने है, जे बात तय कहानी।
बाकी मोए सोई बतकाव करनी हती सो कर लई। अब चाए अलाने की घरवारी जीते के, फलाने की घरवारी, मोए का? रैने सो ‘‘पति राज’’ आए ( कछु अपवाद छोड़ दओ जाए)। बाकी, बतकाव हती सो बढ़ा गई, हंड़ियां हती सो चढ़ा गई। अब अगले हफ्ता करबी बतकाव, तब लों जुगाली करो जेई की। सो, सबई जनन खों शरद बिन्ना की राम-राम!    
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(23.06.2022)
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