Thursday, June 2, 2022

बतकाव बिन्ना की | हमाई लुगाई काय नईं? | डाॅ. (सुश्री) शरद सिंह | बुंदेली कॉलम | साप्ताहिक प्रवीण प्रभात

मित्रो, "हमाई लुगाई काय नईं?" ये है मेरा बुंदेली कॉलम-लेख "बतकाव बिन्ना की" अंतर्गत साप्ताहिक "प्रवीण प्रभात" (छतरपुर) में।
हार्दिक धन्यवाद #प्रवीणप्रभात 🙏
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बतकाव बिन्ना की
हमाई लुगाई काय नईं?
- डाॅ. (सुश्री) शरद सिंह
            मोए भीड़-भाड़ में जाबो तनकऊ नईं पोसात। मनो मैंने देखी के प्याज बढ़ा गई आएं सो, सोची के बजरिया से प्याज ले आओ जाए। मैंने थैला उठाओ। तनक सो बटुआ धरो। काय से के बजरिया में बड़ो पर्स को का काम? उते कोन कोई खों फुरसत धरी के मोरो पर्स देखहे। सो मैंने थैला लओ, बटुआ धरो औ किवरिया पे तालो डारो। निकल परी बजरिया खों। बजरिया पोंचबे के पैलऊं मोए भैयाजी दिखाने। कोनऊ संगे गिचड़ कर रए हते। मैंने सोची के बे तो लगे हैं गिचड़ करबे में सो मोपे उनकी नज़र ने परहे। मगर भैयाजी तो ठैरे, भैयाजी। 
‘‘काए बिन्ना बजरिया जा रईं?’’ उन्ने पूछई लओ।
‘‘हौ!’’ मैंने कही।
‘‘हौ सो, हो आओ, मनो आजकाल तुम बजरिया जात नईयां सो पूछी।’’ भैयाजी साफाई देत भए बोले।
‘‘हौ, भैयाजी! ठीक कही आपने। मोए भीड़ में अच्छो नईं लगत जेई से नई जात हों, बाकी प्याज बढ़ा गई रही सो जान पड़ रओ आए।’’ मैंने सोई खुलासा बता दओ।
‘‘बाकी आप जे गोबिंद भैया से काए की गिचड़ कर रए?’’ निकट पोंच के मैंने पहचान लओ हतो के भैयाजी जोन संगे बहस करबे टिके हैं बे गोबिंद भैया आएं।
‘‘गिचड़ नोई बिन्ना, जे तो सूदी सी बात आए।’’ भैया जी बोलबे खों भए के गोबिंद भैया ने उनकी बात काट दई।
‘‘काए की सूदी बात? तुम तो दोंदरा दए फिर रए। ऐसो कहूं होत आए?’’ गोबिंद भैया बमकत भए बोले।
‘‘ई में दोंदरा की का बात? तुमाई लुगाई ठाड़ी हो सकत सो हमाई लुगाई काय नईं?’’ भैयाजी सोई तैस खात भए बोले।
‘‘नईं हो सकत।’’ गोबिंद भैया सो अड़ी दिखान लगे।
‘‘काए नईं हो सकत?’’
‘‘नई हो सकत? कह दई ना!’’
‘‘हऔ, तुमाए कहे से दुनिया चलत आए? हमाई लुगाई काए ठाड़ी नईं हो सकत जे तुम हमें बताओ!’’ भैयाजी फेर गिचड़ परे।
पुरखा हरें कै गए आएं के दोई के झगरा के बीच में नई परो चाइए। पर जब मत मारी जाए सो, का करो जा सकत आए। ई बेरा मोरी मत मारी गई हती।
‘‘का हो गओ भैया हरों! काय की बहस कर रए?’’ मोए जाने हतो प्याज लाबे खों औ मैं पर गई उन ओरन के दोंदरा में।
‘‘देखो शरद बिन्ना, तुमाए भैयाजी की मत मारी गई आए। जे कछु समझबे-बूझबे खों तैयारई नईयां।’’ गोबिंद भैया मोसे बोले।
‘‘हमें का समझने? समझने तुमें आए!’’ भैयाजी बोले।’’
‘‘हो का गओ? कोन बात पे गिचड़ रए?’’ मैंने पूछी।
‘‘जे इनईं से पूछ लेओ।’’ गोविंद भैया उंगरिया से भैयाजी की ओर इसारा करते भए बोले। 
‘‘हौ, सो आपई बोलो, कछु तो पता परे के ऐसो कौन सो कांड हो गओ के आप दोई टकरा रए।’’ ई बेरा मैंने भैयाजी से पूछी। 
‘‘बात कछृ नईं, औ सोचो तो सबई कछु आए!’’ भैयाजी बोले।
‘‘अब बातई देओ! बुझउव्वल ने बुझाओ! मोए बजरिया सोई जाने आए।’’ मैंने भैया जी से कही।
‘‘अरे बिन्ना! अबई कछु दिनां में चुनाव होने वारे आएं!’’
‘‘हऔ, सो?’’
‘‘सो, जे के इते की सीट महिलाओं के लाने सुरक्षित कर दई गई आए।’’
‘‘सो?’’
‘‘सो, जे के हम जे गोबिंद से कै रए के ई बेरा हम अपनी लुगाई खों चुनाव में ठाड़ो करबी। पर जे गोबिंद कै रओ के ऐसो नईं हो सकत।’’
‘‘काए नई हो सकत?’’ मोरे मों से सोई जे कह आओ।
‘‘अरे, बिन्ना तुमाए भैयाजी की लुगाई खों कोनऊ अनुभव नई आए! बे चुनाव में का करहें? औ मनो चुनाव में जीत गईं सो का कर लेहें?’’ गोबिंद भैया बोले।
‘‘हऔ, जैसे तुमाई लुगाई खों सो खूबई अनुभव रओ? का हमें पतो नईं। तीन बार खड़ी भईं, दो बार हार गईं और एकई बार जीतीं। ऊमें बे कभऊं ने दफ़्तर गईं औ ने मीटिंग में गईं। तुमई जात्ते सरपंचपति कहाऊत भए।’’ भैयाजी गोबिंद भैया की पोल खोलत भए बोले।
‘‘हऔ, हम जात्तो हते! ई में छुपो का आए? सबई जानत आएं। अरे, हमाई लुगाई कोनऊं ऐसी-वेसी नोई के मीटिंग-सीटिंग में जाए। उते का भभ्ड़ मचत आए हमें पतो आए, तुमें नईं।’’ गोबिंद भैया बोले।
‘‘हअै, औ उते भभ्ड़ मचात कोन आए? तुमई ओरे। बड़े आए पंचपति, सरपंचपति, पार्षद पति, महापौर पति, विधायक पति....’’ भैयाजी को पारा चढ़ गओ।
‘‘अरे, तो उते बोलने परत आए। सवाल करने परत आए और लुगाई के बदले जबाव सोई देने परत आए।’’ गोबिंद भैया बोले।
‘‘सो आपई काए नईं ठाड़े हो जा हो चुनाव में?’’ मोसे ने रहो गओ। जे रबरस्टाम्प घाईं लुगाइयन खों देख के मोरो मूंड़ सोई भन्ना जात आए। कहबे के लाने स्त्री ससक्तीकरण औ स्त्रीबाईं बैठीं चूल्हा के ऐंगर भजिया तलत भईं। अरे, ऐसी लुगाई होए जो सब सम्हारे, अपनी अकल से सब करे, सो कहो के लुगाईयन खों ताकत मिल गई। जो सबई कछु लुगवा मने घरवारे सम्हारें सो काए की ससक्तीकरण?
‘‘हम तो हो जाएं चुनाव में ठाड़े, मनो सीट सो महिलाओं के लाने कर दई गई आए।’’ गोबिंद भैया बोले।
‘‘हऔ, पर की बेरा सो नईं हती महिलाओं के लाने तब काए नईं ठाड़े भए?’’ भैयाजी ने पिछलो चुनाव याद करा दओ।
‘‘हमें तुमसे कोनऊं बहस नई करने! बस, जे जान लेओ के जो हमाई लुगाई ठाड़ी हुइए, सो तुमाई लुगाई ठाड़ी नईं हो सकत।’’ गोबिंद भैया रिजल्ट सो सुनात भए बोले।
‘‘जे कोन सी बात भई? तुम सरपंचपति कहलाबो को सुख भोग सकत हो औ हम नईं? जे तो गल्त बात आए। हम ने मानहें। हमाई लुगाई सोई चुनाव में ठाड़ी हुईए औ हमें सोई सरपंचपति कहलाने है। तुम पे जो बने सो कर लेओ।’’ भैयाजी सोई धमकात भए बोले।   
‘‘लेओ तुम दोई इते लड़ रए औ उते देखो दोई भौजी हरें संगे बजार कर के कैसी हंसत-बोलत लौट रईं। उनई से पूछ लेओ के कौन ठाड़ी होन चात आए औ कौन नई?’’ मैंने भौजी हरों की ओर इसारा करके कही।
‘‘तुम ओरें इते का कर रए? हमने तुमसे कही रई के घरे रहियो औ तुम हो के पांव घरई नईं टिकत!’’ भैयाजी खो देखतईं भौजी ने चार सुनाई।
‘‘औ तुम! तुम सुन लेओ कान खोल के हमें ई बेरा चुनाव-उनाव नई लरने! अपने नावं पे तुमें उते जा के नैनमटक्का नईं करन देहें।’’ गोबिंद भैयाजी भौजी सोई डांटत भई बोलीं। 
दोई चोखरवा घांई सुट्ट पर गए। जे देख मोए कह आई के जे है असल स्त्रीसशक्तीकरण। 
सो, दोई भैया हरें भौजियन से सब्जियन वारो थैला ले उनके पांछू-पांछू चल परे। मोए सोई बतकाव करनी हती सो कर लई। बाकी सरपंच जाने, सरपंचपति जाने। मोए का करने। बाकी, बतकाव हती सो बढ़ा गई, हंड़ियां हती सो चढ़ा गई। अब अगले हफ्ता करबी बतकाव, तब लों जुगाली करो जेई की। सो, सबई जनन खों शरद बिन्ना की राम-राम!
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(02.06.2022)
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