"महेन्द्र फुसकेले मार्क्सवादी थे पर संस्कृति एवं भारतीय परंपरा के संरक्षण के पक्षधर थे। उन्होंने अपने साहित्य में दलित, शोषित व स्त्री की समस्या को उठाया है। महेंद्र फुसकेले जी जमीनी सच्चाई से जुड़ा हुआ लेखन ही पसंद करते थे। उनका स्वयं का लेखन वह चाहे उपन्यास हो या कविताएं दलितों, महिलाओं और अल्पसंख्यकों के लिए समर्पित रहा है उन्होंने महिलाओं की दलित शोषित स्थिति पर बहुत बारीकी से कलम चलाई। उनके उपन्यासों में महिलाओं की दुर्दशा ही नहीं वरन उनके सशक्तिकरण का रास्ता भी दिखाई देता है। यही उनके सृजन की विशेषता रही है।" मुख्य अतिथि के रूप में मैंने यानी आपकी इस मित्र डॉ. (सुश्री) शरद सिंह ने साहित्यकार महेन्द्र फुसकेले के प्रथम पुण्य स्मरण के अवसर पर वर्णी वाचनालय में आयोजित कार्यक्रम में कही। यह आयोजन प्रगतिशील लेखक संघ की सागर इकाई द्वारा आयोजित किया गया। विशेष अतिथि थे व्यंग्य विधा के पुरोधा प्रो. सुरेश आचार्य जी तथा अध्यक्षता की ग़ज़लकार डॉ. गजाधर सागर ने।
आयोजन में "ब्रजरज" के रचयिता शायर मायूस सागरी को "महेन्द्र फुसकेले स्मृति साहित्य अलंकरण" से सम्मानित किया गया। साथ ही प्रगतिशील लेखक संघ की सागर इकाई द्वारा प्रकाशित एवं कवि साहित्यकार श्री मुकेश तिवारी द्वारा संकलित आलेख संकलन का लोकार्पण किया गया।
कार्यक्रम का कुशल संचालन किया डॉ नलिन जैन "नलिन" ने तथा सूत्रधार थे वरिष्ठ साहित्यकार एवं प्रलेस के अध्यक्ष टीकाराम त्रिपाठी रुद्र जी एवं फुसकेले जी के पुत्र श्री पेट्रिस फुसकेले व श्रीमती नम्रता फुसकेले।
कार्यक्रम में सर्वश्री उमाकांत मिश्र, हरगोविंद विश्व, लक्ष्मी नारायण चौरसिया, डॉ. लक्ष्मी पांडेय, सुनीला सराफ, दीपा भट्ट, वीरेंद्र प्रधान, पूरन सिंह राजपूत, डॉ. सतीश रावत, डॉ नवनीत धगट, आशीष ज्योतिषी आदि बड़ी संख्या में साहित्यकार एवं परिजन उपस्थित थे।
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