Thursday, October 6, 2022

बतकाव बिन्ना की | काए भैयाजी, जे रावण फाईनली कबे मरहे? | डाॅ. (सुश्री) शरद सिंह | बुंदेली कॉलम | प्रवीण प्रभात

"काए भैयाजी, जे रावण फाईनली कबे मरहे?"  मित्रो, ये है मेरा बुंदेली कॉलम "बतकाव बिन्ना की" साप्ताहिक #प्रवीणप्रभात (छतरपुर) में।
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बतकाव बिन्ना की         
काए भैयाजी, जे रावण फाईनली कबे मरहे?
- डाॅ. (सुश्री) शरद सिंह
        
‘‘काए भौजी, लिपाई-पुताई हो गई का?’’ मैंने भौजी से पूछी।
‘‘अभई कां, दिवारी के पैलऊं हुईए!’’ भौजी बोलीं।
‘‘नईं, मैं वो वारी लिपाई-पुताई की नई कै रई, अभईं दशहरा के लाने कछु ने करहो का?’’ मैंने भौजी से साफ-साफ पूछी।
‘‘ने करबी का? आंगन देखो कैसो फूटो सो डरो आए, पर तुमाए भैयाजी खों कछु दिखाए तब न!’’ भौजी खिजियात भईं बोलीं।
‘‘सो, ई बेरा उनके जिम्मे है का जे काम?’’ मैंने पूछी।
‘‘हौ, बे करहें? आड़ी की काड़ी सो टरत नइयां उनसे, लिपाई-पुताई करहें? खूब कही तुमने बिन्ना!’’ भौजी भैयाजी के लाने ताना मारत भई बोलीं।
‘‘सो, फेर काए उनके लाने परखीं बैठीं? कछु मोरे जोग काम हो सो कहो!’’ मैंने भौजी से कही।
‘‘तुम का कर पैहो? तुमने सो कभऊं गोबर न छुओ हुइए।’’ भौजी हंसत भईं बोलीं।
‘‘जे लो, तुमने सोई खूब कही भौजी! हमने सोई लिपाई-पुताई करी आए। मनो दीवारन की नई, पर आंगन की खूब करी, ढिग सोई धरत्ती। उते पन्ना में हमाओ सरकारी मकान घनो छोटो रओ, पर आंगन खूबई बड़ो हतो। मैं और मोरी दीदी, दोई जनी गोबर बीन लातत्तीं औ पैलऊ लीपत्तीं, फेर ऊके किनार पे ढिग धरत्तीं।’’ मैंने भौजी को बताई।
‘‘अरे, वाह! बाकी अब तो तुमाए ऐंगर आंगन ई नइयां। सो, प्रैक्टिस छूट गई हुइए!’’ भौजी बोलीं।
‘‘अरे तुम भी भौजीं, कहूं लीपनो-पोतनों कोऊं कभऊं भूलत आए? बाकी अब गोबर छीबे में जरूर अच्छो नईं लगत। काए से के अब गोबर कछु औरई तरहा से बतास आए।’’ मैंने भौजी से सांची बात कै दई।
‘‘हौ सो, अब पैलऊं जैसो कहां से बसाहे? पैलऊं गाइयां हरें घास-पात खात्तीं। मनो अब सो उने पन्नी लो खाने परत आए। जेई लाने हम सो डेयरी वाले यादव भैया के हियंा से गोबर मंगा लेत आएं। औ जेई सो सल्ल बिधींे कहानी। हम तीन दिनां से तुमाए भौयाजी के लाने ठेन कर रए के यादव डेयरी से हमाए लाने गोबर लान देओ, मगर तुमाए भौयाजी सुनें तब न!’’ भौजी घूमत-फिरत फेर के भैयाजी पे आ गईं।
तभईं भैयाजी प्रगट भए।
‘‘राम-राम भैयाजी!’’
‘‘राम-राम बिन्ना!’’
‘‘कां हो आए?’’ मैंने भैयाजी से पूछी।
‘‘अरे कहूं नईं, इतई लों!’’ भैयाजी बोले।
‘‘इने कहां जाने? गए हुइएं सट्टा लगाबे!’’ भौजी कुड़कुड़ात भई बोलीं।
‘‘सट्टा? आप कब से खेलन लगे?’’ मोए भारी अचरज भओ जे सुन के।
‘‘अरे नईं! हम कां खेलत आएं सट्टा-मट्टा!’’ फेर भौजी से बोले,‘‘तुम औ, बिन्ना से झूठ काए बोल रईं? जे का सोचहे?’’
‘‘हम कां झूठ बोल रए? ऊ दिनां तुम ओरें सट्टा की बात नई कर रए हते का? जो दिनां कांग्रेस को अध्यक्ष चुनो जाने रओ। बो तुमाओ करिया छुटकुल कै रओ हतो के हमने सो खड़से पे सट्टा लओ आए, बेई बनहें। औ तुम सोई कै रए हते के दिग्गी राजा के सो कोनऊं चांस नई दिखा रओ। काय कै रए हते के नईं?’’ भौजी ने तमक के पूछी।
‘‘हऔ, कै रए हते! मनो हम सो बतकाव ई कर रए हते, हम कौन सट्टा लगा रए हते? बा तो छुटकुल हरें जुटे हते।’’ भैयाजी सफाई देत भए बोले।
‘‘हऔ, सो तुम सो बड़े दूध के धुले कहाने! का पतो, सट्टा लगाओ होय, औ हार गए सो चिमा रए।’’ भौजी बोलीं।
‘‘अरे नईं मोरी मैयां, ऐसो नईयां! कांग्रेस पे सट्टा लगे के मोए जुधिष्ठिर बनने है का, के राज-पाट सबई कछु हार गए।’’ भैयाजी हंस के बोले।
‘‘राज-पाट का हार हो? बाकी कभऊं मोए दांव पे लगाबे की सोचीं सो जेई मुंगरिया से तुमाओ मूंड़ कुचर देबी!’’ भौजी पास रखी मुंगरिया ठोंकत भईं बोलीं।
‘‘अरे मालकन! गम्म खाओ! हम कभऊं कछु ऐसो-वैसो ने करबी।’’ भैयाजी अपने दोई हाथ जोड़त भए बोले।
‘‘खैर, जे सब आप ओरें छोड़ो! भैयाजी आप आ कां से रए हो? दो दिनां से दिखाने बी नईं, कहूं बिजी हो का?’’ मैंने भैयाजी से पूछी।
‘‘अरे कहूं नईं! बो दशहरा के लाने रावण बनाओ जाने है, सो बोई के लाने तैयारी चल रई। बे ओरें बोले के पटाखों को इंतेजाम कर दइयो, सो हमने हामी भर दई। आज पटाखन के लाने गए हते, अभई उतई से आ रए।’’ भैयाजी ने बताई।
‘‘भैयाजी, रावण बनाबे में पटाखो लगाबो का जरूरी होत आए?’’ मैैंने भैयाजी से पूछी।
‘‘जरूरी सो कछू नईं, पर अच्छो लगत आए। जब बे फट्ट-फट्ट फूटत आएं, सो ऐसो लगत आए के मनो रावण ई के मूंड फूट रए होएं।’’ भैयाजी बोले।
‘‘बाकी रावण को तो रामजी ने मार दओ रओ, सो अब जे मूंड कां से आत रैत आएं?’’ मैंने भैयाजी से पूछी।
‘‘तुम औ! ऐसे पूंछ रईं जैसे पैलऊं कभऊं रावण मरत देखो नइयां! बिन्ना, जे तो प्रतीक आए! अब तुम लो सब जानत भईं, अनजान बन रईं।’’ भैयाजी मों बनात भए बोले।
‘‘अरे, मोरो मतलब जो नइयां, मैं सो जे पूछो चाह रई के हम ओंरे कब तक लो हर बरस रावण मारत रैबी? रावण कभऊं फाईनली मरहे के नईं?’’ मैंने भैयाजी से पूछी।
‘‘अरे बिन्ना! जब लो ई धरती पे रावण घांईं लोग रैहें, तब लों रावण फाईनली कां मरहे।’’ भैयाजी बोल।
‘‘सो हम जित्ती ताकत रावण को पुतरा बनाबे में लगात आएं उत्ती ताकत समाज से रावण हरों खों मारबे में काए नईं लगात?’’ मैंने भैयाजी से पूछी।
‘‘अब जे सब छोड़ो!’’ भैयाजी टरकान लगे।
‘‘अरे काए छोड़ो? बिन्ना सांची सो कै रई के जित्तो टेम तुमने पटाखे ढूंढबे में हरजा कर दए, उत्ते टेम सो तुम कभऊं एक जागां टिकतई नइयां! ऊ दिनां दमोए वारी चाची खों हस्पताल में भरती कर करा के, दवा-दारू रख के ऐसे उते से भागे हो के हम कां कहें? अरे, तनक देर रुक लेते सो सब को सहूरी बंधती। मगर तुमाए लाने सो रावण के पुतरा के लाने पटाखें लाने को टेम है, मनो गोबर लाने को टेम नइयां।’’ भौजी बोलीं।
भौजी के इत्ते नोने लेक्चर की अखीरी लाईन सुन के मोए लगो के भौजी ने गोबर की बतकाव का के इत्तो गंभीर टाॅपिक को गुड़-गोबर कर दओ।
‘‘हऔ, लान देबी! चाय पिला देओ! फेर जात हों।’’ भैयाजी बोले।
‘‘तुमने सही कई भौजी! अपन ओरें हर साल रावण को पुतरा सो फूंकत रैत आएं पर जो कभऊं कोनऊं आजकाल के रावण के बारे में सुनी परत आए सो जेई कैन लगत अरएं के अपन अकेले का कर सकत हैं?’’ मैंने भौजी से कही।
‘‘औ सांची सो आए! आजकाल के रावण हरों से कोनऊं अकेले नईं निपट सकत!’’ भैयाजी बोले।
‘‘हौ, औ रामचन्दर जी सो अजोध्या से पूरी सेना ले के गए रए न बनवास के लाने? अरे, बे और उनके लोहरे भैया लछमन के अलावा औ कौन रओ उनके संगे? बाकी उन्ने हिम्मत ने हारी औ छोटे-बड़े भूल के सबई खों अपने संगे लओ, तभईं सो रावण खों मार पाए। औ एक अपन ओरें आएं जो संगे चलबो ई भूले जा रए।’’ मैंने भैयाजी से कही।
‘‘कै सो तुम ठीक रईं बिन्ना! बाकी आजकाल जो दसा आए ऊमें हम का, कोनऊं बता नईं सकत के रावण फाईनली कबे मरहे! जब लों जनता औ कानून संगे ने चलहे, तब तक कछु नईं हो सकत।’’ भैयाजी दुखी होत भए बोले।
‘‘दुखी न हो भैयाजी! मैंने आपके लाने दुखी करबे को जे सब नईं कही। बा सो दुनियादारी देख के कै आई। अब आप सो उठो औ भौजी के लाने गोबर लान देओ औ उते पुतरा में पटाखा भरवा दइयो! चलो उठो आप, गम्म ने खाओ!’’ मैंने भैयाजी से कही।        
बाकी मोए सोई बतकाव करनी हती सो कर लई। रावण को पुतरा में चाए पटाखो भरो जाए, चाए बम, मोए का करने? बात सो तब बनहे जब अपन ओरें मिल के ई समाज से रावण हरों खों फाईनली मार देबी! तनक सोचियो ई पे! अब अगले हफ्ता करबी बतकाव, तब लों जुगाली करो जेई की। सो, सबई जनन खों शरद बिन्ना की राम-राम!
औ बो का कहाऊत आए... हैप्पी दशहरा!!!
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(29.09.2022)
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