वृत्तचित्र समीक्षा
इतिहास को जीवंत करता एक आख्यान है वृत्तचित्र ‘‘आद्या’’
समीक्षक - डाॅ. (सुश्री) शरद सिंह
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वृत्तचित्र - आद्या
संकल्पना - डाॅ. लक्ष्मी पाण्डेय
निर्माता - श्रीसरस्वती पुस्तकालय एवं वाचनालय ट्रस्ट सागर
प्रस्तुति - फिल्मेनिया लाइट कैमरा एक्शन, सागर
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यूं तो इस काॅलम में मैं हमेशा पुस्तकों की ही समीक्षा करती हूं किन्तु जब किसी वृत्तचित्र की प्रस्तुति एक पुस्तक की भांति शोधपूर्ण, महत्वपूर्ण और रोचक हो तो इस काॅलम में शामिल करना मुझे उचित प्रतीत होता है। वृत्तचित्र ‘‘आद्या’’ किसी अख्यान से कम नहीं है।
‘‘अभिज्ञान शाकुन्तलम’’ के नान्दी पाठ में कवि कालिदास ने ‘‘आद्या’’ का प्रयोग करते हुए लिखा है कि-
या सृष्टिः स्रष्टुराद्या वहति विधिहुतं या हविर्या च होत्री
ये द्वे कालं विधत्तः श्रूतिविषयगुणा या स्थिता व्याप्य विश्वम् ।
यामाहुः सर्वबीजप्रकृतिरिति यया प्राणिनः प्राणवन्तः
प्रत्यक्षाभिः प्रपन्नस्तनुभिरवतु वस्ताभिरष्टाभिरीशः।।
- अर्थात् जो स्रष्टा की प्रथम सृष्टि है, वह अग्नि और विधिपूर्वक हवन की हुई आहुति का वहन करती है, जो हवि है और जो होत्री है, जो दो सूर्य और चन्द्र का विधान करते हैं, जो शब्द-गुण से युक्त होकर आकाश और सम्पूर्ण विश्व को व्याप्त किए हुए हैं, जिस पृथ्वी को सम्पूर्ण बीजों का मूल कहा जाता है और जिस वायु के कारण प्राणी, प्राण को धारण करते हैं। इस प्रकार कवि कालिदास ने ‘‘आद्या’’ अर्थात् आद्य के स्त्रीलिंग का प्रयोग किया है। संस्था भी स्त्रीलिंग होती है। आजादी का अमृत महोत्सव मनाने और सागर नगर की पुरातन संस्था सरस्वती पुस्तकालय एवं वाचनालय के 119 वें वर्ष को अविस्मरणीय बनाने के उद्देश्य से एक वृत्तचित्र का निर्माण किया गया है जिसका नाम है ‘‘आद्या’’।
हर शहर का अपना एक इतिहास होता है और वहां होती हैं ऐतिहासिक इमारतें, संस्थाएं, सड़कें, चौक आदि। सागर शहर का भी अपना एक दीर्घकालीन इतिहास है। सागर शहर के इतिहास के पन्नों में दर्ज़ हैं देश के स्वतंत्रतापूर्व से ले कर स्वतंत्रताप्राप्ति तक के अनेक साक्ष्य। ये साक्ष्य विविध रूपों में हैं। सागर का किला, फन्नुसा कुआ, छावनी क्षेत्र, बैरक, लाख बंजारा तालाब, डाॅ. हरीसिंह गौर विश्वविद्यालय और सरस्वती पुस्तकालय एवं वाचनालय आदि।
नगर की पुरातन संस्था श्रीसरस्वती पुस्तकालय एवं वाचनालय पर एक वृत्तचित्र अर्थात् डाक्यूमेंट़्री बनाई गई है जिसका विधिवत प्रथम प्रदर्शन अर्थात् प्रीमियर सरस्वती वाचनालय के समाभागर में किया गया। नगर के गणमान्य नागरिकों एवं बुद्धिजीवियों के साथ मुझे भी इस प्रीमियर में सम्मिलित होने का अवसर मिला। चूंकि फिल्म एवं वृत्तचित्र निर्माण से मेरा भी पूर्व में संबंध रहा है अतः मैंने लगभग हर दृष्टिकोण से इस वृत्तचित्र को देखा और परखा है। इस वृत्तचित्र के बारे में कुछ भी कहने से पूर्व मैं सरस्वती वरचनालय के प्रति नगरवासियों की आत्मीयता और प्रेम के बारे में चर्चा करना आवश्यक समझती हूं। यूं तो यह संस्था श्री सरस्वती पुस्तकालय एवं वाचनालय के नाम से स्थापित है किन्तु इसे सभी ‘‘सरस्वती वाचनालय’’ के नाम से ही पुकारते हैं। इस संस्था का वाचनालय आज भी आबाद रहता है। शाम को इसका पठन-कक्ष समाचारपत्र एवं पुस्तकें पढ़ने वालों से भरा रहता है। आज जब सभी इस बात से चिंतित रहते हैं कि लोगों में पठन की आदत कम होती जा रही है, सरस्वती वाचनालय का पठन-कक्ष आश्वत करता दिखाई देता है कि स्थिति अभी उतनी निराशाजनक भी नहीं है जितनी कि प्रतीत होती है। यद्यपि यह सच है कि युवा पाठकों की संख्या अपेक्षाकृत कम होती है। लेकिन यह संख्या बढ़ सकती है यदि सरस्वती वाचालय का बजट बढ़ाया जाए और इसका पूर्ण आधुनिकीकरण करते हुए युवाओं की रुचि की पढ़न सामग्री भी प्रचुर मात्रा में उपलब्ध कराई जाए। बहरहाल, किसी भी पुरानी संस्था के विकास के लिए आवश्यक होता है कि उसकी ओर सभी सम्वेत भाव से ध्यान दें। इस दिशा में सरस्वती वाचनालय पर बनाया गया वृत्तचित्र ध्यानाकर्षण की दिशा में भी अत्यंत महत्वपूर्ण है।
सरस्वती वाचनालय की स्थापना लगभग 119 वर्ष पूर्व की गई थी। इस पुस्तकालय एवं वाचनालय ने समय के अनेक उतार-चढाव देखे हैं। इसने गुलामी का संत्रास भी झेला है और आजादी की खुली हवा में जी भर की सांस भी ली है। इस वाचनालय में आजादी के दीवानों ने एकत्र हो कर महत्वपूर्ण मंत्रणाएं भी कीं और अंग्रेजों ने इस पर अपना कहर बरसाने का प्रयास भी किया किन्तु यह संस्था तमाम इतिहास को अपने अस्तित्व के साथ जोड़ती हुई अबाध गति से समय यात्रा करती रही। सरस्वती वाचनालय पर बनाए गए वृत्तचित्र का नाम है ‘‘आद्या’’। यह नाम सर्वथा उचित है क्योंकि यह संस्था पुस्तकालय एवं वाचनालय के रूप में नगर की प्रथम संस्था थी।
‘‘आद्या’’ वृत्तचित्र की संकल्पना, सूत्रधार और गीतकार हैं डाॅ. लक्ष्मी पाण्डेय। निर्देशन एवं पटकथा राहुल पाण्डेय की है। निर्माता है श्रीसरस्वती पुस्तकालय एवं वाचनालय ट्रस्ट सागर तथा प्रस्तुति है फिल्मेनिया लाइट कैमरा एक्शन की।
वृत्तचित्र एक गैर-फिक्शन फिल्म होती है जो वास्तविक जीवन से चुने गए विषयों, व्यक्तियों, घटनाओं, या मुद्दों पर आधारित होती है। ऐतिहासिक तथ्यों पर आधारित वृत्तचित्र प्रायः अल्पज्ञात घटनाओं, व्यक्तियों एवं तथ्यों के बारे में विस्तार से परिचित कराते हैं। इस तरह की फिल्मों में अभिनय और मनोरंजक तत्वों के स्थान पर वृत्त के विषय और उद्देश्य पर जानकारीपरक तत्वों का समावेश अधिक होता है। वृत्तचित्र यानी डाक्यूमेंट्री के नाम से ही स्पष्ट है कि यह किसी दस्तावेजी वृत्त अर्थात अर्थात् डाक्यूमेंटेशन योग्य घटना, व्यक्ति अथवा स्थान पर आधारित होता है। किसी भी वृत्तचित्र के लिए सबसे प्राथमिक आवश्यकता होती है गहन शोध की। कोई भी वृत्तचित्रकार तभी सफल वृत्तचित्र बना सकता है जब उसके पास शोध के द्वारा प्राप्त की गई प्रामाणिक सामग्री हो और उस सामग्री के आधार पर एक सशक्त स्क्रिप्ट लिखी गई हो। वस्तुतः वृत्तचित्र एक दायित्वपूर्ण प्रस्तुति होती है। एक ऐसी प्रस्तुति जिसकी सामग्री (कंटेंट) पर दर्शक विश्वास करने को तैयार रहता है। फिक्शन फिल्म के बारे में तो दर्शक को पता होता है कि यह काल्पनिक सूचनाओं से भरी हुई है किन्तु वृत्तचित्र की सूचनाएं दर्शक के लिए ज्ञान का स्रोत होती हैं। इस दृष्टि से ‘‘आद्या’’ की स्क्रिप्ट पूर्णतया विश्वनीय और प्रभावी है। क्योंकि इसमें मात्र सूत्रधार के द्वारा ही सारे तथ्य नहीं कहलवाए गए हैं, अपितु वाचनालय के अतीत से अब तक सहगामी रहे वरिष्ठजन से लिए गए साक्षात्कारों को भी इसमें पिरोया गया है। इससे तथ्य की विश्वसनीयता सौ प्रतिशत बढ़ गई है। पं. शुकदेव प्रसाद तिवारी, अधिवक्ता चतुर्भुज सिंह, प्रो. सुरेश आचार्य, श्रीमती मीना पिंपलापुरे, श्री रघु ठाकुर, पूर्व सांसद लक्ष्मीनारायण यादव, श्री के.के. सिलाकारी आदि ने वाचनालय से जुड़े अपने संस्मरण साझा किए हैं।
इस वृत्तचित्र की संकल्पनाकार डाॅ. लक्ष्मी पाण्डेय के अनुसार ‘‘यह फिल्म सरस्वती पुस्तकालय एवं वाचनालय के इतिहास और विकास यात्रा के साथ स्वतन्त्रता आंदोलन में इसकी भूमिका को स्पष्ट करती है, आजादी का अमृत महोत्सव मनाना और इस पुस्तकालय के 119 वें वर्ष को अविस्मरणीय बनाने के उद्देश्य से इस फिल्म का निर्माण किया गया है।’’
इस वृत्तचित्र में अनेक रोचक तथ्य हैं जो दर्शक को न केवल वाचनालय के अतीत से परिचित कराते हैं वरन दर्शकों के मन में और जानने की जिज्ञासा भी जगाते हैं। जैसे वृत्तचित्र में बताया गया है कि सन् 1904 में जब संस्था की स्थापना हुई तब वाचनालय भवन को दो रुपए मासिक की दर से किराए पर लिया गया था। उस समय इसकी कुंल संपत्ति देवदार की एक छोटी-सी संदूकची और लगभग सौ-डेढ़ सौ पुस्तकें थीं। सन् 1921 में इस भवन को खरीद लिया गया आठ हजार छः सौ चालीस रुपए में। यह जानकारी इस बात को उजागर करती है कि वाचनालय का आरम्भ कितने सीमित साधनों से हुआ था।
इस वृत्तचित्र का एक और सशक्त पक्ष है इसका फिल्मांकन। वृत्तचित्र की एकरसता को समाप्त कर रोचकता बढ़ाने की दृष्टि से कई ऐतिहासिक तथ्यों का नाटकीय रूपांतरण किया गया है। इसमें कई दृश्य छायांकन की प्रकाशकीय कलात्मकता की दृष्टि से तो कई दृश्य एक्शन की दृष्टि से उच्चकोटि के हैं। एक घटनाक्रम है जिसमें कुछ क्रांतिकारी सागर के किले में जा कर छिपते हैं किन्तु अंग्रेज सिपाही उन्हें ढूंढते हुए वहां आ धमकते हैं तब वे क्रांतिकारी सीढी की रेलिंग फलांगते हुए वापस भागते हैं ताकि वे अंग्रेज सिपाहियों केी पकड़ से बच सकें। यह बहुत ही फास्ट एक्शन वाला दृश्य है जिसे बखूबी फिल्माया गया है। राहुल पाण्डेय और विजय कुमार के प्रभावी छायांकन ने वृत्तचित्र को जीवंत बना दिया है। जहां तक नाटकीय रूपांतर में अभिनय करने वाले कलाकारों का प्रश्न है तो वे भी अपनी पूरी अभिनय क्षमता के साथ प्रस्तुत हुए हैं। ऋषभ सैनी, विक्रम परिहार, अश्विनी सागर, पवन रायकवार, विक्रम विशाल जैन, विश्व राज सुनर्या, यशवंत पटेल, नीलेश रायकवार, राहुल सेन, सुषमा मिश्रा, संदीप रायकवार, प्रियंका दुबे, क्षितिज राजपूत, रितु मिश्रा, गजेंद्र सिंह विनीता राजपूत, संध्या दुबे, जीत्तू जैन आदि कलाकारों ने उच्चकोटि की अभिनय क्षमता का प्रदर्शन किया है।
वृत्तचित्र में सूत्रधार की अहम भूमिका होती है। वह समूची फिल्म के प्रभाव को घटा या बढा सकता है। इस वृत्तचित्र ‘‘आद्या’’ की सूत्रधार डाॅ. लक्ष्मी पाण्डेय ने विषय के साथ तादात्म्य स्थापित करते हुए पूरी गंभीरता से अपनी प्रस्तुति देते हुए वृत्तचित्र की गरिमा में श्रीवृद्धि कर दी हैं। वे एक सधी हुई सूत्रधार की भांति रोचक ढंग से जानकारी देती गई हैं। संगीत, गायन और कथानक-गीत अक्षय बाफिला का है। ध्वनि संगीत और स्वर संगीत का संतुलित संयोजन इस वृृत्तचित्र में अनुभव किया जा सकता है। इसमें प्रयोग किए गए संगीत ने विषय के वातावरण को ‘बूस्ट’ करने अर्थात् अतिरिक्त ऊर्जा देने का काम किया है। निर्माण निर्देशक अदिति जैन ने अपने निर्माण कौशल का पर्याप्त परिचय दिया है।
"आद्या" वृत्तचित्र इतना जानकारीपूर्ण और अतीत के प्रति प्रेम और सम्मान जगाने वाला है कि इसे स्कूल, कालेज आदि शैक्षिक संस्थाओं में प्रदर्शित किया जाना चाहिए। यह अतीत को सहेजता हुआ एक अत्यंत रोचक वृत्तचित्र है। वस्तुतः इसे सभी को देखना चाहिए।
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लाजबाब
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