Wednesday, February 22, 2023

चर्चा प्लस | हमारा शांतिपूर्ण भविष्य : पर्यावरण, शांति और सुरक्षा में है | डॉ (सुश्री) शरद सिंह | सागर दिनकर

चर्चा प्लस  
हमारा शांतिपूर्ण भविष्य : पर्यावरण, शांति और सुरक्षा में  है 
 - डाॅ (सुश्री) शरद सिंह                                                                                      
       हमारी दुनिया, हमारा शांतिपूर्ण भविष्य: पर्यावरण, शांति और सुरक्षा’’ - जी हां, यही थीम है इस वर्ष अर्थात् 2023 के ‘विश्व चिंतन दिवस’ की जो प्रति वर्ष 22 फरवरी को पूरी दुनिया में मनाया जाता है। लेकिन क्या हम सचमुच चिंतनशील रह गए हैं? यदि हां, तो हमारी चिन्ताओं का सरोकार और सीमाएं क्या हैं? यह दिवस यूं तो गर्ल्स स्काउट गाईड्स द्वारा मनाया जाता है लेकिन इसका उद्देश्य उस दुनिया के बारे में चिंतन करने का है जिसमें लड़कियां रहती हैं। एक स्वस्थ दुनिया, स्वस्थ पर्यावरण और एक स्वस्थ शांतिपूर्ण सामाजिक व्यवस्था में लड़कियां सुरक्षित रह सकती हैं। किन्तु क्या लड़कियों को ऐसा अनुकूल वातावरण मिल रहा है और क्या वे पूरी तरह सुरक्षित हैं?
विश्व चिंतन दिवस प्रति वर्ष 22 फरवरी को मनाया जाता है। इसे अंतर्राष्ट्रीय मित्रता दिवस भी कहा जाता है। गर्ल स्काउट गाईड्स के नेतृत्व में यह दिवस दुनिया भर में मनाया जाता है। इस दिन दुनिया भर की लड़कियों के वर्तमान और भविष्य के बारे में खुल कर चर्चा की जाती है तथा उनकी दशा सुधारने के लिए रूपरेखा तैयार की जाती है। यह दिन वैश्विक चिंतन के रूप में लड़कियों के सम्पूर्ण वातावरण को केन्द्र में रखा जाता है। जैसे वर्ष 2022 के विश्व चिंतन दिवस की थीम थी- “हमारी दुनिया, हमारा समान भविष्य: पर्यावरण और लैंगिक समानता”। इस थीम को आधार बना कर वर्ष भर इस बात पर समाज का ध्यान आकृष्ट करने का प्रयास किया गया कि एक संतुलित सामाजिक भविष्य के लिए लैंगिक समानता अति आवश्यक है। जहां लड़कियों को लड़कों की भांति समान अवसर दिए जाते हैं वह समाज तेजी से विकास करता है क्योंकि आधी आबादी कहलाने वाला स्त्री-समुदाय यदि पिछड़ा रहेगा तो समाज भी पिछड़ा रहेगा। किन्तु यह हमारी असफलता है कि हमारे देश में ही लड़कियों को लड़कों से कमतर समझने की भूल की जाती है। आज भी समाज में ऐसे लोग मौजूद हैं जो लड़की के बजाए लड़के को संतान के रूप में पाना चाहते हैं। आज भी समाज का एक बड़ा हिस्सा ऐसा है जिसमें लड़कियों की शिक्षा पर भी समुचित ध्यान नहीं दिया जाता है। इस दृष्टि से विश्व चिंतन दिवस स्वयं स्काउट गाईड्स लड़कियों को स्वयं के बारे में और दुनिया भर की सभी लड़कियों के बारे में सोचने का अवसर देता है।  

स्काउट गाइड आंदोलन वर्ष 1908 में ब्रिटेन में सर बेडेन पॉवेल द्वारा आरम्भ किया गया। भारत में स्काउटिंग की शुरुआत वर्ष 1909 में हुई। विश्व चिंतन दिवस ने धीरे-धीरे इसने एक वैश्विक आंदोलन का रूप ले लिया। वर्ष 1938 में भारत भी स्काउट आंदोलन के विश्व संगठन का विधिवत सदस्य बन गया। वर्ष 1911 में भारत में गाइडिंग की शुरुआत हुई, तथा भारत स्काउटिंग 1913 में ऐनी बेसेन्ट द्वारा प्रारम्भ कराई थी। लेकिन कुछ लोग मानते है सन 1913 में पंडित श्रीराम बाजपेई ने शाहजहांपुर से स्काउट दल का निर्माण किया। बहरहाल, सन् 1916 में लड़कियों के लिए भी गाइड दल बना। इससे पहले सिर्फ लड़के ही स्काउट दल के सदस्य होते थे। स्काउट-गाइड के माध्यम से बालक-बालिकाओं का सर्वांगीण विकास कर उनमें सेवा का भाव विकसित किया जाता है।

22 फरवरी को बॉय स्काउट आंदोलन के संस्थापक लॉर्ड बैडेन पॉवेल और प्रतिनिधियों द्वारा लेडी ओलेव बैडेन पॉवेल, उनकी पत्नी और फस्र्ट वल्र्ड चीफ गाइड दोनों के जन्मदिन के रूप में चिह्नित किया गया है। 22 फरवरी 1857 में लंदन में हैंनग्रेटा ग्रेस स्मिथ ने एक बालक को जन्म दिया जिसका पूरा नाम रॉबर्ट स्टीफेनसन स्मिथ बेडन पाउल था। बच्चा 3 वर्ष का हुआ कि पिता का साया सर से उठ गया, माता ने अकेले ही बेडन पाउल को अच्छे संस्कार और अच्छी परवरिश दी और उसी परवरिश ने इस बालक को विश्व विख्यात कर दिया। सन 1900 में दक्षिण अफ्रीका के बोर युद्ध में बेडन पाउल ने 20 बालकों की टोली बनायी और उस टोली में असीम शौर्य साहस कर्तव्य परायणता का प्रशिक्षण देते हुए उन बच्चों की जो मिसाल बनाई वह आज प्रतिष्ठित संस्था के रूप में जानी जाती है। सारे सामान्य बालकों को पावेल ने दनकी असीम शक्ति से परिचित कराया था। आगे चल कर पावेल की पत्नी लेडी ओलेव बैडेन पॉवेल ने लड़कियों के लिए स्काउट गाईड की शुरूआत की।  
 वर्ष 1926 में आयोजित चौथे गर्ल स्काउट अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन में, एक विशेष अंतर्राष्ट्रीय दिवस की आवश्यकता पर सम्मेलन के प्रतिनिधियों ने प्रकाश डाला, जब तय किया गया कि गर्ल गाइड्स और गर्ल स्काउट्स गर्ल गाइडिंग और गर्ल स्काउटिंग के विश्वव्यापी प्रसार और सभी गर्ल गाइड्स के बारे में चिंतन करेंगे। इसके वैश्विक स्वरूप को देखते हुए सन 1999 में आयरलैंड में आयोजित 30 वें विश्व सम्मेलन में इस दिवस के नाम को  ‘‘थिंकिंग डे’’ से बदल कर ‘‘वल्र्ड थिंकिंग डे’’ कर दिया गया।

प्रत्येक वर्ष विशेष दिवस के लिए एक थीम निर्धारित की जाती है। वल्र्ड एसोसिएशन ऑफ गर्ल गाइड्स एंड गर्ल स्काउट्स द्वारा प्रत्येक वर्ष के विश्व चिंतन दिवस के लिए विषय के रूप में एक महत्वपूर्ण अंतरराष्ट्रीय मुद्दे का चयन किया है, और अपने प्रत्येक पांच विश्व क्षेत्रों में से एक फोकस देश का चयन किया है। विगत वर्ष के विश्व चिंतन दिवस 2022 की थीम थी -‘‘हमारी दुनिया, हमारा समान भविष्य: पर्यावरण और लैंगिक समानता’’। इससे पहले वर्ष 2021 में थीम थी-‘‘स्टैंड टुगेदर फॉर पीस’’ अर्थात् शांति के लिए साथ खड़े होना। जबकि सन् 2020 में  ‘‘ विविधता, सहभागिता और समावेश’’ थीम रखी गई थी।

यह दिन लड़कियों एवं युवा महिलाओं के अधिकारों और जरूरतों के लिए आवाज़ उठाने का अवसर देता है। इस दिन जरूरतमंद और योग्य महिलाओं की मदद के लिए धन जुटाने का भी कार्य किया जाता है। इस दिन युवा लड़कियों को भी मुखर हो कर अपनी बात करने का अवसर मिलता है। लेकिन हमारे देश में लड़कियों को ले कर जमीनी सच्चाई कुछ अलग ही है।

‘चाइल्ड राइट्स एंड यू’ (क्राइ) की ‘स्टेटस रिपोर्ट ऑन मिसिंग चिल्ड्रेन’ रिपोर्ट में कहा गया है कि वर्ष 2022 में उत्तर प्रदेश के 58 जिलों में प्रतिदिन औसतन आठ बच्चे जिनमें छह लड़कियां और दो लड़के-लापता हुए। रिपोर्ट के अनुसार 2021 में मध्य प्रदेश और राजस्थान में लापता लड़कियों की संख्या लड़कों की तुलना में पांच गुना अधिक है.। राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के 2020 के आंकड़ों के मुताबिक, मध्य प्रदेश में लापता बच्चों के 8,751 और राजस्थान में 3,179 मामले दर्ज किए गए। एनसीआरबी डेटा यह बताता है कि अखिल भारतीय स्तर पर लापता बच्चों की कुल संख्या में बालिकाओं का अनुपात 2016 में लगभग 65 फीसद था, जो बढ़कर 2020 में 77 प्रतिशत हो गया है। सभी चार राज्यों में यही चलन रहा है। सभी लापता बच्चों में मध्य प्रदेश और राजस्थान में लड़कियों का अनुपात सबसे अधिक है। लड़कियों के लापता होने की घटना में घरेलू नौकरों की बढ़ती मांग, व्यावसायिक यौन कार्य और घरेलू हिंसा, दुव्र्यवहार और उपेक्षा के कारण लड़कियां खुद घर छोड़ने को विवश हो जाती हैं।

नाबालिग लड़कियों को देहव्यापार में झोंक दिया जाता है। सन् 2021 में दिल्ली में मानव तस्कर गिरोह से जिन लड़कियों को मुक्त कराया गया था, उनकी उम्र 14 से 16 साल की थी। दिल्ली महिला आयोग के अनुसार छोटी-छोटी बच्चियों को पैसे का लालच देकर जिस्मफरोशी में धकेला जाता है। यह लालच कभी सीधे बच्चियों को दिया जाता है तो कभी उनके माता-पिता या अभिभावक को दिया जाता है। वे लोग पैसों के लोभ में अपने परिवार की नाबालिग लड़कियों को मानव तस्करों के हाथों बेंच देते हैं। कई बार घरेलू नौकरानियों के रूप में भी इन खरीदी हुई लड़कियों से जी तोड़ काम कराया जाता है। अनेक लड़कियों को चोरी-छिपे विदेश भेज दिया जाता है जहां उन्हें नर्क से भी बदतर जीवन जीना पड़ता है।

स्वामी विवेकानन्द ने कहा था कि- ‘‘किसी भी राष्ट्र की प्रगति का सर्वोत्तम सूचकांक है, वहां की महिलाओं की स्थिति। हमें नारियों को ऐसी स्थिति में पहुंचा देना चाहिए, जहाँ वे अपनी समस्याओं को अपने ढंग से स्वयं सुलझा सकें। हमें नारीशक्ति के उद्धारक नहीं, वरन् उनके सेवक और सहायक बनना चाहिए। भारतीय नारियां संसार की अन्य किन्हीं भी नारियों की भांति अपनी समस्याओं को सुलझाने की क्षमता रखती हैं। आवश्यकता है उन्हें उपयुक्त अवसर देने की। इसी आधार पर भारत के उज्ज्वल भविष्य की संभावनाएं सन्निहित हैं।’’    
        किन्तु हमारे देश में बालिकाओं की शिक्षा में व्यापक विषमता है। बालकों की शिक्षा का जो प्रतिशत वर्तमान है उसकी तुलना में बालिकाओं की शिक्षा का प्रतिशत का ग्राफ आज भी नीचे है।

यहां यह भी ध्यान में रखना होगा कि शिक्षा का अर्थ मात्र अक्षर ज्ञान नहीं होता है। शिक्षा वहीं है जो स्वावलंबी बना, स्वविवेक जगाए और साहस का संचार करे। आज आंकडत्रों के हिसाब से बालिका शिक्षा में कुछ सुधार अवश्य हुआ है लेकिन आज भी बहुतेरी स्त्रियां ऐसी हैं जिन्हें अपने कानूनी अधिकारों का ज्ञान ही नहीं है। यदि ज्ञान है भी तो उसे पाने का साहस नहीं है। घरेलू हिंसा, प्रताड़ना का प्रतिकार करना आज भी स्त्रियों को पूरी तरह से नहीं आया है। पति से मार खाने के बाद भी यह कह देना कि बाथरूम में फिसल कर गिर गई थी, वहुत आम बात है। ऐसी स्त्रियों को हम अक्षर ज्ञानयुक्त तो कह सकते हैं किन्तु शिक्षित नहीं। उनके अधिकारों के ज्ञान की शुरूआत बालिकाओं को उनके बालपन से ही आरम्भ की जानी चाहिए। साथ ही गलत का विरोध करना भी उन्हें आना चाहिए।

बहुत आम-सा उदाहरण है कि आर्थि रूप से कमजोर वर्ग लड़कियों को शिक्षा के लिए सरकार द्वारा स्कालरशिप की राशि दी जाती है। जो बैंक में उनका खाता खुलवा कर उसमें भेजी जाती है। इससे एक लाभ तो हुआ है कि लड़कियां बैंकिंग कार्यप्रणाली से परिचित होती जा रही हैं। वहां मदद के नाम पर उन्हें कोई ठग नहीं सकता है। इसी बहाने बचत और खाते के महत्व से भी परिचित हो गई हैं। लेकिन यहां भी एक विषमता मौजूद है। भले ही परिवार गरीबी रेखा से नीचे हो लेकिन परिवार का पुरुष मुखिया शराब आदि नशे का आदी रहता है। अतः कई बार ऐसी स्थितियां सामने आती हैं जिनमें पिता अपनी बेटी से उसके स्कालरशिप के पैसे छीन कर शराब में लुटा देता है। बल्कि इसी धन के लालच में वह बेटी को स्कूल जाने की अनुमति देता है, वरना स्कूल जाने ही न दे। पिता की ऐसी चेष्टा का विरोध करना भी लड़कियों को सिखाया जाना जरूरी है। अन्यथा पहले पिता के घर में उनसे उनके आर्थिक अधिकार छीने जाते हैं और फिर पति के घर में उसे आर्थिक अधिकारों से दूर रखा जाता है। सामान्यरूप से देखने में ये छोटी-छोटी लगने वाली बातें ही समूचे समाज को विकृत कर देती हैं। 

  लड़कियों के प्रति अपराधों की स्थिति यह है कि जहां पहले सिर्फ ‘अपराध’ होते थे, वहां अब ‘‘जघन्य अपराध’’ होने लगे हैं। लड़कियां सुरक्षित समाज में ही भयमुक्त हो कर उन्नति कर सकती हैं। आज स्थिति यह है कि शाम ढलने के बाद यदि लड़की घर न लौटे तो माता-पिता चिंता में डूबने लगते हैं और स्वयं लड़की के मन में भी भयाकुलता बढ़ जाती है। जबकि आज पढ़ाई से लेकर नौकरी तक के लिए लड़कियों को शाम ढलने के बाद तक घर से बाहर रहना पड़ता है।

वस्तुतः यदि हम लड़कियों को स्वस्थ पर्यावरण, शांति और सुरक्षा देना चाहते हैं तो सबसे पहले हमें घर में बच्चों लालन-पालन के समय से ही बेटा और बेटी में अंतर करना छोड़ना होगा। दोनों का समान रूप से लालन-पालन करने से लड़कियों में साहस जागेगा और लड़के भी लड़कियों को अपने बराबर मानने के आदी रहेंगे। लड़कियों की भलाई के बारे में हर जरूरी कदम सिर्फ नारे में ही नहीं वरन बुनियादी चिंतन की भांति अपने जीवन में चरितार्थ करना होगा।
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