चर्चा प्लस
जोशीमठ से टर्की तक चेतावनी दे रही हैं धरती माता
- डाॅ (सुश्री) शरद सिंह
6 फरवरी को दक्षिणी टर्की में आए भूकंप ने 10 शहरों को तबाह कर दिया और हज़ारों लोगों को अपनी जान गंवानी पड़ी। सीरिया, लेबनान, इज़रायल और साइप्रस की धरती हिल गई। टर्की के इस भूकंप ने टर्की की भूमि के साथ ही दुनिया भर के दिलों को भी हिला दिया। यह भूकंप विनाशकारी 7.8 रिक्टर स्केल पर था। हम भारतवासी भूकंप के छोटे-छोटे झटके लगातार झेल रहे हैं-कभी दिल्ली-एनसीआर, तो कभी महाराष्ट्र, कभी बिहार, कभी उत्तरप्रदेश तो कभी मध्यप्रदेश। हिमालय परिक्षेत्र भूकंप के प्रति अतिसक्रिय है तो अण्डमान निकोबार भी अछूता नहीं है। जोशीमठ की आपदा भी धरती माता की ओर से एक चेतावनी है। लेकिन हम हैं कि मानों चेतावनियों पर ध्यान देना भूल चुके हैं।
ज़लज़ला आया और आ के हो गया रुख़सत मगर
वक़्त के रुख़ पे तबाही की इबारत लिख गया।
- शायर फ़राज़ हामिदी का यह शेर जोशीमठ से टर्की तक की आपदा की पीड़ा को बाखूबी बयां करता है।
मुझे याद आ रही है एक कहानी जो मैंने प्रायमरी स्कूल के दौरान पढ़ी थी। सिलेबस में या सिलेबस के बाहर, यह याद नहीं है। बहुत सोचा लेकिन उस कहानी के लेखक का नाम याद नहीं आ रहा है। सो, यदि किसी को लेखक का नाम पता हो तो मुझे जरूर बताने का कष्ट करे। उस कहानी का कथानक और शिल्प इतना प्रभावी था कि कहानी आज भी मुझे याद है। यह कहानी सन् 1935 में क्वेटा में आए भीषण भूकंप की चर्चा पर आधारित थी। क्वेटा पहले भारत का हिस्सा था लेकिन अब पाकिस्तान में है और बलूचिस्तान प्रांत की राजधानी है। कहानी का सारांश यह था कि कपड़ा बेचने वाला एक दूकानदार अपने दूकान में दूकानदारी कर रहा है। वह ग्राहकों को कपड़ा दिखाता है और उनसे क्वेटा में हुई जान-माल की हानि के बारे में प्रश्न करता जाता है। वह एक प्रश्न करता है कि कैसा कपड़ा चाहिए? तो उसका दूसरा प्रश्न होता है कि क्वेटा में कितने लोग मारे गए? फिर वह कपड़े की खूबियां बताता है और साथ में पूछता है कि वहां तो सब कुछ बर्बाद हो गया होगा? इसी प्रकार पह कपड़ा बेचते हुए वह अपने ग्राहकों से क्वेटा में आए भूकंप की भीषणता की चर्चा करता है, जानकारी लेता है और अपनी चिंता व्यक्त करता है। भूकंप जैसी प्राकृतिक आपदा और मानवीय जीवन संबंधी विवशताओं के समीकरण पर यह अद्भुत कहानी थी। लेकिन आज स्थिति इससे दुखद हो गई है। आज भूकंप के खतरे बढ़ गए हैं लेकिन हमारे सरोकार प्रकृति को ले कर वर्तमानजीवी हो गए हैं। इसका ताजा उदाहरण मेरे साथ ही घटित हुआ। आज सुबह जब मैंने अपने परिचित से चर्चा की कि टर्की में कितना विनाशकारी भूकंप आया है तो पहले तो उन्होंने अनभिज्ञता प्रकट की जब कि भूकंप की ख़बरों से टीवी और मोबाईल अपडेट भरे हुए थे। फिर भी उन्हें पता नहीं था। खैर, मैंने उन्हें बताया कि भूकंप की तीव्रता 7.8 रिक्टर स्केल थी। लेकिन उन्होंने मेरी बात को अनसुना करते हुए पूछा कि टर्की तो मुस्लिम देश है न? मैं उनका प्रश्न सुन कर अवाक रह गई। भूकंप में मरने वाले मनुष्य थे, हिन्दू या मुस्लिम तो बाद की बात है। इसके बाद मुझे समझ में नहीं आया कि मैं उस उच्च शिक्षित (?) व्यक्ति से टर्की के भूकंप के बारे में आगे क्या बात करूं? फिर भी मैंने खुद को तसल्ली दी और चर्चा को भूकंप पर केन्द्रित किया। तो इस पर वे लापरवाही से बोले कि हां, अभी महाराष्ट्र में भूकंप आया था लेकिन अपने यहां सागर में कोई ख़तरा नहीं है। मैंने पूछा कि आप इतने दावे से कैसे कह सकते हैं कि यहां कभी भूकंप नहीं आएगा? तो उन्होंने उत्तर दिया कि यहां न तो कोई बड़ी नदी है और कोई बड़े पहाड़। उनके इस ज्ञान ने मुझे उन्हें याद दिलाने को मजबूर कर दिया कि हम जिस ठोस जमीन पर रह रहे हैं वह टेक्टोनिक प्लेट्स पर टिकी हुई है और ये प्लेट्स भू-केन्द्र के तरल पदार्थ पर तैर रही हैं। फिर मैंने उन्हें याद दिलाया कि जब-जब जबलपुर में भूकंप के झटके आए हैं तब-तब उसकी तरंगे हमारे सागर शहर की भूमि को भी मामूली स्तर पर हिला चुकी हैं।
भूकंप के जिस ज्ञान को हम अपनी छोटी कक्षाओं में अर्जित कर चुके हैं उन्हें बड़े हो कर कैसे भूलते जा रहे हैं? यह सोच कर आश्चर्य होता है। आज हमें सोने (गोल्ड) के भाव के उतार-चढ़ाव की चिंता रहती है लेकिन प्रकृति को अपने द्वारा पहुंचाए जा रहे नुकसान की चिंता नहीं रहती है। जबकि सोना हमें सुख दे सकता है पर जीवन नहीं। राजा मिडास की कहानी ने यही तो समझाया था हमें। जिसने राजा मिडास की कहानी सुनी होगी उसे याद होगा कि राजा मिडास ने भगवान से वरदान मांगा कि वह जिस चीज को छुए वह सोने की हो जाए। मिडास ने अपना महल, सिंहासन, पेड़-पौधे अब को छू-छू कर सोने का बना लिया। यहां तक कि जब उसने अपनी पत्नी, अपनी बेटी को छुआ तो वे भी सोने की मूर्ति में बदल गईं। फिर उसे जब भूख लगी और वह खाने बैठा तो हाथ लगाते ही भोजन सोने में बदल गया। पानी भी सोने में बदल गया। जब भूख-प्यास से प्राण निकलने की नौबत आ गई तब कहीं जा कर राजा मिडास को अपनी भूल का अहसास हुआ। लेकिन तब तक पहुत देर हो चुकी थी। जाने-अनजाने हम भी राजा मिडास की तरह प्रकृति को भूल कर लालच की ओर तेजी से बढ़ते जा रहे हैं। स्थिति यह है कि हम जिस डाल पर बैठे हैं उसी को जड़ से काटते जा रहे हैं। भूकंप की बढ़ती संख्या और बढ़ती तीव्रता उसी का दुष्परिणाम है जो हमने प्रकृति को क्षति पहुंचाई है। हमने पेड़ काटे, जंगल छोटे कर दिए, भूमि से उसकी नमी सोख ली, भूमि पर मिट्टी का ठहराव घटा दिया। बड़े-बड़े बांध बना कर स्थिर और ठोस जमीन को लहरों वाले तरल पानी से भर दिया। गगनचुंबी इमारतों के जंगल खड़े कर दिए, यह ठीक से जांचे बिना कि वहां की भूमिगत चट्टानें उन इमारतों का बोझ उठा सकती हैं या नहीं? नए सरकारी नियम हैं कि भूकंप सुरक्षित भवन बनाए जाएं लेकिन सच्चाई किसी से छिपी नहीं है कि इसका पूरी तरह से पालन बहुत कम होता है। जैसे नियम बनाया गया था कि नए भवनों पर रूफ वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम बनाया जाए लेकिन गोया हम मान कर चलते हैं कि नियम बस्तों में बंधे रहने के लिए होते हैं। टर्की तो एक विकसित देश है। वहां आधुनिक संसाधन अपनाए जाते हैं। फिर भी वहां की मल्टीस्टोरी इमारतें भूकंप की 7.8 की तीव्रता नहीं झेल सकीं। तो हमारा क्या होगा जब हमें इस तीव्रता का भूकंप झेलना पड़ेगा?
तुर्की और सीरिया में आए विनाशकारी भूकंप से दोनों देशों के कई शहरों में भारी तबाही हुई है। रिक्टर पैमाने पर भूकंप की तीव्रता 7.8 मापी गई और इससे हजारों लोगों के मारे गए हैं। भूकंप और इससे मची भारी तबाही के बाद तुर्की की सरकार ने देश में आपातकाल लगाने की घोषणा कर दी है। बताया गया कि सुबह करीब 4.17 बजे आया भूकंप करीब 1 मिनट तक जारी रहा। उस वक्त लोग अपने घरों में सो रहे थे। भूंकप के झटके साइप्रस और मिस्र तक महसूस किए गए। भूकंप का केंद्र तुर्की के 26 किलोमीटर दूर गजिएनटेप शहर के पूर्व में नूरदा के पास केंद्रित था। इस इलाके की आबादी करीब 20 लाख है जिसमें पांच लाख सीरियाई शराणार्थी हैं और यह सीरिया और तुर्की की सीमा पर स्थित। तुर्की दुनिया के सबसे सक्रिय भूकंप क्षेत्रों में से एक है।
मां पहले प्यार से समझाती है। फिर भी बच्चा तोड़-फोड़ करने को उतारू रहता है तो मां विवश हो कर उस पर हाथ उठाती है ताकि वह सुधर जाए। भूकंप के रूप में धरती माता हमें बार-बार चेतावनी दे रही है कि विकास के नाम पर प्रकृति से खिलवाड़ करना बंद करो। लेकिन हम उनकी चेतावनी को लगातार अनसुना कर रहे हैं। इसका ताज़ा उदाहरण जोशीमठ आपदा के रूप में हमारे सामने है। अक्टूबर 2021 में उत्तराखंड के जोशीमठ शहर के कुछ घरों में पहली बार दरारें दिखाई दीं। एक साल बाद, 11 जनवरी तक, शहर के सभी नौ वार्डों में 723 घरों के फर्श, छत और दीवारों में बड़ी या छोटी दरारें दिखने लगीं। कई घरों में पोल उखड़ गए। जवाब में, शहर के भीतर कई परिवारों को अस्थायी रूप से सुरक्षित स्थानों पर ले जाया गया है। लेकिन बेहतर होता कि आपदा की आहटें पहले ही सुन ली गई होतीं।
अभी हाल ही में मेरा एक लेख प्रकाशित हुआ था -‘‘ए लेसन फ्राॅम जोशीमठ: डोंट प्ले विथ इंवायरमेंट एंड क्लाईमेट’’ (सेंट्रल क्राॅनिकल, 5 फरवरी 2023), जिसमें मैंने लिखा था जिसका एक अंश यहां दे रही हूं -‘‘जब प्रसिद्ध स्विस भूविज्ञानी अर्नोल्ड हेम और उनके सहयोगी ऑगस्टो गैस्टर ने 1936 में मध्य हिमालय की भूवैज्ञानिक संरचना पर पहला अभियान चलाया, तो उन्होंने अपना यात्रा वृतांत ‘‘द थ्रोन ऑफ द गॉड्स (1938)’’ और शोध कार्य ‘‘सेंट्रल हिमालय: जियोलॉजिकल द ऑब्जर्वेशन’’ रिकॉर्ड किया। स्विस अभियान 1936 (1939) ने विवर्तनिक दरारों, मुख्य केंद्रीय दोष (एमटीसी) की उपस्थिति की पहचान की, और चमोली गढ़वाल में हेलंग से तपोवन तक के क्षेत्र को भूगर्भीय रूप से संवेदनशील बताया। मध्य हिमालय के भूविज्ञान पर अनुसंधान और अध्ययन आगे बढ़े इसके बाद 1976 में ‘‘मिश्रा समिति’’ ने भी अध्ययन कर जोशीमठ को संवेदनशील घोषित कर इलाज के सुझाव दिए। सन 2022 में उत्तराखंड सरकार के आपदा प्रबंधन विभाग ने भी जोशीमठ पर मंडरा रहे खतरे की ओर सरकार का ध्यान आकर्षित किया था। इन तमाम चेतावनियों के बाद भी जोशीमठ को बचाने की कोशिश नहीं की गई, बल्कि वहां बड़ी-बड़ी इमारतों का जंगल उगता चला गया। बढ़ती जनसंख्या के कारण जोशीमठ के गर्भ में उतरता रहा। आज जोशीमठ उसी दलदल पर असहनीय बोझ तले दबकर अलकनन्दा की ओर सरक रहा है। उत्तराखंड राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण ने शहर के भूवैज्ञानिक और भू-तकनीकी सर्वेक्षण के लिए अगस्त 2022 में एक बहु-संस्थागत टीम का गठन किया। टीम ने सितंबर में अपनी रिपोर्ट पेश की, यह देखते हुए कि जोशीमठ एक अस्थिर नींव पर खड़ा है जो बारिश, अनियमित निर्माण से क्षतिग्रस्त हो सकता है। कमजोर प्राकृतिक नींव के अलावा, रिपोर्ट में कहा गया है कि जोशीमठ-औली रोड के किनारे कई घर, रिसॉर्ट और छोटे होटल बनाए गए हैं जो जमीन को कमजोर कर रहे हैं। पिछले कुछ समय से जोशीमठ के फिसलने की रफ्तार अचानक बढ़ गई है. जमीन धंसने से पूरा जोशीमठ डूब रहा है। सैकड़ों इमारतें अब रहने योग्य नहीं हैं। कई जगह जमीन पर चैड़ी-चैड़ी दरारें भी पड़ने लगी हैं। कहीं-कहीं जमीन फटने से पानी निकल रहा है। भारत के चार सबसे ऊंचे धार्मिक स्थलों में से एक ज्योतिर्पीठ की दीवारों पर भी दरारें आ गई हैं। भूवैज्ञानिक पहले ही शहर को तुरंत खाली करने की चेतावनी देते रहे हैं।’’
6 फरवरी को टर्की में आए भूकंप में भी लगभग यही बात सामने आ रही है कि वैज्ञानिकों ने पहले ही चेतावनी दी थी। बल्कि नीदरलैंड के शोधकर्ता वैज्ञानिक फ्रेंक होगरबीट्स ने 3 फरवरी को एक ट्वीट कर के लिखा था कि निकट भविष्य में, दक्षिण-मध्य तुर्की, जॉर्डन, सीरिया, लेबनान में 7.5 तीव्रता का भूकंप आएगा। अपने ट्वीट के साथ उन्होंने भूकंप का केंद्र दिखाते हुए एक नक्शा भी शेयर किया था। उनकी बात सही निकली। बल्कि उनकी चेतावनी से दशमलव तीन प्रतिशत अधिक का यानी 7.8 तीव्रता का भूकंप आया।
यदि बात करें भारत की तो सितंबर 2019 में, राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (एनएमडीए) ने एक भूकंप आपदा जोखिम सूचकांक (एड्री) रिपोर्ट प्रकाशित की थी, जिसमें महानगरों और भूकंपीय क्षेत्र जोन चार और जोन पांच के शहरों सहित 50 शहरों पर विशेष रूप से ध्यान दिया गया था। सर्वेक्षण किए गए शहरों में से 30 शहर (दिल्ली सहित) मध्यम स्तर के जोखिम पर हैं और 13 (शिमला सहित अधिकतर हिमालयी शहर) उच्च जोखिम पर हैं। लेकिन साथ में यह भी कहा गया कि दिल्ली को भी एक बड़े जोखिम का सामना करना पड़ सकता है क्योंकि अधिकांश शहर स्व-निर्मित है। बिना तकनीकी इनपुट के जो इसे उच्च तीव्रता वाले भूकंपों के प्रति संवेदनशील बनाता है। दरअसल हमने प्रकृति को निरंतर नुकसान पहुंचा कर उसे अशांत कर दिया है। हम भूगर्भीय हलचलों को रोक नहीं सकते हैं लेकिन प्रकृति को संरक्षित कर के नुकसान की तीव्रता को कम कर सकते हैं। बशर्तें हम समय रहते सचेत हो जाएं और धरती माता द्वारा दी जा रही चेतावनियों पर ध्यान देना शुरू कर दें। यदि हमें किसी बड़ी प्राकृतिक आपदा से बचना है तो प्रकृति-मित्र बनना होगा।
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