Thursday, February 16, 2023

बतकाव बिन्ना की | जे ओरें बाप-मताई लो काय जान लगत? | डाॅ. (सुश्री) शरद सिंह | बुंदेली कॉलम | बुंदेली व्यंग्य | प्रवीण प्रभात

"जे ओरें बाप-मताई लो काय जान लगत?"  मित्रो, ये है मेरा बुंदेली कॉलम "बतकाव बिन्ना की" साप्ताहिक #प्रवीणप्रभात , छतरपुर में।
बतकाव बिन्ना की
जे ओरें बाप-मताई लो काय जान लगत?                                                     
- डॉ. (सुश्री) शरद सिंह
        ‘‘काय भैयाजी, अपन ओरन की गली में अबलौं विकास यात्रा ने आई। काय से के इते आती सो अपन ओरन खों सोई पतो पर जातो के कित्तो विकास भओ।’’ मैंने भैयाजी से कही। बे अपने घर के दुआरे में बैठ के अखबार पढ़ रए हते।
‘‘तुम सोई, कां की बात कर रईं! विकास सब ओरन खों नई दिखाओ जात। जिते दिखाने होत आए, उतई दिखाओ जात आए। उने सोई पता के अपन ओरन ऊंसई जानत के कित्तो विकास हो रओ, औ कित्तो हो गओ। अब तुमाए लाने अलग से बताबे काए आएं बे ओरें?’’ भैयाजी अखबार एक तरफी धरत भए बोले।
‘‘काए, अपन ओरन खों काए नई दिखाओ चाइए? का अपन ओरें वोट नईं देत का?’’ मैंने भैयाजी से कही। मोय उनकी जे बात ने पोसाई।
‘‘अब जेई तो सल्ल आए के तुमाए घांई वोटर तनक-तनक में अहसान सो फेरन लगत आएं के हमने वोट दओ रओ... हमने वोट दओ रओ! अरे, तुमाई अटकी हती सो तुमने वोट दओ रओ। इत्ती तकलीफ हो रई हती सो नई देने हतो।’’ भैयाजी सोई तिन्ना गए।
‘‘मोरी काय अटकी रई? बा तो सबई जने खों वोट दओ चाइए, सो मैंने बी दओ रओ। जो कोनऊं वोट ने देहे सो चुनाव को मतलबई का रैहे? बाकी आप काय के लाने मोय ठेन कर रए के मोरी अटकी हती सो मैंने वोट दओ रओ।’’ मैंने भैयाजी से पूछी।
‘‘हम ठेन नई कर रए, मनो याद करा रए के ऊ टेम पे वोट देबे से कऊं ज्यादा वोट देत भए सेल्फी लेबे की परी रैत आए। को जाने देख के बटन दबाओ रओ के ऊंसई दबा दओ।’’ भेयाजी बोले।
‘‘जे सो ज्यादा हो रई भैयाजी! पैलऊं बात तो जे के वोट देत भए अपन ओरें फोटू ने तो खींच सकत आएं औ ने खिंचा सकत आएं। उते से बाहरे आ के वोटिंग सेंटर की तख्ती के आगूं ठाड़े हो के फोटू खींच-खिंचा सकत आएं। सो आपको पैलऔ आरोप सो जे कट्टस हो गओ। रई उते बटन दबाबे की, सो का जे सरकार ऊंसई-ऊंसई बन गई? सो, आप बेफालतू की गिचड़ ने करो। आपखों विकास यात्रा देखबे को मन नई कर रओ, सो ने देखों, मनो मोरो सो खूबई मन हो रओ।’’ मैंने भैयाजी से कही।
‘‘सो जाओ देख आओ, जिते निकर रई होय, उतई हो आओ।’’ भैयाजी कुढ़त भए बोले।
‘‘जो का भैयाजी? आज मनो आपको मूड ठीक नईं दिखा रओ। का हो गओ?’’ मैंने पूछी।
‘‘कछू नई भओ!’’ जो एक बेरा में बता दें सो भैयाजी काय के?
‘‘कछू तो आए? अब बताई देओ!’’ मैंने फेर के पूछी।
‘‘अरे, जे तुमाई भौजी आएं न....।’’ भैयाजी कैत भए चुप हो गए।
‘‘का करो भौजी ने? आपको मूंड़ सांे नईं फोड़ दओ? नईं बाकी मूंड फोड़ो होतो, तो पट्टी बंधती दिखाती।’’ मैंने भेयाजी खों टुंची करी।
‘‘बे मोरो मूंड़ फोड़ देतीं सो कोनऊं बात ने रैती, मनो उन्ने हमें हमाए बापराम की गाली दई।’’ भैयाजी बोले।
‘‘जे नईं हो सकत! बे ऐसो-वैसो कछूं नईं कै सकत। आपके लाने कछू गलतफैमी हो गई हुइए।’’ मैंने कही।
‘‘कछू गलतफैमी नईं भई! उन्ने सूदे-सूदे हमसे कई के तुम उल्लू के पट्टा आओ।’’ भैयाजी बोले।
‘‘सो ईमें का हो गओ?’’ मोय कछू समझ में ने आई।
‘‘का कही? के ईमें का हो गओ? काय तुम पढ़ी-लिखी नोईं? काय तुमें पतो नईं के उल्लू के पट्टा को मतलब का होत आए?’’ भैयाजी सो बमक परे और कैन लगे-‘‘तुमें सो बस अपनी भौजी के संगे ठाड़ी रैने, चाय बे हमें गाली देबें चाय हमपे लट्ठ चलाएं।’’
‘‘नई, मोरो मतलब जा नई रओ! मनो उन्ने कओ नई चाउने रओ हुइए, पर कै आई हुइए। सो कै आई, सो कै आई। अब ईको आप दिल पे ने लो। काय से के ऊंसई जे वारी गारी को मौसम चल रओ। अपने इते के एक पुराने मंत्री आएं उन्ने कलेक्टर के लाने उल्लू को पट्ठा कै दओ। जबके बे मंत्रीजी सोई अच्छे-खासे पढ़े-लिखे आएं। सो, जे सब चलत रैत आए। हो सकत आए के भौजी ने जे बात कऊं सुन लई होय औ उन्ने आपके लाने कै आई होय।’’ मैंने भैयाजी खों सहूरी बांधबे को कोसिस करी।
‘‘जेई सो हमें समझ में नईं आत के जे ओरें बाप-मताई लों काय जान लगत? अब देखो तुमाई भौजी ने हमें उल्लू को पट्ठा कओ सो जे मतलब के उन्ने हमाए बापराम खों उल्लू कै दओ। मने अपने ससुर बाबा खों उल्लू बोल दओ। अरे कैने रओ सो हमें उल्लू बोल देतीं। हमाए बापराम खों कैबे की का जरूरत हती?’’ भैयाजी बिगरत भए बोले।
‘‘कै सो आप ठीक रए, मनो जे सो कहनात आए। अब आपई सोचो के जोन लुगाई खों अच्छो सासरो नईं मिलत ऊके लाने रोज ठेन करो जात आए के- काय तुमए मताई-बाप ने तुमें कछू नईं सिखाओ का? - अब आपई सोचो के कोन बाप-मताई अपनी मोड़ी खों सबई कछू नईं सिखात के ऊको सासरे में कोनऊं ठेन ने कर पाए। पर मोड़ी सो मोड़ी आएं, मनो कछू ने सीख पाई, मनो ऊसे कछू गलती होई गई, सो ऊके लाने ऊके बाप-मताई लो कोसो जात आए। मनो मोरो जे कैबे के मतलब नोंई के बापराम खों उल्लू कैबो ठीक आए। बिलकुल गलत आए। मनो, भौजी ने सोशल मीडिया पे हजार दइयां जेई बोल पढे हुंइए, सो बे सोई गुस्सा में बोल बैठीं।’’ मैंने भैयाजी खों समझबे की कोसिस करी।
‘‘ऐसे कैसे बोल बैठीं। हमने सो कभऊं उने उल्लू की पट्ठी ने बोली, फेर उन्ने हमें उल्लू को पट्ठा काय बोल दओ?’’ भैयाजी के मुंडी में मनो उल्लू घुस गओ रओ। बे कछू सुनबे के लाने तैयारई नईं हते। बे बड़बड़ात भए बोले-‘‘हऔ, हमने जब उनसे कई के तुम हमाए बापराम लों काय पोंच रईं? सो बे कैन लगीं के बे मंत्री हरें बोलें सो कछू नईं औ हमने कै दई सो टुनना रए। तुम ठीक कै रईं तुमाई भौजी ने बोई बात पढ़ लई हुइए। बाकी पढ़ लई सो पढ़ लई, मनो उने हमसे ऐसो नई कओ चाइए। बे का कोनऊं कहूं की मंत्री-मिनिस्टर आएं? मंत्री-मिनिस्टर सो कछू कहें, उनको सो नांव होने। बो का कहाउत आए के बदनाम भए सो का भओ, नांव सो भओ। मनें उनखें सो नांव मिल गओ मनो तुमाई भौजी को का मिलो हमाओ जी दुखा के?’’
‘‘चलो, आप अब जे सब मेईं खों मैंकों। बुरई बात याद नई रखो चाइए। उन्ने कछू सोच के नई बोली हुइए। जे कओ के ई टेम पे कोनऊं विधानसभा या संसद में मार-कुट्टव्वल नईं चल रई, ने तों आपखों दो-चार घलई गई होती।’’ मैंने हंस के कई।      
‘‘हऔ, सही कई। मनो मोय जे समझ में नई आत के जे नेता हरें कोनऊं के बाप-मताई लों काय जान लगत आएं? उन ओरन खों ऐसो नई कओ चाइए। मनो सोचो के उनके ऐसऊं बिगड़े बोल सुन के तुमाई भौजी के बोल बिगड़ गए, सो मोड़-मोड़ी की जुबान को का हुइए? उनपे का असर हुइए?’’ भैयाजी बोले।
‘‘आप एकदम सही कै रए भैयाजी! बड्डे हरों खों बड्डन घांईं रैबो चाइए। काय से के उनके बोल सो छिन भर के लाने बिगड़े मनो मीडिया ऊको रट्टा लगवा देत आए। बाकी जे सब छोड़ो औ मोय सो आप जे बताओ के अपने इते विकास यात्रा वारे अबलों काय नईं आए?’’मैंने भैयाजी से पूछी। मोरी बात सुन के बे सोई हंस परे। मनो उनको मूड ठीक हो गओ कहानो।

मोय पतो आए के भौजी सोई पछता रई हुइएं के उन्ने का बोल दओ। मनों आप ओरें सोई बाप-मताई लों ने जइयो, अच्छो नईं लगत। बाकी, बतकाव हती सो बढ़ा गई, हंड़ियां हती सो चढ़ा गई। अब अगले हफ्ता करबी बतकाव, तब लों जुगाली करो जेई की। सो, सबई जनन खों शरद बिन्ना की राम-राम!
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