Thursday, February 9, 2023

बतकाव बिन्ना की | मनो कोदो-कुटकी के दिन फिर गए कहाने | डाॅ. (सुश्री) शरद सिंह | बुंदेली कॉलम | बुंदेली व्यंग्य | प्रवीण प्रभात

"मनो कोदो-कुटकी के दिन फिर गए कहाने "  मित्रो, ये है मेरा बुंदेली कॉलम "बतकाव बिन्ना की" साप्ताहिक #प्रवीणप्रभात , छतरपुर में।
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बतकाव बिन्ना की

मनो कोदो-कुटकी के दिन फिर गए कहाने                                                     
- डॉ. (सुश्री) शरद सिंह
        ‘आप कां गए हते? संकारे से दिखाने नईं!’’ मैंने भैयाजी पूछीं
‘‘अरे, मुन्ना दाऊ के इते लों गए रए। काय से के उनकी मोड़ी को ब्याओ होने।’’ भैयाजी ने बताई।
‘‘कबै? कबैै होने ब्याओ?’’ मैंने पूछी।
‘‘अगली मईना। दो-चार दिनां में सबरे कार्ड बंट जेहैं। तुमाओ कार्ड बी कओ कल दुफारी लो आ जेहै।’ भैयाजी ने बताई।
‘‘आए सो भलो औ ने आए सो भलो!’’ मैंने कई।
‘‘काए? ऐसो काय कै रईं?’’ भैयाजी ने पूछी। उने अचरज भओ।
‘‘देखो ने भैयाजी! एक ब्याओ उत्तर में होत आए सो दूसरो दक्खिन में। मने, एक शहर के ई छोर पे तो दूसरो ऊ छोर पे। अब कां लो भगत फिरैं?’’ मैंने कई।
‘‘हऔ, तुम कै सो सांची रईं। कई बेरा सो हमें सोई समझ में नईं आत के इते जाओं जाए के उते जाओं जाए। जे ससुरी बड़ी सल्ल बिंधी रैत आए। मनो जोन के इते ने जाओ, बोई धनी सोचन लगत है के ब्योहार देबे के डर से ने आए।’’ भैयाजी अपनो दुखड़ा रोन लगे।
‘‘मोय सो सब जांगा जाबे में कठिन परत आए सो मैं कोनऊं चिनारी वारे के हाथ ब्योहार भेज के काम चला लेत हों। अब का करो जाए। ऊंसई जाओ सो उते खाबे-पीबे में मोरी दिलचस्पी रैत नइयां, सो नेग करी औ चले आए।’’ मैंने भैया से कई।
‘‘हऔ! मनो मुन्ना दाऊ के इते जरूर चलियो।’’ भैयाजी बोले।
‘‘काए? उनके इते का खास होने?’’ मैंने पूछी।
‘‘खास कओ सो जे के हम अबई उनके इते को मीनू बनवा के आ रए।’’ भैयाजी ने बताई।
‘‘आजकाल सो छै मईना पैले मीनू तै हो जात आए। काए से के छै मइना पैले शादीघर बुक कराने परत आए और बोई टेम पे केटरिंग वारों को सोई सेट कर लेने परत आए। सो इनको मीनू इत्तो लेट काए हो गओ? बे आपके लाने परखे हते का?’’ मैंने तनक चुटकी सी लई भैयाजी की।
‘‘जेई समझ लेओ। बाकी असल बात सुनो! भओ का के उन्ने हमें बुलाओ रओ कछू काम के लाने। बातई बात चली सो हमने उनसे खात-पियत के मीनू के बारे में पूछ लओ। बे बोले के ऊ सब सो तय हो चुको। हमने कई के दाऊ एक बेरा मोय मीनू चेक कर लेन देओ। हमने देखी के बोई पुरानो घिसो-पिटो मीनू हतो। सो हमने दाऊ से कही के आपके इते रिसेप्शन में बड़े बड़े नेता-मंत्री आहें। सो उने का जे खिलाहो? सो बे चैंके! उन्ने पूछी के ईमें का खराबी आए? हमने उने समझाई के जो आपको अपनो इम्प्रेशन डारने होय सो ई मीनू में मोटे अनाज को व्यंजन राखो, तब कछू खास लगहे। बे पूछन लगे के मोटे अनाज को व्यंजन को बनाहे? हमने कई के बा सब हम पे छोड़ो। हम गांव से लुगाइयन खो बुला लेहें। बे ओरें सब सम्हाल लेहैं। आप फिकर ने करो। उनें हमाई बात जम गई। बे खुदई कैन लगे के हऔ आजकाल मोटे अनाज के दिन फिर गए कहाने। अबई सो मोटे अनाज के व्यंजन खों मेला लगने वारो आए। सरकार ने सो मनो कै दई आए के गेंहूं की पिसी भौत खा लई अब तनक कोदो-कुटकी खान लगो। सो, ई तरहा दाऊ ने हमसे कई के हम उनके मीनू खों बदल के मोटे अनाज वारो कर देवें। सो बोई कर के हम आ रए। सच्ची बड़ो मजो आहे।’’ भैयाजी खुस होत भए बोले।
‘‘हऔ, भैयाजी! मजो सो आहे। मनो जे सोचो के अपन ओरें कित्ते सयाने ठैरे। जब लों सरकार ने बताए के हमें का खाने चाइए तब लों हम कछु ढंग को खाबो जानतई नइयां। सरकार ने जब कई रई के सोयाबीन खाओ चाइए। सो ऊ टेम पे सोयाबीन के अलावा कछु सूझत नई रओ। सोयाबीन को आटो, सोयाबीन की बड़ियां, सोयाबीन को पनीर, सोयाबीन को तेल, सोयाबीन को दूध, मनो सबई कछू सोयाबीन वारो हो गओ रओ। बाद में पता परी के सब जने के लाने सोयाबीन ठीक नई रैत। जैसे जोन खों थायराइड होय उनके लाने सोयाबीन नुकसान करत आए। डाक्टर सोई मना करत आएं। मनो कोदो-कुटकी सो अच्छो अनाज कहाओ। ज्वार, बाजरा सबई कछू सो अपन ओरन के इते हमेसई बनत रओ। पर हमने उने धीरे-धीरे बिसरा दओ। ज्वार मने जुंडी की गांकड़ें कित्ती नोनी लगत आएं।’’ मैंने भैया जी से कई।
‘‘हमने जोई तो करो आए के दाऊ के मीनू में जुंडी और बाजरे के गांकड़े, भंटें को भरता, गुलगुला, डुबरी, लपटा, चीला, फरा, बिजौरी, लुचई, गकरिआ, पपड़िया सोई जुड़वा दओ। औ हमने उनसे कई के जे सब कछू मोटे अनाज से बनाबे की कइयो। जब सबरे खाहें सो, उनको दिल गार्डन-गार्डन हो जेहै। औ आपकी सबई जयकारे करहैं। जे सुन के दाऊ खूबई ग्लेड भए!’’ भैयाजी अपनी छाती फुलात भए बोले।
‘‘आपने बिलकुल ठीक करो भैयाजी! जेई तरहा तो हम अपने पांरपरिक व्यंजनन को फेर के अपना पाहें। आपने भौतई नोनो काम करो!’’ मैंने भैयाजी की तारीफ करी।
‘‘बा तो मोटे अनाज वारी बात हमें याद आ गई सो हमने सोची के एक तीर से दो चिरैयां गिराई जाएं।’’ भैयाजी मुस्कात भए बोले।
‘‘का मतलब?’’
‘‘मतलब जे के ई तरहा से अपनो पारंपरिक व्यंजन दाऊ के मीनू में लगा दओ औ संगे दाऊ को राजनीति को नओ पाठ पढ़ा दओ। ऊंसई बे समझदार ठैरे, सो झट्टई समझ गए के जोन के लाने मेला-ठेला लगाओ जाने है, ऊनखों अपने मीनू में धरे से ऊपर वारे प्रसन्न हो जेहें। सरकार के संगे चलबे को अपनो अलग फायदा होत है। जेई सोच के उन्ने हमाई सलाह तुरतईं मान लई। सो दाऊ के आंगू हमाओ बी सिक्का जम गओ। कल को मान लोके उने कोनऊं टिकट-मिकट मिल गई सो बे अपने आदमी कहाहैं।’’ भैयाजी बोले।
‘‘बड़ी दूर की सोची भैयाजी आपने! मनो उने टिकट मिले चाए ने मिले पर कोटो-कुटकी के दिन तो फिर गए कहाने। कल तक लों उने कोनऊं पूछत नईं रओ मनो अब सब अकड़ के कैहें के हम ज्वार, बाजरा, कोदो, कुटकी खात आएं। धन्य आएं अपन ओरें। बिचारी सरकार बी का-का सिखाए? कभऊं शौच के बाद हाथ धोबो सिखात आए सो कभऊं जे सिखात आए के अपन ओरने खों का खाने चाइए। सच्ची! भौत करत आए सरकार। पर देखियो के अब जेई मोटो अनाज कंपनी वारे अच्छी-नोनी पैकिंग में देहें औ अपन ओरें ऊकंे चैगुने दाम देके ऊको खरीदहें।’’ मैंने भैयाजी से कई।’’
‘‘हऔ, सो ओट्स का आए? ओट्स मने जई कओ चाए जौ। पैले अपने इते जौ जानवरों को ख्वात रए, मनो अब ओट्स के नांव पे ऊकी दलिया और फ्लेक्स को जम के नास्ता करो जात आए। औ खूबई मैंगो मिलत आए।’’ भैयाजी बोले।
‘‘जेई सो मैं कै रई के अब कोदो-कुटकी के सोई भाव बढ़ जेहें। उनके बी दिन फिर गए कहाने। बाकी मोय सो अच्छो लग रओ, ईसे। सो अब मैं जा रई। मनो रिसेप्शन में मोय संगे ले चलियो।’’ मैंने भैयाजी से कई। भैयाजी ने हऔ कैत भए अपनी मुंडी हिला दई।
सो, मोए सोई बतकाव करनी हती सो कर लई। अब तो मोय गहूं नई लेने बल्कि ज्वार-बाजरा की पिसी लबीे औ गांकड़ें जींमबी। औ चाउंर के बदले कोदो मंगा के राखबी। बाकी, बतकाव हती सो बढ़ा गई, हंड़ियां हती सो चढ़ा गई। अब अगले हफ्ता करबी बतकाव, तब लों जुगाली करो जेई की। सो, सबई जनन खों शरद बिन्ना की राम-राम
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