Tuesday, February 28, 2023

पुस्तक समीक्षा | हिन्दी शिशुगीतों के पुनः प्रचलन की दिशा में सार्थक कृति | समीक्षक डाॅ (सुश्री) शरद सिंह | आचरण


प्रस्तुत है आज 28.02.2023 को  #आचरण में प्रकाशित मेरे द्वारा की गई कवयित्री डॉ. वन्दना मिश्र  की पुस्तक "सांसों की सरगम लोरी-प्रभाती" की समीक्षा...
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पुस्तक समीक्षा
हिन्दी शिशुगीतों के पुनः प्रचलन की दिशा में सार्थक कृति
समीक्षक - डाॅ. (सुश्री) शरद सिंह
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काव्य संग्रह  - सांसों की सरगम लोरी- प्रभाती
कवयित्री     - डाॅ. वन्दना मिश्र
प्रकाशक     - आईसेक्ट पब्लिकेशन, ई 7/22, एसबीआई, आरेरा काॅलोनी, भोपाल-462016
मूल्य        - 250/-
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        आज परिवारों का स्वरूप बदल गया है। एकल परिवार का चलन बढ़ गया है जिसमें पति-पत्नी और बच्चों के सिवा और किसी के लिए संभावना नहीं रहती है। अधिक से अधिक प्रसवकाल में परिवार के बुजुर्गों का सानिंध्य पा लिया जाता है। पति-पत्नी दोनों कामकाजी होते हैं। बहुराष्ट्रीय कंपनियों में काम करने वाले माता-पिता को अधिक अवकाश भी नहीं मिलता है। आॅफिस जाने से छूट मिल भी जाए तो "वर्क फ्राम होम" का प्रावधान रहता है। फिर टेक्नाॅलाॅजी की प्रगति ने "अलेक्सा" जैसे विकल्प दे दिए हैं। जिन्हें बच्चे के निकट पहुंचे बिना आदेश दे दिया जाए कि "अलेक्सा राईम सुनाओ!" तो "अलेक्सा" जैसी इलेक्ट्रानिक डिवाईस राईम यानी शिशुगीत सुनाने लगती हैं। बेशक उस गीत को गाने वाली गायिका अपने स्वर द्वारा कितना भी ममत्व उंडेलना चाहे किन्तु वह माता अथवा पिता की थपकियों के गर्म स्पर्श को शिशु बच्चे तक नहीं पहुंचा सकती है। इस विडंबना का एक पक्ष और भी है कि हम आंग्लभाषा की अंधी दौड़ में स्वयं को झोंक चुके हैं। हर युवा माता-पिता अपने शिशु को आंग्ल भाषा में शिशुगीत सुनाना चाहता है, अपनी मातृभाषा में नहीं। ताकि उनके शिशु के मानस में अंग्रेजी भाषा के संस्कार पड़ें, किसी और भाषा के नहीं। इस प्रकार की परिस्थितियों में मातृभाषा या हिन्दी के शिशुगीतों का हाशिए में चले जाना स्वाभाविक है। इस दिशा में डाॅ. वन्दना मिश्र के शिशुगीतों का संग्रह ‘‘सांसों की सरगम लोरी-प्रभाती’’ शिशुगीतों की परम्परा को बचाने का एक सार्थक प्रयास है।
शिशुगीतों के कुल 84 पृष्ठ के संग्रह ‘‘सांसों की सरगम लोरी-प्रभाती’’ में डाॅ. वन्दना मिश्र ने स्वरचित 16 प्रभाती गीत तथा 15 लोरियां रखीं हैं। इनके अतिरिक्त संग्रह के अंतिम पृष्ठों पर गिनती तथा हिन्दी वर्णमाला पर छोटी-छोटी तुकबंदियां दी हैं जो वर्णमाला के प्रत्येक अक्षर को याद रखने में रोचकता प्रदान करेंगी।
यहां याद रखने की बात यह है कि शिशुगीतों का हमारे तथा शिशु के जीवन में महत्व क्या है? तो इस विषय में मनोवैज्ञानिक मानते हैं कि शिशुओं के लिए माता-पिता द्वारा उनके लिए गाया जाने वाला प्रत्येक गीत थेरेपी का काम करता है। वे उस गीत के स्वरों के उतार-चढ़ाव से अपने माता-पिता की मनःस्थिति को भांप सकते हें तथा ये गीत शिशुओं और उनके माता-पिता के बीच गहरा संबंध स्थापित करता है। यह माना जाता है कि यदि एक पांच माह का शिशु प्रतिदिन किसी गीत को सुनता है, तो वह उसे सुनते ही उसकी संगीत रचना को पहचान सकता है। यूं भी प्रत्येक माता-पिता अपने रोते हुए शिशु को चुप कराने के लिए अथवा उसे सुलाने के लिए अपनी गोद में ले कर उसे थपकी देते हैं और कुछ न कुछ गुनगुनाते हैं। वे जानते हैं कि ऐसा करने से उनका शिशु रोना भूल जाएगा या फिर मीठी नींद सोने लगेगा। इसीलिए इसे संगीत थेरेपी के अंतर्गत भी रखा जाता है। शोधकर्ताओं का कहना है कि शिशु भी संगीत के प्रति प्रतिक्रिया करते हैं। यह इसलिए कि जब माता-पिता या कोई अन्य व्यक्ति भी शिशुओं से बात करता है तो अपने स्वर को कोमल और आत्मीय भावों से भर देता है। यह भावनात्मक स्वर शिशु को प्रफुल्लित करता है। इसीलिए माना जाता है कि लोरी का गायन शिशुओं को आश्वस्त करता है और उनमें सुरक्षा की भावना जगाता है। यह सच है कि अबोध शिशु भाषा और शब्दों से परिचित नहीं होता है किन्तु उन शब्दों में तथा उनको गाए जाने वाले स्वरों में निहित कोमला तथा ममत्व से भलीभांति परिचित होता जाता है। जैसे-जैसे शिशु में शब्दबोध बढ़ता है वह उन्हें दुहराने का प्रयास भी करता है जो उसके स्वयं के स्वरों को नियंत्रित करने में मदद करते हैं। 
पहले लोरी और प्रभाती दोनों के गायन का चलन था। मां शिशुओं एवं नन्हें बच्चों को प्रभाती गा कर जगाती थी। आज की भागती-दौड़ती ज़िन्दगी में कवयित्री डाॅ वन्दना मिश्र ने प्रभातियां लिख कर उन्हें पुनः चलन में लाने की आकांक्षा की है। उनकी एक प्रभाती देखिए जिसका शीर्षक है ‘‘देखो सूरज आया’’-
देखो सूरज आया है
नवजीवन को लाया है
ठंडी हवा चली है ऐसे
जैसे हमें बुलाया है
इसी तरह एक और प्रभाती है जिसमें एक मां अपने शिशु को जगाने के लिए प्रकृति के तत्वों का वास्ता दे रही है-
खुली फूल की पंखुरियां रे
भोर हुई लाल मेरे
उठ जा रे।
सोने गए तारे
जो साथ थे हमारे
बोल उठी चिड़ियां रे
भोर हुई लाला मेरे
उठ जा रे।
कुछ प्रभातियां ऐसी हैं जो हर किसी को अपने बचपन की याद दिला देंगी। जैसे एक गीत है ‘दर्जी भैया टोपी सिल दो’ -
दर्जी भैया टोपी सिल दो
करो नहीं निराश
टोपी सिल कर दी थी तुमने
दादाजी को खास
दादा जी ने टोपी पहन के
था दरबार सजाया
राजा-रानी दोनों को
अपने घर बुलवाया।
   इस संग्रह में बहुत सुंदर प्रभातियों के साथ ही सुंदर लोरियां भी हैं जिनमें शिशु से मीठी-मीठी नींद सोने का ममत्व भरा आग्रह है। जैसे एक लोरी ‘‘मीठी-मीठी निंदिया’’ की कुछ पंक्तियों को देखिए-
मीठी-मीठी निंदिया
बुलाती है तुझको
सपनों की दुनिया
लुभाती है तुझको
सुखद सपन में खो जा
सो जा राज दुलारे
मेरे प्यारे सो जा
राज दुलारे सो जा।
एक चंचल नन्हीं बालिका की झुंझलाई हुई मां की ओर से लिखी गई लोरी भी इस संग्रह में है जो मां-बेटी की दिनचर्या भी व्यक्त करती है-
पीले-पीले फूल खिले हैं
झूला उनका डाला है
आओ बिटिया रानी तुमको
यह गुलदान सजाया है।
तेरी एक हंसी की खातिर
दिन भर मेहनत करती हूं।
तू खुश रह और खिले फूल-सी
इतनी हसरत रखती हूं।
धमा चैकड़ी तुम करती हो
दिन भर घूमो यहां-वहां
तेरे पीछे-पीछे मैं तो
दिन भर भागा करती हूं।
    कवयित्री ने वर्णमाला के अक्षरों को अपने शब्दों में पहचान दी है जो दो-दो-पंक्तियों की तुकबंदी के रूप में सहज और सरल है। उदाहरण देखिए-
क - कमल जल में खिलता है / अंदर रह बाहर खिलता है
ख - खरगोश प्यारा न्यारा-सा/ सरपट दौड़ लगाता-सा
ग - गमला सुंदर एक लगाओ/ पर्यावरण को शुद्ध बनाओ
   इस प्रकार हिन्दी की पूरी वर्णमाला को कविताबद्ध करने का प्रयास किया गया है।
जैसा कि मैंने पहले ही उल्लेख किया कि शिशुओं एवं नन्हें बच्चों के प्रति समयाभाव एवं मशीनीकृत होते जीवन के दौरान शिशुगीतों का स्वयं माता-पिता द्वारा कम गाया जाना सालता है। अतः भावनात्मक रूप से ऐसे शुष्क होते समय में डाॅ. वन्दना मिश्र का शिशुगीतों का संग्रह प्रकाशित होना अपने आप में महत्व रखता है। यह संग्रह सुंदर चित्रों से सजा हुआ है। काग़ज़ और मुद्रण बेहतरीन है किन्तु हिन्दी शिशुगीतों को पुनः चलन में लाने की दृष्टि से पुस्तक का मूल्य अधिक है। संग्रह के कुछ शिशुगीतों में कवयित्री ने शिल्प तथा तुकबंदियों पर अधिक ध्यान नहीं दिया है जो तनिक खटकता है। फिर भी इसमें कोई संदेह नहीं कि यह संग्रह अपनी अर्थवत्ता स्थापित करने में समर्थ है।           
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