बुंदेली कॉलम | बतकाव बिन्ना की | डॉ (सुश्री) शरद सिंह | प्रवीण प्रभात
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बतकाव बिन्ना की
उते प्रयाग में कुंभ औ इते दिल्ली में साहित्य की सुनामी चल रई
- डॉ. (सुश्री) शरद सिंह
‘‘काए बिन्ना, कां हो आईं?’’ भैयाजी ने मोसे पूछी।
‘‘उते बालाजी मंदिर गई रई।’’ मैंने बताई।
‘‘अच्छा, उते इंद्रेश जी महाराज जू की कथा में?’’भैयाजी ने पूछी।
‘‘हऔ’’ मैंने कई।
‘‘कैसो लगो उते?’’
‘‘अच्छो लगो। मुतकी भीड़ हती उते। पंडाल में उते बीच में गद्दा डरे हते। मनो कनारे- कनारे कुर्सियां सोई हतीं जो उन ओरन के लाने जोन से नैचे बैठत नईं बनत।’’ मैंने भैयाजी खों बताई।
‘‘हमने सुनी के भौतई मैंगो पंडाल हतो।’’ भैयाजी बोले।
‘‘हऔ तो। काय से के हजार-दो हजार की भीड़ के लाने बड़ो सो पंडाल तो लगतोई, ऊपे अच्छो पंखा, डिस्प्ले, लाईटें सोई हतीं। सो मैंगो तो रैहे।’’ मैंने भैयाजी से कई।
‘‘अब हमें लग रऔ के हम ओरन खों सोई जाने चाइए तो, तनक जा सब देखत।’’ भैयाजी पछताउत भए बोले।
‘‘गम्म ने करो आप! जे खतम ने हो पाई औ उते राजघाट लिंगे कथा चालू हो गई आए, उते हो आइयो। ने तो एक बेरा बागेश्वर धाम हो आओ आप ओरें।’’ मैंने भैयाजी खों समझाई।
‘‘अरे उते का जाहें, कुंभ तो जा नईं पा रए। भीड़ से ऊंसई जी डरात आएं। मनो हमें एक बात समझ नहीं परत बिन्ना के चाए मंदरन में भगवान जू के दरसन होंए, चाए कथा की जांगा होय, जो असली वारे भगत रैत आएं उनके लाने दूर से दरसन करबे को ठौर रैत आए औ जो बड़े आदमी कहाउत आएं, पइसा वारे होत आएं, नेता हरें सोई इन सब ओरन के लाने वीआईपी जागां रैत आएं। जो कैसी व्यवस्था आए?’’ भैयाजी बोले। फेर बे बतान लगे,‘‘का भओ के पर की साल हम औ तुमाई भौजी बृंदाबन गए रए। सो उते हम ओरन ने देखी के मुतकी भीड़ हती। हमें लगो के कन्हैया के दरसन ने हो पाहें। इत्ते में एक भगत मिल गओ। ऊसे हमने अपनो दुखड़ा बताओ सो बा बोलो के पइसा होय सो चलो हम तुमें वीआईपी पास दिलाए दे रए। हमें तनक अटपटो लगो। मनो, तुमाई भौजी बोलीं के अब इत्ती दूर आएं सो बिगर दरसन करे तो ने लौटबी। वीआईपी पास खरीद लेओ। सो हमने पास खरीदो। पास मिलत साथ हमें दूसरी लेन में खड़ो कर दओ गओ। ऊ तरफी भौतई कम लोग हते। दोई मिनट में हम दोई कन्हैया जू के आंगू जा पौंचे। जी भर आओ। इत्तई में कोऊ औरई बड़ो वारो वीआईपी आ गओ सो हम ओरन खों ठेल-ठाल के उते से भगा दओ गओ। बाद में पता परी के बा कोनऊं मंत्री हतो जोन खों कोनऊं खास पूजा करने हती। सांची बिन्ना ओई दिन से हमाओ जी खट्टो हो गओ। अरे भगवान जू तो सब के लाने बरोबर आएं, फेर काय खों जे लकीरें खींची जात आएं?’’
‘‘जेई तो चलन आए भैयाजी! हम ओरें तो सोई वीआईपी वारे खंड में बैठे हते। मगर जे आप सांची कै रए के जबे पीछे हेर के देखो औ गांव-देहात की बा पब्लिक दिखात आए जोन की आस्था अपन ओरन से ज्यादा आए तो तनक बुरऔ लगत के बे उते दूर बैठे औ अपन की तो छोड़ो, जोन खाली नांव करे के लाने पौंचत आएं, मनों खबरें बनवाबे के लाने उनकी पौंच गर्भगृह औ व्यासपीठ लौं रैत आए। जेई तो कलजुग आए भैयाजी!’’ मैंने भैयाजी से कई।
‘‘चलो जा सब छोड़ो! तुम नईं जा रईं अपने वारे कुंभ?’’ भैयाजी ने मोसे पूछी।
‘‘मैंने तो ऊ दिनां बताई रई के मैं नईं जा रई। उते मुतकी भीड़ आए। बाकी ठैरियो! जे अपनो वारो कुंभ कां से आ गओ?’’ मैंने भैयाजी से पूछी।
‘‘तुमाओ वारो कुंभ।’’ भैयाजी हंसत भए बोले।
‘‘मोय समझ नईं पर रई? मोरो वारो कुंभ कोन सो आए?’’ मैंने पूछी।
‘‘देखो, एक तो कुंभ चल रओ प्रयागराज में औ दूसरो चल रओ दिल्ली में।’’ भैयाजी बोले।
‘‘हऔ, अब समझ परी के आप विश्व पुस्तक मेला के बारे में कै रए। खूब कई मोरो वारो कुंभ।’’ मोए सोई हंसी आ गई।
‘‘औ, का जे तो हर साल होत रैत। बाकी देखो तो सोसल मीडिया पे सुनामी सी आई भई दिखात आए। जित्ते प्रकासक पोस्टें नईं डार रए उनसे हजार गुना पोस्टें लिखबे वारन की डल रईं। जोन खों देखो अपनी किताबन की पब्लीसिटी कर रए। मनो किताबें बेचबे को धंदो उनई को होए।’’ भैयाजी हंसत भए बोले।
‘‘हंसी ने उड़ाओ भैयाजी! अपनी किताबें बेचबे के लाने आजकाल का-का नई करो जात आए, हम आप खों का बताएं।’’ मैंने कई।
‘‘तुम तो कछू नईं करत।’’ भैयाजी हंस के बोले।
‘‘मोरी छोड़ो आप! सब कछू के लाने रोकड़ा चाउने परत आए। जैसे आप बोल रए हते के भगवान जू के दरसन के लाने वीआईपास खरीदबे जोग पइसा होन चाइए उंसई आजकाल अपने किताब को प्रचार करबे के लाने सोई मुतके पइसा होन चाइए। कई जने तो फोकट में बांटत फिरत आएं किताबें जैसे फोकट में छपी होंय, कई जने बड़े-बड़े सेलीब्रिटी खों बुला के उनसे बुलवाउत आएं अपनी किताबन के बारे में। देखत नइयां आप के साहित्य की संस्थाओं औ उनके अध्यक्षों की कमी नइयां। पइसा फेंको औ तमासा देखो। मुतके तरीका आएं, मनो सब के लाने मुतको पइसा सोई चाउने। अब साहित्य की दुनिया सोई बाजार बनत जा रई।’’ मैंने भैयाजी से कई।
‘‘सई कई बिन्ना! मगर फेर तो तुमाए जैसे पिछड़त जैहें।’’ भैयाजी बोले।
‘‘सो का भओ भैयाजी! मोरे जैसे लोगन के लिखे में दम हुइए तो हमाओ लिखो टिको रैहे। मैं तो जेई मानत के लिखे में दम भओ चाइए। बाकी कोनऊं जोड़-तोड़ में का रखो।’’ मैंने कई।
‘‘सई कई बिन्ना! कभऊं-कभऊं हम जेई सोचत आएं के जोन टेम पे कबीर भए, तुलसी भए, रैदास भए ऊ टेम पे मुतके दरबारी कवि सोई रए हुइएं जोन ने खींब पइसा कमाओ हुइए। ऊ टेम पे उनको डंका बजत रऔ हुइए। मनो, आज उनको कोनऊं नांव लेबो वारो लौं नइयां। उतईं बा कबीर औ रैदास खो सबई याद करत आएं। उनके एक-एक दोहा जेई तुमाए सोसल मीडिया पे छाए रैत आएं। औ तुलसी की मानस तो अपन ओरन के पूजा के आला में धरी रैत आए। का इन ओरन ने कभऊं सोची हुइए के जे अपने लिखे से ऐसे अमर हो जैहें? बे तो बस, लिखत रए हुइएं।’’ भैयाजी बोले।
‘‘भौतई सांची कई भैयाजी आपने! जेई सबसे बड़ो सच आए। अपनी गीता में जेई तो कओ गओ आए के करम करत जाओ औ फल की चिन्ता ने करो। जोन जो फल की चिन्ता में डूबे तो ठीक से करम ने हो पाहे।’’ मैंने भैयाजी से कई।
‘‘हऔ, औ जोन कछू करम ने कर रओ होय ऊको का करो जाए?’’ भौजी ने आत साथ भैयाजी खों आड़े हाथ लओ।
‘‘का हो गओ?’’ भैयाजी घबड़ा के पूछी।
‘‘हमने आप से कई रई के पिसी सूखबे डार दइयो, जा से ऊमें की सीत निकर जाए, मनो आपको तो कोनऊं करम नई करने। जो करने हमई खों करने परहे।’’ भौजी ने भैयाजी खों फेर के फटकार लगाई।
‘‘हऔ, अबई डारे दे रए।’’ कैत भए भैयाजी भगे उते से। उनको भगबो देख के भौजी औ मोय दोई को हंसी आन लगी। फेर मैं औ भौजी बतकाव करन लगी।
बाकी भैयाजी संगे की बतकाव हती सो बढ़ा गई, हंड़ियां हती सो चढ़ा गई। अब अगले हफ्ता करबी बतकाव, तब लों जुगाली करो जेई की। मनो सोचियो जरूर ई बारे में के साहित्य में पइसा फेंक को तमाशो भओ चाइए के नई?
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