बुंदेली कॉलम | बतकाव बिन्ना की | डॉ (सुश्री) शरद सिंह | प्रवीण प्रभात
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बतकाव बिन्ना की
कालंजर में बनो महादेव के ब्याओ को मंड़वा
- डॉ. (सुश्री) शरद सिंह
‘‘काय बिन्ना कां हो आईं?’’ भैयाजी ने मोसे पूछी।
‘‘गढ़पैरा गए रए।’’ मैंने भैयाजी खो बताई।
‘‘अब तो उते लौं पौंचबो कठिन ने रओ।’’ भैयाजी बोले।
‘‘हऔ, छिड़ियां के उते शेड डाल दओ गओ आए, जींसे छायरे-छायरे छिड़ियां चढ़ी जा सकत आएं। औ दूसरी तरफी से मने फोरलेन वारी रोड की तरफी से ऊपर लौं रोड बना दई गई आए। रोड मनो अबे कच्ची-सी आए, पर हो सकत के जल्दी पक्की कर दई जाए। हम ओरें तो रोडई से गए रए। सो पैले शीश महल पौंचे, फेर मंदिर गए। वां हनुमान बब्बा के दरसन करे। बाकी बंदरा मुतके आएं उते। एक ठंइयां डंडा धर के जाने परो। डंडा ठकठकाए से बे ओरे दूर भाग जात आएं। फेर बी डर तो लगत आए।’’ मैंने भैयाजी खों बताई।
‘‘जे बंदरा की सल्ल सो सबई जांगा आए। इते तो परसाद ई छुड़ात आएं औ उते मथुरा-बृंदाबन में सो चश्मा लौं छुड़ा लेत आएं।’’ भैयाजी ने हंस के कई।
‘‘हऔ जे तो आप ने सांची कई। आप कभऊं कालंजर गए?’’ मैंने भैयाजी से पूछी।
‘‘एक दफा गए रए। भौत पैले। अबे तो कुल्ल समै से उते नईं गए। इते से दूर परत आए न!’’ भैयाजी ने कई।
‘‘हऔ! उते पन्ना से नजदीक रऔ, सो दो-तीन बेरा जाबे खों मिलो रओ। बड़ी नोंनी जांगा आए। औ आप खों तो पतो हुइए के कालंजर के बारे में शिवपुराण में सोई लिखो।’’ मैंने भैयाजी से कई।
‘‘हऔ, कछू पढ़ो तो रओ, मनो अब याद नईं। काय से शिवपुराण पढ़े बी कुल्ल टेम हो गओ।’’ भैयाजी बोले।
‘‘चलो अबई तो शिवरात्रि कढ़ी कहानी, सो आपके लाने शिव औ काली के ब्याओ की किसां सुना दई जाए।’’ मैंने भैयाजी से कई।
‘‘कैसी किसां?’’ भैयाजी ने पूछी, ‘‘कालंजर से ऊको का लेबो-देबो?’’
‘‘अरे, कालंजर ई से तो लेबो-देबो आए। काजंलर में शिव औ काली के ब्याओ को मंडवा गड़ो।’’ मैंने भैयाजी से कई।
‘‘सई में? चलो बताओ, का किसां आए?’’ भैयाजी ने पूछी।
‘‘जा किसां शिवपुराण में लिखी धरी। मैं अपने मन से नईं सुना रई। ध्यान से सुनियो! का भओ के जबे राच्छस औ देवता हरें समुद्र मंथन कर रए हते तो ऊमें से हलाहल नांव को विष निकरो। बा हलाहल से तीनों लोक जरन लगे। सब ओरें गदर-सी मच गई। बा हलाहल सब खों मार ने देवे जा सोच के भगवान शिव जू ने ऊको पी लओ। मनो बा हलाहल ऐसो हतो के जो भगवान जू के पेट में बा चलो जातो तो बे सोई मर सकत्ते। सो भगवान शिव जू ने ऊको अपने गले में रोक लओ। बा जहर के कारन उनको गलो नीलो पड़ गओ। तभई से बे नीलकंठ कहाऊन लगे।’’ मैं किसां सुना रई हती के भैयाजी ने मोय टोकों।
‘‘ईसे कालंजर औ शिव जू के ब्याओ को का लेबो-देबो?’’ भैयाजी ने पूछी।
‘‘तनक गम्म तो खाओ! आगे सुनो आप! का भओ के शिवजू को गलो तो नीलो पड़ गओ मनो ऊनके पूरे सरीर में जलन होन लगी। सो बे उते से हिमालय के लाने चल परे। उने लगो के हिमालय पौंच के तनक ठंडो लगहे। बे जा रए हते आकास मार्ग से। सो जब बे कालंजर के ऊपरे से निकरे तो उने तनक ठंडो सो, अच्छो सो लगो। सो बे सुस्ताने के लाने उतई ठैर गए। बा जांगा रई काली माई की। सो काली माई ने कई के तुम पैले हमसे ब्याओ करो फेर इते ठैर सकत आओ। सो भगवान जू तो जानत हते के काली औ पार्वती सो एकई आएं, सो उन्ने मान लई। सबरे देवता हरें उते पौंचे उन्ने शिव औ काली के ब्याओ के लाने उते मंड़वा गाड़ो। औ धूम-धाम से ब्याओ भओ। शिव तो उतई ठैर गए मगर काली ने अपनी जांगा शिव जू खों सौंपी औ बे कामाख्या चली गईं। फेर कई जुग बीते। बाद में कालंजर के राजा ने जेई किसां पे उते मंदिर औ मूर्तियां बनवाईं। मंडवा सोई बनवाओ। उते नीलकंठ मंदिर में भगवान शिव जू की जोन मूर्ति रखी ऊमें शिव जू खों मों इत्तो अच्छो बनाओ गओ आए के का कई जाए। उनको मों खुलो आए, मनो बा हलाहल के करैपन से खुलो रए गओ होए। भौतई नोंनी मूर्ती बनाई बनाबे वारे ने। उते दुर्गा माई की अठारा हाथ वारी मूर्ति भी आए जोन खों चट्टान काट के बनाओ गओ रओ। औ काली की तो मुतकी मूर्तियां रईं। कओ जात आए के जबे श्रीराम बनवास के लाने निकरे हते तो कालंजर से होत भए गए रए। कालंजर में सीता मैया ने रसोई बनाई रई। उते एक जांगा सीता मैया की रसोई सोई आए। बाकी नीलकंठ मंदिर के आगूं जो मड़वा बनो, बा तो देखबे जोग आए। पथरन के खम्बा में ऐसे-ऐसे बेलबूटा काढ़े गए आएं के देखतई बनत आए। बा देख के सोचो जा सकत आए के शिवजू औ कालीमाई के ब्याओ के टेम पे देवता हरों ने ऊको कित्तो सुंदर सजाओ हुइए।’’ मैंने भैयाजी खों बताई।
‘‘हम उते गए तो आएं, मनो एक तो भौतई पैले गए रए औ फेर दोस्तन के संगे गए रए सो उते देखो कम, हुड़दंगी ज्यादा करी हती। जा सब सो पतोई नई परो।’’ भैयाजी तनक पछतात भए बोले।
‘‘आपके लाने उते कोनऊं सत्संग खों मिलो के नईं?’’ मैंने भैयाजी से हंस के पूछी। भैयाजी मोरी जा बात तुरतईं समझ गए।
‘‘काए नईं मिलो? एक बाबा हतो उते। अच्छी चिलम लए रओ। हम ओरन ने जान के ऊसे पूछी के जो का आए? सो बा बोलो के मोरी सत्संग करो सो खुदई सब समझ जैहो। हमाए एक संगी रओ उको सोई जाने का सूझी उने कई के देओ हमें सोई सूंटन देओ। ऊने बाबा के हाथ से चिलम छुड़ाई और एक सुट्टा ले लओ। पांचेक मिनट में बा उतई आड़ो डरो दिखानों। हम ओरे तो डर गए रए के बा कऊं निपट तो नईं गओ? मनो बाबा हंसन लगो औ बोलो डरो नईं कछू ने हुइए। दो-चार घंटा में सई हो जैहे। रामधई! ऊको जब लौं होश ने आओ हम ओरन की धुकधुकी बंधी रई। कऊं बा निपट गओ तो हम ओरन को का हुइए। ऊके घर वारे सो जेई कैंहे के हमाए मोड़ा खों संगे ले गए औ मार-मूर के ले आए। हम ओरन खों तो उम्मरकैद दिखान लगी हती। बाकी जब ऊको होश आओ, तब कऊं जा के हम ओरन की जान में जान आई। औ ऊकी तबीयत पूरी ठीक होतई साथ हम ओरन ने ऊको खूबई लपाड़े लगाए। ऊकी बेवकूफी में हम ओरन की जान कढ़ी जा रई हती।’’ भैयाजी ने अपनी किसां सुनाई।
‘‘उते पैले ऐसे बाबा हरें खूब मिलो करत्ते। तभई तो हमने आप से पूछी के आप ओरन खों मिले के नईं।’’ मैंने कई।
‘‘अरे, राम को नांव लेओ! आज लौं फुरूरी सी होत आए बा समै याद कर के। बाकी अब एकाद बेर फेर के जाबी, जा सब देखबे के लाने।’’ भैयाजी ने कई। फेर बे अपने कालेज के दोस्तन की और किसां सुनान लगे। बाकी असली बतकाव हती सो बढ़ा गई, हंड़ियां हती सो चढ़ा गई। अब अगले हफ्ता करबी बतकाव, तब लों जुगाली करो जेई की। मनो सोचियो जरूर ई बारे में के आप ओरें कबे प्लान बना रए कालंजर जा के शिव जू को मंड़वा देखबे के लाने?
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