बुंदेली कॉलम | बतकाव बिन्ना की | डॉ (सुश्री) शरद सिंह | प्रवीण प्रभात
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बे ‘आप’ बने फिरे औ अब ‘तुम’ कहाबे जोग बी ने रए
- डॉ. (सुश्री) शरद सिंह
‘‘काय भैयाजी, का पढ़ रए?’’ मैंने भैयाजी से पूछी। बे अखबार में मूंड़ घुसाए बैठे हते।
‘‘कछू नईं, दिल्ली के चुनाव की ख़बर पढ़ रए हते।’’ भैयाजी मूंड़ उठात भए बोले।
‘‘मनो अब तो चुनाव को रिजल्ट की खबर लौं बासी हो गई, अब आप का पढ़ रए?’’ मैंने फेर के भैयाजी से पूछी।
‘‘चुनाव को रिजल्ट तो पैले सेई दिखा रओ हतो। ऊमें कछू खास नई रओ। खास तो अब हुइए के को का बनाओ जा रओ। अब तो उते तरे-ऊपरे सबई बदल जाने। मुतके लोग नांय से मांय हुइएं। अब को एलजी बन हे, कोन खों कोन सो काम दओ जैहे? जे सब अब पतो परत जैहे।’’ भैयाजी बोले।
‘‘उते कोऊ कछू बने, ईसे अपने इते का फरक परने?’’ मैंने जान के जा बात कई।
‘‘काय ने फरक परहे? अबई चुनाव के रिजल्ट को फरक परो के नईं?’’ भैयाजी बोले।
‘‘का फरक परो? आप गई औ बे आए। ईमें का खास?’’ मैंने पूछी।
‘‘जे कओ के आप गई औ बे आए, कओ कैसी रई?’’ भैयाजी हंस के बोले।
‘‘ऐसे बोले से का हुइए? जो कोनऊं ‘ह्लीं-क्लीं’ को मंतर आए का कि ‘छू’ बोले से कछू बदल जैहे?’’मैंने कई।
‘‘बदलनेई आए अब तो। सब कछू बदल जैहे।’’ भैयाजी बोले।
‘‘सो कैसे?’’ मैंने पूछी।
‘‘ऐसे के सबई खों दिखा गई के झाडू कित्ती कमजोर निकरी।’’ भैयाजी बोले।
‘‘सो, झाडू वारे तो जेल में पिड़े रए, अब पैरोल पे का कर लेते?’’ मैंने कई।
‘‘सो, ऐसे करम काए करे के उने जेल में पिड़ने परो।’’ भैयाजी बोले।
‘‘कैबे वारे कैत आएं के जोन से दुस्मनी होय उनके पांछू ईडी लगा दई जात आए।’’ मैंने भैयाजी से कई। जे देखबे के लाने के ई पे बे का कैत आएं।
‘‘हऔ! चलो मान लई की ईडी पांछू लगा दई जात आए, मनो जे तुमई सोचो के कछू हुइए तभई तो ईडी बी पकर पाहे, ने तो का भूत की लंगोट छुड़ैहे?’’ भैयाजी बोले।
‘‘भूत की लंगोट...!’’भैयाजी कीे बात सुन के मोय तो हंसी फूट परी।
‘‘औ का? तुमई बताओ, जिते धुंआ हुइए, उते आगी तो पक्के में हुइए।’’ भैयाजी बोले।
‘‘मनो आजकाल तो बिना धुंआ को चूलो चलत आए।’’ मैंने हंस के कई।
‘‘सो का? ईमें तो औरई रिस्क आए। जब ऊमें से गैस लीक करत आए तो फेर ईडी आत आए सूंघत-सूंघत। फेर चाए कओ के बा खुद से आई, चाए कओ के कोनऊं ने भेजी। मनो उते कछू तो बरबे जोग चीज होतई आए।’’ भैयाजी ने खीबई समझा के मोय समझाई।
‘‘अच्छा भैयाजी, आप तो हमें जे बताओ के जे जो अमेरिका अपन ओरन के लोगन खो वापस डिपोट कर रओ, बा बी ट्रैकर लगा के, सो का जे गलत नइयां?’’ मैंने भैयाजी से पूछी।
‘‘काय को गलत आए? तुमई बताओ के जो अपन ओरन के इते कोनऊं भड़यां घुस आए तो का अपन ओरें ऊकी आरती उतारहें? ऊको दो लपाड़े लगाहें औ पुलिस के आत लौं बांध के राखहें। अमेरिका के लाने बे ओरें भड़यां आएं जोन चोरी से उते पौंच गए। उन ओरन ने अमेरिका भर को कानून नईं तोड़ो, उन्ने तो अपने इते को बी कानून तोड़ो। उने तो इते बी सजा मिलो चाइए।’’ भैयाजी गुस्सा होत भए बोले।
‘‘मगर भैयाजी, बे ओरें उते खाबे, कमाबे गए हते।’’ मैंने कई।
‘‘मगर गए तो गलत तरीका से हते। बोई तो हमने तुमसे कई के जे भड़या हरें बी तो खाबे, कमाबे के लाने घरे घुसत आएं, चोरी करत आएं तो का उनें क्लीन चिट दे दओ जाए? फालतू की तरफदारी ने करो। गलत तो गलतई होत आए।’’ भैयाजी बोले। उनको कैबो सई हतो। काय से के बे ओरें पैले ‘‘कबूतर’’ बन के उते गए। अब बे उते पौंच के का कर रए जे कैसे पता परहे। कछू अच्छे होत आएं औ कछू बुरए बी होत आएं। जेई से तो वीज़ा बनत टेम पे जाबे को कारण पैले पूछो जात आए। फेर ओई के हिसाब से वीजा बनत आए।
‘‘तुम कां की ले बैठीं। हम तो दिल्ली की सोच रए हते।’’ भैयाजी मोय टोंकत भए बोले।
‘‘अब ईमें सोचबे की का?’’ मैंने पूछी।
‘‘सोचबे की जे के विपक्ष की धुतिया फेर के खुल गई औ ऊमें से फटो जांघियां दिखान लगो।’’ भैयाजी अपनई धुन में कै बैठे।
‘‘जो का कै रए भैयाजी? कछू तो सरम करोे!’’ मैंने भैयाजी खों टोंको।
‘‘साॅरी! साॅरी! साॅरी बिन्ना! अब का करो जाए, जा ससुरी राजनीति ठैरी ऐसी चीज मनो गढ़ा में भरो पानी, के ऊमें कंकरा ने मैंको तो मजो नई आत, औ कंकरा मैंको तो छींटा अपनेई ऊपरे परत आए।’’ भैयाजी बोले।
‘‘तो कंकरा मैंको ई काय जाए?’’ मैंने कई।
‘‘बा तो अपने भीतरे से लगत आए के कंकरा मैंको जाए। कोऊ जान के ऐसो नईं करत।’’ भैयाजी बोले।
‘‘चलो कछू नईं, हो जात आए। जैसे लुघरिया बोलतई साथ लुघरिया छुबाबे को खयाल आत आए।’’ मैंने भैयाजी से कई। काय से मोय पतो आए के भैया जी की जबान ऐसी ने आए, बस तो राजनीति की बतकाव करत-करत फिसल गई।
‘‘हऔ, सई में हमाओ मतलब गलत नईं रओ।’’ भैयाजी ने तनक औ सफाई दई।
‘कछू नईं, आप तो जे बताओ के दिल्ली के चुनाव को अब का असर परहे?’’ मैंने भैयाजी से पूछो।
‘‘असर जे परहे के विपक्ष कऊं ने दिखाहे। एक तो बा ऊंसई अधमरो हतो अब पूरोई मरो जा रओ। बस, जेई हमें ठीक नईं लग रओ। जो विपक्ष ने होय तो काय को लोकतंत्र?’’ भैयाजी बोले।
‘‘कोनऊं ने कोनऊं तो विपक्ष रैहे!’’ मैंने कई।
‘‘मरो डरो कोन काम को? तनक तगड़ो होय तो कछू बात आए।’’ भैयाजी बोले।
‘‘बात तो सई कै रए आप!’’ मैंने कई।
‘‘अब तो ‘आप’ सुने से बुरौ लगत आए। तुम तो हमें आप ने कओ करो।’’ भैयाजी बोले।
‘‘आप माने खाली केजरीवाल वारो आप ई थोड़े होत? उनकी तो ने कओ। बे तो पैले ‘आप’ बने फिरे औ अब ‘तुम’ कहाबे जोग बी ने रए।’’ मैंने भैयाजी से कई।
‘‘सई कई!’’ कैत भए भैयाजी सोई हंसन लगे।
बाकी बतकाव हती सो बढ़ा गई, हंड़ियां हती सो चढ़ा गई। अब अगले हफ्ता करबी बतकाव, तब लों जुगाली करो जेई की। मनो सोचियो जरूर ई बारे में के विपक्ष अपने गिरेबान में झांकहे के नईं?
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