Dr (Miss) Sharad Singh |
हादसों के बीच स्कूली बच्चे और हमारी चेतनाहीनता
- डॉ. शरद सिंह
(दैनिक सागर दिनकर, 10.01.2018)
इन्दौर स्कूल बस हादसा एक ऐसा सबक है जिससे हमारी आंखें खुल जानी चाहिए। साथ ही प्रश्न उठता है कि नौनिहालों की ज़िन्दगी से खिलवाड़ करने वाले कौन हैं? इस प्रश्न के उत्तर में पहली उंगली उठती है लापरवाह बस मालिकों की ओर जो स्कूल बसों के लिए निर्धारित सुरक्षा नियमों का ठीक से पालन नहीं करते हैं। दूसरी उंगली उठती है, उन ड्राईवर्स की ओर जो गाड़ी की फिटनेस की बिना बारीकी से जांच किए, बसों में बच्चों को भर कर चल पड़ते हैं। तीसरी उंगली उठती है, उन माता-पिता एवं अभिभावकों की ओर जो स्कूल बसों पर बच्चों को चढ़ाने से पहले बस की फिटनेस के प्रति कोई जागरूकता नहीं दिखाते हैं। क्या हम इतने चेतनाहीन होते जा रहे हैं कि बच्चों का जीवन बचाने के लिए एक अभिभावक या एक नागरिक के रूप में सजग नहीं हो सकते हैं?
Charcha Plus Column of Dr Sharad Singh in Sagar Dinkar Dainik |
इन्दौर स्कूल बस हादसा एक ऐसा सबक है जिससे हमारी आंखें खुल जानी चाहिए। इंदौर के कनाडिया रोड के पास एक सड़क दुर्घटना में 5 बच्चों समेत बस ड्राइवर की मौत हो गई। इस हादसे में डीपीएस (दिल्ली पब्लिक स्कूल) की स्कूली बस के ड्राइवर की लापरवाही का मामला सामने आया। हुआ यूं कि तेजाजी नगर की ओर जा रही एक तेज रफ्तार दिल्ली पब्लिक स्कूल बस कनाडिया क्षेत्र के पास सामने से आ रहे ट्रक से टकरा गई। इस घटना में स्कूली बस में सवार 5 बच्चों और ड्राइवर की मौत हो गई है। कनाडिया थाना प्रभारी के अनुसार, ’‘स्कूली बस गलत साइड से जा रही थी। शायद बस के ब्रेक फेल हो गए या फिर डिवाइडर से टकराने की वजह से ट्रक से सीधी भिड़ंत हो गई।’’ हादसे में स्कूल बस का अगला भाग बुरी तरह क्षतिग्रस्त हो गया। स्कूल की छुट्टी के बाद यह बस विद्यार्थियों को उनके घर छोड़ने जा रही थी। कनाडिया थाना प्रभारी ने बताया कि बस तेजाजी नगर की तरफ जा रही थी, जो कि वन-वे है। मतलब साफ है कि स्कूली बस गलत दिशा में जा रही थी। पूरी घटना पर टिप्पणी करते हुए एएसपी इंदौर ने भी कहा, बस ने अपना संतुलन खो दिया और दूसरी लेन में सामने से आ रहे ट्रक से टकरा गई। प्रश्न यह उठता है कि गलती कहां और किससे हुई है?
चिंताजनक बात यह भी है कि विगत दो माह में अर्थात् नवम्बर, दिसम्बर 2017 में भी स्कूल बसों के भीषण हादसां ने दिल दहलाया है। विगत 30 नवम्बर, 2017 को उत्तर प्रदेश के गौतमबुद्ध नगर जनपद के सेक्टर 39 थाना क्षेत्र में गोल्फ कोर्स मेट्रो स्टेशन के पास स्कूली बच्चों से भरी बस पलट गई। सुबह लगभग 7ः30 बजे नौ स्कूली बच्चों और दो अध्यापिकाओं को लेकर जा रही विश्व भारती पब्लिक स्कूल की बस गोल्फ कोर्स मेट्रो स्टेशन के पास शशि चौक पर ऑटो को बचाने की कोशिश में अनियंत्रित होकर पलट गई। बस पलटने से उसमें सवार बच्चे और शिक्षिकाएं फंस गईं। बच्चों की चीख-पुकार सुनकर मौके पर पहुंचे लोगों ने बस का शीशा तोड़कर बच्चों को सकुशल निकाला। गनीमत यह है कि इस हादसे में बस चालक और कुछ बच्चे मामूली रूप से घायल हुए। मौके पर पहुंची पुलिस ने लोगों की मदद से बच्चों और अध्यापिकाओं को सकुशल बाहर निकाला। बस एक प्राइवेट ट्रैवलर की थी। वह स्कूल की बस नहीं थी। बस मालिक ने सुरक्षा के पूरे मानक पूरे नहीं किए थे।
वहीं इससे पहले 03 नवम्बर 2017 को हिमाचल प्रदेश के मंडी से बच्चों को लेकर आगरा आ रही बस एक्सप्रेस-वे पर पलट कर खाई में जा गिरी। इस हादसे में बस ड्राइवर की मौत हो गई जबकि, टीचर व बच्चे मिलाकर 35 लोग घायल हो गए। हादसे में गंभीर रूप से घायल एक छात्र का हाथ काटना पड़ा। हादसा बस का अचानक टायर फटने की वजह से हुआ। बताया जाता है कि बागपत नंबर की टूरिस्ट बस हिमाचल प्रदेश के मंडी जिले में स्थित आलोक भारती पब्लिक स्कूल के करीब 125 बच्चों को स्टडी टूर पर लेकर निकली थी। गुरुवार को छात्रों ने मथुरा, वृंदावन का भ्रमण किया। शुक्रवार की सुबह बच्चों को आगरा घुमाने के लिये मथुरा से एक्सप्रेस-वे के रास्ते से निकली थी। इसी दौरान जब बस एत्मादपुर के गढ़ी रस्मी गांव के करीब झरना नाले पर पहुंची तभी बस का अगला टायर अचानक तेज आवाज के साथ फट गया। बस की रफ्तार तेज होने की वजह से ड्राइवर बस पर नियंत्रण नहीं कर पाया और बस रोड साइड रेलिंग तोड़ते हुए खाई में जा गिरी।
यूं भी, भारत में हर वर्ष सड़क दुर्घटना में मृत्यु का आंकड़ा बढ़ रहा है। सन् 2015 में 400 लोगों के प्रतिदिन मौतों की तुलना में पिछले साल 2016 में भारत में सड़क दुर्घटनाओं में कम से कम 410 लोगों की प्रतिदिन मौत का आंकड़ा दर्ज किया गया। टाइम्स ऑफ इंडिया के आंकड़ों के अनुसार डेढ़ लाख लोग 2016 में सड़क दुर्घटना में मारे गए जबकि तुलनात्मक रुप से 2015 में ये आंकड़ा एक लाख छियालिस हज़ार था। साल 2016 में उत्तर प्रदेश, तमिलनाडु, मध्य प्रदेश, आंध्र प्रदेश और पश्चिम बंगाल सहित छह राज्यों में हुए मौतों के आंकड़े को देखा जाए तो इसमें चिंताजनक वृद्धि हुई है। इन आकड़ों ने 1970 के बाद के सारे रिकार्ड तोड़ दिए हैं।
देश में होने वाली सड़क दुर्घटनाओं के दुखद सच के बीच उन बच्चों की ज़िन्दगी दांव पर लगी रहती है जो लापरवाह बस मालिकों की बसों में अपना भविष्य बनाने घर से निकलते हैं और अपने जीवन से हाथ धो बैठते हैं। स्कूली बच्चों की मृत्यु के ये आंकड़े बताते हैं हमारे देश में स्कूल जाने-आने के दौरान होने वाली सड़क दुर्घटना में बच्चों की मृत्यु दर में प्रति वर्ष बढ़ोत्तरी होती जा रही है। वर्ष 2000 से 2012 तक के आंकड़ों के अनुसार देश में मध्य प्रदेश ‘टॉप फाईव’ सबसे असुरक्षित राज्यों में शामिल है। नंबर एक पर महाराष्ट्र है, जहां वर्ष 2000 से 2012 में लगभग 52,073 स्कूली बच्चों की मौत हुई। वहीं 48,993 के आंकड़े के साथ मध्यप्रदेश दूसरे नंबर पर है। देश में प्रतिदिन लगभग 2 करोड़ 70 लाख स्कूली बच्चे अनुमानतया 5 लाख बसों से स्कूल जाते हैं। इस दौरान कतिपय लापरवाह बस स्कूल मालिकों के कारण उनकी सलामती की कोई गारंटी नहीं रहती है। सन् 2002 से 2012 के बीच एक दशक के आंकड़ों से भी साफ़ पता चलता है कि भारत में सड़क दुघर्टना में होने वाली स्कूली बच्चों की मौतों में बढ़ोत्तरी होती जा रही है।
प्रश्न फिर वही कि नौनिहालों की ज़िन्दगी से खिलवाड़ करने वाले कौन हैं? इस प्रश्न के उत्तर में पहली उंगली उठती है लापरवाह बस मालिकों की ओर जो स्कूल बसों के लिए निर्धारित सुरक्षा नियमों का ठीक से पालन नहीं करते हैं। दूसरी उंगली उठती है, उन ड्राईवर्स की ओर जो गाड़ी की फिटनेस की बिना बारीकी से जांच किए, बसों में बच्चों को भर कर चल पड़ते हैं। तीसरी उंगली उठती है, उन माता-पिता एवं अभिभावकों की ओर जो स्कूल बसों पर बच्चों को चढ़ाने से पहले बस की फिटनेस के प्रति कोई जागरूकती नहीं दिखाते हैं। क्या हम इतने चेतनाहीन होते जा रहे हैं कि बच्चों का जीवन बचाने के लिए एक अभिभावक या एक नागरिक के रूप में सजग नहीं हो सकते हैं? माता-पिता होने का मात्र इतना ही दायित्व नहीं होता है कि मोटी फीस और डोनेशन दे कर बच्चों को अच्छे स्कूल में दाखिला दिलाया और उस स्कूल या उससे संबंधित बस आदि की सुविधाएं उपलब्ध कराने वालों के गुलाम हो गए। आंख मूंद कर बच्चों का बस पर चढ़ाया और उनकी सुरक्षा के प्रति हो गए निश्चिन्त। जिस तरह हम अपने बच्चों के खाने-पीने, ओढ़ने-पहनने के प्रति सर्त्तकता बरतते हैं, ठीक वैसे ही उन्हें स्कूल ले जाने वाली बसों की फिटनेस के प्रति भी सचेत रहना होगा। यदि बस सुरक्षा नियमों के अनुरूप नहीं है तो बस मालिक को टोकना होगा, यदि चालक लापरवाही से बस चलाता है तो उसे परिणामों के प्रति आगाह करना होगा। मासूम बच्चों के जीवन की सुरक्षा की खातिर जगाना होगा अपनी सोई हुई चेतना को और बनना ही होगा ‘व्हिसिल ब्लोअर’।
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