झूठ
बोल कर उसे स्वीकार करना कठिन काम है और यह काम मुझसे करवा लिया ‘‘जागरण
सखी’’ पत्रिका की विदुषी सखियों ने... हां,मैंने कभी एक झूठ बोला था और अब
उसे मैंने स्वीकार किया है "जागरण सखी" की स्मिता श्रीवास्तव के सामने
स्वीकार किया... प्रिय मित्रो, आप भी पढ़िए "जागरण सखी" का अक्टूबर 2018 का
अंक !
रोचक संस्मरण। अक्सर ऐसे मौके लग जाते हैं कि थोड़ा बहुत झूठ बोलना पड़ता है। हाँ, उस वक्त सहेली ठीक ठाक थी और उसे हानि नहीं पहुंची थी तो आपका झूठ बोलना इतनी बुरी बात नहीं थी।
ब्लॉग बुलेटिन की दिनांक 06/10/2018 की बुलेटिन, फेसबुकिया माँ की ममता - ब्लॉग बुलेटिन “ , मे आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
ReplyDeleteब्लॉग बुलेटिन में मेरी पोस्ट शामिल करने के लिए आपका हार्दिक आभार शिवम् मिश्रा जी !
Deleteबहुत सुंदर।
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद अभी जी !
Deleteरोचक संस्मरण। अक्सर ऐसे मौके लग जाते हैं कि थोड़ा बहुत झूठ बोलना पड़ता है। हाँ, उस वक्त सहेली ठीक ठाक थी और उसे हानि नहीं पहुंची थी तो आपका झूठ बोलना इतनी बुरी बात नहीं थी।
ReplyDeleteआपका हार्दिक धन्यवाद विकास नैनवाल जी !
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