Thursday, December 20, 2018

चर्चा प्लस ... बड़ी कठिन है डगर ( एम.पी. में ) सी.एम. की - डॉ. शरद सिंह

Dr Sharad Singh
चर्चा प्लस ...
बड़ी कठिन है डगर ( एम.पी. में ) सी.एम. की
- डॉ. शरद सिंह
कांग्रेस के वरिष्ठ नेता कमलनाथ द्वारा मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री पद की शपथ लेने के साथ ही कांग्रेस को एक बार फिर प्रदेश की सत्ता सम्हालने का अवसर मिला है । कांग्रेस के वरिष्ठ नेता कमलनाथ के मुख्यमंत्री बनने के पूर्व ज्योतिरादित्य सिंधिया के समर्थकों ने अपने हठ का प्रदर्शन किया किन्तु समझाइश के बाद वे मान भी गए। यूं तो, अंत भला सो सब भला। लेकिन क्या सचमुच सब कुछ भला ही भला है? सरकारी खजाना संकटग्रस्त है, विरोधी कमर कसे हुए हैं, साथी भी छींटाकशी से बाज नहीं आ रहे हैं और उस पर 10 दिन में किसानों का कर्जमाफ करने की घोषणा का दबाव। बड़ी कठिन है डगर सी.एम. की। 

चर्चा प्लस ... बड़ी कठिन है डगर ( एम.पी. में ) सी.एम. की - डॉ. शरद सिंह  Charcha Plus column of Dr (Miss) Sharad Singh
 मध्यप्रदेश में नई सरकार ने शपथग्रहण कर लिया। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता कमलनाथ के मुख्यमंत्री बनने के पूर्व ज्योतिरादित्य सिंधिया के समर्थकों ने अपने हठ का प्रदर्शन किया किन्तु समझाइश के बाद वे मान भी गए। अंत भला सो सब भला। कांग्रेस नेताओं की उपस्थिति में कमलनाथ ने ली मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री पद की शपथ ले ली। लेकिन क्या सचमुच सब कुछ भला ही भला है? कदापि नहीं। नए मुख्यमंत्री के लिए मध्यप्रदेश यानी एम. पी. की डगर आसान नहीं होने वाली है। नमूना शपथग्रहण समारोह के दौरान ही दिखाई दे गया। भारतीय जनता पार्टी ने 1984 में हुए सिख विरोधी दंगों के मामले में सज्जन कुमार को सोमवार को सुनाई गई। उम्रकैद की सजा को कांग्रेस के लिए बड़ा झटका बताते हुए कहा कि इस पार्टी को इसी नरसंहार के आरोपी कमलनाथ के खिलाफ भी कार्रवाई करनी चाहिए। सिख विरोधी दंगों पर आए फैसले से जुड़ी एक प्रतिक्रिया में आम आदमी पार्टी का कहना है कि कमलनाथ को मध्य प्रदेश का सीएम नहीं बनाया जाना चाहिए। खैर इस राजनीतिक जुमलेबाजी को एक तरफ रख दिया जाए तो सबसे गंभीर मसला है कांग्रेस द्वारा की गई घोषणाओं के पूरा किए जाने का। विपक्ष ने पहले ही चेतावनी दे दी है कि वे ‘दस दिन’ अपनी उंगलियों पर गिनते रहेंगे।
उल्लेखनीय है कि विधानसभा चुनावों के परिणाम आने के बाद 11 दिसंबर को प्रेस से बात करते हुए राहुल गांधी ने कहा था कि कांग्रेस राज्य के किसानों की कर्जमाफी की घोषणा 10 दिन के अंदर करने के लिए प्रतिबद्ध हैं। इस हिसाब से मध्यप्रदेश में हालत इतनी सुगम नहीं है। सरकार द्वारा जारी आंकड़ों के अनुसार लगभग 41 लाख किसानों ने 56,377 करोड़ रुपए का कर्ज ले रखा है। इनमें भी 21 लाख ऐसे किसान हैं जिहोंने 14,300 करोड़ रुपये का कर्ज लिया है और उनकी कर्ज अदा करने वाली तारीख भी निकल चुकी है। वहीं दूसरी ओर किसान कर्ज माफी को उचित नहीं इहराते हुए रिजर्व बैंक के पूर्व गवर्नर उर्जित पटेल समेत डिप्टी गवर्नर एस.एस. मूंदड़ा ने कहा था कि इससे कर्ज लेने और देने वाले के बीच अनुशासन बिगड़ता है। इतना ही नहीं, स्अेट बैंक ऑफ इंडिया की 2017 में चेयरपर्सन रहीं अरुंधति भट्टाचार्य ने भी किसान कर्जमाफी का विरोध किया था। उन्होंने स्पष्ट शब्दों में कहा था कि कर्ज लेने वाले कर्ज चुकाने के बजाय अगले चुनाव का इंतजार करने लगते हैं।
बैंक के कड़े रवैये के कारण राज्य सरकार को किसान कर्जमाफी के लिए आरबीआई से लोन लेना कठिन होगा। बैंक के कड़े दिशा-निर्देशों के कारण राज्य सरकार बहुत अधिक लोन नहीं ले पाएगी। नए नियमों के अनुसार कर्ज की सीमा एक हजार करोड़ रुपये अधिकतम कर दी गई है। उस मुसीबत यह कि रिजर्व बैंक एवं स्टेट बैंक की आपत्तियों के बावजूद मध्यप्रदेश की पिछली सरकार ने 5 अक्टूबर, 12 अक्टूबर और 9 नवंबर को क्रमशः 500 करोड़, 600 करोड़ और 800 करोड़ रुपये का कर्ज लिया था। इसके बाद 4 दिसंबर को भी लोन लिया गया था। जहां प्रदेश सरकार के पास खुद के कर्ज चुकाने के लाले पड़ने वाले हों, वहां किसानों की कर्जमाफी कैसे हो सकेगी, यह देखने का विषय रहेगा।
यह तो तय है कि कांग्रेस सरकार खजाने की हालत जनता को बताने के लिए श्वेतपत्र लाएगी। नए मुख्यमंत्री के लिए वित्तीय स्थिति को आमजनता के सामने रखना जरूरी है। इसके लिए सभी विभागों को अपनी-अपनी स्थिति को लेकर रिपोर्ट तैयार करने के निर्देश पहले ही दे दिए गए हैं।
यहां समाचार न्यूज चैनल एनडीटीवी की 10 जुलाई 2018 की उस रिपोर्ट को याद करना जरूरी है जिसमें खुलासा किया था कि -‘‘ओवरड्राफ्ट की स्थिति के बावजूद चुनावी साल में शिवराज लगा रहे घोषणाओं की झड़ी । वित्तमंत्री बेफिक्र होकर कहते हैं कि चुनावी साल में घोषणाएं कौन सी सरकार नहीं करती. कांग्रेस कह रही है सरकार घबराहट में ऐलान कर रही है। 30 मई को मंदसौर में मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री ने गरीबों को घर, तेंदूपत्ता संग्राहकों के लिये चप्पल-साड़ी का ऐलान किया, कहा कि सरकार ने अभी तक गरीबों में 20000 करोड़ बांट दिये. तो वहीं 14 मई को भोपाल में बच्चों से कहा कि 12वीं के बाद सारी फीस उनके मामा भरेंगे, 75 फीसद लाने पर लैपटाप मिलेगा।’’ एनडीटीवी की इसी रिपोर्ट में कहा गया था कि-‘‘ 12 फरवरी को भोपाल के जंबूरी मैदान में धड़ाधड़ ऐलान करते हुए मुख्यमंत्री ने कहा, ’सरकार 5 साल में खेती पर 38,000 करोड़ रुपये खर्चेगी। चुनावी साल में गरीबों के बिजली के पुराने बिल माफ करने के लिए बिजली बिल समाधान योजना तो मजदूरों के लिये संबल योजना, किसानों के लिये किसान समृद्धि योजना जैसे कई ऐलान ताब़ड़तोड़ कर डाले, ये भूलकर कि इन योजनाओं ने सरकार की आर्थिक हालत खराब कर दी है। राज्य पर एक लाख 82000 करोड़ का कर्ज है, 15 साल बाद ओवर ड्राफ्ट के हालात हैं लेकिन वित्त मंत्री निश्चिंत हैं। वित्त मंत्री जयंत मलैया ने कहा, “हम संवदेनशील हैं, खजाने में कुछ दे दें तो क्या दिक्कत है, साढ़े 14 साल रेवेन्यू सरप्लस रहा है हमें कोई दिक्कत नहीं है, खजाना भले खाली हो जाए, गरीब की आंखों में आंसू नहीं देख सकते, क्या फर्क पड़ता है ओवरड्राफ्ट से।’’ तो, इस तरह भावुकता भरे बयान तत्कालीन सरकार की ओर से आते रहे।
एनडीटीवी ने जो आंकड़े दिए थे उन पर भी नज़र डालना जरूरी है- पिछली सरकार ने संबल योजना में 2500 करोड़ रुपए, बिजली बिल समाधान योजना में 3000 करोड़ रुपए, सरकारी कर्मचारियों को दिये गये सातवें वेतनमान में 1500 करोड़ रुपए, किसानों को पुराने साल की खरीद के बोनस में 2050 करोड़ रुपए, कृषक समृद्धि योजना में 4000 करोड़ रुपए और शिक्षकों को एक विभाग में समायोजित करने में 2000 करोड़ रुपए का खर्चा सरकारी खजाने पर पड़ा। सरकार ने 11 हजार करोड़ का अनुपूरक बजट लाकर हालत सुधारने की सोचा किन्तु मात्र 5000 हजार करोड़ रुपयों की ही व्यवस्था हो पाई।
मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव 2018 में कांग्रेस ने समर्थन के आधार पर बहुमत पा कर अपनी सरकार बना ली है लेकिन कर्ज में डूबा मध्यप्रदेश का सरकारी खजाना कांग्रेस सरकार के लिए कांटों भरा रास्ता है नई सरकार के सामने सबसे बड़ी चुनौती सरकार के खराब वित्तीय हालात हैं। प्रदेश के ऊपर पौने दो लाख करोड़ रुपए से ज्यादा का कर्ज है। कर्मचारियों को सातवां वेतनमान और एरियर देने, अध्यापकों के संविलियन, भावांतर भुगतान, किसानों को प्रोत्साहन राशि देने, संबल योजना सहित अन्य योजनाओं के चलते सरकार का खर्च बहुत बढ़ गया है। जीएसटी लागू होने और पेट्रोल-डीजल पर वैट कम करने से आय घटी है। विकास योजनाओं के खर्च की पूर्ति के लिए रिजर्व बैंक के जरिए बाजार से लगातार कर्ज लिया गया है। जीएसटी के कारण टैक्स लगाने के क्षेत्र बेहद सीमित हो गए हैं। पिछली सरकार के द्वारा दी जाने वाली वित्तीय छूटों के विरुद्ध समय-समय पर विरोध भी किए जाते रहे किन्तु जयकारों के स्वर में विरोध के स्वर दबते चले गए। अंततः यही विरोध भाजपा को हार के रूप में झेलना पड़ा। भाजपा सरकार चली गई और प्रदेश की कर्ज तले दबी वित्तीय स्थिति कांग्रेस के रास्ते का रोड़ा बन गई है। फिर भी यह प्रश्न उभरता है कि यदि पिछली सरकार फिर सत्ता पर आती तो इस प्रदेशिक सरकारी कर्ज से कैसे कांग्रेस सरकार को अपने वचन पूरा करने के लिए अतिरिक्त वित्तीय संसाधन की जरूरत होगी। ऐसे में एक पार पाती? जनता को दिखाए गए सारे सपने क्या 2019 के चुनाव के बाद सरकार द्वारा खुद ही छीन लिए जाते ताकि वह सरकारी खजाने को बचा सके या फिर कर्ज का सिलसिला अनवरत चलता रहता जो कि अर्थशास्त्रियों के अनुसार घातक सिद्ध होता। बहरहाल, नई सरकार खजाने के लिए धन जुगाड़ने को एक कदम यह भी उठा सकती है कि सरकार खर्चों में कटौती की जाए।
राहुल गांधी द्वारा किए गए किसानों की कर्जमाफी के वादे को मध्यप्रदेश सरकार हर संभव पूरा करने के लिए कटिबद्ध है और अब कर्जमाफी के आदेश पर मुख्यमंत्री के हस्ताक्षर भी हो चुके हैं। इससे बढ़ने वाले आर्थिक भार के संदर्भ में यह मानना चाहिए कि इसके लिए कांग्रेस ने कोई न कोई बैकअप प्लान तय कर रखा होगा क्योंकि राहुल गांधी इस तरह की लुभावनी घोषणा नहीं करते। वह भी ऐसे समय में जब मध्यप्रदेश में विपक्ष बलशाली है और 2019 का चुनाव बाट जोह रहा है और प्रदेश की वित्तीय दशा अत्यंत कमजोर है।
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(दैनिक ‘सागर दिनकर’, 20.12.2018)
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