Dr. Sharad Singh |
हार्दिक आभार युवा प्रवर्तक 🙏
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श्रद्धांजलि स्वरूप लेख-
जाना एक संघर्षशील, भावप्रवण अभिनेता इरफान खान का
‘मैं मरा नहीं, बस सोया हूं’
-डॉ शरद सिंह
सिनेमा के रुपहले पर्दे पर एक कलाकार जितनी बार मरता है, वह उतनी ही सदियां जोड़ता जाता है अपने जीवन में। सच तो यह है कि एक संवेदनशील, भावप्रवण अभिनेता कभी मरता नहीं हैं, अपने चाहने वालों के दिलों में जिन्दा रहता है सदियों तक। इरफान खान नामक इंसान की दैहिक मृत्यु भले ही हो गई किन्तु अभिनेता इरफान खान अपने अभिनय के नाना रूपों में आज भी ज़िन्दा हैं और हमेशा रहेंगे। इरफान खान ने मुंबई के अस्पताल में अंतिम सांस ली। एक लंबे समय से बीमारी से जूझ रहे इरफान खान को बीते दिनों ही अस्पताल में भर्ती करवाया गया था। इरफान का जाना बॉलीवुड को स्तब्ध कर गया है। यह संवेदनशील कलाकार देश में सुख और शांति चाहता था। कश्मीर में 2013 में हैदर फिल्म की शूटिंग के दौरान इरफान क्रू मेंबर से चर्चा करते हुए कहा करते थे कि इतनी खूबसूरत जगह को कैसे हिंसा की आग में झोंक दिया गया।
यूं तो इरफान खान को सन् 2018 में न्यूरोएंडोक्राइन ट्यूमर से पीड़ित होने का पता चला था। एक भयावह बीमारी। मगर इरफान भयभीत नहीं हुए। उन्होंने अपने एक साक्षात्कार में हंस कर कहा था,‘‘यह बीमारी मुझे मार भले ही दे लेकिन डरा नहीं सकती है।’’ यह आत्मविश्वास ही था जो उन्हें लंदन में ईलाज के दौरान अवसाद से घिरने नहीं दिया। वे लगभग स्वस्थ हो कर लौटे और फिल्म ‘अंग्रेजी मीडियम’ को पूरी करने में जुट गए। वे ‘शो ऑफ’ करने वाले अभिनेता नहीं थे। हॉलीवुड निर्देशक कॉलिन ट्रेवोर ने भी ट्वीट कर इरफान को श्रद्धांजलि दी है। 'इरफान खान को खोने का गहरा दुख है। एक विचारशील व्यक्ति जिसे आस-पास की दुनिया यहां तक कि दर्द में भी खूबसूरत लगती थीं।’ इरफान खान ने ट्रेवोर के निर्देशन में बनी फिल्म जुरासिक वर्ल्ड में सीईओ और मालिक साइमन मसरानी की भूमिका निभाई थीं। उन्होंने इस बात का बढ़-चढ़ कर ढिंढोरा नहीं पीटा कि उन्होंने हॉलीवुड की ‘‘जुरासिक वर्ल्ड’’ में लीड रोल किया था। वे सादगी पसंद थे। हंसमुख और किसी हद तक अंतर्मुखी। वे अपने दुख-कष्ट को दूसरों के सामने रोना पसंद नहीं करते थे। उनका उसूल था कि खुशी बांटने से खुशी मिलती है, तो खुशी ही बांटी जाए, दुख नहीं।
इरफान खान जन्म 7 जनवरी 1967 को जयपुर (राजस्थान) में हुआ था। उनके पिता का टायर का कोराबार किया करते था। इरफान ने एमए की पढ़ाई के दौरान ही दिल्ली के नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा में पढ़ाई के लिए स्कॉलरशिप हासिल कर ली थी। इरफान सन् 1984 से ही अभिनय के क्षेत्र से जुड़ गए। इरफान खान का अभिनय का सफ़र दिल्ली में थिएटर से आरम्भ हुआ। इसके बाद इरफान ने दिल्ली से मुंबई का सफर तय करने का फैसला लिया। मुंबई पहुंचकर ’चाणक्य’, ’भारत एक खोज’, ’सारा जहां हमारा’, ’बनेगी अपनी बात’, ’चंद्रकांता’ और ’श्रीकांत’ जैसे सीरियल में काम किया। थिएटर और टीवी सीरियल्स में काम करके इरफान अपनी पहचान हासिल कर ही रहे थे तभी फिल्ममेकर मीरा नायर ने अपनी फिल्म ’सलाम बॉम्बे’ में एक कैमियो रोल दिया, लेकिन जब फिल्म रिलीज़ हुई तो उनका शॉट काट दिया गया था।
इरफान खान का बॉलीवुड में कभी कोई गॉड फादर नहीं था। और ना ही उन्हें किसी और का कोई सपोर्ट था। इरफान ने अपने शुरुआती कैरियर में टेलीविजन धारावाहिकों से पहचान बनाई थी। लेकिन एनएसडी से पढ़ाई करने के बाद इरफान के सपने धारावाहिकों तक ही सीमित नहीं थे। उन्हें विश्व में ख्याति प्राप्त करना थी जिसके लिए उन्होंने कड़ी मेहनत की और अपना मुकाम हासिल किया।
इरफान खान का कहना था कि उनके कैरियर में उनके लिए सबसे बड़ी चुनौती उनका चेहरा था। अपने एक पुराने इंटरव्यू में इरफान ने खुद इस बारे में कहा था। इरफान ने बताया था कि शुरुआती दौर में उनका चेहरा लोगों को विलेन की तरह लगता था। वो जहां भी काम मांगने जाते थे, निर्माता और निर्देशक उन्हें खलनायक का ही किरदार देते। जिसके चलते उन्हें कैरियर के शुरुआती दौर में सिर्फ निगेटिव रोल ही मिले। लेकिन उनकी मेहनत और दमदार एक्टिंग ने इस चुनौती का सामना किया। इसके लिए उन्होंने छोटी बजट की फिल्मों में हाथ आजमाया जहां उन्हें हीरो के रूप में पहचान बनाने का मौका मिला।
इसके बाद साल 1990 में इरफान ने फिल्म ’एक डॉक्टर की मौत’ में काम किया। जिसेकी समीक्षाकारों ने बहुत प्रशंसा की। उसके बाद इरफान ने ’द वॉरियर’ और ’मकबूल’ जैसी फिल्मों में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उन्होंने पहली बार 2005 की फिल्म ’रोग’ में लीड रोल किया। उसके बाद फिल्म ’हासिल’ के लिए इरफान खान को उस साल का ’बेस्ट विलेन’ का फिल्मफेयर अवॉर्ड मिला। इरफान खान ने ’स्लमडॉग मिलियनेयर’ फिल्म में भी पुलिस इंस्पेक्टर का विशेष रोल निभाया। इस फिल्म को कई अवार्ड मिले। इसके बाद इरफान के लिए हॉलीवुड के दरवाज़े भी खुल गए। जहां उन्होंने तीन फिल्में कीं जिनमें एक थी ‘‘जुरासिक वर्ल्ड’’। इस बीच इरफान ने 23 फरवरी 1995 को एनएसडी ग्रेजुएट सुतपा सिकदर से शादी की और उनके दो बेटे बाबिल और अयान हुए।
इरफान खान ने अपने 30 साल के फिल्मी कैरियर में 50 से अधिक हिंदी फिल्मों में काम किया है। इरफान खान ने कई यादगार किरदारों को निभाया और हाल ही में उनकी फिल्म ’अंग्रेजी मीडियम’ रिलीज हुई थी। इरफान खान के कुछ खास रोल हैं जिनके लिए उन्हें हमेशा याद किया जाएगा। जैसे सन् 2001 में फिल्म ‘‘द वॉरियर’’ में इरफान खान की इस ब्रिटिश इंडियन फिल्म की कहानी सामंती राजस्थान के योद्धा की है जो युद्ध से मुंह मोड़ने की कोशिश करता नजर आता है. इस फिल्में उनका स्टाईल लोगों को बहुत भाया। सन् 2012 में ‘‘पान सिंह तोमर’’ में एथलीट से डैकेत बने एक शख्स की कहानी में उनका किरदार इतना जानदार था कि उसने बॉक्स ऑफिस पर धूम मचाकर रख दी। यह फिल्म एक ऐसे व्यक्ति के जीवन पर आधारित थी जो प्रतिभावान होते हुए भी परिस्थितियों के हाथों की कठपुतली बनता चला गया। मध्यप्रदेश के मुरैना में जन्में पान सिंह तोमर ने भारतीय सेना में नौकरी की। सूबेदार पद पर रहा। मगर घर, परिवार और गांव के प्रपंच ने उसे ऐसा फंसाया कि वह बागी डकैत बन कर चम्बल के बीहड़ों में उतर गया। उसे पकड़ने के लिए जब तत्कालीन मुख्यमंत्री अर्जुन सिंह ने पुलिस फोर्स को आदेश दिया था तब पानसिंह ने भी अर्जुन सिंह को चुनौती दे डाली थी। एथलीट पान सिंह तोमर, सात बार भारतीय राष्ट्रीय खेलों में स्वर्ण पदक जीता था। वह राष्ट्रीय स्तर का एथलीट था मगर उसकी किस्मत में लिखा था पुलिस एन्काउन्टर में मारा जाना। ऐसे पानसिंह तोमर का किरदार निभाने के लिए इरफान स्वयं चम्बल के बीहड़ों में गए। पान सिंह के रिश्तेदारों एवं परिचितों से मिले। उन्हें लगा कि ऐसे जीवट चरित्र को निभाने के लिए सिर्फ़ स्क्रिप्ट का सहारा नहीं लिया जा सकता है। यदि पात्र को जीवन्त करना है तो उसकी ज़मीन से जुड़ना होगा। उसके अनुभवों को महसूस करना होगा। बॉलीवुड में ऐसे विरले अभिनेता हैं जो अपने अभिनय के लिए अनुभव जुटाने निकल पड़ते हैं। इरफान की मेहनत रंग लाई। फिल्म ‘‘पानसिंह तोमर’’ सुपरहिट रही। इरफान खान को फिल्म ’पान सिंह तोमर’ के लिए नेशनल अवॉर्ड से सरफराज़ किया गया और साथ ही उन्हें भारत सरकार की तरफ से पद्मश्री अवॉर्ड भी दिया गया।
इरफान ने सन् 2013 में फिल्म ‘‘किस्सा’’ में एक ऐसा शख्स का रोल किया जो अपने वंश को आगे बढ़ाना चाहता है। इसके लिए वह कुछ भी कर गुजरने को तैयार है। इससे एकदम अलग, सन् 2013 में ‘‘द लंच बॉक्स’’ में उन्होंने ऐसे व्यक्ति का जीवन प्रस्तुत किया जिसकी पत्नी का निधन हो चुका है, और उसे वाया लंच बॉक्स एक विवाहिता से प्रेम हो जाता है। विलेन जैसे चेहरे वाले इरफान के लिए प्रेम का अंतर्द्वन्द्व अभिनीत करना बहुत बड़ी चुनौती थी लेकिन इस चुनौती को उन्होंने न केवल स्वीकार किया बल्कि रोल में ऐसी जान डाल दी कि हर मध्यमवर्गीय नौकरीपेशा व्यक्ति अपने आप में उस प्रेमी को तलाशने लगा।
’स्लमडॉग मिलेनियर’ में भी इरफान अपने अभिनय के दम पर सब पर छाए रहे। बहुत ही संवेदनशील घटना आरुषी हत्याकांड पर आधारित फिल्म ‘‘तलवार’’ में सन् 2015 में इरफान खान ने सीबीआई अफसर का किरदार बहुत ही कमाल के अंदाज में निभाया और इस पात्र को अविस्मरणीय बना दिया। यह एक सेमी निगेटिव रोल था मगर इरफान ने इसे बहुत ही पॉजिटिव तरीके से निभाया।
लंदन में ईलाज के दौरान अपने अनुभवों को इरफान लिखते रहे और अपने मित्रों, परिचितों से भी साझा करते रहे। उसी दौरान उन्होंने अपने थिएटर के जमाने के एक डॉयलॉग को ट्वीट किया था जिसमें उन्होंने कहा था कि जब मुझे मरने का एक सीन दिया गया तो उसे मैंने किया। उस पर समीक्षक ने लिखा कि ‘इरफान बहुत अच्छे ढंग से मरे।’ तब मैंने उन्हें फोन किया और कहा कि ‘‘मैं मरा नहीं, बस सोया हूं।’’ आज ऐसा प्रतीत होता है कि गोया इरफान खान अपने चाहने वालों के आंसू पोंछते हुए यही कह रहे हों कि ‘‘मैं मरा नहीं, बस सोया हूं।’’ निसंदेह इरफान खान अपने चाहने वालों के दिलों में हमेशा रहेंगे जीवित, क्योंकि अभिनेता कभी मरता नहीं है, वह जिन्दा रहता है अपने किरदारों में।
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*सागर (मध्यप्रदेश)*
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