Thursday, April 23, 2020

विश्व पुस्तक दिवस (23अप्रैल) पर विशेष लेख - किताबों की जादुई दुनिया - डॉ (सुश्री) शरद सिंह

web portal magazine हरमुद्दा.कॉम ने आज विश्व पुस्तक दिवस पर मेरा लेख "किताबों की जादुई दुनिया" अपने  दिनांक 23.04. 2020 के अंक में प्रकाशित किया है।
🚩हरमुद्दा.कॉम के प्रति हार्दिक आभार 🙏
आप इस Link पर भी मेरे इस लेख को पढ़ सकते हैं ...
https://harmudda.com/?p=17604
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विश्व पुस्तक दिवस (23अप्रैल) पर विशेष लेख -

*किताबों की जादुई दुनिया*
   *- डॉ (सुश्री) शरद सिंह*

       जिसने भी चार अक्षर का ज्ञान प्राप्त कर लिया हो वह किताबों की दुनिया में प्रवेश कर ही जाता है भले ही वह किताब आठ-दस पन्नों की  बुकलेट जैसी दुबली पतली किताब हो या कोर्स की जटिल अथवा साहित्य की मोटी-सी किताब हो । स्कूल के दिनों में अपनी किताबें होना बहुत सुखद अनुभूति देता है। स्कूल के दिनों में अपनी किताबों पर बड़े जतन से कवर चढ़ाना और उस पर अपना और अपनी कक्षा का नाम लिखना बहुत अच्छा लगता है। बचपन के दिन  स्कूली किताबों के अलावा  कॉमिक्स  और  बाल साहित्य  की पुस्तकों से  जुड़े रहते हैं। किताबों की दुनिया हमारे बचपन से ही हमें अपने आगोश में ले लेती है।  वह पुचकारती है, दुलारती है,  हमारी कल्पना शक्ति का विकास करती है  और हमें नित नई दुनिया से परिचित कराती है। वही समय होता है जब हम राजा-रानी के किस्से पढ़ते हैं, भूतों-प्रेतों के किस्से पढ़ते हैं, बहादुरी के किस्से पढ़ते हैं और अपने भय पर विजय पाते हुए अपने भीतर एक साहसी संसार गढ़ते हैं।
      स्कूल का समय पीछे छोड़ते हुए जब हम महाविद्यालय में पहुंचते हैं तो उस समय किताबों से भरे बस्ते का बोझ पीछे छूट जाता है और मिल जाती है किताबों की एक नई दुनिया, जो हमें पुस्तकालयों की ओर आकर्षित करती है। वह चाहे परंपरागत पुस्तकालय हो या आजकल के ऑनलाइन डिजिटल पुस्तकालय। किताबें पढ़ने की इच्छा कभी समाप्त नहीं होती। भले ही हम काग़ज़ पर छपी हुई पुस्तकें पढ़ें या कम्प्यूटर अथवा मोबाईल की स्क्रीन पर किताबें पढ़ें। भले ही हम समय अभाव में कम ही पढ़ पाएं, लेकिन अवसर मिलते ही किताबों की दुनिया में प्रवेश करने को उद्यत हो उठते हैं। महाविद्यालय जीवन वह फेज़ होता है जब हम रूमानियत से परिचित होते हैं। उस दौर में पढ़ाई की जरूरी किताबों के अलावा प्रेम और जासूसी से भरी रूमानियत वाली किताबें हमारी भावनाओं को कोमलता से परिपक्व बनाती रहती हैं। जिसका उस समय तो हमें अहसास नहीं होता है लेकिन वैचारिक परिपक्वता आने पर हमें अनुभव होता है कि हमने जो रूमानियत भरी किताबें अपने कॉलेज के जीवन में पढ़ी थीं उन्होंने हमें प्रेम से परिचित कराया और प्रेम को समझने तथा प्रेम को निभाने की क्षमता हमारे भीतर पैदा की। यह किताबें ही तो हैं जो जीवन की विभिन्न अनुभूतियों को हमारे भीतर जगाती हैं, पल्लवित-पुष्पित करती हैं और हमें विचार पूर्ण बनाती हैं। या यूं कहा जाए कि हमारे भीतर एक वैचारिक क्षमता पैदा करती हैं। ग़लत-सही को जांचने, जीवन को सुंदरतम रूप प्रदान करने की भावना भी हमें किताबों से ही मिलती है। पढ़ाई से जुड़ी किताबें जैसे कानून की किताबें हमें कानून सिखाती हैं, विज्ञान से जुड़ी किताबें हमें वैज्ञानिक तथ्यों से परिचित कराती हैं, इतिहास की किताबें हमें अपने अतीत से परिचित कराती हैं, उसी प्रकार साहित्यिक किताबें हमें भावनाओं और सम्वेदनाओं के साथ जीना सिखाती हैं।
          पाठकों के लिए किताबें अछूती अनुभूतियों का तिलस्म रचती हैं और उन्हें एक समानांतर दुनिया जीने का अवसर देती हैं। वहीं, एक लेखक (लेखिका) के लिए उसकी किताबें उसकी आकलन, अन्वेषण और अनुभूतिजनित अभिव्यक्ति का ख़जाना होती हैं। किताबें अकेलेपन को दूर करने वाली सच्ची  मित्र होती हैं। किताबों की दुनिया किसी जादुई दुनिया की तरह हमेशा हमें अपनी ओर आकर्षित करती है। किताबें वे हैं जिन्हें हम बैठ कर, लेट कर किसी भी मुद्रा में पढ़ सकते हैं, उनका आनंद उठा सकते हैं।  एक बार नाता जुड़ जाने के बाद किताबों से नाता  कभी नहीं टूटता है और यह नाता कभी तोड़़ना भी नहीं चाहिए ।
     अंत में सारांशतः मैं अपनी कविता की चंद पंक्तियों में किताबों की महत्ता व्यक्त कर रही हूं-
*बहुत  खूबसूरत  क़िताबों  की दुनिया*
*सवालों  में  जैसे   जवाबों  की दुनिया*
*है  सच्चाई  इसमें  जो  सारे  जहां की*
*इनमें ही शामिल है ख़्वाबों की दुनिया*
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सागर, मध्यप्रदेश


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