Thursday, May 16, 2024

बतकाव बिन्ना की | ट्रेंड कर रओ बेताल-पचीसी को नओ वर्जन | डाॅ (सुश्री) शरद सिंह | बुंदेली कॉलम

बुंदेली कॉलम | बतकाव बिन्ना की | डॉ (सुश्री) शरद सिंह | प्रवीण प्रभात
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बतकाव बिन्ना की
ट्रेंड कर रओ बेताल-पचीसी को नओ वर्जन 
   - डॉ. (सुश्री) शरद सिंह
       ‘‘जो लौं चुनाव को परिणाम ने आ जाए तब लौं मजो सो नईं आने।’’ भैयाजी तनक अकुलात से बोले।
‘‘अरे, आ जैहे रिजल्ट! ने घबड़ाओ आप!’’ भौजी ने भैयाजी से कई।
‘‘हम घबड़ा नोंई रए। बस, तनक कछू कमी-सी लग रई।’’ भैयाजी ने कई।
‘‘चलो, मैं आप ओरन खों बेताल-पचीसी की किसां सुना देत हौं। आप ओरन खों मूड ठीक हो जैहे।’’ मैंने भैयाजी औ भौजी दोई से कई।
‘‘बेताल-पचीसी की किसां? बोई वारी जोन पैले चंदामामा पत्रिका में छपत रई?’’ भैयाजी बोल परे।
‘‘हऔ, बोई वारी। बाकी मैं ऊको नओ वर्जन सुना रई।’’ मैंने कई।
‘‘नओ वर्जन? मने? बा तो बई किसां आए न, के राजा विक्रमादित्य पेड़ से लहास उतारत आएं औ तभई बा लहास को भूत मने बेताल कैन लगत आए के राजा बोलियो ने। जो तुमने बोलो सो हम फेर के पेड़ पे जा के लटक जैहें। फेर बा राजा को किसां सुनाऊत आए औ अखीर में कैत आए के जे किसां के सवाल को जवाब देओ ने तो तुमाए सर के टुकड़ा-टुकड़ा हो जैहें। सो, राजा खों बोलनई परत आए। इते राजा ने उत्तर दओ, औ उते बेताल राजा के कंधा से उड़ के फेर के पेड़ की डगरिया पे टंग जात आए। जेई किसां की बात कर रई ने तुम?’’ भैयाजी ने पूछी।
‘‘हऔ, जेई वारी किसां। जे ठीक ऊंसई आए जैसी बे अरब की किसां आएं ‘‘अरब की हजार रातें’’। अंग्रेजी में बे काउत आएं ‘‘वन थाउजंड एंड वन नाईट्स’’ औ मूल अरेबियन में कई जात आएं ‘‘अल्फ लायलाह-वा लायलाह’’। जोन टाईप से ऊमें रोज रात एक किसां सुनाई जात आए, ऊंसई बेताल-पचीसी में रोज रात को एक किसां बेताल सुनाऊत आए। मनो ईमें हजार किसां नोईं सिरफ पचीस किसां आएं। ईको लिखो रओ राजा के नौ रतन में से एक बेताल भट्टराव ने औ ईको संस्कृत में नांव रओ ‘‘वेतालपंचविंशतिः’’। मनो जे अरब की हजार रातन से कम नोईं।’’ मैंने भैयाजी खों बताई।
‘‘हऔ! सो तुमाओ इमें नओ बर्जन का आए?’’ भैयाजी ने पूछी।
‘‘आज के जमाना में अपन ओरन की समस्याओं से बड़ो कोनऊं बेताल-फेताल नोंई। कओ सई कई के नईं?’’ मैंने पूछी।
‘‘हऔ सई कई!’’ भैयाजी औ भौजी दोई संगे बोल परे।
‘‘औ आजकाल जो कऊं अखबार वारे समस्याओं के बारे में छाप देवें, सो छाप देवें, ने तो बाकी तो मों में दही जमाए बैठे रैत आएं। मनो जे अखबार वारे ठैरे राजा विक्रमादित्य। जे ओरे रोज रात खों कोनऊं ने कोनऊं समस्या को बेताल अपने कंधा पे लादत आएं औ संकारे सबरे ऊको पढ़ के एक कोनिया में ऐसे मेंक देत आएं मनओ उनें ऊ प्राब्लम से कोनऊं लेबो-देबो ई नइयां।’’ मैंने कई।
‘‘सई कै रईं बिन्ना!’’ भैयाजी बोले।
‘‘सो, चलो एक किसां सुनो आप ओरें! का भओ के एक बड़े शहर में एक बड़ो तला हतो। बा तला के सूकतई दिन बीतत रए। मनओ फेर बी बा बनओ रओ। काय से के ऊको एक बंजारा ने अपने बेटा-बहू को बलिदान दे के बनाओ रओ। सो, बा तला सोई बज्जर करेजा वारो निकरो। ऊ तला खों सबरी तरफी से काट-कूट के छोटो बी कर दओ गओ। फेर बी बा बनओ रओ। ऊके किनारे पे कब्जा बी करो गओ, फेर बी बा बनओ रओ। खैर जे तो बा तला को बज्जरपना हतो। अब रई पब्लिक की बात। बा तो ऐसी, के चिकनो घड़ो लजा जाए। ऊने सूके तला में किरकेट खेली, राई को नाच कराओ औ भरे तला में कवि गोष्ठियां कराईं। मनओ तला के अंसुवा कोनऊं खों ने दिखाने। बात इतई ने थमी। तला को उद्धार करबे के लाने ऊको सुकाओ गओ। ऊके करेजा पे एक कारीडोर बना दओ गओ। उते बा बंजारा की एक स्टेचू सोई ठाढ़ी कर दई गई। मनो जब तला को उद्धार होय तो बा स्टेचू की मों दिखाई होय। खैर, तला हतो तो पूरो पुरो डरो रओ। तीन-चार बरसातें आईं औ कढ़ गईं। मनो तला को गहरो ने करो गओ। ई दफा कछू जनों खों अपने पुराने दिन याद आए औ बे तसला गैंती ले के तला साफ करबे निकर परे। सो, भैयाजी अब आप जे बताओ के जो जे किसां अगर बेताल सुना रओ होतो तो बा राजा विक्रमादित्य से जेई पूछतो के पब्लिक खों तलसा ले के तला साफ करो चाइए के प्रशासन को घेराव करो चाइए कि अब लौं तला गहरो काय नई करो गओ? काय से के, जां आधुनिक मशीनों से सफाई की जरूरत आए उते चार जने मिल के कित्ती सफाई कर लैंहे? औ जो जे सफाई कर के प्रशासन को जगाबो चात आएं तो जो प्रशासन चालीस बरस में ऐसे प्रयासन से ने जागो, बा अब का जागहे? बाकी फोटू छपबे वारी बात जरूर हो जैहे के फलां-फलां ने तला को सफाई को अभियान चलाओ रओ। काम बिगारे प्रशासन औ सुधरवाबे के बजाए सुधारबे को डिरामा करे पब्लिक, का जे सई आए? राजन इस प्रश्न को उत्तर देओ ने तो तुमाए सर के टुकड़ा-टुकड़ा हो जैहें! जेई पूछत ने बेताल?’’ मैंने भैयाजी से पूछी।
‘‘हऔ, बिलकुल जेई पूछत।’’ भैयाजी बोले।
‘‘औ का बिन्ना! बे गपा गए करोड़ों रुपैया औ पब्लिक फिर रई तसला ले के। जे नईं के उनसे जवाब औ हिसाब मांगो जाए।’’ भौजी सोई बोल परीं।
‘‘बरहमेस जेई तो होत आए भौजी! देखो ने जो कोनऊं रोड पे गड्ढा हो जाएं तो प्रशासन उते ढूंकत बी नईयां औ अपन ओरन में से ई चार जने बा गड्ढा भरबे निकर परत आएं। बात तो जे होय के जोन को काम आए, उनई से कराओ जाए। अब बे जिम्मेदार सोई सोचत आएं के थक-थुका के पब्लिक खुदई सब कर लैहे, अपन काय कष्ट करें! है के नईं?’’ मैंने कई।
‘‘बिलकुल!’’ भैयाजी बोले।
‘‘सो भैयाजी आपने बताई नईं के जो बेताल ने राजा से पूछी होती के पब्लिक खों तला की सफाई खुद करो चाइए के प्रशासन से कराने चाइए? राजा ई प्रश्न को जवाब का देतो?’’मैंने भैयाजी से पूछी।
‘‘राजा जोई कैतो के जोन को जे काम आए ओई से कराओ जाओ चाइए। औ फेर होत का के बा बेताल फेर के जा के पेड़ पे टंग जातो।’’ भैयाजी हंस के बोले।
‘‘हऔ भैयाजी! बाकी आजकल तो बेताल हरों के लाने बी पेड़ नईं बच पा रए। अब तो बे कोनऊं ऊची बिल्डिंग के छज्जा पे लटके दिखात हुइएं। जो ऊंचे पुराने पेड़ हते, बे तो सबरे कटत जा रए। बेताल सोई बेघर भए जा रए। राजा हरें तांे मनो चुनाव लड़ के अपने लाने ठौर-ठिकाना ढूंढई लेत आएं, लेकिन बेताल खों तो सवाल पूछबे के संगे जो सोई सोचने परत हुइए के राजा के कंधा से उड़ के कां जा के लटकें? कओ सई बात आए के नईं?’’ मैंने भैयाजी से पूछी।
‘‘हंड्रेड परसेंट सई कई। हमें तो बा बेताल हरन के लाने दुख होन लगो।’’ भैयाजी बोले।
‘‘हऔ, बेताल हरन के लाने दुख करबे से पैले खुद अपन ओरन के लाने दुख कर लेओ। काय से के अपन ओरें सोई बज्जर भए जा रए। चाएं रोडें टेम पे ने बनें, चाएं अस्पतालों में दवा ने मिले, चाएं सबरे नाली-नरदा खुले डरे रएं पर अपन खों चूं नई करने। मनो जे नई बेताल पचीसी में सो अपनई ओरें राजा विक्रमादित्य आएं औ अपनई ओरें बेताल आएं। अपनई प्रश्न करत आएं औ अपनईं उत्तर देत आएं। बाकी जोन खों काम करो चाइए बे अपनई रागें दे रए।’’ भौजी ने मनो किसां पूरी कर दई।          
सो जे हती नओ वर्जन की बेताल-पचीसी। जे हर शहर में चल रई, जो तनक ध्यान से सुनो सो सुनाई पर जैहे। बा सोशल मीडिया की भाषा में का कहाऊत आए के ‘‘हैशटैग पे ट्रेंड कर रई’’। आप ओरें चाओ तो अपने-अपने इते की किसां ‘‘हैशटैग’’ लगा के ईमें जोड़ सकत आओ। बाकी बतकाव हती सो बढ़ा गई, हंड़ियां हती सो चढ़ा गई। अब अगले हफ्ता करबी बतकाव, तब लों जुगाली करो जेई की।
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