Tuesday, May 28, 2024

पुस्तक समीक्षा | डॉ. पन्नालाल जैन साहित्याचार्य के काव्य पक्ष को मुखर करता कविता संग्रह | समीक्षक डाॅ (सुश्री) शरद सिंह | आचरण

प्रस्तुत है आज 28.05.2024 को  #आचरण में प्रकाशित मेरे द्वारा की गई ब्रम्हचारी डी.राकेश जैन जी द्वारा संपादित काव्य संग्रह "वासंती बयार" की समीक्षा।
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पुस्तक समीक्षा
डॉ. पन्नालाल जैन साहित्याचार्य के काव्य पक्ष को मुखर करता कविता संग्रह
 - समीक्षक डाॅ. (सुश्री) शरद सिंह
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कविता संग्रह  - वासंती बयार
संपादक      - ब्र.डी.राकेश जैन
प्रकाशक      - साहित्याचार्य डॉ. पन्नालाल जैन स्मारक समिति, सागर, (मप्र)- 470002
मूल्य         - मुद्रित नहीं 
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डॉ. पन्नालाल जैन साहित्याचार्य संस्कृत साहित्य एवं जैन वांग्मय के उद्भट विद्वान के रूप में ख्यातिलब्ध रहे हैं। 5 मार्च 1911 को पारगुआं, जिला सागर में जन्मे डॉ. पन्नालाल जैन के जीवन आदर्श गणेश प्रसाद वर्णी जी रहे। उन्हें आचार्य श्री शिवसागर जी तथा आचार्य श्री विद्यासागर जी का भी मार्गदर्शन प्राप्त हुआ। वे एक उत्कृष्ट शिक्षक के रूप में भी जाने जाते थे। उन्हें आदर्श शिक्षक के रूप में उन्हें सन 1960 मैं राष्ट्रपति महामहिम डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद जी द्वारा तथा सन 1969 मैं राष्ट्रपति डॉ वराह व्यंकटगिरी के द्वारा सम्मानित किए गए थे। वे श्री गणेश दिगंबर जैन संस्कृत महाविद्यालय सागर के प्राचार्य रहे, श्री वर्णी दिगंबर जैन गुरुकुल जबलपुर के मानक निदेशक रहे तथा इसके साथ ही वे निरंतर जैन धर्म ग्रंथों का अध्ययन, चिंतन एवं मनन करते रहे। उन्हें संस्कृत का भी गहन ज्ञान था। सागर नगर का सकल समाज उन पर गर्व करता रहा है। 9 मार्च 2001 को सिद्ध क्षेत्र कुंडलपुर जिला दमोह में डॉ पन्नालाल जैन का देवलोक गमन हुआ तत्पश्चात उनके स्मरण में सागर में एक स्मारक समिति का गठन किया गया जिसका नाम रखा गया “साहित्याचार्य डॉ पन्नालाल जैन स्मारक समिति”। इस समिति द्वारा प्रतिवर्ष उनकी जन्म जयंती का आयोजन किया जाता है। 

जो व्यक्ति संवेदनशील है उसका हृदय काव्यमय होना स्वाभाविक है। डॉ पन्नालाल जैन जी भी एक अच्छे कवि थे। किंतु जैन वांग्मय तथा संस्कृत ग्रंथों के अनुवाद कार्य कि उनकी ख्याति के सम्मुख उनकी कविताएं लोगों की स्मृतियों में कहीं पीछे छूटती गईं। इस संदर्भ में ब्र. डी.राकेश जैन ने “वासंती बयार” नाम से डॉक्टर पन्नालाल जैन की कविताओं का संपादन करके एक कविता संग्रह प्रकाशित करने का महत्वपूर्ण कार्य किया है। इस संग्रह की सबसे बड़ी उपादेयता यह है कि साहित्याचार्य डॉ पन्नालाल जैन की विविध मनोभावों की कविताएं पाठकों को एक ही संग्रह में प्राप्त हो जाएंगी तथा पाठक उनके काव्य पक्ष को समग्रता से जान सकेंगे।

बाल ब्रह्मचारी डी.राकेश जैन ने साहित्याचार्य की कविताओं का संकलन किया है तथा उन्हें चार भागों में विषय अनुसार विभक्त कर प्रस्तुत किया है। इससे संग्रह की कविताओं को पढ़ते समय एक ही भावभूमि की कविताओं को अलग-अलग प्रति भाग में पढ़ने का आनंद प्राप्त होगा। इससे पाठकों को विषय के मर्म को समझने का भी पर्याप्त अवसर  मिलेगा। प्रथम भाग में प्रकृति से संबंधित कविताएं हैं दूसरे भाग में धर्म एवं दर्शन से संबंधित कविताओं को रखा गया है तीसरे भाग में सामाजिक सरोकार की कविताएं हैं तथा चैथे भाग में कवि के नितांत निजी अनुभव से उपजी कविताएं हैं। 
“प्राकृतिक”, “धार्मिक”, “सामाजिक” तथा “प्रकीर्णक” शीर्षक में विभक्त प्रत्येक भाग में 10-10 कविताएं संग्रहित हैं।

संग्रह की भूमिका शोध सहायक जैन विद्या संस्थान श्री महावीर जी के नेमिचंद्र पटोरिया तथा सागर के साहित्यकार शायर एवं पूर्वप्राचार्य डॉ. गजाधर सागर ने लिखी है। ‘‘डॉ. पं. पन्नालाल जी साहित्याचार्य द्वारा रचित हिंदी कविताओं पर एक दृष्टि” शीर्षक से भूमिका लिखते हुए नेमीचंद्र पटोरिया ने  लिखा है कि “जैन साहित्य-जगत् ने विद्वान् पं. जी की रंग-बिरंगी गद्य-विधा को देखा, पढ़ा और बहुमान सराहा है। किन्तु हिन्दी में रचित पद्य-विधा या काव्यधारा से साधारण ही नहीं, अनेक विज्ञजन भी अनभिज्ञ हैं। इसका एक कारण तो यह है कि उनकी हिन्दी कवितायें एक ग्रन्थ में गुम्फित नहीं हैं। ये कवितायें अनेक पत्र-पत्रिकाओं में स्फुट प्रकाशित होकर बिखरी पड़ी हैं। साथ ही अब एक लम्बे अरसे से उनकी लेखनी पद्य रचना प्रसूत करने में उदासीन सी हो गयी है। लगभग 40-45 वर्ष पूर्व उनकी तरुण उमंग ने अपनी पद्यरचना को जैसा संवारा और सजाया था, उसमें उनकी प्रतिभा, कविता के अंग-अंग से अंगड़ाइयाँ लेती प्रतीत होती है। पं. जी का कवि उपनाम ‘वसन्त’ हैं।’’

‘‘डॉ. पं. पन्नालाल साहित्याचार्य जी की हिन्दी कवितायें मानवीय मूल्यों पर आधारित जीवन्त कवितायें’’ शीर्षक से भूमिका लिखते हुए डॉ. गजाधर सागर ने साहित्याचार्य की कविताओं के मानवीय मूल्यों को रेखांकित किया है। उन्होंने लिखा है कि ‘‘अपनी सभी कविताएं पंडित जी ने ‘वसंत’ उपनाम से रची हैं। कविताओं में आप रस, छंद, अलंकार यथा उपमा, अनुप्रास आदि आप खूब पाएंगे। समस्त कविताएं कोई न कोई संदेश अवश्य देती हैं। वे कविताएं मानवीय मूल्यों को उजागर करती हुई सबके कल्याण की बात करती हैं।’’

संस्कृत के विद्वान होने के कारण डॉ. पन्नालाल जैन की हिंदी भाषा पर भी गहरी पकड़ थी। उनकी कविताओं में शब्दों का चयन मनोभावों को जिस सुगमता से प्रकट करता है उतना ही लालित्य भी स्थापित करता है। कवि का सरोकार वैश्विक समाज से है इसीलिए अपनी कविता “प्रभात स्वागत” में सोती हुई विश्व जनता को जागने की बात की है। पंक्तियां देखिए-
दिव्य बोधमार्तण्ड प्रभा से 
भव्यों के मनकंज खिलाओ। 
बिछुरे हुए बन्धु चक्रों को 
प्रेम सूत्र से शीघ्र मिलाओ ।
सोती हुई विश्व जनता को 
मीठे स्वर से सद्य जगाओ। 
नई चेतना उसमें भर के 
सब अलसाई दूर भगाओ। 

साहित्याचार्य कवि ‘वसंत’ भारत के गौरव को पुनर्स्थापित होते हुए देखना चाहते थे उन दिनों गुलामी का समय था और देश स्वतंत्रता के लिए संघर्ष कर रहा था । उन दिनों उनकी “उषा” शीर्षक से उनकी कविता 16 अगस्त 1937 धर्मदिवाकर में, 22 मई 1937 शान्ति सिन्धु एवं जैन सन्देश में प्रकाशित हुई। यह कविता संग्रह में शामिल है। इसमें कवि की उत्कट आकांक्षा देखिए-
क्या कभी भारत गगन में 
वह उषा की दिव्य आभा । 
कर निशा का अन्त सत्वर 
फिर दिखावेगी स्व शोभा ?

धार्मिक कविताओं के भाग में वीर प्रार्थना, आओ भगवान महावीर, दशधर्म पद्यावली, अनित्य भावना, एकान्त और अनेकान्त, जैनी नीति, आत्मभावना, बाहुबली अष्टक, महावीर तथा दशधर्म सवैया शीर्षक से कविताएं हैं। “दशधर्म पद्यावली” शीर्षक कविता में दशधर्म के महत्व को समझाते हुए कवि ने “उत्तम तप” के अंतर्गत लिखा है -
इच्छाओं पर विजय प्राप्त कर जो तप करते, 
सदा हृदय को सत्य शान्ति से वे ही भरते। 
तप से कर्म समूह दूर सद्यः हो जाते।।

सामाजिक सरोकार की कविताओं में एक व्यंग्य कविता है “समाज का अभाग्य”। इस कविता के माध्यम से कवि ने समाज में व्याप्त दुरावस्था पर करारा प्रहार किया है। यह ऐसी कविता है जो वर्तमान में भी प्रासंगिक है। कविता की कुछ पंक्तियां देखिए-
माता वियोग मांहि सुत के तड़पती रहे 
कूट कूट छाती को रोते रहे बूढ़े बाप। 
बच्चे अनाथ चाहे खाने को तरसते रहें 
नारी असहाय हो पाती रहें भूरि ताप ।
बालिका जवान नित्य नाँख नाँख उष्ण सांस 
देती रहें प्रात शाम चाहे विशाल शाप। 
‘‘वसन्त’’ कवि ठेकेदार कहाके अहिंसा के 
लड्डू उड़ाना पर करना न बन्द आप ।

चतुर्थ भाग “प्रकीर्णक” के अंतर्गत संग्रहित कविताओं में कवि की आशा अभिलाष तथा आकांक्षा के सप्तरंग दिखाई पड़ते हैं। “मेरा पुस्तक प्रेम” कविता में भी लिखाते हैं-
त्रिलोक का राज्य कवीश में अभी 
सभी तुम्हारे पद-पद्म में अहो ! 
लिये सदा के प्रिय ! सौंपता कहो 
नहीं-नहीं पुस्तक खोलता हूँ कभी।

आज समाज में गुरु शिष्य परंपरा का शरण होता जा रहा है। गुरुओं के प्रति सम्मान की भावना में कमी दिखाई देती है। ऐसे समय में साहित्याचार्य कवि “वसंत” की “स्वागत गान” शिक्षक कविता बहुत अधिक महत्वपूर्ण है जो उन्होंने अपने गुरु की वंदना करते हुए लिखी है-
हे धन्य गुरुवर ! लोकहितकर ! पापनाशक ! 
शुभमति अज्ञानतम के नाशने को सूर्य सम प्रज्ञापते !।
संसार में खोजा बहुत पर तुल्य तेरे है कहाँ ?
स्वागत तुम्हारा आज करते हम सभी मिलकर यहाँ ।

डॉ. पन्नालाल जैन साहित्याचार्य अर्थात कवि “वसंत” की 40 कविताएं इस काव्य संग्रह “वासंती बायार” में संग्रहित है। इस संग्रह की कविताएं भाषा शिल्प एवं देश काल की विशिष्टताओं से परिपूर्ण हैं। इन कविताओं को पढ़ा जाना परंपरागत संस्कारों से परिचित होने के समान है। यद्यपि यह कविताएं उपदेशात्मक नहीं अपित आग्रह करती हुई संदेशात्मक हैं। इन कविताओं के द्वारा संस्कृत विद्वान तथा जैन वांग्मय के अनुवादक एवं लेखक का काव्य पक्ष मुखर होकर सामने आता है। अतः यह काव्य संग्रह डॉ. पन्नालाल जैन साहित्याचार्य की सृजनात्मक एवं विचारों को जानने का एक उत्कृष्ट स्रोत है। इस काव्य संग्रह के संपादक ब्रह्मचारी डी. राकेश जैन साधुवाद के पात्र हैं। यह संग्रह पठनीय भी है और संग्रहणीय भी।         
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