Tuesday, May 21, 2024

पुस्तक समीक्षा | ‘प्रतिरोध का महाशंख’ अर्थात् सविनय अवज्ञा आंदोलन का काव्यात्मक स्वर | समीक्षक डाॅ (सुश्री) शरद सिंह | आचरण

प्रस्तुत है आज 21.05.2024 को  #आचरण में प्रकाशित मेरे द्वारा की गई डॉ शिवनारायण जी के काव्य संग्रह "प्रतिरोध का महाशंख" की समीक्षा।
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पुस्तक समीक्षा
‘प्रतिरोध का महाशंख’ अर्थात् सविनय अवज्ञा आंदोलन का काव्यात्मक स्वर
- समीक्षक डाॅ. (सुश्री) शरद सिंह
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काव्य संग्रह  - प्रतिरोध का महाशंख
कवि        - शिवनारायण
प्रकाशक     - अयन प्रकाशन, जे-19/39, राजापुरी, उत्तम नगर, नई दिल्ली-110059
मूल्य        - 340/-
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प्रतिरोध जीवन में संतुलन बनाए रखने का एक प्राकृतिक ढंग है। जब कहीं कुछ अनुचित अनुपयुक्त अथवा अनावश्यक होता दिखाई देता है तो न केवल संवेदनशील मन अपितु प्रकृति भी प्रतिरोध करने लगती है। पानी अधिक हो जाने पर पेड़-पौधे भी अपनी पत्तियां गिरने लगते हैं। यह उनका अपना प्रतिरोध का तरीका होता है। वे जताना चाहते हैं कि अब बस! उन्हें और अधिक पानी न दिया जाए! इसी तरह मानव जीवन में यदि अनाचार, अत्याचार और अव्यवस्था बढ़ जाती है तो मनुष्य भी प्रतिरोध करने की स्थिति में आ जाता है। यह बात और है कि कुछ लोग मुखर होकर सामने आते हैं और प्रतिरोध का शंखनाद करते हैं, वहीं कुछ लोग नेपथ्य में रहकर मूकदर्शक बने रहते हैंे, लेकिन उनके मन में भी प्रतिरोध की भावना मौजूद रहती है। वे अपनी भीरुता के चलते न तो सामने आते हैं और न समर्थन करते हैं किंतु प्रतिरोध का विरोध भी न करना उनकी ओर से एक तरह का समर्थन ही होता है। प्रतिरोध में जोखिम होता है इसलिए हर व्यक्ति में मुखर प्रतिरोध का साहस नहीं होता है लेकिन एक साहित्यकार जिसका सरोकार समाज से हो दलित, पीड़ित शोषित आमजन से हो वह हर प्रकार का जोखिम लेने के लिए तैयार रहता है। ऐसा साहित्यकार ही प्रतिरोध का शंखनाद कर सकता है। कवि, संपादक एवं आलोचक शिवनारायण का काव्य संग्रह अपने हाथ में प्रतिरोध का महाशंख थामें प्रकाशित हुआ है। इस काव्य संग्रह का नाम ही है “प्रतिरोध का महाशंख”।

      कवि के रूप में शिवनारायण ने हमेशा निर्भीकता से अपनी भावनाओं को प्रकट किया है। उनकी कविताएं उस औजार को गढ़ती हैं जो मन, मस्तिष्क पर चढ़ चुकी जंग की धूसर परत को छील-छील कर उतार सकता है। शिवनारायण की कविताएं उस कपास को उगाती हैं, जिससे कपड़ा बुनकर आईने पर चढ़ी धूल को पोंछा जा सकता है। शिक्षा, साहित्य, पत्रकारिता एवं समाजसेवा में समान रूप से दखल रखते हुए कवि शिवनारायण ने निरंतर साहित्य सृजन किया है। अब तक उनके पांच काव्य संग्रह सहित कथेतर गद्य, आलोचना, भाषाविज्ञान, पत्रकारिता आदि विधाओं में 46 पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं। बहुचर्चित साहित्यिक पत्रिका ‘‘नयी धारा’’ का विगत 32 वर्षों से सतत संपादन कार्य कर रहे हैं। हिंदी के प्राध्यापक के रूप में कार्य करते हुए उन्होंने अपने सृजनात्मक कार्यों को भी बनाए रखा है। राष्ट्रीय तथा अंतरराष्ट्रीय सम्मानों से सम्मानित होने के बावजूद वे स्वयं को हमेशा अपनी जमीन से जुड़ा हुआ पाते हैं। इसीलिए कहीं भी अन्याय अथवा असंतुलन दिखाई देने पर उनका मन विचलित हो उठता है और तब उनके कलम से प्रतिरोध की कविताएं फूट पड़ती है। किंतु इन कविताओं की यह विशेषता है कि ये किसी नारे का रूप धारण नहीं करती हैं। इनमें बहिष्कार है, ललकार है किंतु कठोर पथरीले शब्द नहीं हैं। कवि शिवनारायण पूरे धैर्य के साथ अपनी बात कहते हैं। इसीलिए उनकी प्रत्येक कविता में शब्दों का चयन और पंक्तियों का गठन एक अलग ही स्वर उत्पन्न करता है।

    संग्रह ‘‘प्रतिरोध का महाशंख’’ में संग्रहित कविताएं मनोभावों के विविध हा आयामों को प्रकट करती हैं। जैसे संग्रह की पहली कविता है ‘‘भोर’’। यह कविता वर्तमान में संवाद की विकृत होती दशा को बखूबी दर्शाती है। कविता की कुछ पंक्तियां देखिए -
मध्य रात्रि के बाद 
एकांत नीरवता में 
किसी ने किसी को फोन किया 
जवाब में - भोर का उजास फैलते ही 
अपने निर्मम घृणा के शब्दों से 
उसने उसका अजूबा सत्कार किया! 

संग्रह में एक कविता है ‘‘चिड़िया और जहाज’’। यह कविता साहस उन कथाओं का स्मरण कर देती है जो पूराख्यानों में मौजूद हैं। वह कथाएं जिनमें एक नन्हीं चिड़िया समुद्र से टक्कर लेती है और पर्वत को भी झुकने को विवश कर देती है। शिवनारायण की कविता में मौजूद नन्हीं चिड़िया आसमान में उड़ते जहाज यानी वायुयान को उसकी औकात याद दिलाने की जीवटता दिखाती है। इस कविता में चिड़िया जहाज से कहती है -
तुम मुझसे ही तो जुड़े हो 
मैं न होती, 
तो आज तुम होते भला! 
फिर अपनी विशाल काया 
और बर्बर शोर से मुझे 
क्यों आतंकित करते हो?

कवि शिवनारायण का चिंतन संबंधों का विश्लेषण भी करता है। एक पिता के लिए उसकी बेटी का बड़ा होना बहुत महत्व रखता है। “काँधे का स्पर्श” शीर्षक कविता में कवि ने बेटी के बड़े होने का संकेत करते हुए उसके पिता के कंधे तक आने का उदाहरण लिया है। प्रयास इस तरह के उदाहरण पुत्र के लिए ही प्रयुक्त किए जाते रहे हैं। पुत्री का बड़ा होना और पिता के कंधे तक आना यह उदाहरण मेरे संज्ञान में किसी कविता में प्रथम बार प्रयुक्त हुआ है। पिता के कांधे तक बेटी के आने से बेटी के बड़े होने का संकेत उपयोग में लाते हुए कवि शिवनारायण ने अपनी कविता में एक अनुठापन तो प्रस्तुत किया ही है साथ ही पिता और पुत्री के बीच की संवेदना को बड़े सुंदर ढंग से सामने रखा है -
हथेलियों में उगी बेटियाँ 
जब धरती पर उतर 
पिता के काँधे तक पहुँच जायें 
तो समझो
सृष्टि का एक चक्र पूरा हुआ !!

किसी भी व्यक्ति के जीवन में सबसे दुखद स्थिति होती है जब उसे अपना और अपने परिवार का पेट पालने के लिए अपनी मूल जमीन से कट कर कहीं दूर जाना पड़ता है। एक ऐसे बड़े शहर में जो उसके गांव से बिल्कुल अलग है जिसमें परायाापन कूट-कूट कर भरा हुआ है। ऐसे पराए वातावरण में संघर्ष करते हुए अपने जीवन को स्थापित करना ताकि वह अपने लोगों के जीवन को संवार सके, बड़े धैर्य का काम है। शिवनारायण ने भी अपनी कविता “जो छूट नहीं सकता” में ऐसे ही एक विदेशिया का अपने गांव और जमीन से जुड़ाव रेखांकित किया है-
छूटते ही रहे सदैव 
घर-परिवार, शहर 
जाने कहां-कहां से 
पर छूटते हुए भी हम 
किसी न किसी से 
जुड़ते रहे हमेशा ! 
जब भी कहीं से छूटे 
कहीं और जुड़कर कर लिया 
उस नए संसार में विलीन खुद को !

‘‘खिलखिलाती सत्ता’’ संग्रह की वह कविता है जो स्थितियों के दूषित होने तथा व्यवस्था के बिगड़ते जाने पर कटाक्ष करती है और एक विश्लेषणात्मक दृष्टि प्रस्तुत करती है-
जाने क्या हो गया मुझे 
अक्सर कोहरे में ढूंढ़ने लगता हूँ 
उस उत्फुल्ल चेहरे को 
जो रोशनी में कहीं नजर नहीं आता ! 

संग्रह की कविताओं में बढ़ते क्रम में प्रतिरोध का स्वर गहराता गया है अंतिम पृष्ठों की कुछ कविताएं उसे क्लाइमेक्स पर जा पहुंचती है जहां प्रतिरोध की धार तीक्ष्ण से तीक्ष्ण होती गई है। कविता “ये कैसी सरकार” की कुछ पंक्तियां देखिए-
सत्ता मद में चूर हो, उनका तन विकराल 
मीडिया करे चाकरी, सबका बेड़ा पार
गोली चले किसान पर, गिर जनता पर गाज 
छप्पन इंच का सीना, है योगी का राज
भगवा पताका लिखकर, न कर इसका विश्वास 
हिन्दू-हिन्दू जाप कर, करे दलित का नाश
करे धर्म के नाम पर, अधर्म का व्यापार 
विरोध पर हमला करे, ये कैसी सरकार

संग्रह का ब्लर्ब सुप्रसिद्ध कवयित्री अनामिका ने लिखा है। उनका यह कथन सटीक है कि ‘‘इन कविताओं में अभिधा की सादगी तो है ही, लक्षणा- व्यंजना की कौंध भी है। बिजली की कौंध रास्ता प्रकाशित न भी करे, पर इसका अहसास तो दिला ही जाती है, कि अंधेरा कितना घना है।’’ वस्तुत: कवि शिवनारायण की कविताएं एक सविनय अवज्ञा आंदोलन की भांति हैं, जो प्रतिरोध करती है किंतु किसी को नीचा दिखाने का प्रयत्न नहीं करती बल्कि आईना दिखाने का कार्य करती है। इस संग्रह की सभी कविताएं पढ़े जाने योग्य तथा मनन-चिंतन योग्य हैं।             
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