Wednesday, May 29, 2024

चर्चा प्लस | श्रीराम को छाया देने वाले वृक्ष आज कहां हैं? | डाॅ (सुश्री) शरद सिंह | सागर दिनकर

चर्चा प्लस   
श्रीराम को छाया देने वाले वृक्ष आज कहां हैं?
    - डाॅ (सुश्री) शरद सिंह                                                                                        
      हम श्रीराम के प्रति अगाध श्रद्धा रखने का दावा करते हैं। हम यह जानने को उत्सुक हैं कि जब श्रीराम सीता और लक्ष्मण सहित वनवास के लिए अयोध्या से निकले तो वे किन मार्गों से होकर लंका तक पहुंचे थे? इसीलिए श्रीराम के वन जाने का मार्ग खोजने का अभियान भी चलाया गया। बहुत कुछ सफलता भी मिली किन्तु एक कड़वा सच भी सामने आया कि हमने उन वृक्षों के साथ अमानवीयता बरती है जिन्होंने श्रीराम को वनगमन के दौरान शीतल छाया प्रदान की थी। आज हम गर्मी की प्रचंडता से घबराए हुए हैं, किन्तु हम सहानुभूति के पात्र नहीं हैं क्योंकि न हमने श्रीराम के वनगमन के उद्देश्य को समझा और न ‘‘रामायण’’ में उल्लेख किए गए वृक्षों का ध्यान रखा।
       ग्लोबल वार्मिंग कोई मिथक विचार नहीं है। वैज्ञानिक दशकों पहले से इसकी चेतावनी देते आ रहे हैं। ग्लोबल वार्मिंग का अर्थ है पृथ्वी का तापमान बढ़ना। पृथ्वी का तापमान बढ़ने से ग्लेशियर्स का पिघलना तेज होता जा रहा है। इससे एक ओर महासागरों का जलस्तर बढ़ रहा है तो दूसरी ओर पीने योग्य पानी के जलस्रोतों का जलस्तर घटता जा रहा है। जब अतिवृष्टि होती है, अति ठंड पड़ती है या अति गर्मी पड़ती है तो हम प्रकृति को कोसते हैं। लेकिन अपने गिरेबान में झांक कर नहीं देखते हैं कि इन सबके लिए हम मनुष्य ही जिम्मेदार हैं। वस्तुतः हम ऐसी आत्ममुग्धता से घिरे हुए प्राणी हैं जो स्वयं को सर्वश्रेष्ठ मान कर पृथ्वी पर मौजूद सभी जड़-चेतन के लिए संकट बढ़ाते जा रहे हैं। बात कहने में कठोर लग सकती है किन्तु सच्चाई यही है कि हम स्वयं को रामभक्त कहते हैं किन्तु यह क्यों नहीं समझ पाते हैं कि श्रीराम ने वनगमन को क्यों स्वीकार किया? महर्षि वाल्मीकि को क्या आवश्यकता थी कि वे वनगमन मार्ग के वृक्षों का उल्लेख अपने ग्रंथ में करते? वे तो श्रीराम की कथा लिख रहे थे, उन्हें प्रकृति-वर्णन की आवश्यकता क्या थी? यदि हम पल भर भी ठहर कर विचार करें तो हम इन प्रश्नों के उत्तर बड़ी आसानी से पा सकते हैं। हम मानते हैं कि श्रीराम एक अवतार थे। उनका जीवन एक ऐसी लीला थी जो शेष मनुष्यों को उचित ज्ञान दे सके। इसीलिए उन्होंने वनमार्ग को स्वीकार किया। वे जानते थे कि उनका वनमार्ग से गुजरना युगों-युगों तक वनसंपदा के प्रति मनुष्यों को जागरूक बनाए रखेगा।

महर्षि वाल्मीकि ने ‘‘रामायण’’ में ऐसे अनेक वृक्षों के नामों का उल्लेख किया है जिनके निकट से हो कर श्रीराम गुजरे थे अथवा उन्होंने उनकी छांह में विश्राम किया था अथवा जिनके बीच उन्होंने पर्णकुटी बना कर कुछ समय निवास किया था। महर्षि वाल्मिीकि भी शायद यही चाहते रहे होंगे की आने वाली पीढ़ियां उन वृक्षों से परिचित रहें और उनका संरक्षण एवं संवर्द्धन करें जिन्हें श्रीराम ने देखा था अथवा जिनकी छाया में उन्होंने विश्राम किया था। तब महर्षि वाल्मीकि को भी अनुमान नहीं रहा होगा कि कलियुग में मानव वृक्षों के प्रति इस तरह अमानवीय हो उठेगा कि उन वृक्षों को भी काटने से नहीं हिचकेगा जिनकी पूर्व पीढ़ी ने श्रीराम को साक्षात देखा था। महर्षि वाल्मिीकि नहीं जानते थे कि कलियुग में मनुष्यों में इतना दोहरापन आ जाएगा कि वह ईश्वर को मानने का धर्मांता की सीमा तक दावा तो करेंगे किन्तु उसके दिखाए मार्ग पर चलने के बारे में सोचेंगे भी नहीं, बल्कि उसके चले हुए मार्गों के चिन्ह ही मिटा देंगे।  

‘‘रामायण’’ एक ऐसा महाकाव्य है जिससे पूरा विश्व परिचित है। इस महाकाव्य में मूल कथा तो श्रीराम और सीता की है, लेकिन यह ग्रंथ उस समय के पेड़-पौधों के बारे में भी ज्ञान देता है। यह तो सभी जानते हैं कि जब श्रीराम वनवास गए तो सीता और लक्ष्मण भी उनके साथ गए थे। रास्ते में उनकी मुलाकात शबरी से हुई। शबरी ने अपने बेर तोड़े और श्रीराम को खिलाए। शबरी चाहती थीं कि जो बेर उन्होंने श्रीराम को खिलाए उनमें से कोई भी बेर खट्टा न हो। इसलिए उन्होंने चखकर बेर इकट्ठा किए और जब उनकी मुलाकात श्रीराम से हुई तो उन्होंने उन्हें अपने मीठे लेकिन झूठे बेर खिलाए। इस विवरण से पता चलता है कि उस काल में भी बेर के पेड़ पाये जाते थे। आज बेर के पेड़ कम होते जा रहे हैं। आधुनिक निर्माण के विस्तार ने बेर के पेड़ को हाशिए पर ला दिया है।

इसी तरह एक और पेड़ है जो ‘‘रामायण’’ पढ़ने वाले लगभग सभी लोगों को याद है। ये पेड़ है अशोक का वृक्ष़। जब रावण ने छल से सीता का हरण कर लिया था तो उसने सीता को अपने महल के बगीचे में अशोक के वृक्ष़ के नीचे रखा था। इसी संदर्भ में अशोक वृक्ष के आकार को लेकर भी एक रोचक घटना का उल्लेख मिलता है। जब वानर राजकुमार हनुमान सीता का पता लगाने के लिए लंका पहुंचे तो उन्होंने सीता माता को अशोक वृक्ष के नीचे बैठे देखा तो वे वृक्ष पर चढ़ गये और पत्तों में छिपकर बैठ गये। जब वे पहरेदारों से छिपकर सीता को श्रीराम का संदेश देने के लिए वृक्ष से नीचे उतर रहे थे तो उनका पैर फिसल गया, जिससे अशोक वृक्ष की एक तरफ की शाखाएं टूट गईं। किंवदंती है कि उस समय से अशोक वृक्ष की एक तरफ कोई शाखा नहीं रहती है। आज अशोक वृक्षों के लिए मंदिर परिसर के अलावा कम ही जगह बची है। कहीं-कहीं काॅलोनियों या होटल परिसर में में अशोक वृक्ष लगा भी दिए जाते हैं तो उन्हें कांट-छांट कर उनसे उनका प्राकृतिक विकास छीन लिया जाता है।  

वाल्मिकी रामायण में 182 प्रकार के पेड़-पौधों का वर्णन है। वाल्मिकी रामायण के प्रथम बालकाण्ड के सर्ग 24 से 27 में ‘‘ताड़का वन’’ का उल्लेख मिलता है। यह वन गंगा और सरयू नदियों के संगम के पूर्व में ताड़का नामक राक्षसी द्वारा आतंकित था और राक्षसी ताड़का के नाम से जाना जाता था। यह माना जाता है कि ताड़का वन वर्तमान बिहार के भू-भाग में था। यद्यपि कुछ लोग इसे पश्चिम बंगाल में गंगा के मैदानी इलाकों के नम पर्णपाती वनों से भी जोड़ कर देखते हैं, जहां धातकी, साल, इंद्रजौ, पाटला, बिल्व, गैब, कुटज, अर्जुन, तेंदू जैसे घने पेड़ बहुतायत में उगते थे। इसी प्रकार अरण्य कांड के 1 से 11 सर्गों में श्रीराम द्वारा दण्डकारण्य क्षेत्र में गमन के दौरान मिले विभिन्न आश्रमों एवं तीर्थों के उल्लेख में जामुन, बकुल, चम्पा के वृक्षों के साथ-साथ ऊंचे-ऊंचे साल वृक्षों वाले नम पर्णपाती वन क्षेत्र का वर्णन है। जो आज भी पूर्वी मध्य प्रदेश में पाया जाता है। यही विशेषता छत्तीसगढ़ और निकटवर्ती महाराष्ट्र, उड़ीसा और आंध्र प्रदेश के जंगलों की भी है। जिससे अनुमान लगाया जा सकता है कि श्रीराम इन वनों से हो कर गए थे।

अरण्यकांड के 15वें सर्ग में गोदावरी के तट पर सह्याद्रि पर्वत में पंचवटी वनों का उल्लेख है, जिसमें पश्चिमी घाट की ऊंची चोटियों के साथ घास के मैदानों में मिश्रित पर्णपाती वनों का उल्लेख है। जहां नदी के तट पर खजूर, ताल के वृक्ष हैं, मैदान में कुश, काश, बांस, आम, कदम्ब, कटहल, शमी, बेर हैं तथा पर्वतों में विविध पुष्पों की लताओं से लदे हुए वन का वर्णन है। साल, पाटला, चंदन, पुन्नाग, अशोक के पेड़ों का भी उल्लेख है। यह विवरण आज भी महाराष्ट्र के पश्चिमी घाट के पाश्र्व पहाड़ी ढलानों के मुख्य भौगोलिक दृश्यों ये मेल खाताहै।
रामायण में अयोध्या कांड के सर्ग 54 से 55 तथा सर्ग 95 में प्रयाग से चित्रकूट तक वन मार्ग का वर्णन मिलता है, जिसमें और भी दूर यमुना नदी के तट पर बांस तथा नरकट के वन हैं। किनारों पर बरगद, नीम, आम हैं, कटहल के पेड़ों की सघनता वाले शुष्क पर्णपाती जंगल और फिर चित्रकूट की पहाड़ियों में साल के पेड़ों के नम पर्णपाती जंगल का उल्लेख है। इसके साथ ही इन वनों में विभिन्न प्रकार की कंदीय प्रजातियों के पौधों की प्रचुरता का भी उल्लेख मिलता है, जो आज भी प्रयाग से यमुना नदी के दक्षिण में उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश के विंध्याचल वनों की विशेषता है। अयोध्या काण्ड 55 के अनुसार प्रयाग से चित्रकूट के रास्ते में एक बरगद का पेड़ था, जिसका दर्शन श्रीराम ने अपने वनवास के दौरान किये था। नासिक में पांच बरगद के पेड़ों का एक समूह है जिसे पंचवटी के नाम से जाना जाता है जहाँ श्री राम, लक्ष्मण और देवी सीता अपने वन निर्वासन (नासिक पंचवटी, नासिक जिला, महाराष्ट्र) के दौरान रुके थे।

अरण्यकांड के 75वें सर्ग में ऋष्यमूक पर्वत और पंपासरोवर का वन क्षेत्र का उल्लेख है जो वर्तमान कर्नाटक में है और पश्चिमी घाट पर्वत के उष्णकटिबंधीय वर्षा वनों के साथ-साथ किनारे पर पर्णपाती वन भी हैं। जिसमें झील में मौजूद कमल, विभिन्न किस्मों के कुमुदनी, किनारों पर ताल के पेड़ के साथ-साथ कुश, काश, बांस, आम, कदंब, तिलक, केला, कटहल, बकुल, मैदानी इलाकों में चंपा और साल, पाटला, चंदन, पुन्नाग शामिल थे। पर्वतों में अशोक के वृक्षों के साथ-साथ जूही, मालती, मोगरा आदि विभिन्न पुष्पों की लताओं से लदे वन थे।
रामायण में ही एक और कथा है जिसमें श्रीराम ने साल वृक्ष की ओट ली थी। किष्किंधा राज्य में पंपा नदी के निकट वानरों का राज्य था। बाली और सुग्रीव दो भाई थे जो किष्किंधा के राजा के पुत्र थे। दोनों के बीच राज्य को लेकर विवाद हो गया। सुग्रीव बाली को परास्त करने में असमर्थ थे। उसी दौरान वन जाते समय उनकी भेंट श्रीराम से हुई। उस समय तक रावण सीता का हरण कर चुका था और श्रीराम सीता की खोज कर रहे थे। तब सुग्रीव ने श्रीराम की मदद करने का वादा इस शर्त पर किया कि राम पहले उनकी मदद करें। उन्होंने राम से बाली को मारकर राज्य देने की प्रार्थना की। तब श्रीराम ने देखा कि बाली एक अत्याचारी राजा था, इसलिए उसके मारे जाने पर प्रजा को कोई हानि नहीं होगी। इसीलिए जब बाली और सुग्रीव आपस में लड़ रहे थे तो श्रीराम ने साल वृक्ष के पीछे छुपकर बाली पर तीर चलाया और उसे मार डाला। यद्यपि श्रीराम का यह कृत्य उचित नहीं माना जाता है, लेकिन इस कथा से पता चलता है कि वहां साल वृक्षों का घना जंगल है।

जब हम ‘‘रामायण’’ अथवा रामकथा का कोई भी ग्रंथ पढ़ते हैं तो क्या कभी सोचते हैं कि आज उन वृक्षों की क्या स्थिति है जिनका उल्लेख श्रीराम के काल में मिलता है? सच तो यह है कि अकसर हमारा ध्यान ही नहीं जाता है इन वृक्षों के उल्लेख के बारे में। हम श्रीरामकथा को पढ़ते समय उनकी ईश्वरीय शक्ति को ही ध्यान में रखते हैं जिससे उनकी स्तुति कर के हमें तात्कालिक व्यक्तिगत लाभ मिल सके। श्रीराम के वनगमन के मार्ग को ढूंढने में विविध भौगोलिक साक्ष्यों के साथ प्राचीन साहित्य का भी सहारा लिया गया। यदि जंगलों की अंधाधुंध कटाई न की गई होती तो अकेले ‘‘रामायण’’ में ही उल्लेख किए गए वृक्षों के ज्ञान के सहारे श्रीराम के वनगमन का मार्ग आसानी से ढूंढा जा सकता था। यह भी विचारणीय है कि श्रीराम ने एक सामान्य मनुष्य की भांति प्रकृति अर्थात वनमार्ग चुना क्योंकि वे वनसंपदा और वृक्षों की वंश परंपरा को सुरक्षित रखना चाहते थे। वे जानते थे कि वे सीता और लक्ष्मण के साथ जिस मार्ग से गुजरेंगे उस मार्ग की वनसंपदा के प्रति लोगों में स्नेह और श्रद्धा रहेगी। आज हम वंश परंपरा को तो मानते हैं किन्तु दूषित तरीके से। मात्र अपने कुल, परिवार के वंश बढ़ाने के लिए एक पुत्र की कल्पना करते हैं और इस चक्कर में पुत्रियों तक की अवहेलना कर देते हैं। ऐसी सोच के चलते वृक्षों की वंश परंपरा को बचाने के बारे में चिंता करने का तो सवाल ही नहीं उठता है। बस, जब गर्मी के मौसम में पारा 50 डिग्री को पार करने लगता है और हमें आसमान से आग बरसती हुई प्रतीत होती है, तभी हमें वृक्षों की कमी महसूस है। मौसम बदलते ही हम वृक्षों के प्रति पहले की तरह उदासीन और क्रूर हो जाते हैं। इसका प्रत्यक्ष उदाहरण है कि जैविक ईंधन फूंकती हुई हमारी गाड़ियों के लिए रास्ता चैड़ा करने के दौरान सौ-दो वर्षों की आयु के पुराने पेड़ काटे जाते हैं औरे हम ‘उफ!’ भी नहीं करते हैं। यदि हमने ‘‘रामायण’’ में उल्लेख किए गए वृक्षों के महत्व को ध्यान दिया होता कि वे वृक्ष ही थे जिन्होंने श्रीराम, सीता और लक्ष्मण को छाया और आश्रय प्रदान किया, तो शायद वृक्षों की बेतहाशा कटाई करते समय हमारे हाथ कांपते जरूर और हम ग्लोबल वार्मिंग से भी अपनी पृथ्वी को बचाने में अपना योगदान दे पाते।  
        --------------------------
#DrMissSharadSingh #चर्चाप्लस  #सागरदिनकर #charchaplus  #sagardinkar #डॉसुश्रीशरदसिंह 

No comments:

Post a Comment