Thursday, May 30, 2024

बतकाव बिन्ना की | जो नौतपा नोईं, सूरज देवता की थर्ड डिग्री आए | डाॅ (सुश्री) शरद सिंह | बुंदेली कॉलम

बुंदेली कॉलम | बतकाव बिन्ना की | डॉ (सुश्री) शरद सिंह | प्रवीण प्रभात
------------------------
बतकाव बिन्ना की
जो नौतपा नोईं, सूरज देवता की थर्ड डिग्री आए 
   - डॉ. (सुश्री) शरद सिंह
       आज संकारे से भौजी को फोन आओ। बे कैन लगीं के ‘‘बिन्ना तुमाए पास बुखार उतारबे की कोनऊं गोली होय सो बताओ, हम आ जाएं लैबे।’’
‘‘कोन खों बुखार आ गओ?’’ मैंने पूछी।
‘‘तुमाए भैयाजी खों!’’ भौजी ने बताई।
‘‘अरे, सो मैं आ रई गोली ले के। आप परेसान ने हो।’’ मैंने भौजी से कई।
‘‘अरे नई बिन्ना, तुम ने निकरो बाहरै! कऊं तुमें सोई लपट लग गई तो बड़ी मुस्किल हो जैहे। तुम घरे रओ! हम आ रए लैबे।’’ भौजी बोलीं।
‘‘अरे, आप ने घबराओ, अबे इत्ती धूप ने चढ़ी। अबे तो आठ बजे आएं।’’ कै के मैंने फोन बंद करो औ तुरतईं बुखार उतारबे वारी गोली ढूंढी औ भैयाजी के इते जा पौंची।
‘‘इने आपने पना नईं दऔ का?’’ मैंने पौंचतई साथ भौजी से पूछी।
‘‘पना बी दओ औ संगे हाथ-गोड़े में प्याज को रस सोई मलो। हम तो इनसे कै रए हते के दो-चार बेर आप आम औ पुदीना को पना पी लेओ, सो बिलकुल ठीक हो जैहो। पर इने तो बुखार उतारबे की गोली खाबे की परी।’’ भौजी बतान लगीं।
‘‘सो का भओ! गोली से तनक आराम मिलहे। बाकी आप जो दे रईं वोई सई आए।’’ मैंने भौजी से कई। फेर मैं भौजी खों बतान लगी,‘‘जब मैं लोहरी हती तो मोरी नन्ना जू सुई-तागा में प्याज पिरो के बाजू में ताबीज घांईं बांध देत्तीं। बा तनक बसात तो हती, पर लू से सोई बचात्ती।’’
‘‘औ का अपने देसी नुस्खा खूबई काम के रैत आएं। इनको कोनऊं साईड इफैक्ट बी नईं होत।’’ भौजी बोलीं।
‘‘हऔ, एक बड़ों गजब को नुस्खा आए, के जोन को अधकपारी मने आधे मूड़ की पीरा हो रई होय, बा संकारे से जलेबी खा ले सो मूड़ की पीरा ठीक हो जात आए।’’ मैंने भौजी को बताई।
‘‘तुमें पता? मट्ठा में गुड़ डार के पीबे से हाजमा सही हो जात आए।’’ भौजी बोलीं।
‘‘हऔ, अजवाईन खों उबाल के ऊको पानी पीबे से सोई अफरा ठीक हो जात आए।’’ मैंने बी कई।
‘‘तुम दोई खों अपनी-अपनी डाॅक्टरी सूझ रई, हमाई फिकर दोई को नईयां।’’ भैयाजी रिसात भए बोले।
‘‘ऐल्लो! जो आपकी फिकर ने होती तो का मोय करिया कुत्ता ने काटी रई के मैं इत्ती गरमी में आपके लाने बुखार उतारबे वारी गोली ले के भगत आई।’’ मैंने सोई भैयाजी खों तनक हड़काओ, ‘‘अरे, तनक-सी लू लगी आए, ओई में नखरा पेल रए।’’
‘‘हऔ, औ बा बी ठीक-सी हो गई आए।’’ भौजी बोलीं। फेर बतान लगीं, ‘‘काल जब हमने इनसे कई रई के दुफारी को कऊं ने जाओ नौतपा लगे आएं, सो हमाई बात ने मानीं। कैन लगे के हमाओ दोस्त आओ बिदेस से ओसे मिलबे जाने। का पता फेर कब भेंट होय। जे ऊके इते गए, सो बे धनी एसी में सो रए हते। इने देख के उने कोई खुशी ने भई। ऊने मन मार के इने तनक देर बैठाओ औ फेर मूड़ पिरा रओ को बहानो कर के इने टरका दओ।’’
‘‘कऊं नईं, ऐसो नई भओ। ऊने टरकाओ नईं, ऊको सई में मूड़ पिरा रओ हतो।’’ भैयाजी अपनी छिपाबे के लाने ऊको पक्ष लेन लगे।
‘‘हऔ, चलो जे ई सई, पर आप खों तो ने रोको, औ दुफारी की लपटन में अपने घरे से लौटन दओ। जो आपको सई को दोस्त होतो तो आपको सोई अपने इते संझा लों रोक लेतो।’’ भौजी ने खरी-खरी कै दई।
‘‘अब बा सब छोड़ों, तुम सोई कां की ले बैठीं। लू-लपट लगने हती, सो लग गई। जो भुगतबे को लिखो रैत आए, सो भुगतनेई परत आए।’’ भैयाजी बात बदरवाने के लाने बोले।
‘‘गर्मी सो दिन ई दिन बढ़त जा रई। औ बढ़े काए न, पेड़ काट डारे, कुआ-तला सुका डारे, अब गर्मी ने पड़हे सो का पड़हे?’’ मैंने भैयाजी से कई।
‘‘अरे बिन्ना इत्तई नईं, जे पहड़ियां खोद-खोद के गढ़ा बनाए डार रए। सब कछू उलट-पलट होत जा रओ।’’ भैयाजी बोले।
‘‘जेई तो बात आए भैयाजी! आपई सोचो के जोन गरम हवाएं राजस्थान से अपन ओरन के तरफी आत्तीं तो जे जंगल, पहाड़ उने छेंक लेत्ते। इते आउत-आउत बे तनक ठंडी हो जात्तीं। अब का आए के, जोन जे चार लेन, आठ लेन के हाईवे बना दए गए, बोई हाईवे पे जे गरम हवाएं सोई सरपट दौड़त आऊत आएं। मनो बिकास के लाने जे हाईवे जरूरी आएं, पर ऊ जमीन के जित्ते पेड़ काटे गए का उत्ते ऊके आस’पास लगाए गए? कऊं कनेर लगे, तो कऊं बोगनबिलिया लगीं। देखत में नोंनी भले लगें, पर बे वृक्षन जैसी ने तो छाया दे सकत आएं औ ने लपटन वारी हवाओं खों ठंडी कर सकत आएं। काय से के बे सब लगाए गए डिवाईडर पे औ उने कर दओ गओ मुंडी-कट।’’ मैंने भैयाजी से कई।
‘‘हऔ बिन्ना! हमें तो जे लगत आए के अब कऊं कोनऊं पेड़ कटत आए तो कोऊं बिरोध नईं करत आए। पैले बो कोन सो आंदोलन चलो रओ, अरे उते उत्तराखंड मे, जोन में उते के लोग पेड़ से चिपट के ठाड़े हो जात्ते, के जो अब तुमें आरी चलाने तो पैले हमें काटो, फेर पेड़ काटियो।’’ भैयाजी बोले।
‘‘ऊको नांव हतो चिपको आंदोलन। सुंदरलाल बहुगुणा ऊके नेता हते। उनई ने गढ़वाल क्षेत्र में बा आंदोलन चलाओ रओ। अब बो टाईप के लोगन की सोच ने रई। अब तो जे आए के कां प्लाट ले लओ जाए, कां मकान बना लओ जाए, कां फारम हाऊस बना लओ जाए। चाए फारम जोग जमीन पे प्लाटिंग करत जा रए, मनो फारम हाउस चाउने। जे नईं सोचत आएं के निंदा रैबे के लाने हवा, पानी, अनाज पैले चाउने, बाकी सब सो बाद में।’’ मैंने कई।
‘‘हऔ बिन्ना! जो गरमी पड़त आए सो सब खों पेड़ कटबे को मलाल होत आए, औ जोन गरमी गई, सो फेर पेड़ की सुरता कोनऊं खों नईं रैत। कल की अब हम का बताएं तुमें, ऐसो लग रओ हतो के आसमान से आग बास रई होय। औ जमीन से झार छूट रई हती। रामधई ऐसो लग रओ हतो मनो कोनऊं भट्ठी में घुंस गए होंए। सांस लेन में करेजा तक तपो जा रओ हतो। जेई में तो लपट लग गई। जबके हम घरे से पना पी के निकरे हते। मनो सूरज भगवान सो भुट्टा सो भून रए हते।’’ भैयाजी बोले। फेर तनक धीरे से बोले,‘‘वैसे तुमाई भौजी सई कै रई हतीं। उन्ने तो पैलई हमें जाबे से रोकी हती, हमई ने माने। औ जब उन्ने देखो के हम दुफारी के एक पे गए औ पौने दो पे आ गए सो बे सब समझ गईं। मनो अब हम तुमाई भौजी से का कैते? बे तो हमाई फिकर कर रई हतीं। औ घरे आतई साथ हमाई तो दोई आंखें ऐसी लगें, मनो जलन से बर रई होंय। पुरो शरीर तपन लगो। मूड़ चटकन लगो। हम समझ गए के लपट लग गई। जो लों तुमाई भौजी सोई समझ गई रईं। उन्ने तुरतईं हमाई गदिया औ तलुवा में प्याज को रस मलो औ हमें पना पिआओ। तब कऊं जा के तनक ठंडक लगी। ने तो ऊ टेम पे तो ऐसो लग रओ हतो के हमाओ राम नाम सत्त भओ जा रओ।’’
‘‘ऐसो बुरौ ने बोलो भैयाजी! आप संझा लौं पूरे ठीक हो जैहो।’’ मैंने भैयाजी खों सहूरी बंधाई। बाकी मैं समझ गई हती के भैयाजी को बुखार उतारबे की गोली खाबे की उत्ती ने परी हती जित्ती के मोरे संग बतकाव करबे की परी हती। ऐसे कैते तो भौजी मना कर देतीं, के गरमी में बिन्ना खों ने बुलाओ, सो उन्ने गोली की बात करी। काय से उने पतो आय के मोरे पास बुखार की, पेट दरद की, औ हाथ-पांव दरद की गोलियां बरहमेस रैती आएं।  
‘‘बिन्ना!’’भैयाजी बोले।
‘‘का भैयाजी?’’ मैंने पूछी।
‘‘का भगवान खों तनकऊं दया नईं आत आए के मानुस गरमी से मरे जा रए, सो तनक रहम कर दओ जाए?’’ भैयाजी ने मोसे पूछी।
‘‘ई बात खों मैंने बी सोची रई। फेर मोय समझ में आई के लोग भगवान की बात कबे मानत आएं? भगवान ने गर्मी दई तो पेड़-पौधा सोई दए, के छाया रए। उन्ने तो नई कई के पेड़न खों काट डारो। जेई लाने सबरे भगवान जी ने सूरज भगवान खों पुलिस घांई अधिकार दे डारे के जे मानुस हरें पेड़ काटबे को अपराध कर रए, सो इने तनक थर्ड डिग्री को डंडा घुमा देओ। सो जे जो लू-लपट चल रई जे सूरज देवता की थर्ड डिग्री आए।’’ मैंने भैयाजी खों बताई।
‘‘सूरज देवता की थर्ड डिग्री! खूब कई! मनो बिन्ना हमने तो एकऊं पेड़ ने काटे, सो हमें काय लपट को डंडा घलो?’’ भैयाजी ने पूछी।
‘‘पेड़ ने काटो आपने, पर कटबे से रोकबे के लाने बी तो कछू नई करो। आपई भर नोंई, अपन ओरें सबई अपराधी आएं। सो, जो पकरो गओ ऊको डंडा तो घलहे ई। सो मोय लपट को डंडा नईं खाने। अब धूप चढ़न लगी। सो मोय चलो चाइए।’’ मैंने कई और उते से निकर पड़ी।  
सो, आप सब ओरें बी अपनो खयाल राखियो औ सूरज देवता की थर्ड डिग्री से बचे रइयो। बाकी बतकाव हती सो बढ़ा गई, हंड़ियां हती सो चढ़ा गई। अब अगले हफ्ता करबी बतकाव, तब लों जुगाली करो जेई की।
 -----------------------------   
#बतकावबिन्नाकी  #डॉसुश्रीशरदसिंह  #बुंदेली #batkavbinnaki  #bundeli  #DrMissSharadSingh #बुंदेलीकॉलम  #bundelicolumn #प्रवीणप्रभात #praveenprabhat  

No comments:

Post a Comment