मित्रो, ‘इंडिया इन साइड’ के December 2014 अंक में ‘वामा’ स्तम्भ में प्रकाशित मेरा लेख आप सभी के लिए ....
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आपका स्नेह मेरा उत्साहवर्द्धन करता है.......
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वामा (प्रकाशित लेख...Article Text....)...
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वेश्यावृत्ति को वैधता का प्रश्न
- डॅा. (सुश्री) शरद सिंह
भारतीय दंडविधान की धारा 1860 से वेश्यावृत्ति उन्मूलन विधेयक 1956 तक सभी कानून सामान्यतया वेश्यालयों के कार्यव्यापार को संयत एवं नियंत्रित रखने तक ही प्रभावी रहे हैं। जिस्मफरोशी को कानूनी जामा पहनाए जाने की जोरदार वकालत की थी
अखिल भारतीय महिला संगठन - एपवा की राष्ट्रीय सचिव कविता कृष्णन का इस विषय पर कहना है कि ‘‘भारत के विभिन्न राज्यों में सेक्स वर्कर के बीच कार्यरत संगठनों के साथ विस्तृत सलाह मशविरे के साथ ही वेश्यावृत्ति को वैध करने की दिशा में बढ़ना चाहिए। पुख्ता होमवर्क किए बिना इस गंभीर मसले को सुप्रीम कोर्ट के सामने रखना ठीक नहीं है। राष्ट्रीय महिला आयोग की मुखिया को बयान देने की बजाय गहन विचार-विमर्श की प्रक्रिया अपनानी चाहिए। अभी स्थिति यह है कि भारत में सेक्स वर्कर की छवि अपराधी की बनी हुई है। मौजूदा कानून बहुत पेचीदा हैं और उनके खिलाफ हैं। राष्ट्रीय महिला आयोग द्वारा वेश्यावृत्ति को वैध करने की वकालत करने से ऐसा प्रतीत हो रहा है मानो उन शोषित महिलाओं को रोजगार का रास्ता प्रदान किया जाने वाला हो। असल में यह शर्म की बात है। क्या सेक्स वर्कर होने से ही बेरोजगारी की भरपाई हो पाएगी? ’’
सन् 2011 में प्रिया दत्त ने कमाठीपुरा का नाम लिए बिना कहा था कि ‘‘जिस्मफरोशी को वैधानिक दर्जा दिया जाना चाहिए, ताकि यौनकर्मियों की आजीविका पर कोई असर नहीं पड़े। मैं इस बात की वकालत करती हूँ। उन्होंने कहा कि जिस्मफरोशी को दुनिया का सबसे पुराना पेशा कहा जाता है। यौनकर्मियों की समाज में एक पहचान है। हम उनके हकों की अनदेखी नहीं कर सकते। उन्हें समाज, पुलिस और कई बार मीडिया के शोषण का भी सामना करना पड़ता है।’’
प्रिया दत्त की इस मांग पर मैंने अपने ब्लाॅग ‘‘शरदाक्षरा’’ के द्वारा कुछ प्रश्न उठाए थेः-
1-क्या किसी भी सामाजिक बुराई को वैधानिक दर्जा दिया जाना चाहिए ?
2-क्या वेश्यावृत्ति उन्मूलन के प्रयासों को तिलांजलि दे दी जानी चाहिए ?
3-जो वेश्याएं इस दलदल से निकलना चाहती हैं, उनके मुक्त होने के मनोबल का क्या होगा ?
4-जहां भी जिस्मफरोशी को वैधानिक दर्जा दिया गया वहां वेश्याओं का शोषण दूर हो गया
5- क्या वेश्यावृत्ति के कारण फैलने वाले एड्स जैसे जानलेवा रोग वेश्यावृत्ति को संरक्षण दे कर रोके जा सकते हैं ?
6- क्या इस प्रकार का संकेतक हम अपने शहर, गांव या कस्बे में देखना चाहेंगे?
7- अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन के अनुसार विश्व में लगभग 60 लाख बाल श्रमिक बंधक एवं बेगार प्रथा से जुड़े हुए है, लगभग 20 लाख वेश्यावृत्ति तथा पोर्नोग्राफी में हैं, 10 लाख से अधिक बालश्रमिक नशीले पदार्थों की तस्करी में हैं। सन् 2004-2005 में उत्तरप्रदेश, छत्तीसगढ़, कर्नाटक आदि भारत में सेंटर फॉर एजुकेशन एण्ड कम्युनिकेशन द्वारा कराए गए अध्ययनों में यह तथ्य सामने आए कि आदिवासी क्षेत्रों तथा दलित परिवारों में से विशेष रूप से आर्थिकरूप से कमजोर परिवारों के बच्चों को बंधक श्रमिक एवं बेगार श्रमिक के लिए चुना जाता है। नगरीय क्षेत्रों में भी आर्थिक रूप से विपन्न घरों के बच्चे बालश्रमिक बनने को विवश रहते हैं।
वेश्यावृत्ति में झोंक दिए जाने वाले इन बच्चों पर इस तरह के कानून का क्या प्रभाव पड़ेगा? ‘वेश्यावृत्ति को वैधानिक दर्जे पर कुछ प्रश्न’ प्रबुद्ध ब्लॉगर-समाज ने अपने विभिन्न विचारों के रूप में मेरे प्रश्नों के उत्तर दिए। कुछ ने प्रिया दत्त की इस मांग से असहमति जताई तो कुछ ने व्यंगात्मक सहमति।
जैसे सुरेन्द्र सिंह ‘झंझट’ ने स्पष्ट कहा कि ‘इस धंधे से जुड़े लोगों के जीवनयापन के लिए कोई दूसरी सम्मानजनक व्यवस्था सरकारें करें। इन्हें इस धंधे की भयानकता से अवगत कराकर जागरूक किया जाये।’ अमरेन्द्र ‘अमर’ ने सुरेन्द्र सिंह ‘झंझट’ की बात का समर्थन किया। दिलबाग विर्कने देह व्यापार से जुड़ी स्त्रियों के लिए उस वातावरण को तैयार किए जाने का आह्वान किया जो ऐसी औरतों का जीवन बदल सके। उनके अनुसार, ‘दुर्भाग्यवश इज्जतदार लोगों का बिकना कोई नहीं देखता ..... जो मजबूरी के चलते जिस्म बेचते हैं उनकी मजबूरियां दूर होनी चाहिए ताकि वे मुख्य धारा में लौट सकें।’ लखनऊ के कुंवर कुसुमेश ने देह व्यापार से जुड़ी स्त्रियों की विवशता पर बहुत मार्मिक शेर उद्धृत किया-
उसने तो जिस्म को ही बेचा है, एक फाकें को टालने के लिए।
लोग ईमान बेच देते हैं, अपना मतलब निकलने के लिए।
ब्लाॅगर राज भाटिया ने प्रिया दत्त की इस मांग के प्रति सहमति जताने वालों पर कटाक्ष करते हुए बड़ी खरी बात कही कि -‘सांसद प्रिया दत्त की बात से कतई सहमत नहीं हूं ,और जो भी इसे कानूनी मान्यता देने के हक में है वो एक बार इन वेश्याओं से तो पूछे कि यह किस नर्क में रह रही है , इन्हें जबर्दस्ती से धकेला जाता है इस दलदल में, हां जो अपनी मर्जी से बिकना चाहे उस के लिये लाईसेंस या कानूनी मान्यता हो, उस में किसी दलाल का काम ना हो, क्योंकि जो जान बूझ कर दल दल में जाना चाहे जाये... वैसे हमारे सांसद कोई अच्छा रास्ता क्यों नही सोचते ? अगर यह सांसद इन लोगों की भलाई के लिये ही काम करना चाहते हैं तो अपने बेटों की शादी इन से कर दें, ये कम से कम इज्जत से तो रह पायेंगी।’
इस सार्थक चर्चा के बाद भी मुझे लग रहा है कि कुछ महत्वपूर्ण प्रश्न अभी भी विचारणीय हैं जिन पर विचार करना आवश्यक है -
1.- यदि जिस्मफरोशी को वैधानिक रूप से चलने दिया जाएगा तो वेश्यावृत्ति को बढ़ावा मिलेगा, उस स्थिति में वेश्यागामी पुरुषों की पत्नियों और बच्चों का जीवन क्या सामान्य रह सकेगा ?
2.- यदि जिस्मफरोशी को वैधानिक दर्जा दे दिया जाए तो जिस्मफरोशी करने वाली औरतों, उनके बच्चों और उनके परिवार की (विशेषरूप से) महिला सदस्यों की सामाजिक प्रतिष्ठा का क्या होगा ?
3.- क्या स्त्री की देह को सेठों की तिजोरियों से धन निकालने का साधन बनने देना न्यायसंगत और मानवीय होगा ? क्या कोई पुरुष अपने परिवार की महिलाओं को ऐसा साधन बनाने का साहस करेगा ?तब क्या पुरुष की सामाजिक एवं पारिवारिक प्रतिष्ठा कायम रह सकेगी ?
4.- विवशता भरे धंधे जिस्मफरोशी को वैधानिक दर्जा देने के मुद्दे को क्या ऐच्छिक प्रवृति वाले सम्बंधों जैसे समलैंगिकों को मान्यता अथवा लिव्इनरिलेशनशिप को मान्यता की भांति देखा जाना उचित होगा ?
5.-भावी पीढ़ी के उन्मुक्तता भरे जीवन को ऐसे कानून से स्वस्थ वातावरण मिलेगा या अस्वस्थ वातारण मिलेगा ?
सचमुच, देहव्यापार को वैधानिकता प्रश्न गंभीर है। यह समूचे भारतीय समाज से जुड़ा हुआ है, यह देश की आधी आबादी से जुड़ा हुआ है, यह उस को प्रभावित कर सकता है जिसके तहत् समाज में स्त्रियों की संख्या पुरुषों की अपेक्षा दिन-पर-दिन घटती जा रही है। अतः हर कदम फूंक-फूंक कर उठाया जाना आवश्यक है।
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अखिल भारतीय महिला संगठन - एपवा की राष्ट्रीय सचिव कविता कृष्णन का इस विषय पर कहना है कि ‘‘भारत के विभिन्न राज्यों में सेक्स वर्कर के बीच कार्यरत संगठनों के साथ विस्तृत सलाह मशविरे के साथ ही वेश्यावृत्ति को वैध करने की दिशा में बढ़ना चाहिए। पुख्ता होमवर्क किए बिना इस गंभीर मसले को सुप्रीम कोर्ट के सामने रखना ठीक नहीं है। राष्ट्रीय महिला आयोग की मुखिया को बयान देने की बजाय गहन विचार-विमर्श की प्रक्रिया अपनानी चाहिए। अभी स्थिति यह है कि भारत में सेक्स वर्कर की छवि अपराधी की बनी हुई है। मौजूदा कानून बहुत पेचीदा हैं और उनके खिलाफ हैं। राष्ट्रीय महिला आयोग द्वारा वेश्यावृत्ति को वैध करने की वकालत करने से ऐसा प्रतीत हो रहा है मानो उन शोषित महिलाओं को रोजगार का रास्ता प्रदान किया जाने वाला हो। असल में यह शर्म की बात है। क्या सेक्स वर्कर होने से ही बेरोजगारी की भरपाई हो पाएगी? ’’
सन् 2011 में प्रिया दत्त ने कमाठीपुरा का नाम लिए बिना कहा था कि ‘‘जिस्मफरोशी को वैधानिक दर्जा दिया जाना चाहिए, ताकि यौनकर्मियों की आजीविका पर कोई असर नहीं पड़े। मैं इस बात की वकालत करती हूँ। उन्होंने कहा कि जिस्मफरोशी को दुनिया का सबसे पुराना पेशा कहा जाता है। यौनकर्मियों की समाज में एक पहचान है। हम उनके हकों की अनदेखी नहीं कर सकते। उन्हें समाज, पुलिस और कई बार मीडिया के शोषण का भी सामना करना पड़ता है।’’
प्रिया दत्त की इस मांग पर मैंने अपने ब्लाॅग ‘‘शरदाक्षरा’’ के द्वारा कुछ प्रश्न उठाए थेः-
1-क्या किसी भी सामाजिक बुराई को वैधानिक दर्जा दिया जाना चाहिए ?
2-क्या वेश्यावृत्ति उन्मूलन के प्रयासों को तिलांजलि दे दी जानी चाहिए ?
3-जो वेश्याएं इस दलदल से निकलना चाहती हैं, उनके मुक्त होने के मनोबल का क्या होगा ?
4-जहां भी जिस्मफरोशी को वैधानिक दर्जा दिया गया वहां वेश्याओं का शोषण दूर हो गया
5- क्या वेश्यावृत्ति के कारण फैलने वाले एड्स जैसे जानलेवा रोग वेश्यावृत्ति को संरक्षण दे कर रोके जा सकते हैं ?
6- क्या इस प्रकार का संकेतक हम अपने शहर, गांव या कस्बे में देखना चाहेंगे?
7- अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन के अनुसार विश्व में लगभग 60 लाख बाल श्रमिक बंधक एवं बेगार प्रथा से जुड़े हुए है, लगभग 20 लाख वेश्यावृत्ति तथा पोर्नोग्राफी में हैं, 10 लाख से अधिक बालश्रमिक नशीले पदार्थों की तस्करी में हैं। सन् 2004-2005 में उत्तरप्रदेश, छत्तीसगढ़, कर्नाटक आदि भारत में सेंटर फॉर एजुकेशन एण्ड कम्युनिकेशन द्वारा कराए गए अध्ययनों में यह तथ्य सामने आए कि आदिवासी क्षेत्रों तथा दलित परिवारों में से विशेष रूप से आर्थिकरूप से कमजोर परिवारों के बच्चों को बंधक श्रमिक एवं बेगार श्रमिक के लिए चुना जाता है। नगरीय क्षेत्रों में भी आर्थिक रूप से विपन्न घरों के बच्चे बालश्रमिक बनने को विवश रहते हैं।
वेश्यावृत्ति में झोंक दिए जाने वाले इन बच्चों पर इस तरह के कानून का क्या प्रभाव पड़ेगा? ‘वेश्यावृत्ति को वैधानिक दर्जे पर कुछ प्रश्न’ प्रबुद्ध ब्लॉगर-समाज ने अपने विभिन्न विचारों के रूप में मेरे प्रश्नों के उत्तर दिए। कुछ ने प्रिया दत्त की इस मांग से असहमति जताई तो कुछ ने व्यंगात्मक सहमति।
जैसे सुरेन्द्र सिंह ‘झंझट’ ने स्पष्ट कहा कि ‘इस धंधे से जुड़े लोगों के जीवनयापन के लिए कोई दूसरी सम्मानजनक व्यवस्था सरकारें करें। इन्हें इस धंधे की भयानकता से अवगत कराकर जागरूक किया जाये।’ अमरेन्द्र ‘अमर’ ने सुरेन्द्र सिंह ‘झंझट’ की बात का समर्थन किया। दिलबाग विर्कने देह व्यापार से जुड़ी स्त्रियों के लिए उस वातावरण को तैयार किए जाने का आह्वान किया जो ऐसी औरतों का जीवन बदल सके। उनके अनुसार, ‘दुर्भाग्यवश इज्जतदार लोगों का बिकना कोई नहीं देखता ..... जो मजबूरी के चलते जिस्म बेचते हैं उनकी मजबूरियां दूर होनी चाहिए ताकि वे मुख्य धारा में लौट सकें।’ लखनऊ के कुंवर कुसुमेश ने देह व्यापार से जुड़ी स्त्रियों की विवशता पर बहुत मार्मिक शेर उद्धृत किया-
उसने तो जिस्म को ही बेचा है, एक फाकें को टालने के लिए।
लोग ईमान बेच देते हैं, अपना मतलब निकलने के लिए।
ब्लाॅगर राज भाटिया ने प्रिया दत्त की इस मांग के प्रति सहमति जताने वालों पर कटाक्ष करते हुए बड़ी खरी बात कही कि -‘सांसद प्रिया दत्त की बात से कतई सहमत नहीं हूं ,और जो भी इसे कानूनी मान्यता देने के हक में है वो एक बार इन वेश्याओं से तो पूछे कि यह किस नर्क में रह रही है , इन्हें जबर्दस्ती से धकेला जाता है इस दलदल में, हां जो अपनी मर्जी से बिकना चाहे उस के लिये लाईसेंस या कानूनी मान्यता हो, उस में किसी दलाल का काम ना हो, क्योंकि जो जान बूझ कर दल दल में जाना चाहे जाये... वैसे हमारे सांसद कोई अच्छा रास्ता क्यों नही सोचते ? अगर यह सांसद इन लोगों की भलाई के लिये ही काम करना चाहते हैं तो अपने बेटों की शादी इन से कर दें, ये कम से कम इज्जत से तो रह पायेंगी।’
इस सार्थक चर्चा के बाद भी मुझे लग रहा है कि कुछ महत्वपूर्ण प्रश्न अभी भी विचारणीय हैं जिन पर विचार करना आवश्यक है -
1.- यदि जिस्मफरोशी को वैधानिक रूप से चलने दिया जाएगा तो वेश्यावृत्ति को बढ़ावा मिलेगा, उस स्थिति में वेश्यागामी पुरुषों की पत्नियों और बच्चों का जीवन क्या सामान्य रह सकेगा ?
2.- यदि जिस्मफरोशी को वैधानिक दर्जा दे दिया जाए तो जिस्मफरोशी करने वाली औरतों, उनके बच्चों और उनके परिवार की (विशेषरूप से) महिला सदस्यों की सामाजिक प्रतिष्ठा का क्या होगा ?
3.- क्या स्त्री की देह को सेठों की तिजोरियों से धन निकालने का साधन बनने देना न्यायसंगत और मानवीय होगा ? क्या कोई पुरुष अपने परिवार की महिलाओं को ऐसा साधन बनाने का साहस करेगा ?तब क्या पुरुष की सामाजिक एवं पारिवारिक प्रतिष्ठा कायम रह सकेगी ?
4.- विवशता भरे धंधे जिस्मफरोशी को वैधानिक दर्जा देने के मुद्दे को क्या ऐच्छिक प्रवृति वाले सम्बंधों जैसे समलैंगिकों को मान्यता अथवा लिव्इनरिलेशनशिप को मान्यता की भांति देखा जाना उचित होगा ?
5.-भावी पीढ़ी के उन्मुक्तता भरे जीवन को ऐसे कानून से स्वस्थ वातावरण मिलेगा या अस्वस्थ वातारण मिलेगा ?
सचमुच, देहव्यापार को वैधानिकता प्रश्न गंभीर है। यह समूचे भारतीय समाज से जुड़ा हुआ है, यह देश की आधी आबादी से जुड़ा हुआ है, यह उस को प्रभावित कर सकता है जिसके तहत् समाज में स्त्रियों की संख्या पुरुषों की अपेक्षा दिन-पर-दिन घटती जा रही है। अतः हर कदम फूंक-फूंक कर उठाया जाना आवश्यक है।
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