Wednesday, September 14, 2016

चर्चा प्लस ... बुंदेलखंड को विवाद नहीं, विकास चाहिए .... डाॅ. शरद सिंह

Dr Sharad Singh
मेरा कॉलम  "चर्चा प्लस"‬ "दैनिक सागर दिनकर" में (14. 09. 2016) .....
 
My Column Charcha Plus‬ in "Dainik Sagar Dinkar" .....
  
बुंदेलखंड को विवाद नहीं, विकास चाहिए
- डॉ. शरद सिंह
 एक बार फिर राजनीति के बैरोमीटर का पारा चढ़ने लगा है। आगामी वर्ष उत्तर प्रदेश में होने वाले चुनावों ने माहौल अभी से गर्मा दिया है। कोई पुराने चेहरों को सामने लाने की योजना बना रहा है तो कोई नए चेहरे मैदान में उतार रहा है। भजपा, सपा, और बासपा के अतिरिक्त कांग्रेस भी उत्तर प्रदेश में जोर आजमाइश के लिए बांहें चढ़ा चुकी है। इस बार राहुल गांधी का बुंदेलखंड दौरा क्या रंग लाएगा, यह तो आने वाला समय ही बताएगा। लेकिन बुंदेलखंड पर राजनीतिक दांव लगाने वालों को यह भली-भांति समझना होगा कि यह क्षेत्र विवाद नहीं विकास चाहता है।

उत्तर प्रदेश में आगामी वर्ष होने वाला चुनाव ने राजनीतिक परिसर में हलचल मचा रखी है। कोई ‘चाय पर चर्चा’ के जरिए मतदाताओं का ध्यानाकर्षण कर रहा है तो कोई ‘खाट पर चर्चा’ कर रहा है। दो बहुएं जिनकी आयु में दादी और पोती जितना अन्तर है, राजनीतिक मैदान में कमर कस कर खड़ी हो गई हैं। इनमें एक बहू है दिल्ली की पूर्व मुख्यमंत्री शीला दीक्षित तो दूसरी बहू है उत्तर प्रदेश के वर्तमान मुख्यमंत्री अखिलेश यादव की पत्नी डिंपल यादव। शीला दीक्षित उन्नाव की बहू हैं तो डिंपल यादव सैफई की। ये दोनों बहुएं बुंदेलखण्ड का भी रुख करेंगी, लेकिन फिलहाल राहुल गांधी अपने पूर्व निर्धारित कार्यक्रम के अंतर्गत 15 सितम्बर 2016 से बुंदेलखंड में ‘‘रोड शो’’ करेंगे।
पूर्व निर्धारित कार्यक्रम के अनुसार राहुल गांधी 15 सितंबर को चित्रकूट पहुंचेंगे। वे चित्रकूट में भगवान के दर्शन के बाद रोड शो आरम्भ करेंगे। वहां रोड शो करते हुए लोगों को अपनी पार्टी की घोषणाओं के बारे में अवगत कराएंगे। इसके बाद 16 सितंबर को बुंदेलखंड के बांदा और महोबा में रोड शो कर जनता के बीच जाएंगे। राहुल गांधी 17 सितंबर को ऐतिहासिक नगरी झांसी पहुंचेंगे। झांसी में भी वह रोड शो के माध्यम से अपनी पार्टी की घोषणाओं के बारे में बताएंगे और कांग्रेस को जिताने की अपील करेंगे। 17 सितंबर को ही वह जालौन, राठ और हमीरपुर में भी रोड शो करेंगे।
यह राहुल गांधी का बुंदेलखंड का पहला दौरा नहीं है, इससे पूर्व भी वे बुंदेलखंड के दौरे कर चुके हैं। अपने पिछले दौरे में राहुल गांधी ने ‘पृथक बुंदेलखण्ड’ की बात उठाई थी। यह मांग कोई नई नहीं थी। इस बार वे मोदी सरकार की कमियां गिनाने के मूड में हैं। बीच-बीच में उत्तर प्रदेश सरकार पर भी चुटकी लेते रहेंगे। उनके भाषणों पर वाद-विवाद भी होंगे और दूसरे नेता भी अपनी पार्टी के ऐजेंडे ले कर जनता के बीच उतरेंगे। लेकिन इन सभी को बुंदेलखंड की आवश्यकताओं को ध्यान रखना होगा। 
Charcha Plus Column of Dr Sharad Singh in "Sagar Dinkar" Daily News Paper


विकास की बाट जोहता बुंदेलखंड
 
बुंदेलखण्ड के विकास के लिए उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश दोनों राज्यों में वर्षों से पैकेज आवंटित किए जा रहे हैं जिनके द्वारा विकास कार्य होते रहते हैं किन्तु विकास के सरकारी आंकड़ों से परे भी कई ऐसे कड़वे सच हैं जिनकी ओर देख कर भी अनदेखा रह जाता है। जहां तक कृषि का प्रश्न है तो औसत से कम बरसात के कारण प्रत्येक दो-तीन वर्ष बाद बुंदेलखंड सूखे की चपेट में आ जाता है। कभी खरीफ तो कभी रबी अथवा कभी दोनों फसलें बरबाद हो जाती हैं। जिससे घबरा कर कर्ज में डूबे किसान आत्महत्या जैसा पलायनवादी कदम उठाने लगते हैं। इन सबके बीच स्त्रियों की दर और दशा पर ध्यान कम ही दिया जाता है। उत्तर प्रदेश और मध्यप्रदेश में फैला बुंदेलखंड आज भी जल, जमीन और सम्मानजनक जीवन के लिए संघर्षरत है। दुनिया भले ही इक्कीसवीं सदी में कदम रखते हुए विकास की नई सीढ़ियां चढ़ रहा है लेकिन बुंदेलखंड आज भी बुनियादी सुविधाओं के लिए जूझ रहा है।

बुंदेलखंड की समस्याएं

आर्थिक पिछड़ेपन का दृष्टि से बुंदेलखंड आज भी सबसे निचली सीढ़ी पर खड़ा हुआ है। विगत वर्षों में बुन्देलखण्ड में किसानों द्वारा आत्महत्या और महिलाओं के साथ किए गए बलात्कार की घटनाएं यहां की दुरावस्था की कथा कहती हैं। भूख और गरीबी से घबराए युवा अपराधी बनते जा रहे हैं। यह भयावह तस्वीर ही बुंदेलखंड की सच्ची तस्वीर है। यह सच है कि यहां की सांस्कृतिक परम्परा बहुत समृद्ध है किन्तु यह आर्थिक समृद्धि का आधार तो नहीं बन सकती है। आर्थिक समृद्धि के लिए तो जागरूक राजनैतिक स्थानीय नेतृत्व, शिक्षा का प्रसार, जल संरक्षण, कृषि की उन्नत तकनीक की जानकारी का प्रचार-प्रसार, स्वास्थ्य सुविधाओं की सघन व्यवस्था और बड़े उद्योगों की स्थापना जरूरी है। वन एवं खनिज संपदा प्रचुर मात्रा में है किन्तु इसका औद्योगिक विकास के लिए उपयोग नहीं हो पा रहा है। कारण की अच्छी चौड़ी सड़कों की कमी है जिन पर उद्योगों में काम आने वाले ट्राले सुगमता से दौड़ सकें। रेल सुविधाओं के मामले में भी यह क्षेत्र पिछड़ा हुआ है। सड़क और रेल मार्ग की कमी औघेगिक विकास में सबसे बड़ी बाधा बनती है। स्वास्थ्य और शिक्षा की दृष्टि से बुंदेलखंड की दशा औसत दर्जे की है।
लगभग साल भर पहले बुंदेलखंड के अंतर्गत आने वाले मध्यप्रदेश और उत्तरप्रदेश के कांग्रेसी राहुल गांधी के साथ प्रधानमंत्री से मिले थे और राहत राशि के लिये विशेष पैकेज और प्राधिकरण की मांग रखी थी। एक पैकेज की घोषणा भी हुई लेकिन यह स्थायी हल साबित नहीं हुआ। यूं भी, इस क्षेत्र के उद्धार के लिये किसी तात्कालिक पैकेज की नहीं बल्कि वहां के संसाधनों के बेहतर प्रबंधन की आवश्यकता है। साथ ही इस बात को समझना होगा कि मात्र आश्वासनों और परस्पर एक-दूसरे को कोसने वाली राजनीति से इस क्षेत्र का भला होने वाला नहीं है।

पृथक राज्य कोई हल नहीं

पृथक बुंदेलखण्ड राज्य की मांग करने वालों का यह मानना है कि यदि बुंदेलखण्ड स्वतंत्र राज्य का दर्जा पा जाए तो विकास की गति तेज हो सकती है। यह आंदोलन राख में दबी चिंनगारी के समान यदाकदा सुलगने लगता है। बुंदेलखंड राज्य की लड़ाई तेज करने के इरादे से 17 सितंबर 1989 को शंकर लाल मेहरोत्रा के नेतृत्व में बुंदेलखंड मुक्ति मोर्चा का गठन किया गया था। आंदोलन सर्व प्रथम चर्चा में तब आया जब मोर्चा के आह्वान पर कार्यकर्ताओं ने पूरे बुंदेलखंड में टीवी प्रसारण बंद करने का आंदोलन किया। यह आंदोलन काफी सफल हुआ था। इस आंदोलन में पूरे बुंदेलखंड में मोर्चा कार्यकर्ताओं की गिरफ्तारियां हुईं। आंदोलन ने गति पकड़ी और मोर्चा कार्यकर्ताओं ने वर्ष 1994 में मध्यप्रदेश विधानसभा में पृथक राज्य मांग के समर्थन में पर्चे फेंके। कार्यकर्ताओं का उत्साह बढ़ा और वर्ष 1995 में उन्होंने शंकर लाल मेहरोत्रा के नेतृत्व में संसद भवन में पर्चे फेंक कर नारेबाजी की। तत्कालीन प्रधानमंत्री पीवी नरसिम्हा राव के निर्देश पर स्व. मेहरोत्रा व हरिमोहन विश्वकर्मा सहित नौ लोगों को रात भर संसद भवन में कैद करके रखा गया। विपक्ष के नेता अटल विहारी वाजपेई ने मोर्चा कार्यकर्ताओं को मुक्त कराया। वर्ष 1995 में संसद का घेराव करने के बाद हजारों लोगों ने जंतर मंतर पर क्रमिक अनशन शुरू किया, जिसे उमा भारती के आश्वासन के बाद समाप्त किया गया। वर्ष 1998 में वह दौर आया जब बुंदेलखंडी पृथक राज्य आंदोलन के लिए सड़कों पर उतर आए। आंदोलन उग्र हो चुका था। बुंदेलखंड के सभी जिलों में धरना-प्रदर्शन, चक्का जाम, रेल रोको आंदोलन आदि चल रहे थे। इसी बीच कुछ उपद्रवी तत्वों ने बरुआसागर के निकट 30 जून 1998 को बस में आग लगा दी थी, जिसमें जन हानि हुई थी। इस घटना ने बुंदेलखंड राज्य आंदोलन को ग्रहण लगा दिया था। मोर्चा प्रमुख शंकर लाल मेहरोत्रा सहित नौ लोगों को रासुका के तहत गिरफ्तार किया गया। जेल में रहने के कारण उनका स्वास्थ्य काफी गिर गया और बीमारी के कारण वर्ष 2001 में उनका निधन हो गया। पृथक्करण की मांग ले कर राजा बुंदेला भी सामने आए।
आज भी जब तब पृथक बुंदेलखण्ड की मांग उठती रहती है। चुनावों के समय इस मांग को समर्थन दिया जाने लगता है और चुनाव ख़त्म होते ही जोश ठंडा पड़ जाता है। वैसे, बुंदेलखंड की आर्थिक दशा को देख कर तो यही कहा जा सकता है कि एक कमजोर राज्य के नवनिर्माण से बेहतर है कि प्रशासनिक दृष्टि से जिलों और संभागों को यथास्थिति रखते हुए विकास पर ध्यान केन्द्रित किया जाए।

समझना होगा जरूरतों को

पिछले कुछ सालों से किसानों के मुद्दों को जिस तरह उत्तर प्रदेश कांग्रेस उठा रही है उससे ये स्पष्ट हो गया है कि किसान कार्ड उसके लिए अहम होने जा रहा है। बुंदेलखंड के किसानों के आधार पर राहुल गांधी उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव की तैयारी का शंखनाद कर चुके हैं। शेष राजनीतिक दल भी पीछे नहीं रहेंगे। किन्तु पूर्व के अनुभवों के आधार पर इस संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता है कि विकास के बुनियादी मुद्दे आरोप-प्रत्यारोप और वाद-विवाद में दब कर रह जाएंगे। स्थानीय नेतृत्व को समर्थन देना और उसे मजबूत बनाना भी महत्वपूर्ण कदम साबित हो सकता है। वैसे, एक बार फिर राजनीति के बैरोमीटर का पारा चढ़ने लगा है। आगामी वर्ष उत्तर प्रदेश में होने वाले चुनावों ने माहौल अभी से गर्मा दिया है। कोई पुराने चेहरों को सामने लाने की योजना बना रहा है तो कोई नए चेहरे मैदान में उतार रहा है। भजपा, सपा, और बासपा के अतिरिक्त कांग्रेस भी उत्तर प्रदेश में जोर आजमाइश के लिए बांहें चढ़ा चुकी है। इस बार राहुल गांधी का बुंदेलखंड दौरा क्या रंग लाएगा, यह तो आने वाला समय ही बताएगा। लेकिन बुंदेलखंड पर राजनीतिक दांव लगाने वालों को यह भली-भांति समझना होगा कि यह क्षेत्र विवाद नहीं विकास चाहता है।

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