Friday, January 18, 2019

चर्चा प्लस ... संक्रांति के राजनीतिक लड्डुओं में चार्जशीट का कंकड़ - डॉ. शरद सिंह

Dr (Miss) Sharad Singh
चर्चा प्लस ...
संक्रांति के राजनीतिक लड्डुओं में चार्जशीट का कंकड़
- डॉ. शरद सिंह


मुद्दा राष्ट्र के मान और अपमान का करार दिया जाए और फिर भी चार्जशीट दायर करने में देरी हो तो सवाल उठेंगे ही। इधर संक्रांति के लड्डुओं की मिठास मुंह में घुल ही रही थी कि जेएनयू छात्रसंघ के पूर्व अध्यक्ष कन्हैया कुमार समेत 10 आरोपियों पर राजद्रोह के आरोप में मेट्रोपोलिटन मजिस्ट्रेट के समक्ष चार्जशीट दाखिल कर दी गई। चार्जशीट दाखिले में तीन साल लग गए और दाखिल किया गया तो लोकसभा चुनाव से ठीक पहले। लिहाजा, इस बार लोकसभा चुनाव के पहले बांधे जा रहे राजनीतिक लड्डुआें में ‘जेएनयू राजद्रोह’ मामले की चार्जशीट दाखिल किया जाना मेवे का काम करेगा या कंकड़ का यह तो आने वाला समय ही बताएगा।

चर्चा प्लस ... संक्रांति के राजनीतिक लड्डुओं में चार्जशीट का कंकड़ - डॉ. शरद सिंह  Charcha Plus - Sankranti Ke Rajnitik Ladduon Me Charge Sheet Ka Kankar  -  Charcha Plus Column by Dr Sharad Singh
 तीन साल पहले का वह दृश्य जो टेलीविजन के पर्दे पर दिखा था, आज भी भूलता नहीं है। संसद पर हमले के दोषी अफजल गुरू को फांसी पर लटकाए जाने के विरोध में वर्ष 2016 में जेएनयू कैंपस में एक कार्यक्रम आयोजित किया गया था। कार्यक्रम के दौरान कथित रूप से देश विरोधी नारे लगाए गए थे। इसके बाद बीजेपी सांसद महेश गिरी और अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (एबीवीपी) की शिकायत पर वसंत कुंज (उत्तर) पुलिस थाने में 11 फरवरी 2016 को अज्ञात व्यक्तियों के खिलाफ भारतीय दंड संहिता की धारा 124ए तथा 120बी के तहत एक मामला दर्ज किया गया था। राजद्रोह एक गंभीर अपराध है और इसके लिए अधिकतम आजीवन कारावास की सजा का प्रावधान है।
जब सभी मकर संक्रांति मनाने में मग्न थे उसी दौर में जेएनयू राजद्रोह केस का जिन्न उठ खड़ा हुआ। वैसे मकर संक्रांति देश के प्रमुख पर्वो में से एक है। अलग-अलग राज्यों में स्थानीय परंपराओं के अनुसार इसे मनाया जाता है। इसी दिन से गंगा नदी के किनारे माघ मेला या गंगा स्नान का आयोजन किया जाता है। कुंभ के पहले स्नान की शुरुआत भी इसी दिन से होती है। मकर संक्रांति त्योहार विभिन्न राज्यों में अलग-अलग नाम से मनाया जाता है। उत्तर प्रदेश में मकर संक्रांति को खिचड़ी पर्व कहा जाता है. सूर्य की पूजा की जाती है। चावल और दाल की खिचड़ी खाई और दान की जाती है। गुजरात और राजस्थान में उत्तरायण पर्व के रूप में मनाया जाता है। पतंग उत्सव का आयोजन किया जाता है। आंध्रप्रदेश में संक्रांति के नाम से तीन दिन का पर्व मनाया जाता है। तमिलनाडु में किसानों का ये प्रमुख पर्व पोंगल के नाम से मनाया जाता है। महाराष्ट्र में लोग गजक और तिल के लड्डू खाते हैं और एक दूसरे को भेंट देकर शुभकामनाएं देते हैं। पश्चिम बंगाल में हुगली नदी पर गंगा सागर मेले का आयोजन किया जाता है। असम में भोगली बिहू के नाम से इस पर्व को मनाया जाता है। पंजाब में एक दिन पूर्व लोहड़ी पर्व के रूप में मनाया जाता है। सूर्य के एक राशि से दूसरी राशि में जाने को ही संक्रांति कहते हैं। संक्रांति में दाल-चावल की खिचड़ी पकाई और खिलाई जाती है। इस बार लोकसभा चुनाव के पहले बांधे जा रहे राजनीतिक लड्डुआें में ‘जेएनयू राजद्रोह’ मामले की चार्जशीट दाखिल किया जाना मेवे का काम करेगा या कंकड़ का यह तो आने वाला समय ही बताएगा।
यह किसी से छिपा नहीं है। छोटे-छोटे विवादों और मामूली अपराधों के मामलों की सुनवाई में अरसा लग जाता है। देश में निचली अदालतों का कमोबेश यही हाल है, जहां मुकदमे बरसों-बरस घिसटते रहते हैं। दीवानी मुकदमे तो पीढ़ियों तक भी खिंच जाते हैं। न्याय में देरी के मामले न्याय प्रणाली में मौजूद विसंगतियों और गंभीर खामियों की तरफ ही इशारा करते हैं। अदालतों की कार्यप्रणाली कछुआ चाल वाली है। पर केवल अदालतों को दोष क्यों दें, कार्यपालिका भी कम दोषी नहीं है, क्योंकि न्यायिक ढांचे के पर्याप्त विस्तार के लिए संसाधन मुहैया कराना उसी की जिम्मेवारी है। पर सरकारें इस तरफ से उदासीन ही रही हैं। निचली अदालतों से लेकर सर्वोच्च अदालत तक, कुल मिलाकर तीन करोड़ से ज्यादा मुकदमे लंबित हैं। लेकिन राजद्रोह के मामले में चार्जशीट दाखिल करने में तीन साल का समय लग जाना शायद किसी और देश में संभव नहीं है।

तीन साल बाद दाखिल की गई चार्जशीट में कन्हैया कुमार, उमर खालिद और अनिर्बन समेत 10 आरोपियों के खिलाफ भारतीय दंड संहिता की धारा 124ए (राजद्रोह), 323 (किसी को चोट पहुंचाने के लिए सजा), 465 (जालसाजी के लिए सजा), 471 (फर्जी दस्तावेज या इलेक्ट्रॉनिक रिकॉर्ड को वास्तविक के तौर पर इस्तेमाल करना), 143 (गैरकानूनी तरीके से एकत्र समूह का सदस्य होने के लिए सजा), 149 (गैरकानूनी तरीके से एकत्र समूह का सदस्य होना), 147 (दंगा फैलाने के लिए सजा) और 120बी (आपराधिक षडयंत्र) के तहत आरोप लगाए गए हैं। पुलिस ने दावा किया कि उसके पास अपराध को साबित करने के लिये वीडियो क्लिप है, जिसकी गवाहों के बयानों से पुष्टि हुई है। पुलिस का कहना है कि कन्हैया कुमार जुलूस की अगुवाई कर रहे थे और उन्होंने जेएनयू परिसर में फरवरी 2016 में देश विरोधी नारे लगाए जाने का कथित तौर पर समर्थन किया था। पुलिस ने यह भी बताया कि आरोपपत्र में भाकपा नेता डी राजा की पुत्री अपराजिता, जेएनयूएसयू की तत्कालीन उपाध्यक्ष शहला राशिद, राम नागा, आशुतोष कुमार और बनोज्योत्सना लाहिरी सहित 36 अन्य लोगों के नाम हैं क्योंकि इन लोगों के खिलाफ सबूत अपर्याप्त हैं।
घटना के दौरान कन्हैया कुमार अखिल भारतीय छात्र परिषद को नेता था। यह अखिल भारतीय छात्र परिषद भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी की स्टूडैंट विंग है। कन्हैया कुमार को सन् 2015 में जेएनयू (जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय) छात्रसंघ के अध्यक्ष पद के लिए चुना गया था। फरवरी 2016 में जेएनयू में एक कश्मीरी अलगाववादी, 2001 में भारतीय संसद पर हमले के दोषी, मोहम्मद अफजल गुरु को फांसी दिए जाने के खिलाफ एक छात्र रैली में राष्ट्रविरोधी नारे लगाने के आरोप में देशद्रोह का मामला दर्ज किया गया था। कन्हैया कुमार को तब दिल्ली पुलिस ने गिरफ्तार भी किया था। फिर 2 मार्च 2016 में अंतरिम जमानत पर रिहा कर दिया गया था, क्योंकि राष्ट्र विरोधी नारों में भाग लेने का पुलिस द्वारा कन्हैया कुमार का कोई सबूत प्रस्तुत नहीं किया गया। उल्लेखनीय है कि जेएनयू के कुलपति द्वारा गठित एक अनुशासन समिति ने भी विवादास्पद घटना की जांच की। वहीं, प्रारंभिक जांच रिपोर्ट के आधार पर, कन्हैया कुमार और सात अन्य छात्रों को अकादमिक तौर पर वंचित कर दिया गया। कन्हैया कुमार पर राजद्रोह का मुकादमा चलाया गया। इस बीच कन्हैया कुमार की आटोबायोग्राफिक किताब भी छपी जिसका नाम है- ‘बिहार टू तिहार’।

जहां एक ओर राजनीति में अपराध की घुटपैंठ को रोकने की बात की जाती है वहीं संदिग्ध आरोपी को राजनीतिक प्रचार करने की छूट दी जाती है। या तो पहले क्लीनचिट दी जाती फिर चुनाव प्रचार से रोका जाना चाहिए था। क्योंकि मामला मामूली नहीं देश के मान-सम्मान का था। दूसरी ओर यदि कन्हैया कुमार राजनीति करने की आजादी थी तो शेष आजादी से उसे क्यों वंचित रखा गया? स्वाभाविक है कि इस तरह के प्रश्न प्रकरण को कमजोर बना सकते हैं। चार्जशीट दाखिल किए जाने के बाद कन्हैया कुमार ने आरोप पत्र को ’राजनीति से प्रेरित’ बताते हुए लोकसभा चुनाव से कुछ महीने पहले इसे दायर किए जाने पर इसके समय को लेकर सवाल उठाया। कन्हैया कुमार ने मीडिया से यह भी कहा, ’मुझे कोई समन या अदालत से कोई सूचना नहीं मिली है। लेकिन अगर यह सही है तो हम पुलिस और प्रधानमंत्री मोदी के शुक्रगुजार हैं कि आखिरकार तीन साल बाद जब उनके और उनकी सरकार के जाने का वक्त आ गया है तो आरोपपत्र दायर किया गया है। लेकिन लोकसभा चुनाव से ठीक पहले आरोपपत्र का दायर किया जाना प्रासंगिक है।’’ कन्हैया कुमार ने यह भी कहा कि ‘‘इस मामले में सनी देओल की फिल्म की तरह तारीख पर तारीख न दी जाए। उन्होंने कहा कि कोर्ट में स्पीडी ट्रायल चलाया जाए और फैसला सुनाया जाए। उन्होंने कहा कि मैं निर्दोष हूं, मुझे देश की न्याय व्यवस्था पर पूरा विश्वास है। कन्हैया ने बेगूसराय में कहा कि सरकार के पास कोई मुद्दा ही नहीं बचा है इसलिए वो ऐसे मामले को तूल दे रही है। केंद्र सरकार सिर्फ पाकिस्तान, मंदिर और हिंदू-मुसलमान की बात कर रही है। उन्होंने कहा कि सरकार पूरी तरह डिप्रेशन के दौर में आ गई है और दोबारा सत्ता पाने के लिए वह किसी भी हद से गुजरने को तैयार है।’’
वहीं, उमर खालिद ने बेंगलुरू में सेंट जोसेफ कॉलेज में छात्रों के एक समूह को ‘संविधान की रक्षा में युवकों की भूमिका’ विषय पर संबोधित किया। खालिद ने कहा कि हम आरोपों को खारिज करते हैं। कथित घटना के तीन साल बाद आरोपपत्र दाखिल करने का कदम चुनावों के ठीक पहले ध्यान भटकाने का एक प्रयास है। शहला राशिद ने कहा कि यह पूरी तरह से एक फर्जी मामला है जिसमें अंततः हर कोई बरी हो जाएगा। चुनावों के ठीक पहले आरोपपत्र दाखिल किया जाना दर्शाता है कि किस प्रकार भाजपा इससे चुनावी फायदा उठानी चाहती है। मैं घटना के दिन परिसर में भी नहीं थी। वहीं, भाकपा नेता डी राजा ने कहा कि यह राजनीति से प्रेरित है। तीन साल बाद दिल्ली पुलिस इस मामले में आरोपपत्र दाखिल कर रही है। हम इसे अदालत में और अदालत के बाहर राजनीतिक रूप से लड़ेंगे।

राजनीति में स्वार्थ साधने की कला में सभी माहिर होते हैं। हर दल अपने-अपने ढंग से मामले का व्याख्याकार बन बैठता है। कन्हैया के समर्थन में तेजस्वी भी आ गए। उन्होंने यह भी कहा कि बीजेपी के खिलाफ मुंह खोलने वालों को सीबीआई, इडी, इनकम टैक्स जैसी एजेंसियों से डराया जाता है। इसके अलावा उन्होंने यूपी की राजनीति पर कहा कि हम चाहते हैं कि बीजेपी के खिलाफ पूरे देश में गठबंधन बने। कुल मिला कर राजद्रोह मामले की रेलगाड़ी को एक बार फिर राजनीति की पटरी पर चलाने की जोड़-तोड़ गरमाने लगी है। बहरहाल, जेएनयू राजद्रोह मामले में आरोपपत्र का संज्ञान लेना या नहीं लेना मुख्य मेट्रोपोलिटन मजिस्ट्रेट पर निर्भर करेगा। लेकिन संक्रांति के लड्डुओं के बीच चार्जशीट का कंकड़ तो आ ही गया है।
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(दैनिक ‘सागर दिनकर’, 17.01.2019)
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