Friday, November 15, 2019

पहचान खो रही है बुंदेलखंड की शजर हस्तकला - डॉ. शरद सिंह , नवभारत में प्रकाशित

Dr (Miss) Sharad Singh
पहचान खो रही है बुंदेलखंड की शजर हस्तकला
- डॉ. शरद सिंह
(नवभारत , 15.11.2019 में प्रकाशित)


10 अगस्त 2018 को अपने लखनऊ दौरे के दौरान राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद को एक लाख रुपये की कीमत का ताजमहल खूब पसंद आया। इसे बुंदेलखंड के शजर हस्तकला उद्योग के कलाकारों ने बनाया था। शजर एक प्रकार का पत्थर होता है जो बांदा की केन नदी में पाया जाता है। इस पत्थर की विशेषता यह है कि पालिश करने से इसमें फूल-पत्तियां व पेड़ की आकृतियां अपने आप उभर आती हैं। इसी पत्थर से ताजमहल बनाया गया था। बुंदेलखंड शजर हस्तकला उद्योग से जुड़े द्वारिका प्रसाद सोनी के अनुसार राष्ट्रपति ने उनके शजर रत्नों में खूब दिलचस्पी दिखाई। इन पत्थरों से बने लैंप को भी बारीकी से देखा।

आज बहुत कम लोग जानते हैं कि बुंदेलखंड की बेमिसाल कला शजर उद्योग पाया जाता है। दशा यह है कि सरकारी उपेक्षा के चलते दस साल में डेढ़ दर्जन उद्योग बंद हो गए। इससे जुड़े सैकड़ों कारीगर पेट पालने के लिए दूसरे व्यवसाय की ओर मुड़ते जा रहे हैं। यही हाल रहा तो कुछ सालों में शहर का खास शजर उद्योग किवदंती बन जाएगा। कुदरत की अनमोल देन शजर पूरे देश में बांदा में केन नदी में पाया जाता है। जिस पत्थर के द्वारा शजर की कलाकृति तैयार की जाती है उसकी खोज सन् 1800 में तत्कालीन नवाब अली जुल्फिकार अली बहादुर के समय हुई थी। जब कुछ लोग नदी के पत्थर को जमीन में पटककर आग जलाने के काम में इस्तेमाल करते थे। शिकार के लिए निकले नवाब ने जब इन पत्थरों को देखा तो वे इनकी खूबी समझ गए और उन्होंने इन पत्थरों को तराशने का आदेश दिया। उसी समय से यह शजर पत्थर दुनिया की पहचान बना।
 
Navbharat -  Pahchan Kho Rahi Hai Bundelkh Ki Shazar Hastakala  - Dr Sharad Singh

शजर हस्तकला के हस्तशिल्पी द्वारिका सोनी बताते हैं कि है कि सन् 1911 में लंदन में शजर प्रदर्शनी लगी थी। जिसमें हस्त शिल्पी मोती भार्गव शामिल हुए थेे। प्रदर्शनी में खुद रानी विक्टोरिया ने इस नायाब पत्थर के नगीने को अपने गले का हार बनाया था। हस्तशिल्पी द्वारिका सोनी ने शजर को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलाई। उन्हें हस्त शिल्प कला के लिए अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर कई पुरस्कार मिले। वर्ष 2001 में राष्ट्रीय उद्यान बनाने में पुरस्कृत हुए। 2012 में ताज महल व 2014 में लैंप बनाने में उन्हें राष्ट्रीय पुरस्कार मिला। 2015 में वह तंजानिया गए और वहां की सरकार ने सम्मानित किया।
धीरे-धीरे शजर कला ने उद्योग का रूप ले लिया। दो दशक पहले तक बांदा में शजर के तीन दर्जन से अधिक कारखाने लगे हुए थे और दो हजार से अधिक कारीगर अपने हाथों से इस कला को तराशने का काम करते थे। लेकिन मेहनत अधिक व मुनाफा कम होने से धीरे-धीरे हस्त शिल्पकारी का कारोबार मंदा पड़ गया। यद्यपि अभी भी विदेशों में शजर कला की मांग अभी भी जारी है। विदेशों में आज भी शजर के कद्रदान मौजूद हैं। दिल्ली, लखनऊ, जयपुर में लगने वाली शजर प्रदर्शनियों में अक्सर ईराक, सऊदी अरब, ब्रिटन आदि देशों के लोग शजर की खरीददारी करते हैं। लेकिन इस कला के मंद पड़ने के साथ ही अब इसके कद्रदानों को मायूसी ही हाथ लग रही है। दूसरा शजर बाजार न होने से भी यह कारोबार धीमा पड़ता जा रहा है। सरकार द्वारा शजर उद्योग को कोई खास प्रोत्साहन नहीं दिया जा रहा है। कारीगारों के प्रशिक्षण की कोई उम्दा व्यवस्था नहीं है। शिल्पियों ने कई बार शजर कला के विस्तार के लिए कौशल विकास मिशन के तहत अम्बेडकर प्रशिक्षण चलाए जाने की मांग की है। लेकिन इस ओर कोई ध्यान नहीं दिया गया। न ही शिल्पियों के लिए सब्सिडी में कर्ज आदि दिए जाने की व्यवस्था है।
उल्लेखनीय है कि भारत सरकार के वस्त्र मंत्रालय ने 15 से 18 जून 2019 तक नीदरलैंड की राजधानी एम्सटर्डम में चार दिवसीय वार्षिक मेले का आयोजन किया था। इसमें शजर पत्थर से तैयार की गईं विभिन्न हस्तनिर्मित वस्तुओं के प्रदर्शन और स्टॉल के लिए द्वारिका सोनी को बुलाया गया था। हस्तशिल्पी द्वारिका ने अपने स्टॉल में शजर पत्थर से निर्मित पैंडलिस्ट, शोपीस, हार, अंगूठी, ज्वैलरी, पेपरवेट और ताजमहल को सजाया। यूं तो मेले में दुनिया भर की वस्तुओं के स्टाल लगे थे, लेकिन विदेशियों को शजर पत्थर के स्टॉल ने खास आकर्षित किया। शजरकला की वस्तुओं को खरीदने में उन्होंने दिलचस्पी दिखाई।
बुंदेलखंड हस्तशिल्प का सर्वोत्कृष्ट केन्द्र माना जाता है। चंदेरी की जरी वाली सिल्क साड़ियां तथा हस्तशिल्प का बेजोड़ उदाहरण है। इसी प्रकार बुंदेलखंड का शजर हस्तशिल्प भी पीढ़ी दर पीढ़ी सहेजा जा रहा है। ये कला हजारों साल से पीढ़ी-दर-पीढ़ी पोषित होती रही हैं और हजारों हस्तशिल्पकारों को रोजगार प्रदान करती हैं। इस प्रकार देखा जा सकता है भारतीय शिल्पकार किस तरह अपने जादुई स्पर्श से एक बेजान धातु, लकड़ी या हाथी दाँत को कलाकृति में बदलकर भारतीय हस्तशिल्प को अन्तरराष्ट्रीय स्तर पर अतुलनीय पहचान दिलाते हैं।
बुंदेलखण्ड क्षेत्र में ऐसी अनेक हस्तकलाएं देखी जा सकती हैं, जो अपने प्रारम्भिक दौर में अत्यन्त संकुचित दायरे के भीतर थीं, किन्तु समय के अनुरुप उनकी मांग बढ़ती चली गई और उन्होंने व्यावसायिक रुप ग्रहण कर लिया। लेकिन व्यावसायिक रुप ग्रहण करने के उपरान्त भी इन कलाओं की अपनी एक मौलिक और क्षेत्रीय पहचान है। किसी भी अन्य क्षेत्र की कला से इनकी तुलना नहीं की जा सकती। शजर हस्तशिल्पी सरकार से चाहते हैं कि बुंदेलखंड में शजर का बाजार स्थापित किया जाए। इसकी सरकारी खरीद हो, हस्त शिल्प शजर कारोबार का व्यापक प्रचार प्रसार कराया जाना चाहिए। अन्तर्राष्ट्रीय मेलों में भाग लेने के लिए हस्त शिल्पियों का भी चयन हो। शजर को बढ़ावा देने के लिए ट्रेंनिग प्रोग्राम व कामन फैसीलिटी सेंटर खुलें। शजर उद्योग लगाने के लिए शिल्पियों को ऋण में खास रियायतें दी जाएं। ये बुनियादी मांगे शजर उद्योग को बचाने के लिए हैं। इसमें एक मांग और जोड़ा जाना जरूरी है, वह है केन नदी के संरक्षण का तथा उसे रेत के अवैध खनन से बचाने का। कुलमिला कर ऐसे उद्योगों को समाप्त होने से बचाना जरूरी है जो बुंदेलखंड को आर्थिक विस्तर के साथ ही अंतर्राष्ट्रीय पहचान दिलाने में सक्षम हैं।
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