Dr (Miss) Sharad Singh |
बुंदेलखंड की औषधीय-वनस्पतियों को चुना था च्यवन ऋषि ने
- डॉ. शरद सिंह
( नवभारत , 09.11.2019 में प्रकाशित )
( नवभारत , 09.11.2019 में प्रकाशित )
बुंदेलखंड आदि काल से ही वनस्पतियों का धनी रहा है। बुंदेलखंड में बहुतायत में जड़ी- बूटियां पाई जाती हैं। बुन्देलखण्ड का भौगोलिक क्षेत्र लगभग 70000 वर्ग किलोमीटर है जोकि वर्तमान हरियाणा, पंजाब तथा हिमाचल से अधिक है। इसमें उत्तर प्रदेश एवं मध्य प्रदेश के 13 जनपद तथा समीपवर्ती भू-भाग है जो यमुना और नर्मदा नदी से सिंचित हैं। यदि वनसंपदा की दृष्टि से देखा जाए तो बुन्देलखण्ड में इतने संसाधन है कि वह आर्थिक व्यवस्था स्वयं कर सकता है। किंतु संसाधनों के उचित दोहन के अभाव में तथा कुछ सतरों पर अवैधानिक दोहन के कारण यह क्षेत्र आज भी पिछड़ा हुआ है। अपनी संस्कृति के लिए विख्यात बुंदेलखंड अपने वनसंपदा के लिए भी जाना जाता रहा है। बुंदेलखंड के वन परिक्षेत्रों में उच्च कोटि के सागौन होता है जिसकी गृह निर्माण और फर्नीचर के क्षेत्र में बहुत मांग रहती है। वहीं तेन्दू की पत्तों का बीड़ी उद्योग में उपयोग होने के कारण बुंदेलखंड के हजारों परिवारों का भरण-पोषण होता है। यद्यपि यह उद्योग बीड़ी के चलन में कमी के साथ धीरे-धीरे सिमटता जा रहा है। बुंदेलखंड के वनों में पाए जाने वाले खैर के वृक्षों पर कत्था उद्योग आधारित है। औषधि निर्माण के लिए कच्चे माल की कमी नहीं है। बबूल, महुआ, शीशम, सहजन, ढाक, तेंदू, खैर, हल्दु, बांस, साल, बेल, पलाश, अर्जुन और औषधीय वनस्पतियों का प्रचुर भंडार हुआ करता था बुंदेलखंड में । महुआ खाने तथा तेल निकालने के काम आता है। बेल, आंवला, बहेरा, अमलतास, अरुसा, सर्पगंधा, गिलोय, गोखरु आदि प्रचुर मात्रा में मिलते हैं। बुंदेलखंड का ललितपुर जिला वर्षों से औषधीय वनस्पतियों के लिए विख्यात रहा है। यही कारण है कि च्यवन ऋषि ने यहां पर अपना आश्रम बनाकर औषधियों को विश्वभर में प्रचलित किया। च्यवन ऋषि की धरती तहसील पाली से सात किलोमीटर दूर है। ग्राम बंट के जंगली क्षेत्र में च्यवन ऋषि का आश्रम था। आज भी यह क्षेत्र घने जंगल में तब्दील है। यहां पर अनेक प्रकार की जड़ी-बूटियां पाई जाती हैं। जिले की भौगोलिक स्थित ऐसी है कि पूरा क्षेत्र जड़ी-बूटियों से भरा पड़ा है। खासकर गौना वन रेंज और मड़ावरा के जंगल में बहुतायत में जड़ी बूटियां पाई जाती हैं। ऐसा माना जाता है कि च्यवन ऋषि ने बुंदेलखंड में ही च्यवनप्राश बनाया था। च्यवनप्राश का उपयोग करोड़ों लोग स्फूर्ति प्रदान करने वाले टॉनिक के रूप में करते हैं। किन्तु आज इन औषधीय पौधों एवं जड़ी-बूअियों का उत्पादन कम होने से आयुर्वेदिक औषधियों का लाभदायक उद्योग संकट से जूझ रहा है।
Navbharat - Bundelkh Ki Aushadhiya Vanasptiyon Ne chuna tha Chyavan Rishi Ne - Dr Sharad Singh |
औषधीय महत्व के वनोपज में बबूल
का भी महत्वपूर्ण स्थान है। बुंदेलखंड के कई स्थानों पर बबूल की गोंद बड़ी
मात्रा में एकत्रित की जाती है। शहद एवं लाख आदि का भी उत्पादन होता है।
शंखपुष्पी, अश्वगंधा, ब्राह्मी, सफेद मूसली, पलाश, भूमि आंवला, खैर के बीज,
गाद, कसीटा, धावड़ा, कमरकस जड़ी- बूटी प्रमुख हैं। विगत वर्ष 2000 में
केंद्र सरकार ने औषधीय पौधों जिनमें सफेद मूसली, लेमन, मेंथा, पाल्मारोजा,
अश्वगंधा आदि को संरक्षित करने के लिए केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार
कल्याण मंत्री की अध्यक्षता में राष्ट्रीय औषधीय वनस्पति समिति का गठन किया
था। इसके बाद समिति ने 32 औषधियों के विकास के लिए चिन्हित किया था। इसमें
आंवला, अशोक, अश्वगंधा, अतीस, बेल, भूमि अम्लाकी, ब्राह्मी, चंदन, गुग्गल,
पत्थरचुर, पिप्पली, दारुहल्दी, इसबगोल, जटामांसी, चिरायता, कालमेघ, कोकुम,
कथ, कुटकी, मुलेठी, सफेद मूसली, केसर, सर्पगंधा, शतावरी, तुलसी, वत्सनाम,
मकोय प्रजाति को संरक्षित करने की योजना तैयार की थी। इनके उत्पादन को
बढ़ावा दिए जाने की बात भी सामने आई थी किन्तु आशातीत कार्य नहीं हुआ।
आज से लगभग पन्द्रह-बीस साल पहले औषधि में काम आने वाली सफेद मूसली वनों में भरपूर मात्रा में उत्पन्न होती थी। उल्लेखनीय है कि बुंदेलखंड में बसने वाले जनजाति के सहरिया परिवारों की गुजर-बसर इस औषधि के सहारे चलती। लेकिन, अब जंगलों की अवैध कटाई ने इस औषधि की उपलब्धा को भी बुरी तरह प्रभावित किया है। एक ओर इसकी उपलब्धता घटी है और दूसरी ओर इसके दाम भी बहुत कम मिल पाते हैं। प्राप्त जानकारी के अनुसार सफेद मूसली लगभग 100 रुपये प्रति किलोग्राम के हिसाब से बिकती है जिससे मुसली एकत्र करने वालों को पर्याप्त मुनाफा नहीं मिल पाता है।
वैसे विगत वर्षों में बुंदेलखंड में वानस्पतिक दृष्टि से नई संभावनाओं पर भी गौर किया जा रहा है। जिनमें फूलों की खेती और मशरूम का उत्पादन भी शामिल है। विशेषज्ञों के अनुसार बुंदेलखंड में फूलों की खेती की काफी संभावनाएं हैं। वहीं आयस्टर मशरूम के उत्पादन को भी बढ़ावा दिया जाने लगा है। यह माना जाता है कि आयस्टर मशरूम में औषधीय एवं पौष्टिक गुण पाए जाते हैं। यह वनस्पति जगत के तहत आने वाले खोने योग्य फफंूद है। जिसको गेहूं के भूसे पर उगाया जा सकता है। आयस्टर मशरूम में प्रोटीन खनिज पदार्थ, आयरन फोलिक अम्ल आदि पाए जाते हैं। यह मधु मेह रोगियों, उच्च रक्तचाप को कम करने में मददगार होता है।
विडम्बना यह है कि पहले वनवासी वन संपदा पर अपना अधिकार समझकर खैर, गोंद, शहद, आंवला, आचार, तेंदूफल व सीताफल का संग्रह कर उसे शहर व कस्बों में बेच कर अपने परिवार की भूख मिटाते थे, लेकिन अब इधर वन विभाग वन संपदा पर अपना अधिकार जता कर इन उत्पादों की नीलामी करने लगा है। अब तो वनवासी जंगल में वनोपज पाने के लिए बिना अनुमति के घुस भी नहीं सकते हैं। यदि कहीं बिना अनुमति के जाने पर पकड़े गए तो सज़ा और जुर्माना भुगतना पड़ता है।
विचारणीय है कि जिस भू-भाग को च्यवन ऋषि ने औषधीय बनोपज की उपलब्धता के कारण अपना कर्मक्षेत्र बनाया, उसी भू-भाग को आज अपनी वनसंपदा को तेजी से नष्ट होते देखना पड़ रहा है। शहर गांवों को निगल रहे हैं और गांव जंगलों में प्रवेश करते जा रहे हैं। अवैध कटाई के चलते औषधि और गैर औषधि वाली वनस्पतियां असमय काल का ग्रास बनती जा रही हैं। एक सघन जागरुकता ही च्यवन ऋषि के औषधीय बुंदेलखंड को बचा सकती है।
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आज से लगभग पन्द्रह-बीस साल पहले औषधि में काम आने वाली सफेद मूसली वनों में भरपूर मात्रा में उत्पन्न होती थी। उल्लेखनीय है कि बुंदेलखंड में बसने वाले जनजाति के सहरिया परिवारों की गुजर-बसर इस औषधि के सहारे चलती। लेकिन, अब जंगलों की अवैध कटाई ने इस औषधि की उपलब्धा को भी बुरी तरह प्रभावित किया है। एक ओर इसकी उपलब्धता घटी है और दूसरी ओर इसके दाम भी बहुत कम मिल पाते हैं। प्राप्त जानकारी के अनुसार सफेद मूसली लगभग 100 रुपये प्रति किलोग्राम के हिसाब से बिकती है जिससे मुसली एकत्र करने वालों को पर्याप्त मुनाफा नहीं मिल पाता है।
वैसे विगत वर्षों में बुंदेलखंड में वानस्पतिक दृष्टि से नई संभावनाओं पर भी गौर किया जा रहा है। जिनमें फूलों की खेती और मशरूम का उत्पादन भी शामिल है। विशेषज्ञों के अनुसार बुंदेलखंड में फूलों की खेती की काफी संभावनाएं हैं। वहीं आयस्टर मशरूम के उत्पादन को भी बढ़ावा दिया जाने लगा है। यह माना जाता है कि आयस्टर मशरूम में औषधीय एवं पौष्टिक गुण पाए जाते हैं। यह वनस्पति जगत के तहत आने वाले खोने योग्य फफंूद है। जिसको गेहूं के भूसे पर उगाया जा सकता है। आयस्टर मशरूम में प्रोटीन खनिज पदार्थ, आयरन फोलिक अम्ल आदि पाए जाते हैं। यह मधु मेह रोगियों, उच्च रक्तचाप को कम करने में मददगार होता है।
विडम्बना यह है कि पहले वनवासी वन संपदा पर अपना अधिकार समझकर खैर, गोंद, शहद, आंवला, आचार, तेंदूफल व सीताफल का संग्रह कर उसे शहर व कस्बों में बेच कर अपने परिवार की भूख मिटाते थे, लेकिन अब इधर वन विभाग वन संपदा पर अपना अधिकार जता कर इन उत्पादों की नीलामी करने लगा है। अब तो वनवासी जंगल में वनोपज पाने के लिए बिना अनुमति के घुस भी नहीं सकते हैं। यदि कहीं बिना अनुमति के जाने पर पकड़े गए तो सज़ा और जुर्माना भुगतना पड़ता है।
विचारणीय है कि जिस भू-भाग को च्यवन ऋषि ने औषधीय बनोपज की उपलब्धता के कारण अपना कर्मक्षेत्र बनाया, उसी भू-भाग को आज अपनी वनसंपदा को तेजी से नष्ट होते देखना पड़ रहा है। शहर गांवों को निगल रहे हैं और गांव जंगलों में प्रवेश करते जा रहे हैं। अवैध कटाई के चलते औषधि और गैर औषधि वाली वनस्पतियां असमय काल का ग्रास बनती जा रही हैं। एक सघन जागरुकता ही च्यवन ऋषि के औषधीय बुंदेलखंड को बचा सकती है।
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