Dr
(Miss) Sharad Singh
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नाराज़ हैं अन्नदेवता और उदास है कुरैया
- डाॅ शरद सिंह
कर्जों पर कर्जे हैं ब्याज के
बारिश में भीगते अनाज के
अन्नदेव क्रोधित हैं आज फिर
देख दशा लापरवाही-राज के
एक बार फिर हज़ारों टन गेंहू भीगा है बारिश में। एक बार फिर मंडियों की राह में खड़े किसानों अपना अनाज भीगने से बचाने के लिए जूझना पड़ा है। अनाज भीगता है, सड़ता है, नष्ट होता है तो किसान तो खून के आंसू रोता ही है, साथ में आम जनता भी मज़बूर हो जाती है मंहगा अनाज खरीदने को। सवाल यह है कि चूक एक बार हो तो वह चूक कही जा सकती है लेकिन प्रति वर्ष वही किस्सा दोहराया जाता है। अब इसे अपराध कहें या अक्षम्य लापरवाही? इस अव्यवस्था के चलते देश में हर साल लगभग 2.10 करोड़ टन गेहूं बर्बाद होता है।
अन्ना देवता नाराज़ हैं, बेहद नाराज़ और उतनी ही उदास है कुरैया। अन्नदेवता ने सोचा था कि गेंहूं के रूप में किसानों के खेत में उपजने के बाद उन्हें खुले में पड़े-पड़े हर साल की तरह भीगना, सड़ना नहीे पडे़गा। लेकिन दुर्भाग्य से इस बार फिर वही हुआ। खुले में पड़ा अनाज़ भीग गया। अब अन्नदेवता नाराज तो होंगे ही। उन्हें भी लगता होगा कि जब अन्न का संरक्षण और सम्मान करना नहीं आता है तो उसे उगाया ही क्यों जाता है? किसानों से मेहनत ही क्यों कराई जाती है? यूं भी इस बार समय कठिन था। कोरोना आपदा के कारण किसानों को अनाज की ़
कटाई, ढुलाई आदि सभी में परेशानी का सामना करना पड़ा। उस पर जैसे तैसे व्यवस्था कर के, परमिट बनवा कर किसान ने सरकारी खरीद स्थल तक अपना अनाज पहुंचाया। मगर हर साल की तरह इस साल भी उस समय बारिश हुई जब सरकारी मंडियों में अनाज खुले में पड़ा था। दोष निसर्ग तूफान से उपजी चक्रवाती बारिश को दें या फिर उस अव्यवस्था को जिसके तहत अनाज के संरक्षण की समुचित व्यवस्था आज भी नहीं हो सकी है।
Charcha Plus Column of Dr (Miss) Sharad Singh, 10.06.2020 |
अनाज के भीगने पर वह कुरैया भी उदास है जिससे मापा गया था अनाज को। बुन्देलखण्ड में प्रचलित कुरैया, कहने को तो महज एक पीतल का बरतन होता है। यह एक ऐसा बरतन है जो प्रत्येक किसान के जीवन से जुड़ा रहता है। कुरैया अनाज मापने का एक बरतन होता है जिसके द्वारा अनाज को माप कर यह पता लगाया जाता है कि खेत में कुल कितनी फसल हुई। कुरैया से मापे जाने के बाद ही अनाज के बोरों को तराजू पर तौला जाता है। इस तरह माप का पहला विश्वास भी कुरैया ही होता है। यह अथक श्रम से जुड़ा हुआ बरतन है। कुरैया को कभी भी जूता या चप्पल पहन कर उपयोग में नहीं लाया जाता है। अन्न की यह ऊपर तक भरी हुई मात्रा पांच किलो मानी जाती है। बीस कुरैया का एक बोरा होता है अर्थात् सौ किलो माप का। अनाज को कुरैया से मापते समय अन्न के खेप की गिनती भी विशेष प्रकार से की जाती है। पहली माप को ‘एक’ न कह कर ‘राम’ कहा जाता है। दूसरी माप करते समय, जब तक कुरैया ऊपर तक भर नहीं जाती तब तक ‘राम-राम-राम’ का ही उच्चारण किया जाता है। कुरैया ऊपर तक भरने के पश्चात दूसरी माप से ‘दो-दो-दो’ का उच्चारण किया जाता है। इसके बाद इसी क्रम में तीन-तीन-तीन, चार-चार-चार, पांच-पांच-पांच आदि सामान्यतौर पर माप की जाने वाली गिनती बोली जाती है। इस प्रकार अनाज की पहली माप ‘राम’ नाम से आरम्भ होती है जो शुभ-लाभ का पर्याय है। अनाज भीगेगा तो कुरैया भी तो उदास होगी ही। बस, संवेदनाएं अगर नहीं जागती हैं तो उन व्यवस्थापकों की जिनके जिम्मे होता है अनाज का संरक्षण।
निसर्ग तूफान के चलते प्रदेश में जमकर बारिश हुई। इस बारिश का अलर्ट पहले ही जारी कर दिया गया था। इस बीच जिले भर के उपार्जन केंद्रों पर खुले में पड़ा हुआ था। बारिश हुई और हजारों क्विंटल अनाज बारिश में भीग गया। जिला कलेक्टर की ओर से निर्देश दिये गए थे कि अनाज परिवहन तेजी करवाया जाए। यदि किसी भी प्रकार की लापरवाही हुई तो कार्यवाही की जाएगी। इसके बाद भी परिवहन में जिले के केंद्रों पर भंडारण परिवहन में लापरवाही बरती गई। या तो निर्देश में दम नहीं था या फिर निर्देश की अवहेलना करने वालों की खाल मोटी हो चुकी है। तभी तो सागर जिले में भी यह स्थिति रही कि जिले के सहकारी समर्थन मूल्य पर खुरई के झारई, गढौला जागीर, बहरोल और मालथौन के केंद्रों में खुले में पड़ा रहा हजारों क्विंटल अनाज और भीग गया। वही मालथौन केंद्र पर एक दर्जन से ज्यादा किसान चना की उपज को बेचने के लिये रुके हुए ट्रेक्टर ट्राली में त्रिपाल से ढांक कर जूझते रहे।
किसानों की मेहनत और मौसम की अनुकूलता के चलते इस बार पूरे मध्यप्रदेश में गेहूं की बंपर पैदावार हुई। लेकिन सरकार गेहूं के भंडारण की उचित व्यवस्था नहीं कर पाई। गेहूं निर्यात नहीं होने से भारतीय खाद्य निगम ने भी गेहूं नहीं उठाया। वेयर हाउसिंग कॉरपोरेशन के गोदाम पुराने अनाज से ही भरे हैं। ऐसे में किसानों का गेहूं निजी गोदामों और खुले में बनाए कैप में रखना पड़ा। यह व्यवस्था अपर्याप्त रही। परिणाम यह कि बारिश में खुले में रखा करीब 6 लाख क्विंटल गेहूं भीग गया।
देश में गेहूं बर्बाद होने से कई सवाल राज्यों से लेकर केन्द्र की सरकारों पर हमेशा से खड़े होते रहे हैं। इस विषय में सन् 1918 में सुप्रीम कोर्ट ने भी केंद्र से कहा था कि देश के गोदामों में गेहूं सड़ा देने से अच्छा है उसे उसे गरीबों में बांट दिया जाए। गेहूं की बर्बादी को लेकर सुप्रीम कोर्ट की यह टिप्पणी कई मायनों में बहुत महत्वपूर्ण थी। एक रिपोर्ट के मुताबिक देश में भुखमरी का सामना करने वाले सबसे ज्यादा प्रभावित लोग हैं। देश में करीब 19 करोड़ लोगों को उनकी आवश्यकता के अनुसार भोजन नहीं मिल पा रहा है। वहीं देश में हर साल 2.10 करोड़ टन गेहूं बर्बाद होता है। इस बर्बादी को लेकर न तो भारतीय खाद्य निगम गंभीर है और न ही गेहूं खरीदने वाली राज्य की एजेंसियां। आखिर कब चेतेगी सरकार और कब भीगने से बचेगा अनाज? कहीं अन्नदेवता रूठ ही न जाएं।
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(दैनिक सागर दिनकर में 10.06.2020 को प्रकाशित)
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