Dr (Miss) Sharad Singh |
चर्चा प्लस
पुराने वादों के साथ नया उपचुनाव
- डाॅ शरद सिंह
वही रैली, वही वादे, वही उम्मींद के पर्चे
दुआ है इस दफ़ा बदलें नज़ारें, हों नए चर्चे
कोरोना का संकट भले ही न टला हो लेकिन उपचुनाव की आहटें स्पष्ट सुनाई देने लगी हैं। कांग्रेस छोड़कर भाजपा में गए 22 विधायकों के इस्तीफे और दो विधायकों के निधन के कारण 24 खाली सीटों के लिए मध्यप्रदेश में उपचुनाव होना है। जिसमें बुंदेलखंड की सुरखी विधान सभा की सीट भी शामिल है। पिछले, उससे भी पिछले, बहुत पिछले चुनावों में जो वादे किए गए, वे वादे दोहराए जा रहे हैं।
अब भला नए वादे क्यों नहीं? तो समस्याएं भी तो नई नहीं हैं। स्वास्थ्य, जल प्रबंधन, स्वच्छता, जनसंबंधी व्यवस्थाएं आदि आज भी लड़खड़ाती चाल से चल रही हैं। कोरोनाकाल ने इन अव्यवस्थाओं में ईजाफ़ा ही किया है। भले ही उपचुनाव सुरखी विधान सभा का होने वाला है लेकिन यह महत्वपूर्ण उम्मींदवारों का महत्वपूर्ण क्षेत्र है। इस क्षेत्र ने महत्वपूर्ण मंत्री दिए हैं। आगे भी उम्मींद है कि सुरखी क्षेत्र के खाते में कोई न कोई मंत्रीपद दर्ज़ हो सकता है। इसीलिए इस क्षेत्र के उम्मींदवारों से मात्र सुरखी ही नहीं, पूरे सागर सम्भाग ही नहीं, समूचे बुंदेलखंड (मध्यप्रदेशीय) की आशाएं और आकांक्षांए जाग उठती हैं। व्यक्तिगत नहीं अपितु जनजीवन से जुड़ी समस्याओं के निराकरण और स्थाई हल की आशा।
चुनाव के संदर्भ में एक दिलचस्प चर्चा याद आ रही है। विगत शिक्षा-सत्र में यानी कोरोनाकाल के आरम्भ होने से पहले डाॅ. हरीसिंह गौर केन्द्रीय विश्वविद्यालय सागर, के राजनीति विज्ञान एवं लोक प्रशासन विभाग में ‘‘बुंदेलखंड में राजनीतिक लामबंदी- उत्तर प्रदेश व मध्यप्रदेश के बीच तुलना’’ विषय पर एक व्याख्यान का आयोजन हुआ था। तब उत्तर प्रदेश के बुंदेलखंड क्षेत्र में जाति आधारित राजनीतिक दलों का उदय व सशक्तिकरण और मध्यप्रदेश के बुंदेलखंड में दशा पर विचार किया गया था। यद्यपि मध्यप्रदेशीय बुंदेलखंड में भी जाति और धर्म का समीकरण गहराया रहता है। टिकट के लिए कभी जैन समाज दबाव बनाता है तो कभी ब्राह्मण समाज। लोधी समाज तो प्रभावी रहता ही है। अनुसूचितजाति बाहुल्य क्षेत्रों में अपना अलग समीकरण रहता है। जब पूरे देश में राजनीति और जाति का गठबंधन चल रहा हो तो बुंदेलखंड भला अछूता कैसे रह सकता है फिर वह चाहे उत्तरप्रदेशीय हो या मध्यप्रदेशीय। यह अवश्य है कि मध्यप्रदेशीय बुंदेलखंड में कांग्रेस और भाजपा ही प्रमुख राजनीतिक दलों की हैसियत बनाए हुए है।
समूचे बुंदेलखण्ड की समस्याएं ज्यों कि त्यों हैं। इसीलिए जो वादे इस क्षेत्र के पहले लोकतांत्रिक चुनावों के दौरान किए गए थे, आज भी लगभग वही वादे किए जा रहे हैं। आम नागरिकों ने संघर्ष करके सागर के गौरवशाली डाॅ हरीसिंह गौर विश्वविद्यालय को केन्द्रीय विश्वविद्यालय का दर्जा दिला तो दिया लेकिन इस केन्द्रीय विश्वविद्यालय में आज यह दशा है कि एक व्यक्ति दो-दो, तीन-तीन डिपार्टमेंट्स का कार्य सम्हाल रहा है जबकि वह उन विषयों का स्काॅलर भी नहीं है। जिस विश्वविद्यालय को केन्द्रीय स्वरूप मिल जाने के कारण देश-दुनिया के कोने-कोने से छात्र पढ़ने के लिए इच्छुक रहते हैं, वहां विषय विशेषज्ञों की कमी है। इस कमी को पूरा कने के लिए बहुतायत अतिथि शिक्षकों से काम चलाया जा रहा है।
क्षेत्र में आईटी पार्क खोले जाने की युवाओं द्वारा विगत वर्ष आंदोलनकारी रूप से मांग उठाई गई थी। बाद में उन्हें यह समस्या समझ में आई कि कोई भी बहुराष्ट्रीय कंपनी के उच्चाधिकारी किस साधन से इस क्षेत्र तक पहुंचेंगे? यहां मात्र एक हवाईअड्डा है। जहां से गिनती की उड़ाने हैं। कहने का आशय यह कि बुंदेलखण्ड के इस क्षेत्र में वह अनुकूल वातावरण ही नहीं है जो आईटी पार्क के लिए निवेशकों को आकर्षित कर सके। रोजगारोन्मुखी शिक्षा की कमी के चलते यहां के आम युवाओं में भी उस क्षमता (स्किल)का विकास नहीं हो सका है जो बहुराष्ट्रीय कंपनियों को लुभा सके।
गरीब तबके की जो महिला जिसे किसी विशेष हुनर की शिक्षा नहीं मिली है वह बीड़ी बना कर अपने परिवार को आर्थिक मदद दे पाती है। इसीलिए बीड़ी उद्योग में बीड़ी बनाने का कार्य करने वाली महिलाओं का अनुपात 90 प्रतिशत है। लेकिन आज बीड़ी उद्योग भी घाटे में चल रहा है। बीड़ी पीने का चलन लगभग समाप्त होता जा रहा है और महिलाएं भी बीड़ी बनाने के काम के स्वास्थ्य संबंधी जोखिम समझने लगी हैं। लेकिन बीड़ी उद्योग नहीं तो और क्या उपाय है उनके पास अर्थोपार्जन का? इस क्षेत्र में न तो कोई फूड पार्क है, न कोई बड़ा गृहउद्योग है और न कोई ऐसा हैण्डलूम उद्योग है जो घरेलू महिलाओं को रोजगार से जोड़ सके।
बुंदेलखंड में इस बार फिर गरीबी उन्मूलन, बेरोजगारी उन्मूलन, क्षेत्र का विकास जैसे वही चुनावी वादे गूंजने लगे हैं जिन्हें दशकों से इस क्षेत्र की आम जनता सुनती आ रही है। हर बार की तरह इस बार भी आम जनता को उम्मींद है कि इसबार शायद दिन फिर जाएं और हालात बदल जाए। कोरोनाकाल हमेशा नहीं रहेगा लेकिन ये समस्याएं भी हमेशा न रहें इसके लिए अभी वादा कर रहे चुनाव टिकट आकांक्षियों को इसके लिए ईमानदारी से आगे आना होगा।
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(दैनिक सागर दिनकर में 24.06.2020 को प्रकाशित)
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