Tuesday, August 2, 2022

पुस्तक समीक्षा | माटी का सोंधापन लिए कविताएं | समीक्षक - डाॅ. (सुश्री) शरद सिंह | आचरण


प्रस्तुत है आज 02.08.2022 को  #आचरण में प्रकाशित मेरे द्वारा की गई कवि आचार्य पं. महेश दत्त त्रिपाठी के काव्य संग्रह  "सोंधी माटी" की समीक्षा... आभार दैनिक "आचरण" 🙏

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पुस्तक समीक्षा

माटी का सोंधापन लिए कविताएं

समीक्षक - डाॅ. (सुश्री) शरद सिंह 

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काव्य संग्रह     -  सोंधी माटी

कवि     -  आचार्य पं. महेश दत्त त्रिपाठी

प्रकाशक        -  एन. डी. पब्लिकेशन, बाधापुर ईस्ट, नई दिल्ली

मूल्य           -  200/-  

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    ‘‘सोंधी माटी’’ सागर नगर के सुपरिचित कवि आचार्य पं. महेश दत्त त्रिपाठी का प्रथम काव्य संग्रह है। पं. त्रिपाठी उच्चकोटि के शिक्षक रहे हैं और प्राचार्य पद से सेवानिवृत्ति के साथ ही उनका यह प्रथम काव्य संग्रह प्रकाशित होना इस बात का स्पष्ट उद्घोष है कि वे अपने जीवन की दूसरी पारी मुक्तभाव से साहित्यसृजन में व्यतीत करेंगे। संग्रह की कविताओं को तीन भागों में बांटा जा सकता है- जीवनपरक, प्रकृतिपरक और व्यक्तिपरक। जीवन परक कविताओं में पं. महेश दत्त त्रिपाठी ने ‘‘लाॅकडाउन या तालाबंदी’’, ’’मानवता’’, ’’किसान’’, ’’मोबाईल’’, ’’नमस्ते’’, ’’केन्द्राध्यक्ष’’, ’’मत्स्यन्याय’’, ’’गुनगुना पानी’’, ’’आस्तिक-नास्तिक’’ आदि कविताएं लिखी हैं। कोरोना काल का सबसे सुरक्षित दौर था लाॅकडाउन। यह सच है कि उस दौर ने मजदूरों और रेहड़ी वालों को आर्थिक तंगी के शिखर पर पहुंचा दिया जहां से उतर पाने का उनके पास कोई रास्ता नहीं था लेकिन इसी लाॅकडाउन ने लोगों को घरों में एक साथ रहने की महत्ता भी एक बार फिर याद दिला दी। न्युक्लियर परिवारों के बढ़ते चलन के दौरा में लोगों को एक बार फिर अपने रिश्तों की गहराई से पहचान हुई। जो पहले सोशल मीडिया से परहेज करते थे, वे भी उस दौर में सोशल मीडिया के आदी हो गए। घर में रहने के कारण कई ऐसे काम किए गए जो वर्षों से लम्बित थे। इस संबंध में पं. त्रिपाठी की ‘‘लाॅकडाउन या तालाबंदी’’ कविता की ये पंक्तियां बड़ी रोचक हैं-

अपने ही घर को इतने नज़दीक से 

हमने कभी न जाना था

पलंगपेटी में रखी पुस्तकें

कपड़े जो उठा कर नहीं देखे।

बेचारा लोहे का संदूक

जो भीतर से साफ़ ही नहीं हुआ

उस पर पेंट कलर करके चमकाया।


‘‘मानवता’’ वह कविता है जो कवि के मानवीय सरोकारों से साक्षात्कार कराती है और यह स्थापित करती है कि आज के संवेदनहीन होते समय में मानवता कितनी आवश्यक है। आज यदि कोई हादसा होता है तो लोग घायल की मदद करने के बजाय उसके कष्ट की उस दुर्घटना की अपने मोबाइल पर वीडियो बनाना शुरू कर देते हैं। भले ही वह घायल तड़प तड़प कर मर जाए। ऐसे विपरीत समय में मानवता का परिचय देना बहुत आवश्यक है। जबकि आज के समय में किसी की मदद करना और भी आसान हो गया है सिर्फ 100 नंबर डायल करना है और मदद फौरन हाजिर हो जाती है। इसी सत्य को रेखांकित करते हुए कवि ने ‘‘मानवता’’ शीर्षक से यह कविता लिखी है- 


ये क्या /मैं चला 

रात में दलपतपुर (बंडा) से 

कर्रापुर आते-आते 

बजे रात के बारह /सामने देखा तो

बाइक किसी की /टकराई होगी 

कराह रहे थे महिला-पुरुष 

बीच सड़क पर पड़े 

रुका मैं, जगी मानवता 

डायल 100 किया दो-तीन बार 

और भिजवाया अस्पताल उन्हें।


यह संवेदना उसी व्यक्ति के भीतर जागृत अवस्था में पाई जा सकती है जिसे माटी के सोंधेपन का अहसास हो। लेकिन जीवन का एक और पक्ष है राजनीति, जहां अहसास होते हुए भी संवेदना की कमी दिखाई देती है। इस अवस्था पर कवि ने ‘‘मत्स्यन्याय’’ शीर्षक कविता में लिखा है- 

राजनीति का अर्थ है 

अब बदलते परिवेश में 

जंगलराज का होना ।

जब मानव स्वीकार करता है 

जंगलराज को 

तब वहां होने वाले 

मत्स्य न्याय को कहते हैं अधर्म।


कवि त्रिपाठी प्रकृति परक रचनाओं में मानवीय भावना के रूप में प्रेम के अस्तित्व का विस्तृत वर्णन करते हैं। ‘‘प्रेम’’ शीर्षक से लिखी गई उनकी कविता की यह पंक्तियां देखिए-

मनुष्य की भावना ही प्रेम है 

जो असीमित, 

अनंताकाश में विद्यमान है 

यह ऐसा अद्भुत भाव है 

यह सुगंध की तरह है 

अपने अस्तित्व की।


कवि त्रिपाठी ने प्राकृतिक तत्व के मध्य मौजूद सोंधी माटी के वास्तविक स्वरूप को ‘‘सोंधी माटी देश की’’ शीर्षक से रेखांकित किया है-

हमारा प्यारा भारतवर्ष 

शब्द भी कम पड़ेंगे 

इस देवभूमि की माटी पर 

जहां अवतार लिया 

भगवान श्रीराम, श्रीकृष्ण, महाप्रभु ने, 

गौतम बुद्ध और महावीर ने ....।


वस्तुतः यही तो माटी का  सोंधापन है जो व्यक्ति को उसकी मातृभूमि से जोड़े रखता है। प्रकृति पर केंद्रित एक और कविता जिसका शीर्षक है ‘‘धरती और बरसात’’ यह बहुत सुंदर कविता है, जो शब्दों के माध्यम से वर्षा ऋतु का अनुभव कराती है-

धरती का अपनापन गहरा है 

इतना कि वह कभी 

बरसाती पहनकर या छाता लगाकर 

बरसात का स्वागत नहीं करती 

पृथ्वी तो बारिश में 

भीग जाने पर ही 

अपनी सार्थकता समझती है 


व्यक्ति पर कविताओं में कवि त्रिपाठी ने ‘‘भाई जी डॉ. सुब्बाराव’’, ‘‘पंडित दीनदयाल उपाध्याय - मानवतावाद के प्रणेता’’, ‘‘संत विनोबा भावे’’ के साथ ही ‘‘मजदूरनी कोरोनाकाल की’’ जैसी कविताएं लिखी हैं। ‘‘कोरोनाकाल की मजदूरनी’’ में एक संवेदनशील और मार्मिक रचना है। कोरोनाकाल में मजदूरों के शहरों से गांव की ओर प्रस्थान के दौरान आने वाली कठिनाइयों का शब्दशः चित्रण किया गया है इस कविता में, कुछ पंक्तियां देखें-

मैं एक मजदूरन हूं 

कोई मुझे भी कोरोना की 

चाल जरा सी बतला दो 

मैं चली हूं अपने सफर पर 

बस सफर 12 - 13 दिन का 

मेरे पेट में 9 महीने 

और हाथ में छोटा बच्चा है.....

       संग्रह की कविताओं में मानवीय अनुभवों और उनके सूक्ष्मतम निहितार्थों के साथ-साथ मानव और प्राकृतिक दुनिया के अलग-अलग पड़ावों के मार्मिक अनुभवों-प्रसंगों को उभारने वाले बिंब हैं। संग्रह में सहज सरल भाषा में सुंदरता से शब्दों को पिरोया गया है। ‘‘सोंधी माटी’’ कवि के प्रथम काव्य संग्रह के रूप में स्वागतेय है।

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