"भगवान श्रीकृष्ण और उनकी लीलाओं से तो हम आप सभी परिचित हैं। जन्माष्टमी आते हैं हम प्रसन्नता पूर्वक श्री कृष्ण का जन्मोत्सव मनाते हैं उनके बाल स्वरूप का श्रृंगार करते हैं, उन्हें झूला झूलाते हैं और यह सोचकर प्रसन्न होते हैं कि बालकृष्ण हमारे घर में प्रवेश कर चुके हैं। निश्चित रूप से यह एक सुखद कल्पना है। लेकिन क्या हम श्रीकृष्ण के व्यक्तित्व और चरित्र के सभी पक्षों को भली भांति जानते हैं यह समझते हैं अगर नहीं तो हमें जानना और समझना चाहिए। उनके विचारों, कर्मों, कलाओं और लीलाओं पर अगर आप ध्यान देंगे तो पाएंगे कि श्रीकृष्ण सिर्फ एक भगवान या अवतार भर नहीं थे। इन सबसे आगे वह एक ऐसे पथ प्रदर्शक और मार्गदर्शक थे,जिनकी सार्थकता हर युग में बनी रहेगी।
आज छल कपट भरे कारपोरेट युग में श्रीकृष्ण के उपदेश, कार्य और चरित्र हमें मार्गदर्शन देते हैं। वे एक कुशल संचालक थे। महाभारत के युद्ध के दौरान पांडवों की युद्ध संरचना ही नहीं बल्कि अर्जुन के रथ की लगाम भी कृष्ण ने ही थामी थी। उन्होंने स्वयं कोई शस्त्र नहीं उठाया था लेकिन वे सारथी बनकर युद्ध के मैदान में उतरे थे। एक कुशल संचालक जैसे अपने कक्ष में बैठा रहता है और पूरे कारपोरेट ऑफिस का संचालन करता है, परिवार का मुखिया एक स्थान में बैठा रहता है किंतु परिवार के सभी सदस्यों को उचित सलाह देखकर वह परिवार का व्यवस्थित संचालन करता है, ठीक उसी प्रकार कृष्ण ने अर्जुन के रथ का सारथी बनकर पांडवों के युद्ध का संचालन किया और उन्हें विजय दिलाई।
कृष्ण ने हर स्थिति में सत्य और न्याय का साथ दिया। यही बात उन्होंने अर्जुन को भी समझाई थी कि जब संघर्ष अच्छे और बुरे का हो और बुराई को मिटाना हो तो ऐसी स्थिति में संबंधों को भुला देना चाहिए। जैसे आज के समय में हम भाई- भतीजावाद के नाम से पीड़ित रहते हैं। इसी भाई भतीजावाद का प्रतिरोध किया था श्रीकृष्ण ने और कहा था कि यदि यह संबंध दोषपूर्ण है तो मिथ्या हैं, इन संबंधों के साथ में मत पड़ो। श्री कृष्ण ने कर्म को प्रधानता दी। उन्होंने यही कहा कि फल यानी परिणाम के बारे में मत सोचो। बस कर्म करते रहो! यदि अच्छे कर्म करोगे तो अच्छा फल मिलेगा और बुरे कर्म करोगे तो बुरा फल मिलेगा।
कृष्ण का चरित्र यह भी हमें समझाता है कि अपनी धनसंपदा, बाहुबल आदि का अनावश्यक प्रदर्शन नहीं करना चाहिए, जब अति आवश्यक हो तभी इन सब चीजों को प्रस्तुत करना चाहिए। श्रीकृष्ण ने आवश्यकता होने पर ही अर्जुन को अपने विराट रूप के दर्शन कराए थे, अन्यथा वे एक सामान्य व्यक्क्ति की भांति सबके बीच रह रहे थे।
श्री कृष्ण एक अवतार, एक ईश्वर के रूप में ही नहीं वरन एक लाइफ मैनेजमेंट गुरु के रूप में भी हर समय प्रासंगिक हैं। बस जरूरत है उनके विचारों और व्यक्तित्व को समझने की।" मैंने (डॉ सुश्री शरद सिंह ने) अपना अध्यक्षीय उद्बोधन देते हुए अपने ये विचार रखे थे कल.20.08.2022 को बुंदेलखंड हिंदी साहित्य संस्कृति विकास मंच सागर द्वारा 1440 वी एवं आन लाईन स्वरूप 118 वी साप्ताहिक संगोष्ठी में।
श्री मणीकांत चौबे बेलिहाज प्रांतीय संयोजक के निर्देशन में मध्य प्रदेश के अलावा देश के विभिन्न प्रांतों नई दिल्ली,यू पी,गुजरात, कर्नाटक, राजस्थान,झारखंड के साहित्य मनीषियों ने अपना रचना पाठ किया । कार्यक्रम का संचालन किया कवि एवं कुशल संचालक डॉ नलिन जैन ने। श्री कृष्ण कांत पक्षी के संरक्षण में निरंतर आयोजित हो रहे आयोजनों के तारतम्य में कल के इस आयोजन में आभार प्रदर्शन किया एडवोकेट राधाकृष्ण व्यास ने।
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