Sunday, August 21, 2022

अपने समय से आगे की लेखिका थीं इस्मत आपा- डॉ (सुश्री) शरद सिंह | प्रलेस की संगोष्ठी

"आज  इस्मत चुग़ताई जिनका जन्म दिन है। 21 अगस्त, 1915 को जन्मी इस्मत चुग़ताई को सभी इस्मत आपा कह कर पुकारते थे।  वे भारतीय साहित्य में एक चर्चित और सशक्त कहानीकार के रूप में विख्यात हैं। उन्होंने महिलाओं से जुड़े मुद्दों को अपनी रचनाओं में बेबाकी से रखने का जोखिम भी उठाया। पहली बात तो यह कि वे उस समुदाय से आती थीं, जहां पर्दा प्रथा ज़बर्दस्त तरीके से था । और दूसरी बात कि उन्होंने स्त्री जीवन से जुड़े उन मुद्दों को उठाया जिन पर चर्चा होने पर आज भी समाज ही नहीं बल्कि बुद्धिजीवी वर्ग तक सकते में आ जाता है। इस्मत आपा ने इस सच्चाई को अपनी कहानियों के जरिए दुनिया के सामने लाया।
     इस्मत आपा अपनी कहानी  'लिहाफ'  के कारण चर्चा में आईं। गौरतलब है कि यह कहानी सन 1941 में लिखी गई थी। इस कहानी में उन्होंने महिलाओं के बीच समलैंगिकता के मुद्दे को उठाया था। उस दौर में किसी महिला के लिए ऐसी कहानी लिखना एक दुस्साहस का काम था। इस्मत आपा पर अश्लीलता का मुकद्दमा दायर किया गया।  बाद में मुकदमा वापस भी ले लिया गया।  लेकिन तमाम विरोधियों से वे न कभी डरी और न कभी दबीं। इस्मत आपा मूलतः ऊर्दू की लेखिका थीं, लेकिन हिंदी में भी उन्होंने अपनी कलम चलाई। भारतीय साहित्य में उनका स्थान एक प्रगतिशील लेखिका के रूप में सदा बना रहेगा।" अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में मैंने (यानी डॉ सुश्री शरद सिंह ने) प्रगतिशील लेखक संघ की मकरोनिया (सागर) इकाई की संगोष्ठी में विचार रखें। 
         इस संगोष्ठी में मकरोनिया इकाई के अध्यक्ष डॉ सतीश पांडेय, सागर इकाई के अध्यक्ष डॉ टीकाराम त्रिपाठी, श्री पी आर मलैया जी तथा श्री वीरेंद्र प्रधान जी ने सुविख्यात व्यंग्यकार एवं प्रगतिशील लेखक हरिशंकर परसाई के कृतित्व एवं विचारों पर समुचित प्रकाश डाला। संगोष्ठी के दूसरे सत्र में कवि गोष्ठी का आयोजन हुआ जिसमें श्री संतोष रोहित, डॉ सतीश पांडेय, डॉ टीकाराम त्रिपाठी, श्री वीरेंद्र प्रधान, सुश्री भावना बड़ोन्या, श्रीमती ममता भूरिया, श्री मुकेश तिवारी, श्री कंवल आदि  सहित मैंने भी काव्य पाठ किया।
भारी बारिश के बावजूद सभी साहित्यकारों की उल्लेखनीय उपस्थिति रही।
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