Wednesday, August 10, 2022

चर्चा प्लस | विश्व शेर दिवस | हर हाल में जरूरी है शेरों को बचाना | डॉ. (सुश्री) शरद सिंह | सागर दिनकर

चर्चा प्लस  
विश्व शेर दिवस:
हर हाल में जरूरी है शेरों को बचाना
- डाॅ (सुश्री) शरद सिंह                                                                                        
हम कभी नहीं चाहेंगे कि शेर लुप्त प्राणियों की श्रेणी में आए। देश-दुनिया में उनकी तेजी से कम होती संख्या चिंताजनक है। इसीलिए प्रति वर्ष 10 अगस्त को ‘‘विश्व शेर दिवस’’ मनाया जाता है ताकि शेरों के जीवन और उनके जीवन के संकट के प्रति आमजन को जागरूक किया जा सके।
रजनीकांत की फिल्म ‘‘शिवाजी द बाॅस’’ का यह डाॅयलाॅग बहुत चर्चित हुआ था कि- ‘‘भीड़ में तो सुअर आते हैं, शेर अकेला ही आता है।’’ वस्तुतः शेर हिम्मत, ताकत और साहस का प्रतीक माना जाता है और इसीलिए शेर की चर्चा एक मुहावरे के रूप में की जाती है। अन्यथा शेर एक सामाजिक व्यवस्था बना कर रहता है। दरअसल आम बोलचाल में बाघ और शेर को ले कर घालमेल कर दिया जाता है। सच ये है कि शेर बाघों के मुकाबले ज्यादा सामाजिक होते है और झुंड में रहना पसंद करते है। उनके झुंड को ‘‘प्राइड्स’’ कहा जाता है। इस झुंड में एक से अधिक शेरनियां और उनके जवान बच्चे भी शामिल रहते हैं।  

प्रति वर्ष 10 अगस्त को ‘‘विश्व शेर दिवस’’ मनाया जाता है और इस दिन को मनाने का उद्देश्य लोगों को शेरों के प्रति जागरूक करना है। इस धरती पर इंसानों के अलावा कई तरह के जीव-जंतु रहते हैं, जिसमें कई प्रजाति के पक्षी से लेकर कई प्रजातियों के शेर तक शामिल हैं। विश्व शेर दिवस अथवा शेरों की चर्चा करने से पहले शेर और बाघ में बुनियादी अंतर को याद कर लेना ज़रूरी है। यद्यपि दोनों वन्यपशु एक ही प्रजाति के हैं। फिर भी इन दोनों में ये अंतर होते हैं कि - बाघों के शरीर पर काली धारियां होती है जबकि शेरों के शरीर पर किसी तरह की धारियां नहीं होती। नर शेर के गले में बालों के अयाल पाए जाते हैं जो बाघों में नहीं होते हैं। बाघ, शेरों के मुकाबले ज्यादा लंबे, भारी और ताकतवर होते है। बाघ, शेरों के मुकाबले ज्यादा चुस्त, फुर्तीले और उग्र होते है। बाघ का वजन शेर के मुकाबले ज्यादा होता है किन्तु शेर के मुकाबले बाघ पेड़ों पर अधिक ऊंचाई तक चढ़ सकता है। शेर की तुलना में बाघ अकेले रहना पसंद करते हैं। शेर की सामजिकता, दहाड़ का स्वर और बाघ की अपेक्षा भय उत्पन्न कर देने वाले व्यक्ति के कारण ही किस्से-कहानियों में जंगल के राजा का दर्जा शेर को ही मिला है बाघ को नहीं। शेर अधिकतर रात और सुबह के समय में शिकार करता है। शेर 2-4 दिन में शिकार करता है, मगर यह एक सप्ताह तक भी बिना शिकार के रह सकता है। शेर अपने प्राकृतिक आवास में चीतल, नीलगाय सांभर और जंगली सुअर का शिकार करना पसंद करता है। एशियाई शेर 2-2.5 मीटर लंबा और इसका वजन 115-200 किलोग्राम होता है और यह छोटी दूरी में 65 किलोमीटर प्रतिघंटा की गति से अपने शिकार का पीछा कर सकता है।

‘‘विश्व बाघ दिवस’’ प्रति वर्ष 29 जुलाई को मनाया जाता है जबकि ‘‘विश्व शेर दिवस’’ हर साल 10 अगस्त को मनाया जाता है। शेर यानी लाॅयन और बाघ यानी टाईगर।

शेर और बाघ दोनों ही सदियों से शिकारियों का निशाना रहे हैं। इन्हें मनोरंजन, शक्ति प्रदर्शन, खाल, नख और दांत आदि के लिए मारा जाता रहा है। इसीलिए आज ये दोनों संकटग्रस्त प्रजातियों में जा पहुंचे हैं। शेर एक विशालकाय प्राणी है। शेर भारत में रहने वाली पांच पंथेरायन कैट्स में से एक है, जिसमें बंगाल टाइगर, भारतीय तेंदुआ, हिम तेंदुए भी शामिल हैं। प्राचीन भारतीय काल इतिहास में एशियाई शेर इंडो-गंगाटिक प्लेन में सिंध से लेकर पश्चिम में बिहार तक पाए जाते थे। अगर प्राचीन भारतीय इतिहास के साहित्य, पेंटिंग और राजस्व रिकॉर्ड को देखा जाए तो मौर्य काल, गुप्तकाल और मुगलकाल के शुरुआती समय में एशियाई शेर को ‘‘रॉयल एनिमल’’ (राजसी पशु) माना जाता था। परंतु मुगलकाल से लेकर ब्रिटिश काल तक इनका व्यापक स्तर पर शिकार किया गया, जिसके फलस्वरूप ये भारत के अधिकतर क्षेत्रों से लुप्त हो गए। शेर का वैज्ञानिक नाम है-‘‘पैंथेरा लियो’’। वैसे शेर को दो उप-प्रजातियों में विभाजित किया गया है- अफ्रीकी शेर (पैंथेरा लियो लियो) और एशियाई शेर (पैंथेरा लियो पर्सिका)। पिछले 100 वर्षों में शेरों की आबादी में 80ः की गिरावट दर्ज की गई है।

शेरों के संरक्षण की पहल वर्ष 2013 में शुरू हुई थी और इसी वर्ष पहला ‘विश्व शेर दिवस’ भी आयोजित किया गया था। पिछले 100 वर्षों में शेरों की आबादी में 80 प्रतिशत की गिरावट दर्ज की गई। भारत एशियाई शेरों का प्रमुख आवास स्थान है और ये मुख्य तौर पर सासन-गिर राष्ट्रीय उद्यान (गुजरात) के संरक्षित क्षेत्र में निवास करते हैं। वर्ष 2020 के आंकड़ों के अनुसार, भारत में कुल 674 शेर हैं, जबकि वर्ष 2015 में यह संख्या 523 से अधिक थी। ‘प्रोजेक्ट टाइगर’ और ‘प्रोजेक्ट एलीफैंट’ की तर्ज पर अगस्त 2020 में घोषित प्रोजेक्ट लायन के तहत ‘कुनो-पालपुर वन्यजीव अभयारण्य’ (मध्य प्रदेश) के अलावा छह नए स्थलों की पहचान की गई। यह कार्यक्रम एशियाई शेर के संरक्षण के लिये शुरू किया गया, जिसकी अंतिम शेष वन्य आबादी गुजरात के ‘एशियाई शेर लैंडस्केप’ में मौजूद है। इससे पूर्व केंद्रीय ‘पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय द्वारा ‘एशियाई शेर संरक्षण परियोजना’ शुरू की गई थी। इसे वर्ष 2018 से वर्ष 2021 तक तीन वित्तीय वर्षों के लिये मंजूरी दी गई थी। इसके अंतर्गत एशियाई शेरों के समग्र संरक्षण के लिये रोग नियंत्रण एवं पशु चिकित्सा देखभाल हेतु बहु-क्षेत्रीय एजेंसियों के साथ समन्वय में समुदायों की भागीदारी के साथ वैज्ञानिक प्रबंधन की परिकल्पना की गई। शेरों की जनगणना प्रत्येक पांच वर्ष में एक बार आयोजित की जाती है।
शेरों की कम होती संख्या को देखते हुए ही विश्व शेर दिवस मानाया जाने लगा। पिछले वर्ष 2021 में विश्व शेर दिवस प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने ट्वीट में लिखा था कि, ‘‘शेर राजसी और साहसी होता है। भारत को एशियाई शेरों के घर होने पर गर्व है। विश्व शेर दिवस पर, मैं शेर संरक्षण के प्रति उत्साही सभी लोगों को बधाई देता हूं। आपको यह जानकर खुशी होगी कि पिछले कुछ वर्षों में भारत की शेरों की आबादी में लगातार वृद्धि हुई है।’’
जो शेरों के महत्व से बेखबर हैं उनके मन में यह प्रश्न उठना स्वाभाविक है कि एक वन्य हिंसक पशु का संरक्षण और संवर्द्धन क्यों जरूरी है? वस्तुतः शेर वन्य-पारिस्थितिकी तंत्र में एक महत्त्वपूर्ण स्थान रखता है। वह अपने आवास का शीर्ष शिकारी है, जो वन में रहने वाले हिरण, सांभर, चीतल आदि चारागाही पशुओं की संख्या को नियंत्रित कर पारिस्थितिक संतुलन बनाए रखने में मदद करता है। शेर अपने शिकार की आबादी को स्वस्थ रखने और उनके बीच लचीलापन बनाए रखने में भी योगदान देते हैं, क्योंकि वे झुंड के सबसे कमजोर सदस्यों को निशाना बनाते हैं। इस प्रकार अप्रत्यक्ष रूप से शिकार, आबादी में रोग नियंत्रण में मदद करता है।
जहां एक तरफ दुनिया भर में शेरों की घटती संख्या को लेकर चिंता जाहिर की जा रही है, तो वहीं दूसरी तरफ गुजरात सरकार के वन विभाग के अनुसार, प्रदेश में गिर के जंगलों और सौराष्ट्र के अन्य कुछ हिस्सों में पाए जाने वाले एशियाई शेरों की संख्या में वृद्धि दर्ज की गई है। शेरों की आबादी के संबंध में कुछ महत्वपूर्ण तथ्य हैंकि लगभग दो हजार साल पहले पृथ्वी पर 10 लाख से ज्यादा शेर पाए जाते थे। एक शेर का वजन 190 किलो तक और शेरनी का वजन 130 किलो तक होता है। जहां पर शेर होता है, वहां से आठ किलोमीटर की दूरी तक उसकी दहाड़ सुनी जा सकती है।ं एक शेर की उम्र लगभग 16 से 20 साल की होती है। वहीं, 90 प्रतिशत से ज्यादा शिकार शेर नहीं बल्कि शेरनियां करती हैं।
शेरों को बचाना अब हम मनुष्यों की जिम्मेदारी है। शेरों को बचाने की दिशा में जो सबसे पहली आवश्यकता है, वह है उनके आवासीय क्षेत्र की। शहरों, गांवों और कस्बों के निरंतर रिहाइशी फैलाव से जंगल सिकुड़ते जा रहे हैं, जिससे शेरों का आवासीय क्षेत्र कम होता जा रहा है। जंगलों की अंधाधुंध कटाई ने भी अन्य वन्य पशुओं की भांति शेरों के लिए संकट खड़ा कर दिया है। यदि हमें अपना परिस्थितिकी तंत्र दुरुस्त रखना है तो शेरों के लिए आवश्यक आवासीय क्षेत्र निर्धारित कर के रखने होंगे। हम दुनिया को यह कहने का अवसर नहीं दे सकते हैं कि भारतीय शेर दिल तो होते हैं लेकिन उनके देश में शेर ही नहीं होते हैं। अतः शेरों के संरक्षण के लिए जन-जागरूकता बढ़ानी होगी।
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