Tuesday, August 9, 2022

पुस्तक समीक्षा | दोहों के जल से मिट्टी को आचमन | समीक्षक - डाॅ. (सुश्री) शरद सिंह | आचरण

प्रस्तुत है आज 09.08.2022 को  #आचरण में प्रकाशित मेरे द्वारा की गई कवि बृंदावन राय सरल के काव्य संग्रह  "मिट्टी रोई फूट कर" की समीक्षा... आभार दैनिक "आचरण" 🙏

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पुस्तक समीक्षा
दोहों के जल से मिट्टी को आचमन
समीक्षक - डाॅ. (सुश्री) शरद सिंह
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काव्य संग्रह     -  मिट्टी रोई फूट कर
कवि           -  बृंदावन राय सरल
प्रकाशक     -  एसजीएसएच पब्लिकेशन
मूल्य           -  199/- 
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      इस दौर में पुस्तक प्रकाशन का एक नया ट्रेंड आरम्भ हुआ है, वह है ‘‘सेल्फ पब्लिशिंग’’। तनिक जोखिम है फिर भी लेखकों के लिए यह सुविधाजनक और राहत देने वाला ट्रेंड है। इसमें ऑनलाईन पब्लिशर अपना मोबाईल नंबर, ईमेल आईडी आदि साईट्स पर उपलब्ध कराते हैं। उनसे संपर्क कर के कोई भी लेखक अपनी पुस्तक प्रकाशित करा सकता है। वे अपने पब्लिकेशन हाउस का नाम देते हैं, आईएसबीएन नंबर देते हैं तथा सुंदर गेटअप के साथ न्यूनतम व्यय में पुस्तक की इच्छित प्रतियां छाप कर उसके ऑनलाईन प्रचार-प्रसार का जिम्मा भी लेते हैं। बस, जोखिम यही है कि जहां कुछ ईमानदार होते हैं, वहां दो-चार बेईमान भी होते हैं। लेकिन आज का चतुर लेखक ईमानदार पब्लिशर को पहचान लेता है। बहरहाल, ऐसे कई सेल्फ पब्लिशर अपने शहर का पता पुस्तक पर उजागर नहीं करते हैं। आज जिस पुस्तक की समीक्षा मैं करने जा रही हूं वह भी सेल्फ पब्लिशिंग में छपी हुई प्रतीत होती है क्योंकि इसमें भी व्हाट्सअप और इंस्टाग्राम नंबर तो दिए गए हैं लेकिन प्रकाशन संस्थान के शहर का नाम कहीं नहीं हैं। जैसा कि मैंने पहले कहा कि पुस्तक का गेटअप इस नए ट्रेंड के अनुरुप अच्छा है।

चलिए अब आते हैं संग्रह के आंतरिक पृष्ठों पर। संग्रह की सारगर्भित भूमिका खगड़िया बिहार के साहित्य सृजन मंच के संयोजक, संस्थापक शिवकुमार सुमन ने लिखी है। जहां तक संग्रह के कवि बृंदावन राय सरल के बारे में कहा जाए तो वे ऑनलाईन गोष्ठियों एवं कविसम्मेलनों का एक जाना-माना नाम हैं। कवि ने पुस्तक के कव्हर के पृष्ठ भाग में अपने दोहों के बारे में स्वयं लिखा है कि ‘‘किताब मिट्टी रोई फूट कर - इस किताब में मैंने दोहे लिखे हैं मां पर, देश पर, वर्तमान पर, पृथ्वीराज चौहान पर, बसंत पर, रिश्तों पर, नारी पर, बेटी पर, और भी अनेकों विषयों पर जो आप सबको पसंद आएंगे। क्योंकि दोहा ऐसी विधा है जिसमें 2 पंक्तियों में एक पूरी कविता कहने की क्षमता होती है। हिंदी साहित्य में दोहों की शुरुआत अमीर खुसरो से मानी जाती है। इनके साथ कबीर, तुलसी, रहीम के दोहे इतने प्रसिद्ध और सार्थक हैं कि आज भी एक भटके इंसान को सही राह पर लाने की क्षमता इनके दोहों में हैं। इनको हम मंत्र जैसे मान सकते हैं। इसी आधार पर मैंने दोहों के माध्यम से ‘मिट्टी रोई फूटकर’ लिखी है। बिहारी और रसलीन के दोहे भी बहुत प्रभावशाली माने जाते हैं। श्रृंगार के दोहे भी जिंदगी में बहुत महत्व रखते हैं। दुनिया के संचालन में श्रृंगार अपनी जगह जरूरी है। मैंने दोहे निर्धारित माप में लिखने का प्रयास किया है, जो सभी गेय भी हैं। इसलिए सभी को पसंद आएंगे। मुझे आशा ही नहीं पूर्ण विश्वास है।’’

कवि ने सरस्वती वंदना के बाद पहला दोहा ‘कलम लेखनी’ पर लिखा है जिसमें उसने कलम की महत्ता बताई है-
कलम हामरी आन है, कलम हमें आकाश।
कलम बिना लगता हमें, जैसे हों हम लाश।।
कलम हमारी ज़िनदगी, कलम हमें अहसास।
दुनिया मुट्ठी में दिखे, कलम रहे जग पास।।
कविता लिखती जो कलम, कीमत है अनमोल।
चांदी पर फिसले नहीं, शब्द-शब्द तू तौल।।

कवि ने प्रकृति और जीवन के साम्य पर दोहे लिखे हैं। जैसे धरती, गगन, पारा, पखेरू आदि-
मां धरती का रूप तो, पिता लगे आकाश।
जीवन भर जिनने दिया, हमको दिव्य प्रकाश।।
निर्मल निश्छल सोच हो, लेकिन गगन समान।
जिनमें सब बन कर रहें, सिर्फ़-सिर्फ़ इंसान।।
मन का पारा आसमां, चेहरे पर मुस्कान।
मौसम ऐसा आज है, क्या करता इंसान।।
प्राण पखेरू एक दिन,उड़ जाएं यह सत्य।
पाप, पुण्य के घ्यान से करना बस यह कृत्य।।

      पहाड़, पंछी, रोटी, प्यास, घाव आदि भी बृंदावन राय सरल के दोहों के विषय हैं जिनसे उनके दोहा सृजन को समुचित विस्तार मिला है-
शीशे का ले कर बदन, चढ़ना हमें पहाड़।
उस पर आंधी उठ रही, और खोखले झाड़।।
पानी भी मंहगा यहां, मंहगी रोटी-दाल।
नेता कहें विदेश में, भारत है खुशहाल।।
धनवानों की रूह में सहरा करे निवास।
दरिया इनको कम पड़े, ऐसी इनकी प्यास।।

आजकल जीवन इतना तनावपूर्ण हो गया है कि लोग स्वाभाविक हंसी हंसना भूलते जा रहे हैं। लोगों में मानसिक तनाव कम करने और उन्हें हंसाने के लिए शहरों में लाफिंग क्लब काम कर रहे हैं। कवि सरल भी हंसी को एक रामबाण औषधि मानते हैं। बानगी देखिए-
रामबाण-सी है हंसी, करे दूर सब रोग।
जो इनको पालन करे, सुख से हैं वे लोग।।
अमृत का ही रूप है, हंसना भी श्रीमान।
स्वस्थ रहो, सुख से रहो, ये भी संचित ज्ञान।।
जो होता है, सच वही, बाकी सब है झूठ।
हंसी बिना है ज़िन्दगी, जैसे सूखा ठूंठ।।

कवि ने मां पर बहुत सुंदर आत्मीय दोहे लिखे हैं जिसमें मां के विविध रूपों का परिचय दिया गया है-
मां चंदा की चांदनी मां सूरज की धूप।
वक्त पड़े ज्वालामुखी वक्त पड़े जल रूप।।
सरिता मां की नम्रता इसमें इतना प्यार ।
जीवन भर टूटे नहीं जिसकी अविरल धार।।
मां शाला मां है गुरु मां जीवन आधार ।
पौधा मां के प्यार से वृक्ष बने छतनार।।
मां मीरा की पीर है मां कबीर का सत्य।
मां मंदिर की प्रार्थना तुलसी का साहित्य।।
      
कभी सरल द्वारा किसान पर लिखे गए दोहे सच्चाई की खुरदरी जमीन से उठाए गए हैं इसीलिए वे बेहद सत्यनिष्ठ और मार्मिक है। कवि ने अपने दोहों के माध्यम से किसान की वास्तविक स्थिति को बखूबी सामने रखा है-
बेटी की शादी करें, बेच बेच कर खेत।
दुख में डूबी जिंदगी, मन भी सुखी रेत।।
आजादी है नाम की, मिलते ऋणी किसान।
किस्तों में मरने लगे, संकट में है जान।।
हुए अपनी लाश खुद, मिले ना कोई तंत्र ।
लगता आज किसान का, जीवन है परतंत्र।।

कवि ने जीवन के लिए श्रृंगार रस को आवश्यक माना है और इसीलिए उन्होंने श्रृंगार रस के दोह लिखते हुए श्रृंगार के सौंदर्य पक्ष को सामने रखा है-
अधर हिलें जब भी सरल, बरसे खुशबू इत्र।
आंखों से देखे हमें,  करके मादत चित्र।।
चंदन  महके जिस्म से मदिरा छलके नैन।
बिन उनके बस्ती हमें, होली की  हर रैन ।।
नैना दोनों मद भरे, चेहरा लगे गुलाब।
देह लगे कामायनी खुशबू भरा शबाब।।

बृंदावन राय सरल अपने दोहों के द्वारा संवाद करने में सक्षम हैं किन्तु संग्रह में जिस ढंग से दोहे प्रकाशित किए गए हैं, वे दोहे के फार्मेट में बाधा पहुंचाते हैं। दो पंक्तियों में लिखे जाने वाले दोहों को चार पंक्तियों में प्रकाशित कर दिया गया है जिससे प्रथमदृष्टि में इन दोहों के कविता या गीत होने का भान होता है। फिर भी दोहे पठनीय हैं और रुचिकर हैं। संग्रह को पठनीय माना जा सकता है। इन्हें पढ़ कर ऐसा प्रतीत होता है जैसे दोहों के जल से मिट्टी का आचमन किया गया हो।                        
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