Tuesday, November 15, 2022

पुस्तक समीक्षा | सुदृढ़ सद्भाव किन्तु कमज़ोर शिल्प की कहानियां | समीक्षक - डाॅ. (सुश्री) शरद सिंह | आचरण

प्रस्तुत है आज 15.11.2022 को  #आचरण में प्रकाशित मेरे द्वारा की गई लेखक एस. एम. अली के कहानी संग्रह "रंग गुलाल" की समीक्षा... आभार दैनिक "आचरण" 🙏
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पुस्तक समीक्षा
सुदृढ़ सद्भाव किन्तु कमज़ोर शिल्प की कहानियां
      समीक्षक - डाॅ. (सुश्री) शरद सिंह
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कहानी संग्रह  - रंग गुलाल
लेखक       - एस. एम. अली
प्रकाशक     - इंक पब्लिकेशन, 333/1/1के, नया पुरा, करेली, प्रयागराज-211016
मूल्य        - 200/-
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 कहानी कहना और कहानी लिखना दोनों में शिल्प महत्वपूर्ण होता है। यदि कहानी कही यानी सुनाई जा रही है तो उसमें स्वर का उतार-चढ़ाव, स्वराघात, भावभंगिमा, हाथों का संचालन आदि तत्व कहानी में दृश्यात्मकता का संचार करते हैं। वहीं, यदि कहानी लिखी गई हो और उसे पाठक पढ़ रहा हो तो पाठक के लिए वह शिल्प आवश्यक हो जाता है जो देशकाल का बोध कराता हुआ कथानक के मर्म से जोड़े रखे। ऊपरीतौर पर कहानी लिखना या कहना बहुत सरल प्रतीत होता है किन्तु कहानी की शिल्प संरचना में बरती गई असावधानी कथानक के स्वरूप को भी आघात पहुंचाती है। लेखक एस.एम. अली का कहानी संग्रह ‘‘रंग गुलाल’’ इसका एक ऐसा उदाहरण है जो नवोदित कथाकारों को सचेत करने के लिए सामने रखा जा सकता है। इसमें कोई संदेह नहीं है कि लेखक अली सामाजिक सद्भावना, समरसता और मानवता के प्रति सजग हैं। संग्रह में संग्रहीत उनकी चैबीस कहानियां मानवीय भावनाओं से ओतप्रोत हैं। वे अपनी प्रत्येक कहानी में एक उत्साही कथाकार की भांति घटनाक्रम पिरोते चले जाते हैं। उनकी इन कहानियों में अगर कुछ खटकता है तो वह शिल्प और देशकाल का बोध।
कहानी गद्य साहित्य की सबसे लोकप्रिय और रोचक विधा है। कहानी साहित्य की वह गद्य रचना है जिसमें जीवन के किसी एक पक्ष या एक घटना का कथात्मक वर्णन होता हैं। रवीन्द्रनाथ टैगोर ने कहानी में प्रवाह को महत्व माना था। उनके अनुसार, ‘‘नदी जैसे जलस्रोत की धार है, वैसे ही कहानी के लिए घटनाक्रम का प्रवाह हैं।’’ वस्तुतः कहानी अपेक्षाकृत कम शब्दों में जीवन की किसी एक घटना या किसी एक पक्ष को लिखा गया कथानक होता है। उपन्यास और कहानी के अंतर को स्पष्ट करते हुए प्रेमचंद ने कहा था कि ’’कहानी ऐसी रचना है, जिसमें जीवन के किसी एक अंग या किसी एक मनोभाव को प्रदर्शित करना लेखक का उद्देश्य रहता है। उसे उसके चरित्र, उसकी शैली, उसका कथाविन्यास सभी उसी एक भाव से पुष्ट करने होते हैं।’’
लेखक एस.एम. अली की कहानियों के गुण-दोष पर दृष्टिपात करने से पूर्व उनके प्राक्कथन पर ध्यान देना आवश्यक है। लेखक ने अपनी लेखकीय प्रतिबद्धता के बारे में लिखा है कि ‘‘जहां तक मेरे लेखन लिखने की प्रेरणा का प्रश्न है, मैं पूर्ण आश्वस्त हूं कि ये मुझे गाॅड गिफ्ट है। बचपन से ही मेरा लालन-पालन प्रगतिशील विचारधारा के अंतर्गत हुआ है। दकियानूसी विचारधारा मेरे परिवार मंे भी कोसों दूर है।’’ लेखक ने आगे लिखा है कि ‘‘देश-प्रेम, गंगा-जमुनी तहज़ीब, ग़रीबों के प्रति सहानुभूति, जीवन में ईमानदारी इन सभी चीजों से मुझे विशेष लगाव रहा है। आप इन चीजों का कहानियों में समावेश देख सकते हैं। मैंने अपनी सम्पूर्ण ज़िन्दगी का अनुभव कहानियों में दिखाने का प्रयास किया है।’’
6 जनवरी 1947 को जन्मे एस.एम.अली का यह प्रथम कहानी संग्रह है। उनके प्राक्कथन के बाद जब कहानियों का क्रम आरम्भ होता है तो उनके शब्द ‘‘गाॅड गिफ्ट’’ सहसा याद आ जाते हैं। यह माना जाता है कि ईश्वर या ख़ुदा (या चाहे जिस नाम से पुकारें) ने मनुष्य को बनाया है। ईश्वर मनुष्य को शिशु के रूप में जीवन का उपहार देता है। शिशु अपनी शैशवावस्था से आगे बढ़ते हुए लगभग प्रतिदिन नए अनुभवों को अपनी स्मृति और व्यवहार में संजोता जाता है। वह संस्कार, व्यवहार, परिवेश आदि से सीखता हुआ स्वयं को परिष्कृत करता है और ‘‘गाॅड गिफ्टेड’’ स्वयं के जीवन को संवारता है, परिपक्व बनाता है। लेखक एस.एम.अली मानते हैं कि उन्हें ‘‘लेखन लिखने’’ की प्रेरणा ऊपरवाले ने दी है, किन्तु उस प्रेरणा को सार्थक स्वरूप देना उनका दायित्व कहा जाएगा। उनके इस संग्रह की पहली कहानी ‘‘रंग गुलाल’’ से ही इस बात का अनुमान हो जाता है कि लेखक वाक्यों की काल संरचना को ले कर असावधान है। कहानी के दूसरे पैरे का यह अंश देखिए-‘‘गांव के गरीब तबके के लोग शहर जा कर मजदूरी करते हैं। पार्वती भी गांव के लोगों के साथ मजदूरी करने शहर आ जाती है। शहर के आउट-एरिया में दस-पंद्रह आमों के वृक्ष लगे थे। गंाव के लोगों के साथ ही पार्वती ने भी आमों के वृक्ष के नीचे पतली-पतली लकड़ियां गाड़ कर, पलास के पत्तों से ढंक कर झोपड़ी बना ली थी।’’ इस अंश में ‘‘दस पंद्रह आमों’’ के ‘‘वृक्ष’’ को (जो कि आम के दस-पंद्रह वृक्ष होने चाहिए थे) अनदेखा कर दिया जाए तो भी पार्वती ‘‘शहर आ जाती है’’ के समयबोध के तुरंत बाद ‘‘झोपड़ी बना ली थी’’ समयदोष उत्पन्न करता है। ‘‘झोपड़ी बना ली थी’’ के पूर्व ‘‘शहर आ गई थी’’ होना चाहिए था। इस प्रकार का व्याकरण दोष लगभग हर कहानी में मौजूद है, जो बहुत खटकता है। एक ऐसा लेखक जो कहानी लेखन के प्रति गंभीरता से संलग्न हो और अपनी आयु के अनुरूप दीर्घ जीवनानुभव से समृद्ध हो, उसकी कहानियों में व्याकरण दोष को रेखांकित करना अटपटा प्रतीत होता है। किन्तु इसे रेखांकित किया जाना आवश्यक है क्योंकि अब ये कहानियां पुस्तक के रूप में पाठकों और नवोदित रचनाकारों के हाथों में हैं। इन कहानियों के शिल्प का अनुकरण करने वालों को इस व्याकरणीय दोष को समझना ही होगा।
भाषा भावों को अभिव्यक्ति प्रदान करने का माध्यम होती है और शैली उस अभिव्यक्ति को प्रभाव और स्वरूप प्रदान करती है। एक प्रभावशाली कहानी में सरल एवं बोधगम्य भाषा का सर्वाधिक महत्व होता है। यद्यपि जयशंकर प्रसाद की संस्कृतनिष्ठ भाषा अपने देशकाल के कारण बोधगम्य साबित होती है। काल और पात्र की यथार्थ अभिव्यक्ति के लिए भाषा में स्वाभाविकता आवश्यक है। प्रेमचन्द की कहानियों का प्रभाव पाठको पर इसीलिए पड़ता है कि उनकी भाषा उनके कथापात्रों के अनुरूप है। भाषा को समर्थ और संप्रेषणीय बनाने के लिए शब्दों का सर्तकतापूर्ण   चयन आवश्यक हो जाता है। एक कुशल लेखक अपनी प्रभावी शैली से सामान्य कथानक को भी महत्वपूर्ण बना देने की क्षमता रखता है।
कहानी की संरचना के आधारभूत तत्वों को ध्यान में रख कर देखा जाए तो लेखक एस.एम.अली की कई कहानियां लेखकीय भ्रम में रची हुई प्रतीत होती हैं। वैसे कहानी संग्रह ‘‘रंग गुलाल’’ की कुछ कहानियां सशक्त बन पड़ी हैं, जैसे- ‘‘अंतिम इच्छा’’, ‘‘पैग़ाम’’, ‘‘वतन की ख़ुश्बू’’। कहानी ‘‘राम घाट’’ भी एक अच्छी कहानी है। इस कहानी का प्रत्येक घटनाक्रम बड़े धैर्य के साथ आगे बढ़ा है और अंत भी रोचक है। कहानी ‘‘भ्रम का माया जाल’’ भी एक सशक्त कहानी है। यह कहानी उन लागों को धिक्कारती है जो स्वार्थसिद्ध करने के लिए समाज में जाति और धर्म के अलगाव की बातें करते हैं। ऐसे स्वार्थी लोग किसी भी धर्म विशेष के लोगों को बुरा ठहराने से नहीं चूकते हैं। वे जानते हैं कि जब दो समुदाय आपस में टकराएंगे तो उन्हें अपराध करने का भरपूर अवसर मिलेगा और वे अपने अपराध को धार्मिक वैमनस्य के आड़ में छिपा लेंगे। बकरी के खोने जाने की घटना के बहाने लेखक ने एक संवेदनशील विषय पर रोचक ताना-बाना बुना है। यह कहानी लेखक एस.एम.अली के लेखकीय कौशल को सामने रखती है। जबकि संग्रह की शीर्षक कथा ‘‘रंग गुलाल’’ में कथानक का मूलभाव उस तरह स्पष्ट नहीं हो सका है जैसा कि हो सकता था। कहीं-कहीं शब्दिक दोष भी पात्र के चरित्र को समझने में बाधा बना है। जैसे कहानी ‘‘चीखें’’ एक अत्यंत मार्मिक कहानी है जिसमें वर्तमान पीढ़ी के द्वारा अपने माता-पिता की अवहेलना का वर्णन है। कथा के मुख्य पात्र लल्लन बाबू अपनी पत्नी की मृत्यु के बाद निरंतर अपने बेटे-बहू के हाथों उपेक्षा झेलते रहते हैं। शारीरिक कष्ट से उत्पन्न उनकी चींखें सुनने की फ़ुर्सत किसी को नहीं है। इस कहानी का अंत अपने पीछे यह संदेश छोड़ जाता है कि अपने बुजुर्गों के साथ युवाओं को इस तरह दुव्र्यवहार नहीं करना चाहिए। किन्तु इसी सशक्त कहानी में खीर में कंकड़ की भांति प्रयुक्त हुआ है ‘‘तल्ख़ी’’ शब्द। इसे समझने के लिए यह अंश देखिए-‘‘लल्लन बाबू का शरीर डील-डौल से भारी-भरकम है। हंसमुख रहना उनके स्वभाव की विशेषता रही है, पर जब से पत्नी का स्वर्गवास हुआ है तो वे हंसते तो हैं, पर अब उनकी हंसी में पहले जैसी तल्ख़ी नहीं रही।’’ अब यहां ‘‘हंसमुख’’ स्वभाव और हंसी में ‘‘पहली जैसी तल्ख़ी’’ का प्रयोग करके लेखक क्या कहना चाहता है, यह समझना कठिन है। क्योंकि ‘‘तल्ख़ी’’ फ़ारसी शब्द है, जिसका अर्थ होता है ‘‘कड़वाहट’’ या ‘‘चिड़चिड़ापन’’।
‘‘बाबा की दुआ’’ और ‘‘दैवीय कृपा’’ कहानियों को पढ़ते समय एक बार फिर प्राक्कथन के वे शब्द याद आ जाते हैं जिसमें लेखक ने स्वयं को प्रगतिशील विचारधारा का समर्थक और दकियानूसी विचारों का विरोधी कहा है। दीवार गिरने पर बाबा की दुआ से पत्नी की जान बच जाना, प्राक्कथन के प्रति ‘‘कंट्रास्ट’’ पैदा करता है। वहीं ‘‘दैवीय कृपा’’ में पिता की बीमारी की ख़बर पा कर शीघ्रता में बिना टिकट ट्रेन पर सवार हो जाना और फिर टिकटचेकर को अपनी समस्या से अवगत कराना वह घटना है जिसके पक्ष में टीसी बेटिकट यात्री के रूप में उसे पकड़ता नहीं है। जिस मानवता के आधार पर टीसी उसे छोड़ देता है, उसी मानवता के कारण सहयात्री उसकी आगे की टिकट कटा देते हैं। किन्तु लेखक ने इसे दैवीय कृपा ठहराते हुए अपने ही प्राक्कथन के शब्दों पर प्रश्नचिन्ह लगा दिया है। रहा प्रश्न शब्द चयन का तो एक गड़बड़ी इसी कहानी में देखी जा सकती है जब लेखक ने रेलवे स्टेशन का वर्णन करते हुए लिखा है-‘‘ट्रेन का पहला हाॅर्न बज चुका था। राकेश ने गेट पर खड़े टीसी को बताया-‘सर, मेरा जाना बहुत जरूरी है।’ अब गाड़ी का दूसरा हाॅर्न बज चुका था, तीसरे हाॅर्न के साथ ही गाड़ी रेंगने लगी थी।’’ यहां विचारणीय है कि रेल के साथ सीटी अथवा व्हिसिल का प्रयोग किया जाता है ‘‘हाॅर्न’’ का नहीं। रेलगाड़ी पर एक प्रसिद्ध फिल्मी गाना भी है-‘‘गाड़ी बुला रहा है, सीटी बजा रही है।’’
कहानी संग्रह ‘‘रंग गुलाल’’ के आधार पर यह कहा जा सकता है कि इसमें कोई संदेह नहीं है कि लेखक एस.एम.अली में कथालेखन का उत्साह है। वे स्वस्थ सामाजिक परिवेश की कहानियां लिखने में रुचि रखते हैं। बस, कमी है तो शब्दों के सही प्रयोग, समयसूचक निर्दोष वाक्य संरचना और स्वतः आकलन की। यदि लेखक ने स्वयं अपनी कहानियों को एक बार समीक्षात्मक दृष्टि से पढ़ा होता तो उसमें ये त्रुटियां नहीं रहतीं जो उनके लेखन को कमजोर की श्रेणी में धकेल रही हैं। फिर भी लेखक की लेखकीय प्रतिबद्धता को देखते हुए यह आशा की जा सकती है कि उनका अगला कहानी संग्रह शिल्प की दृष्टि से भी सशक्त रहेगा। वैसे कथावस्तु की दृष्टि से यह संग्रह भी पठनीय माना जा सकता है।     
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