Monday, November 21, 2022

ट्रेवलर डॉ (सुश्री) शरद सिंह | ख़ुद को क़ैद मत करिए

मित्रो, घर से बाहर घूमने निकलने के बावजूद भी अगर आप अपनी ख़ुद की क़ैद से बाहर नहीं निकल पाए तो ऐसा घूमना भी किस काम का? दरअसल, पिछले दिनों ट्रेवलिंग के दौरान दो घटनाएं ऐसी रहीं जिन्होंने मुझे सोचने पर मज़बूर कर दिया। 😢🤔😗      
     चलिए मैं बताती हूं उन दोनों घटनाओं के बारे में... रास्ते में एक रेस्टोरेंट में हम लोग जब खाना खा रहे थे और हंसी-मज़ाक कर रहे थे, उसी दौरान एक छोटा परिवार वहां पहुंचा। छोटा यानी पति, पत्नी और दो बच्चे। बच्चे अपने स्वभाव के अनुसार चंचल थे। आसपास के और बच्चों के साथ वे दोनों बच्चे जल्दी घुलमिल गए। लेकिन जो पति महोदय थे, वे पूरे टाइम यानी जब से आकर कुर्सी पर बैठे तभी से, मोबाइल पर बात करने में जुट गए। बैरे ने मीनू दिया तो वह भी उन्होंने अपनी पत्नी के सामने कर दिया। पत्नी ने खाने का आर्डर दिया। खाना आया। बच्चे भी खेलना-कूदना छोड़कर खाना खाने आ गए। सभी लोग खाना खाने लगे। किंतु उस दौरान भी उन पतिदेव का मोबाइल पर संवाद समाप्त नहीं हुआ। वह व्यक्ति पूरे समय मोबाइल पर बात करता रहा। मुझे तो लगता है कि उसे इस बात का भी एहसास नहीं हो पाया होगा कि उसने क्या खाया और जो भी खाया उसका स्वाद क्या था। अरे, ऐसी भी क्या व्यस्तता? यदि वह सामने वाले से यह कहता है कि मैं अभी डिनर कर रहा हूं ,थोड़ी देर बाद कॉलबैक करता हूं, तो निश्चित रूप से सामने वाला व्यक्ति भी यही कहता कि- 'हां-हां आप खाना खा लीजिए, उसके बाद बात करते हैं।' कोई भी व्यक्ति यह नहीं कहेगा कि खाना पीना छोड़ कर और मोबाइल पर बातें करते रहो। चाहे कितना भी बड़ा कॉर्पोरेट का मामला क्यों न हो खाने का समय तो निकलता ही है और निकालना ही पड़ता है। फिर यह तो फैमिली टाइम बिताने का समय था। यदि आप पत्नी और बच्चों के साथ आए हैं तो उनके साथ अपनी उपस्थिति भी जताई है। यह क्या कि पूरे समय मोबाइल फोन पर ही जुटे रहे। यह तो हद है 🤔🤷
       इसके 2 दिन बाद ही एक अन्य रोडसाइड होटल में खाना खाने के लिए रुकने पर, वहां भी मैंने यही दृश्य देखा कि एक छोटी फैमिली पति, पत्नी और दो बच्चों वाली वहां आई। बाहर लॉन में हम लोग सभी बैठे थे, वे लोग भी एक अलग टेबल पर बैठ गए। बच्चे झूला देखते ही मचलने लगे और अपने पापा से कहने लगे कि चल के झूला झूला दें।स्वाभाविक था, बच्चे छोटे थे वे डर भी रहे थे और झूला भी झूला चाहते थे। लेकिन उनके पापा जी को मोबाइल से फ़ुर्सत नहीं थी। अंततः मां उठकर गई उसने बच्चों को झूला झुलाया। फिर खाने का आर्डर दिया और फिर सब ने खाना खाया। 👩‍👧‍👧
          वहीं, इसके ठीक पहले जब हम लोग वहां पहुंचे ही थे तो उस समय एक परिवार खाना खाकर जाने की तैयारी में था। इसी तरह का एक छोटा परिवार। वे लोग अपनी फोटो खींच रहे थे। सेल्फी ले रहे थे। फिर जब वे उठकर जाने लगे तो पति बच्चों के साथ खड़ा हो गया और पत्नी उनकी फोटो लेने लगी। मुझसे देखा नहीं किया और मैंने उनसे कहा कि- 'एक्सक्यूज़ मी! लाइए मैं आप लोगों की फोटो खींच देती हूं। मैम आप भी बच्चों के साथ खड़ी हो जाइए।' 📷💝
    वे बहुत खुश हुए। पूरा परिवार एक साथ उनके मोबाइल में कैप्चर करते हुए मुझे भी बड़ी खुशी हुई। फिर वे लोग खुशी-खुशी वहां से चले गए। एक यादगार पल उनके मोबाइल में कैद हो चुका था। वे सभी एक-दूसरे से जुड़े हुए थे, एक दूसरे पर ध्यान दे रहे थे। जबकि बाकी जो दो परिवार मैंने देखे, उनमें परिवार का मुखिया ही मोबाइल में डूबा हुआ था। बड़ा अज़ीब लगता है यह सब देख कर। 🤔🤷😞
         बेशक़ जब कोई काम कर रहा हो तो उसे पूरे समर्पण के साथ काम करना चाहिए, लेकिन जब वह अपने परिवार के साथ हो तो उसे पूरी तरह से अपने परिवार के साथ ही होना चाहिए। मुझे ऐसा लगता है।👨‍👩‍👦‍👦 विचारणीय है कि आप की अवहेलना पाकर कल को यदि आपका परिवार आप की अवहेलना करने लगेगा उस दिन जो पीड़ा आपको होगी उसका अभी आप अनुमान नहीं लगा सकते हैं। 👺👿🥺
          अब रही बात होटल में लगे हुए झूलों की तो उन्हें देख कर मेरा भी मन मचल उठा 🥳🤡😻 मित्रो, यह जरूरी नहीं है कि अपने भीतर मौजूद बालमन को खिलंदड़ापन करने के लिए बाल दिवस का ही इंतजार करना पड़े, वह तो कभी भी इंजॉय कर सकता है 🎠 🍬🍭आखिर दिल तो बच्चा है जी 🤹
 तो लीजिए देखिए मेरी कुछ तस्वीरें 📸
      🎏 झूले पर बैठकर बचपन के दिन याद आ गए .... वैसे seesaw पर मेरे सामने बैठने की किसी की हिम्मत नहीं हुई 💪✌️ हालांकि फिसल पट्टी पर चढ़ते समय मुझे ख़ुद इस बात का ख़तरा ज़रूर महसूस हुआ था कि मेरे अच्छे खासे वज़न से बच्चों वाली वह फिसल पट्टी कहीं धराशायी न हो जाए 😋😆 लेकिन गनीमत कि वह मज़बूत निकली। वरना होटल वाला भी मुझे कोसता 😁😛
वैसे, मुझे लगता है कि मुझे अपना वज़न घटाने पर ध्यान देना चाहिए... झूलों और फिसलपट्टी के हित में 🤸🏋️🚴😝⚠️ 

Mid November, 2022     
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