"कविता या काव्य का हमारे जीवन में हमेशा बहुत अधिक महत्व रहा है। यह सभी जानते और मानते हैं कि काव्य का संबंध हृदय से होता है और हृदय का संबंध संवेदना से। इसीलिए आदिकाल से काव्य हमारे जीवन पर विभिन्न प्रकार से प्रभाव डालता रहा है। विशेष रूप से काव्य में वाचिक परंपरा का बहुत अधिक महत्व है जिसे हम पाठ और गीतों की गेयता के रूप में ग्रहण करते हैं, व्यक्त करते हैं। लोकगीत इसके सबसे अच्छे उदाहरण हैं। वैसे, आदिकाल में राजा युद्ध भूमि पर जाते थे तो उनके साथ उनके चरण कवि भी जाते थे। जो उनके शौर्य की गाथा गाते हुए सेना में उत्साह का संचार करते थे। ज़रा सोचिए कि युद्ध भूमि के कोलाहल में एक कवि का स्वर किस तरह से ऊर्जा का संचार करता रहा होगा, जबकि उस समय आज की तरह न तो लाउडस्पीकर होते थे और न एमप्लीफायर्स होते थे। यह कवि का ओजपूर्ण स्वर ही होता था जो उस कोलाहल को भेदता हुआ सैनिकों के कानों तक पहुंचता था। उन कविताओं में वह शक्ति होती थी जो सैनिकों में ऊर्जा का संचार कर देती थी, उनमें उत्साह भर देती थी। जो काव्य वीररस में ढलकर युद्ध भूमि में उत्साह भरता है, वही काव्य शांतरस में उतर कर शांति का संचार करता है। श्रृंगाररस श्रृंगारभावना को उद्दीप्त करता है और करुणरस में ढल कर काव्य हृदय को व्यथित करने की क्षमता रखता है। ये सारी बातें आप सभी जानते हैं। सभी सुविज्ञ हैं। काव्य की इस महत्ता का स्मरण कराने के पीछे मेरा उद्देश्य मात्र यही है कि आज खुले काव्य मंचों पर जिस तरह काव्य का अवमूल्यन हो रहा है उसे रोकने और मंच पर वास्तविक काव्य की पुनर्स्थापना करने की आवश्यकता है। यह बात हमेशा याद रखने योग्य है कि काव्य हमारे जीवन को संस्कारित करता है। और हम अपने काव्य-संस्कारों को दूषित नहीं होने दे सकते हैं। बुंदेलखंड हिंदी साहित्य संस्कृति विकास मंच में कई ऐसे कवि जुड़े हैं जो खुले मंचों पर भी संस्कारित कविताओं का पाठ करते हैं, वे नमन योग्य हैं, अभिनंदन योग्य हैं! ऐसे ही कविगण खुले मंचों पर वास्तविक काव्य की पुनर्स्थापना कर सकते हैं।" अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में मैंने (यानी डॉ शरद सिंह ने) अपने ये विचार रखे। अवसर था बुंदेलखंड हिंदी साहित्य संस्कृति विकास मंच सागर की 1491 गोष्ठी तथा 129 वी ऑनलाइन गोष्ठी का। गोष्ठी में मैंने अपनी एक ग़ज़ल भी पढ़ी।
💢 संयोजक श्री मणिकांत चौबे बेलिहाज़ तथा संरक्षक श्री कृष्णकांत बक्शी के कुशल निर्देशन एवं श्री नलिन जैन नलिन के संचालन में यह गोष्ठी 05.11.2022 को आयोजित की गई, जिसमें स्थानीय साहित्य मनीषियों के साथ ही देश के विभिन्न राज्यों एवं शहरों से कवियों ने अपनी उपस्थिति दर्ज़ कराते हुए अपनी रचनाओं का पाठ किया। विभिन्न समाचार पत्रों में प्रकाशित इसके समाचार आपसे साझा कर रही हूं।
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