प्रस्तुत है आज 29.11.2022 को #आचरण में प्रकाशित मेरे द्वारा की गई प्रस्तुत है आज 29.11.2022 को #आचरण में प्रकाशित मेरे द्वारा की गई लेखिका शोभा शर्मा के उपन्यास "एक थी मल्लिका" की समीक्षा... आभार दैनिक "आचरण" 🙏
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पुस्तक समीक्षा
थ्रिलर, हाॅरर पढ़ने वालों के लिए एक दिलचस्प उपन्यास
समीक्षक - डाॅ. (सुश्री) शरद सिंह
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उपन्यास - एक थी मल्लिका
लेखिका - शोभा शर्मा
प्रकाशक - फ्लाई ड्रीम्स पब्लिेकेशन, जैसलमेर, राजस्थान
मूल्य - 150/-
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शोभा शर्मा एक ऐसी लेखिका हैं जिन्हें महाविद्यालय में नाटक ‘‘अग्नि लीक’’ में सीता का अभिनय करने पर पुरस्कृत किया गया था। उन्हें लेखन से हमेशा लगाव रहा है। उनकी कहानियां पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित होती रही हैं जो आमतौर पर पारिवारिक परिवेश की कहानियां रही हैं। स्वयं के पारिवारिक जीवन को सम्हालते हुए और अध्यापनकार्य करते हुए शोभा शर्मा ने अपनी लेखन यात्रा को सतत जारी रखा और एक चैंका देने वाला उपन्यास लिखा ‘‘एक थी मल्लिका’’। यह उनके पूर्व लेखन से हट कर हाॅरर और थ्रिलर उपन्यास है। इसमें हवेली है, भूत-प्रेत हैं, तंत्र-मंत्र हैं और अतीत का कड़वा, काला सच भी है जो रोंगटे खड़े करने की क्षमता रखता है।
वस्तुतः जो गोपन रहता है, वही कौतूहल जगाता है। गहन अंधकार इसका सबसे अच्छा उदाहरण है जिसमें व्यक्ति कुछ भी देख नहीं पाता है और यह अज्ञात उसके मन में कौतूहल के साथ-साथ भय का संचार भी करता है। इसीलिए प्रायः व्यक्ति गहरे अंधेरे में जाने से डरते हैं। मन में सोया पड़ा यही डर अनुकूलता पा कर जाग उठता है और मन में भूत, प्रेत, ड्रैकुला आदि नानाप्रकार की डरावनी छवियां उभरने लगती हैं। अंग्रेजी में ऐसे उपन्यास बहुत लिखे गए और जिन्होंने दुनिया भर की भाषाओं में अनूदित हो कर धूम मचाया। इनमें कुछ हैं-स्टीफन किंग का ‘‘कैरी’’, शर्ली जैक्सन का ‘‘द हंटिंग ऑफ हिल हाउस’’, कॉरमैक मैकार्थी का ‘‘ब्लड मेरिडियन’’, रिचर्ड मैथेसन का ‘‘हेल हाउस’’, विलियम पीटर बैट्टी का ‘‘द एक्साॅकर््िस्ट’’, जे एंसन का ‘‘एमिटीविले हॉरर’’ आदि। वैसे, दुनिया का सबसे मशहूर हाॅरर उपन्यास माना जाता है आयरिश लेखक ब्राहम स्टोकर का ‘‘ड्रैकुला’’। यह कहा जाता है कि ‘‘ड्रैकुला’’ पात्र रोमानिया (वैलाचिया) के राजकुमार व्लाड थर्ड पर आधारित था। राजकुमार व्लाड को रोमानिया में एक हीरो की तरह माना जाता था, लेकिन अपने दुश्मनों के प्रति उसकी क्रूरता ने उसे हाॅरर उपन्यासों का कालजयी खलनायक बना दिया। एक रक्तपिपासु पिशाच। वस्तुतः राजशाही के समय में अपने दुश्मनों के साथ भांति-भांति की क्रूरता बरती जाती थी। जो ज़मींदार या राजा स्वभाव से ही क्रूर होते थे वे निर्दोषों को भी अमानवीय यातना भरी मौत देते थे। जिससे यह किंवदंतियां प्रचलित होती गईं कि क्रूरतापूर्वक असमय मार दिए जाने या मरने को विवश किए जाने वाले की आत्माएं अतृप्त रह जाती हैं और वे प्रेत योनि में इसी संसार में भटकती रहती हैं। संसार भर के राजमहल और हवेलियां जानलेवा षडयंत्रों के किस्सों से भरी पड़ी हैं। इसीलिए ब्रिटेन के अधिकांश पुराने महल प्रेतबाधा से ग्रसित माने जाते हैं। भारत में भी कई ऐसे किले और पुराने भवन हैं जिनमें आत्माओं के पाए जाने के किस्से जुड़े हुए हैं। इन किस्सों के पीछे वह भयावह सच विद्यमान है जिन्होंने अतीत के पन्ने निर्दोषों के रक्त से रंगे। मार कर या जीवित दीवारों में चुनवा दिया जाना, सुंदर स्त्रियों को भोग्यावस्तु की तरह प्रयोग में लाना और फिर उनका अस्तित्व विलीन कर देना-यह सब राजशाही का एक घिनौना पक्ष रहा है। लेकिन इसका अर्थ यह भी नहीं है कि ऐसे घृणित षडयंत्रों में मात्र पुरुषवर्ग लिप्त रहता रहा हो। रनिवास की रानियां और जमींदारों की पत्नियंा भी घिनौने प्राणलेवा षडयंत्रों में पीछे नहीं रहती थीं। कभी राजनीति के नाम पर, तो कभी रनिवास में वर्चस्व बनाए रखने की ललक में तो कभी, मात्र ईष्र्या-द्वेष के वशीभूत। राजनीतिक षडयंत्रों के मामले में मुगल शासक अकबर का लालन-पालन करने वाली माहमअंगा के षडयंत्र इतिहास में दर्ज़ हैं।
‘‘एक थी मल्लिका’’ उपन्यास में किसी राजपरिवार के षडयंत्र का नहीं वरन ज़मींदार परिवार की हवेली में रचे गए षडयंत्र और उससे उपजे हत्याकांड सामने आते हैं। उपन्यास के बारे में और कोई चर्चा करने से पूर्व यह बता देना जरूरी है कि इसमें बुंदेलखंड के टीमकगढ़ की एक हवेली से जुड़ी कथा को उठाया गया है। लेखिका स्वयं टीकमगढ़ की रहने वाली हैं इसलिए वहां के इतिहास, भूगोल से वे भली-भांति परिचित हैं और इसीलिए उपन्यास में उस क्षेत्र में प्रचलित परंपराओं, लोकाचार, बोली और अंधविश्वासों का बखूबी उपयोग किया है। इससे उपन्यास अधिक विश्वनीय प्रतीत होने लगता है।
उपन्यास का आरंभ एक हवेली से होता है, जिसके पास से गुज़रते हैं दो ऐसे हलवाइए जो शादी-विवाह की कैटरिंग में काम करते हैं। वे दोनों एक अनुबंध पर उस गांव में खाना बनाने आते हैं। दिन भर व्यंजन पकाने के बाद वे दोनों खुली हवा में टहलने निकल पड़ते हैं। वे टहलते-टहलते एक हवेली के पास से गुज़रते हैं कि तभी उन्हें किसी का मधुर स्वर सुनाई देता है। एक स्त्री का स्वर जो उन दोनों से कहती है-‘‘ओ लाला! इते तौ आओ! हमाए जूड़ा कौ गुलाब गिर गौ है ड्योढ़ी पै, उठायैं तो ल्याईऔ!’’ वे दोनों देखते हैं कि उनके सामने सुर्ख़ लाल ताज़ा गुलाब गिरा हुआ है। वे सिर उठा कर देखते हैं तो ऊपर झरोखे पर एक स्त्री दिखाई देती है। ‘‘सुंदरी सोलहों श्रृंगार किए बैठी थी, उस पर मुस्कुरा कर आग्रह भी किए जा रही थी,‘‘तनक आइयो तौ ऊपर...ओ लाला!’’
‘‘दोनों की रगों में सनसनसहट होने लगी, कनपटियां गर्म हो उठीं, दिल जोरों से धड़क कर खुद से ही बग़ावत कर बैठे। आंखों के डोरे गुलाबी हो उठे। पता नहीं क्या हो जाए आज की रात....पता नहीं, बहत कुछ होने वाला है। ... सोलह श्रृंगार किए झरोखे पर बैठी, खनकती आवाज़ में सुंदरी गलाब लेकर ऊपर आने का आग्रह करती है, मुस्कुराती है तो इन परदेसी राजू, जग्गू के मन में हलचल मच जाती है। वे बेताब हो उठते हैं ऊपर जाने को। उस सुंदरी के साहचर्य को। ऐसा मौका उन्हें फिर और कब मिलेगा? ...सच बखूबी चित्रित किया है कि किस प्रकार साधन और शक्ति सम्पन्न लोग गरीब और असहाय घरों की सुंदर अवयस्क लड़कियों को भी अपने घर की कथित बहू बना कर ले जाया करते थे। वर की अनुपस्थिति में उसकी निर्जीव तलवार या कटार से वधू का विवाह करा दिया जाना घोर अन्याय था। लेकिन राजशाही के समय में यह अन्याय परिपाटी बना कर स्थापित कर दिया गया था। बुंदेलखंड में इसी मुद्दे पर एक लोककथा प्रचलित है जिसे ‘‘दशामता की कथा’’ के नाम से जाना जाता है। यद्यपि इस लोककथा को अब व्रतकथा के रूप में बांचा जाता है। इस कथा में एक निःसंतान सेठ द्वारा दूर देश की एक कन्या को अपने ऐसे पुत्र की तलवार के साथ ब्याह कराकर ले आता है जिस पुत्र का अस्तित्व भी नहीं है। उस कन्या को ससुराल पहुंच कर सच्चाई का पता चलता है। बहरहाल, यह कथा तो सुखांत पर पहुंचती हैं किन्तु वास्तविक जीवन की हर कथा सुखांत नहीं रही। यही कड़वा, घिनौना सच सामने आता है जब मल्लिका आपबीती सुनाना आरंभ करती है।
प्रकाशक ने ‘‘एक थी मल्लिका’’ को ऐतिहासिक हाॅरर उपन्यास की श्रेणी में रखा है। जो सही है क्योंकि इस उपन्यास के हर मोड़ पर एक सस्पेंस मिलता है। इसके दिलचस्प पहलू बुंदेली परिवेश और बुंदेली बोली का प्रयोग भी है जो इसे और अधिक रोचक बना देता है। भूत-प्रेत पर आधारित सामग्री पसंद नहीं करने वाले पाठकों को यह अंधविश्वास से भरा हुआ उपन्यास लग सकता है किन्तु यदि इसे मनोरंजन और अतीत की कटु सच्चाई के दृष्टिकोण से पढ़ा जाए तो यथार्थ की अनेक पर्तें खुलती हुई मिलेंगी। उपन्यास के कलेवर के बारे में और अधिक बता कर उसका थ्रिल और सस्पेंस खत्म नहीं किया जाना चाहिए। फिर भी यह कहा जा सकता है कि यह उपन्यास बुंदेलखंड की हवेलियों के षडयंत्रकारी अतीत से परिचित कराता है। स्त्री के प्रति होने वाले अन्याय का रोंगटेखड़े कर देने वाला चेहरा दिखाता है। ईर्ष्या-द्वेष, छल-कपट, भूत-प्रेत के साथ ही डर की प्रतीत खूंखार काली बिल्ली भी इस उपन्यास में मौजूद है। यानी हाॅरर, थ्रिलर उपन्यास पसंद करने वालों के लिए ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य का एक फुल पैकेज़ है यह उपन्यास।
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